नीलेश मिसरा—स्लो में आपका स्वागत है।
तापसी पन्नू—थैंक्यू
नीलेश—अपने नाम का मतलब बताइए?
तापसी पन्नू— हंसते हुए… तपस्वनी, संस्कृत शब्द है जो कोच्चि में किसी लड़की का नाम सुना था मेरी बुआ और फूफा जी ने। शायद मेरे पैदा होने से पहले या उसी टाइम। अभी तो लोग सोचते हैं बंगाली है, पता नहीं क्या है बट हां डेफनेटली एक चीज तो है कि लोग सरदारनी नहीं सोचते हैं। बाकी बहुत से लोगों को लगता है पता नहीं क्या है। कई लोग तो मिस्टर लगा देते हैं, मिस्टर तापसी। नया नाम है, लेकिन खुश हूं। (जोर से हंसते हुए)
नीलेश मिसरा—वेयर यू बोर्न (आप कहां पैदा हुईं )?
तापसी पन्नू — दिल्ली, दिल्ली में पैदा हुई। दिल्ली में ही बड़ी हुई। आई थिंक इक्कीस-बाइस साल तक दिल्ली में ही रही। उसके बाद ही दिल्ली से बाहर निकलना हुआ। तब तक वही स्कूल, वही कॉलेज। पूरी लाइफ वहीं थी। बाहर मतलब एक दो बारी, एक दो दिन के लिए, कहीं चले गए तो चले गए। नहीं तो दिल्ली में ही रहना होता था।
नीलेश — अपने परिवार के बारे में बताइए?
तापसी — मम्मी-पापा हैं। सातवीं क्लास तक हम ज्वाइंट फैमिली में थे। कमला नगर के पास एक जगह है शक्ति नगर वहां पर। टेनेंट थे वहां पर। लैड लॉर्ड ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे और हम लोग फर्स्ट फ्लोर रहते थे, और हमारे पास छत होती थी। उसमें एक बरसाती होती थी। ये एक टीपिकल टेंपलेट होता है एक दिल्ली की कोठी का तो वो वही था। ज्वाइंट फैमिली थी। दादा जी आए थे दिल्ली पंजाब से। मेरे डैड के दो सिबलिंग्स हैं-एक ब्रदर-एक सिस्टर। वो तीनों वहां पर थे और बड़े होते गए और बाद में शादी हो गई। बाद में उन्होंने सोचा कि अब घर बड़ा होना चाहिए। धीरे-धीरे फिर सेंविंग्स करके हमने अपार्टमेंट ले लिया और अभी तक वहीं हैं। मैं बोल-बोल के थक गई हूं कि ये अब चेंज कर सकते हैं, कहीं और जा सकते हैं, बट उनको वही पसंद है।
नीलेश —उनके नाम बताइए?
तापसी — पापा का नाम है दिलमोहन सिंह, मम्मी का नाम है निर्मलजीत। (बीच में नीलेश मिसरा तापसी को रोकते हुए, नीलेश-मेरी मम्मी का नाम भी निर्मला है। दोनों हंसते हुए) एक तो ये भी यूनिसेक्स नेम है। ये लड़कों के भी होते हैं नाम। छोटी बहन है उसका नाम थी थोड़ा यूनिसेक्स है। शगुन नाम है उसका। उस समय तो थोड़ा अलग था नाम, अभी ज्यादा सुनने में आता है। उस समय नहीं लगता था कि किसी का नाम शगुन होगा। चार साल छोटी है मुझसे लेकिन बिहेव बड़ों की तरह करती है।
नीलेश —- बचपन कैसा था आपका, शैतान रहीं ?
तापसी — (हंसते हुए) हां, काफी शैतान थी। मुझे किसी बात के लिए आप पनिश ज्यादा कर नहीं सकते, क्योंकि मैंने बैलेंस ढूंढ लिया था कि अच्छा ये करने को मिलेगा अगर तुम ये करोगे तो। पढ़ती तो मैं थी ही, पढ़ने के लिए मुझे किसी को बोलना भी नहीं पड़ा, कि तुम अभी बैठकर पढ़ो। मुझे पढ़ने का शौक था शुरू से ही। मुझे मजा आता था अपनी किताबों में लिखना और पढ़ना। स्कूल में समय से पहले पेपर खत्म करना, वो भी जल्दी से खत्म करके कि मेरा हो गया है मैं चलती हूं। जिसको नफरत करते हैं न बच्चे क्लास में, पहली रो में सेंटर में बैठकर हाथ खड़े करके हर बार कहना कि, मैं बताऊंगी… मैं बताउंगी… वो वाली थी मैं। (जोर से हंसते हुए) सबसे ज्यादा आंसर शीट ले वो वाली थी मैं। आंसर को ब्लैक सर्कल के अंदर करके सब्मिट करने वाली थी मैं।
जो भी मुझे बोलते थे इतने नंबर आने चाहिए, इतना स्कोर आना चाहिए,टॉप टेन में होना चाहिए, वो सब था। हार जाती थी तो मतलब बुखार चढ़ जाता था। लेकिन अब ऐसी नहीं हूं, क्योंकि उमर हो गई है। (जोर से ठहाके लगाते हुए) थैंक गॉड अब वैसी नहीं हूं। इस इंडस्ट्री ने इतना कुछ सिखा दिया है। स्कूल कॉलेज टाइम में मैं हार टॉलरेट नहीं कर सकती थी। अगर मैं पार्टिसिपेट करुंगी किसी चीज में तो अपना हंड्रेड परसेंट दूंगी। आई मेक श्योर कि वो जीतने लायक हो और नहीं जीती तो बुखार हो जाता था। अपने आप में ही मैं कुढती रहती थी। खुद से कहती रहती कैसे नहीं हो सकता।
नीलेश — शेयर करने को था कोई?
तापसी — हां थे ऑलवेज। मेरी बहन थी, मम्मी-पापा भी थे बट पता नहीं क्यों बैठकर गम शेयर करने को मेरा मन नहीं करता था। हांलाकि निकाल देना चाहिए सिस्टम से, ऐसा बोला जाता है। बट मन नहीं था मेरा ऐसे शेयर करने का। मैं सोचती थी क्या शेयर करेंगे कि हार गए। बचकानी चीजें होती हैं जो उस समय बट अब हंसी आती है वो सब सोचकर।
नीलेश मिसरा—-दोस्त थे?
तापसी पन्नू — हां, बहुत सारे दोस्त थे। मैं दोस्त बनाने की स्पेशलिस्ट हूं, क्योंकि बहुत एक्सट्रोवर्ड हूं। घर में लैंडलाइन समय पर कोई रॉग कॉल भी आ गई तो एक दो मिनट बात कर ही लेती थी। एक्स वाई जेड जो भी नाम होता था। मैं कहती, अच्छा तो वो थोड़ी देर बाथरुम में हैं, आप बता दीजिए आप कितनी देर बाद फोन करेंगे, अच्छा इतनी देर बाद बात करेंगे क्यों? आप पहले नहीं फोन कर सकते, पहले आ गए बाथरूम से तो फिर। अच्छा तो ये नाम था, सॉरी मैंने कुछ और सुना। ये थोड़ा सा टाइम पास हो जाता था। (हंसते हुए) तो ऐसे मैंने बहुत रॉग नंबरों पर बात की है बचपन में। इसलिए बात मैं अच्छे से कर सकती हूं लोगों से इस वजह से दोस्त बहुत सारे बना लेती हूं। बचपन से एरिया से लेकर जो दोस्त थे, स्कूल के, कॉलेज के, ट्यूशन के। दोस्त तो मैं बहुत जल्दी बना लेती हूं। कौन कितने देर तक रहता है वो डाउट रहता है, क्योंकि बहुत सारे तो रास्ते में निकल जाते हैं। मुंबई आकर जो मेरी 11वीं या 12वीं के थे वो यहां मिले। अब मैं वो दोस्ती फिर से रिवाइव कर रही हूं। अब मैं उनसे रेगुलरली मिलती रहती हूं।
नीलेश—बचपन की कोई ऐसी याद जो अच्छी नहीं हो?
तापसी — एक्चुली ऐसी कोई नहीं है जो इतना गहरा असर कर गई हो जो अच्छी नहीं लगती हो। यूजुअली जो इंडस्ट्री के बाहर से आते हैं उनसे ये पूछा जाता है कि तुम अपना चाइल्डहुड या बचपना बताओ। उनसे ऐसी उम्मीद होती है कि कुछ न कुछ ट्रबल्ड जरूर होंगी, और कुछ नहीं तो तुम स्ट्रगल टाइम में फुटपाथ पर जरूर सोए होगे, ऐसा तो हुआ ही होगा। नहीं तो तुम बहुत रिच फैमिली से बिलांग करते होगे, फैमिली सपोर्ट बहुत स्ट्रांग होगा। मैं तो टिपिकल मिडिल क्लास फैमिली से हूं। जैसे-मम्मी के पास तुम हर चीज का रोना रोते हो, या कंप्लेन करते हो बट वो कुछ कर नहीं सकती हैं।
नीलेश— अपनी मम्मी के बारे में कुछ बताइए।
तापसी— उनको वो सब कुछ अच्छा लगता है जो मैं करती हूं। बचपन में नहीं अच्छा लगता था इतना। बचपन में वो कहती रहती थीं, तू बिल्कुल नहीं सुनती है, तू बहस बहुत करती है। तो मैं बिल्कुल उस ब्लैकशीप की तरह थी फैमिली में। मम्मी को लगता था कि मेरे भाई की बेटी और पापा के बहन की बेटी दोनों जो मेरे से एल्डर थीं, दोनों एकदम गाय की तरह हैं, जो बोलो उनको वो वैसे ही करती थीं। वो कोई सवाल नहीं पूछती थीं, न ही बहस करती थीं। मम्मी को लगता था कि मुझे क्या परेशानी है? मैं जब भी कोई सवाल करती थी तो उन्हें लगता था कि मैं बहुत बैड किड हूं, क्योंकि उन्हें लगता था कि मैं सवाल बहुत पूछती हूं। हमेशा मुझे उन दोनों की नसीहत दी जाती थी। लोगों की ये बात सुन सुनकर एक बार तो ऐसा लगने लगा था की मुझे इन दोनों से बात ही नहीं करनी है, इनकी शक्ल नहीं देखनी है।
मम्मी हमेशा कहती थीं, तू बहस बहुत करती है, तुझे कोई पसंद नहीं करेगा फैमिली में, लड़कियां ऐसे बिहेव नहीं करतीं। लेकिन आज की तारीख में मेरी मां को जो कुछ भी करती हूं वो सब कुछ अच्छा लगता है। उनको इस बात का एहसास हो गया है कि कुछ भी होगा ये संभाल लेगी। उनको काफी साल बाद मुझ पर विश्वास आ गया है। वही थीं, जिनकी वजह से ये सब कुछ स्टार्ट हुआ है। शादी से पहले उनको मायापुरी पढ़ने का और फिल्मों की जानकारी रखना सब कुछ उन्हें पता होता था। वहीं, मेरे फादर की फैमिली में किसी को भी शौक नहीं था फिल्मों का। लंच या डिनर के टाइम पर टीवी पर अगर कुछ चल रहा होता तो देख लेते थे। उस माहौल की वजह से मेरी मदर की जो इच्छा थी फिल्म वर्ल्ड वाली वो सब धीरे-धीरे खत्म होने लगी। बाद में डिफ्रेंट डिफ्रेंड प्रोडक्ट की डिलरशिप लेनी शुरू कर दी थी। उन्होंने ऐसा इसलिए किया था, क्योंकि उन्हें लगा था कि कुछ सेविंग बच्चों के लिए होनी चाहिए।
कॉलेज के दौरान सेकेंड ईयर में जब मुझे लगा कि मुझे इंजीनियरिंग नहीं करनी है और मुझे कुछ काम करना है। लोगों ने मुझसे बोला, तू दिखती ठीक-ठाक है, मॉडिलिंग कर लो। ये सब होने के बाद जब पोर्टफोलियो खिंचवाने का वक्त आया तो वो जो मेरी मां के सेव्ड पैसे थे करीब 25 हजार, पापा को बिना बताए हम दोनों गए एक फोटो स्टूडियो में और वहां से फोटो खिंचवा के आए। थैंकफुली वो मैं रिर्टन कर सकती थी। आई थिंक वो फोटो शूट के नेक्स्ट डे ही मैंने अपनी पहली प्रोफेशन फोटो शूट की एक ब्रांड के लिए। बाद में पापा को पता चला, धीरे-धीरे उनका मूड खराब हुआ फिर कुछ टाइम बाद उनका मूड ठीक किया।
नीलेश — पापा से कैसा रिलेशनाशिप है बचपन से?
तापसी —- वो बिल्कुल अपोजिट हैं मेरी मदर के। जैसे मेरी मदर को मेरा सब कुछ पसंद है, लेकिन पापा को कुछ भी नहीं पसंद होता है मेरा। पहले भी बहुत कम एप्रिशिएट करते थे और आज भी कम ही करते हैं। अब ये है कि उनकी भी उम्र हो गई है तो जो उनकी बहसबाजी की जो लिमिट है वो थोड़ी कम हो गई है। (हंसते हुए) अब वो उन सब मुददों पर बहस नहीं करते जिन पर पहले करते थे। ठीक है तुम्हें जो करना है कर लो ये वाली बात ज्यादा हो गई है, बट ऐसा कभी नहीं हुआ कि वो रुककर मुझे एप्रिशिएट करें। मेरा और मेरी बहन का मानना है कि अगर पापा हमारी कोई बात मान लें तो समझो कि वो एप्रिशिएट कर रहे हैं बिना कुछ टॉन्ट कसे। शुरुआत में तो डर-डर के हम लोग उसने बात करते थे। किसी चीज की अगर परमीशन लेनी होती थी तो कब और क्या बोलना है, ये पहले से तय करके उनके पास जाते थे। यह फिक्स होता था की पहले ये लाइन बोलनी है फिर ये लाइन।
लास्ट में जब सारी बात खत्म होने के बाद पापा ये बोल दें कि जाओ जो मन करे वो करो, इसका मलतब हां है। (हंसते हुए) वो बात अभी भी है। आज भी ऐसा नहीं है कि वो आसानी से हां बोल दें किसी चीज को अब वो अलग बात है कि परमीशन मांगनी ही हमने कम दी है। कभी-कभी तो ऐसा होता था कि पंखा अगर तीन नंबर पर है, तो एक नबर पर क्यों नहीं है? एक नंबर है तो तीन नंबर पर क्यों नहीं है? एसी का टेंप्रेचर 25 है तो ये 20 क्यों नहीं है? ये वाली परेशानी उनको रहती ही है। अब तो मुझे लगता है कि पापा रिटायर हो चुके हैं और इन चीजों को क्लोजली मॉनिटर करने के अलावा कोई और काम नहीं है। अब वो मेरे और मेरी बहन के लिए कॉमेडी हो गई है। पापा कोई भी परेशानी निकालते हैं सबसे पहले मैं और मेरी बहन हंसते हैं फिर हम रिप्लाई करते हैं।
नीलेश— ये फैमिली के व्हाट्सएप ग्रुप पर होता है?
तापसी— थैंकफूली व्हाट्सएप ग्रुप है नहीं फैमिली का। वो हमने बनाया नहीं। मैंने और मेरी बहन ने रीलाइज किया कि बनाने की जरुरत नहीं है, क्योंकि मेरे मां-बाप उस पर इतने फार्वर्ड भेजेंगे। (ठहाके लगाते हुए) दोनों फेसबुक पे हैं, यू-ट्यूब देखते रहते हैं क्योंकि अब वो रिटायर हो चुके हैं। इतना ही नहीं दोनों को परेशानी भी रहती है एक दूसरे के ऑनलाइन रहने को लेकर। जब भी मैं घर जाती हूं मम्मी के बारे में पापा एक ही बात कहते हैं, ये देख ले, सारे टाइम ये फेसबुक पर बैठी रहती है। उधर से मम्मी का जवाब होता, तुम भी तो यूट्यूब पर सारे टाइम वीडियो देखते रहते हो। दोनों एक दूसरे की कंप्लेन हमारे सामने रखते रहते थे। (हंसते हुए) दोनों हमें फार्वड भेजते रहते हैं।
पापा फार्वड भेजेंगे कैसे एक सिख कम्यूनिटी ने मिलकर लोगों की हेल्प की। कभी हिस्टोरिकल चीज भेजेंगे। मम्मी ये भेजती है कि कैसे मेडिटेशन से दिमाग को शांत रखें। ऐसी चीजें दोनों भेजते रहते हैं। (जोर से हंसते हुए) मैं और मेरी बहन दोनों ने वो जो डाउनलोड बटन होता है न उसे दबाना ही बंद कर दिया है। फिर मम्मी पूछती भी है, वो वीडियो देखी तुमने जो मैंने भेजी थी? फिर हम कहते हैं नहीं देखी है। उसके बाद मम्मी कहती हैं, सारे वीडियो थोड़े भेजती हूं तुम लोगों को। फिर हम मम्मी को वो व्हाट्सएप चैट दिखाते हैं, ये देखो कितने वीडियो भेजे हैं तुमने।
नीलेश — स्कूल के बाद क्या हुआ?
तापसी—- स्कूल के बाद ये हुआ कि एक बहुत बड़ा झटका लगा मुझे कि मेरा आईआईटी में एडमिशन नहीं हुआ। मेरे लिए मेरी लाइफ के वो दो बड़े झटके जिसमें मेरे आंसू निकले हों वो था आईआईटी में एडमिशन नहीं होना। दूसरा एक पर्शनली सबसे बड़ा झटका ये था जब मैंने अपने फादर को उनकी बाइपास सर्जरी के वक्त उन्हें स्ट्रेचर पर देखा था। इसके अलावा मेरे को लाइफ में कोई मेजर झटके लगे नहीं हैं। स्कूल के बाद जब आईआईटी में नहीं हुआ जहां मुझे लगा था कि मैंने तो बहुत पढ़ाई की है। इंजीनियर बनना चाहती थी। मेरे को मैथ्स, फिजिक्स का बहुत शौक था।
नीलेश मिसरा— आप इंजीनियर क्यों बनना चाहती थीं?
तापसी — मेरे दिमाग में मैथ्स एंड फिजिक्स इज इक्वल टू इंजीनियर होता था 12वीं क्लास में। कौन सा प्रोफेशन बड़ा हैपनिंग चल रहा है इंजीनियरिंग के अंदर कम्प्यूटर साइंस तो ले लो। वो तो मैंने दूसरे साल सेकेंड ईयर में जाकर रिअलाइज किया कि इंजीनियरिंग इज नॉट अबाउट मैथ्स एंड फिजिक्स। ये और भी चीजें होती हैं। मुझे कम्प्यूटर साइंस एैज अ कोडिंग का शौक नहीं था। वो तो ये फील्ड फैंसी है इंजीनियरिंग में उस समय तो ले लो। वो भ्रम जब सेकेंड ईयर में टूटा तो लगा कि ये इंजीनियरिंग खत्म करेंगे अच्छे से फिर एमबीए करेंगे क्योंकि बोला जाता था बीटेक और एमबीए एक अच्छा कॉबिनेशन है। पढ़ाई का शौक था तो बुरी नहीं लगती थीं ये चीजें। सेकेंड ईयर में ये लगा कि ये नहीं करना है आगे। अब आगे एमबीए करना है। एमबीए के साथ कुछ और करने का भी मन बन लिया था, क्योंकि बचपन से ही एक साथ कई चीजें करने का शौक था।
नीलेश — बचपन में क्या सपने थे?
तापसी — मेरे सपने हर साल बदलते थे। एक साल मुझे एस्ट्रोनॉट बनना है, एक साल मुझे कुछ साइंटिस्ट बनना है, एक बार टीचर बनने का शौक लग गया। मेरा हाइपर एक्टिव माइंड स्टेबल नहीं रहा है एक प्रोफेशन पे न तब, न अब। लोग मुझसे पूछते हैं, 10-15 साल बाद आप क्या करेंगे? तो मैं ये नहीं बोल सकती कि मैं सिर्फ एक्टर ही रहूंगी। मुझे हमेशा लिविंग इन मूमेंट में बड़ा मजा आता था। आज मेरा ये बनने का मन है तो ये बनकर रहूंगी, कल कुछ और बनूंगी। मुझे हमेशा से लगता आया है कि एक लाइफ है और इसमें बहुत कुछ करना है। हमें बचपन से बताया गया है कि इस लाइफ के बाद तुम कीड़े बन जाओगे, तुमने अच्छे कर्म किए तो तुम ये बन जाओगे। से बातें बड़ें लोग किया करते थे। ये सब सुनकर मुझे लगता था कि मैंने तो बहुत गलत काम किए हैं, पक्का में कीड़ा ही बनूंगी। ये सब सुनकर मुझे लगता था कि ये एक लाइफ है इसे अच्छे से जी लिया जाए। इंजीनियरिंग में भी लगा कि ये कर लूं, एक बार मिस इंडिया में भी पार्टिसिपेट किया। बाद में लगा कि यार ये दुनिया तो हमारी नहीं लगती। दूर से तो अच्छी लगती है, लेकिन अंदर घुसकर मजा नहीं आया।
नीलेश मिसरा — क्यों?
तापसी — मॉडलिंग ऐज प्रोफेशन मेरे को बहुत ज्यादा देर तक होल्ड नहीं कर पाया। मुझे लग रहा था कि मेरे दिमाग का इस्तेमाल यहां नहीं हो रहा। मुझे लगता था किसी ने एक पोज सेट कर दिया और कहता था आपको यही करना है। इसलिए मुझे लगा कि ये बहुत दिन तक मेरे से नहीं होगा। मैंने मुश्किल से खीच खींकर कुछ एक साल से ज्यादा मॉडलिंग नहीं की। उस समय मेरे को लगा न कि यहां पर फेवरेटिज्म ऑफ शाट्स बहुत होता है। वो स्कूल कॉलेज में क्या होता है, आपके जितने नंबर आएंगे आपको उतनी रैंक मिलेगी, उतनी वाहवाही होगी। पहली बार मैंने फेवरेटिज्म देखा अपने आस-पास। तुम कितने अच्छे हो इससे ज्यादा मैटर करता है तुम कितने किसके फेवरेट हो। इन सब चीजों से निकलकर इंजीनियरिंग कंप्लीट की। थैंकफुली डिक्टेशन आए। मिस इंडिया से वापस आने के बाद थर्ड ईयर में कैंपस प्लेसमेंट हो रही थी। पहली कंपनी जो बैठी थी इंफोसिस तो मैं उसमें बैठ गई थी।
मुझे ये था कि पहली या दूसरी में ही मैं निकाल लूं एक सीट, क्योंकि जाना तो हैं नहीं वैसे भी। बस ये था कि पापा ये न कहें कि तुम ये कर रही हो इसलिए तुम्हें नौकरी नहीं मिली। वो होता है न बैलेंसे कि मैंने ये करके दिखा दिया अब मुझे ये करने दो। इंजीनियरिंग के बाद मैंने एमबीए की तैयारी शुरू कर दी। एमबीए के पहले अटेंप्ट में कुछ 88 परसेंटाइल आए थे। एक तो मुझे अपने आप से ही बहुत उम्मीदें होती हैं। एक तो में बी बिकॉज आफ माई फादर। क्योंकि जब मेरे 90 परसेंट भी नंबर आए थे 12वीं में तो मेरे फादर ने मुड़कर भी एप्रिशिएट नहीं किए थे। तब पापा ने ये कहा था, यार तुम थोड़ी और मेहनत और कर ली होती तो फर्स्ट आ सकती थी, क्योंकि मैं सेकेंड आई थी। इस वजह से उस समय लगा था कि मेरे 88 से ज्यादा आने चाहिए थे 90 से ऊपर। मैंने सोचा कि आखिरी डिग्री है इसे अच्छे से करेंगे। इसके लिए एक बार ड्राप कर देंगे। पढ़ाई के समय इंफोसिस ज्वाइन तो करना नहीं था। उधर मॉडलिंग की वजह से जगह जगह फोटो तो थी ही मेरी ब्रांड्स के ऐड में।
फोन आने शुरू हो गए थे फिल्मों के लिए। हिंदी से कुछ खास फोन नहीं आ रहे थे, साउथ से काफी आ रहे थे। क्योंकि वहां पर नई लड़कियों को ज्यादा अपॉर्चुनिटी मिलती है। ऐसे में मैंने बोला, देखिए मुझे न तो एक्टिंग आती है, यहां तक स्कूल कॉलेज में किसी प्ले नाटक में हिस्सा भी नहीं लिया, ना ही मुझे आपकी भाषा आती है। फिर उन्होंने कहा, आप घबराइए मत, आप जैसी बहुत सी लड़कियां आती हैं नॉर्थ से जिनको हम सिखा देते हैं। एक बार आप आइए बस अगर आपका मन है तो। मैंने सोचा इंजीनियरिंग खत्म होने के बाद जो अपॉर्चुनिटी मिलेगी मैं वो लूंगी। मुझे याद है जुलाई-अगस्त में खत्म हुआ मेरा फाइनल समेस्टर एग्जाम और सितंबर में मैं मदुरै पहुंच गई अपनी पहली फिल्म के लिए। एक तेलगू और एक तमिल पिक्चर मैंने साइन की एक साथ। मैंने सोच लिया था मेरे पास एक साल है इसके बाद वापस आकर एमबीए तो करनी ही है। पहली पिक्चर हिट हो गई। तब मैंने सोचा कहीं ये भगवान हिंट तो नहीं दे रहा कि ये मेरी लाइफ का प्रोफेशन हो। अब अच्छे से ट्राई करते हैं। फिर मैंने वहां से सीखी एक्टिंग और कैसे रहते हैं इस इंडस्ट्री में।
पार्ट 2 –सब से अधिक तब रोई जब आईआईटी में सेलेक्शन नहीं हुआ : तापसी
नीलेश मिसरा— आपके आईआईटी का सपना कैसे बना और कैसे टूटा ?
तापसी पन्नू — जो भी इंजीनियर बनना चाहता है शायद उसकी लिस्ट में सबसे ऊपर आईआईटी ही होता है। हर कोई चाहता है कि आईआईटी में एडमिशन हो जाए और प्रिपरेशन भी जेईई की ही होती है। लेकिन मेरा न वो हुआ और न उसके नीचे जो डीसीए होता है वो हुआ। उसके बाद मेरा इंद्रपस्थ कॉलेज में हो गया। उसके बाद एमबीए में झटका, क्योंकि दोबारा कैट में उतना नहीं आया जितना मेरे को उम्मीद थी। फिर उसके बाद वही रोना धोना घर में कि मेरी तो लाइफ खत्म है।
नीलेश मिसरा—-एमबीए में अपनी पसंद की जगह न होने के बाद ?
तापसी पन्नू —- हां कैट में भी परसेंटाइल का चक्कर होता है। 90 परसेंटाइल से ऊपर आते तो शायद वो कॉलेज मेरे को मिलते जिनमें मेरा मन था। लेकिन मेरे नंबर ही 90 नहीं आए। मैं कुछ दूसरे में कॉलेज में जा सकती थी, मेरे पास थे ऑप्शन। लेकिन मैंने सोच लिया था कि अभी चली गई तो दोबारा उसे ठीक नहीं कर पाउंगी। आखिरी डिग्री है, अच्छे से करेंगे। फिल्मों के फ्लाप होने से ज्यादा उन बातों के धक्के लगे थे, क्योंकि फिल्मों के फ्लाप होने के बाद मैं रोई नहीं थी।
नीलेश मिसरा—- आपकी जो रूट्स हैं पंजाब की और वहां पर जो आपका परिवार है, आपकी दादी हैं उन लोगों के बारे में बताइए?
तापसी पन्नू —-मेरे मैटरनल-पैटरनल मम्मी और पापा दोनों के ग्रैंडपैरेंट्स की तरफ से सिर्फ मेरी दादी हैं। कुछ 89-90 साल की होंगी। मेरे दादा जी थोड़े से बातों को आसानी से मान जाने वालों में से थे। ऐसा मुझे बताया जाता है क्योंकि मैंने उन्हें देखा तो है नहीं। मेरी दादी जो थीं, कहते है न कॉलिंग द शॉट्स इन द हाउस। भय भी उन्हीं का ज्यादा था घर में, अभी भी है। अभी भी ऐसा है कि अगर मेरी दादी ने छींक भी मारी, उनकी तबीयत थोड़ी सी भी ऊपर नीचे हुई तो जो उनके तीनों बच्चे हैं चाहे जो मेरी बुआ जो नोएडा रहती है, मेरे पापा, मेरे चाचा सब छोड़ छोड़ के आ जाएंगे श्रवण कुमार की तरह। मेरी मम्मी तो मेरे फादर को श्रवण कुमार ही बुलाती है। (हंसते हुए) कुछ भी हो जाए शायद मेरे पापा इतनी जल्दी रिएक्ट न करें। वो स्लो मोशन हैं लाइफ में। वो हर जगह लेट होते हैं। इकलौते शायद एक आदमी हैं तीन औरतों में लेकिन सबसे ज्यादा समय वो लगाते हैं तैयार होने में। हर जगह लेट उनको पहुंचना है। गाड़ी स्लो वो चलाते हैं। सब कुछ स्लो मो है उनकी लाइफ में। वो आपके परफेक्ट ब्रांड एंबेसडर बन सकते हैं। बट अगर मेरी दादी कुछ भी हो जाए या उनको कुछ चाहिए तो मेरे पापा सब कुछ छोड़ छाड़कर पहुंचेंगे सबसे पहले।
नीलेश मिसरा— आपका भी एक गाँव कनेक्शन है?
तापसी — हां जी, अभी भी वहां पर जाते हैं। अब तो जाना थोड़ा कम हो गया है, लेकिन स्कूल कॉलेज टाइम में हर साल एक बार तो जाते ही जाते थे।
नीलेश मिसरा—कहां है आपका गाँव?
तापसी पन्नू — लुधियाना के आगे एक सधार गाँव है और एक बड़ूंदी गाँव है। दादा का बड़ूंदी था और दादी का सधार था। बड़ूंदी कम ही गए, क्योंकि दादा जी की डेथ हो गई थी मेरे पैदा होने से पहले, और मेरे नाना जी लाहौर से थे। मैं काफी छोटी थी जब उन दोनों की डेथ हो गई थी।
नीलेश मिसरा—बट, सिखिज्म फैशनेट करता है मुझे।
तापसी पन्नू —- मुझे भी। आई थिंक इट्स सो ब्यूटीफुल। आई थिंक इट बिकॉज इट्स लेटेस्ट रिलिजन ऑफ वर्ल्ड (मुझे लगता है यह बहुत अच्छा है, यह विश्व में नया नया है।) काफी चीजें कई धर्मों की इनकॉर्पोरेट की गई हैं इसमें। थोड़ा सा मोर मार्डनाइज्ड ऑउटलुक है काफी चीजों का।
नीलेश मिसरा— ऐज ए डिजास्टर रिर्पोटर मैं बहुत सी जैसे-सुनामी हो या अर्थक्वेक हो आई हैव वेंट टू प्लेसेस, और हमेशा अलग-अगल फेथ के लोग जरूर मिलते थे, लेकिन मुझे वहां एक लंगर जरूर मिलता था जो सेल्फलेसली होता था। इतनी खूबसूरत स्प्रिट है वो, सो इंस्पायरिंग फैशनेटिंग।
तापसी —- आई थिंक दैट वन ऑफ दी थिंग वी आर ऑलवेज टॉट टू सर्व (यही वो चीज है कि हमेशा हमें सेवा करने के बारे में बताया गया)। ये बचपन से ही हमें लेकर गुरुद्वारे जाते थे तब भी बोला जाता था कि यू हैव टू सर्व। आप लंगर खाएंगे भी सारे एक साथ मैं बैठकर, क्योंकि एक ही लेवल पर सब बैठेंगे। आप देखो अगर गुरुद्वारे में तो सब एक साथ बैठकर खाते हैं। कोई जेंडर बायस्ड नहीं होता, कास्ट बायस्ड नहीं होता। खाना पका भी सब वहीं लोग रहे होते हैं। जो लोग खुद अपनी श्रद्धा से आते हैं खुद खाना बनाते हैं और खाना सर्व भी खुद करते हैं। मैंने गुरुद्वारे में रोटियां भी बनाई हैं, परोसी भी है, वहां बैठकर खाया भी है और बर्तन भी मांजे हैं। ये सब करवाने के लिए हम लोगों को बचपन से ही गुरुद्वारे ले जाया जाता था। ऐसा कहा जाता है कि अगर आप गुरुद्वारे गए हो तो कम से कम दस मिनट कोई सेवा करो ही।
नीलेश मिसरा— इट्स फॉर्म ऑफ वर्शिप (यह पूजा का स्वरूप है)?
तापसी — हां, या तो इसे गिविंग बैक कह लीजिए। आप किसी के लिए अच्छा कर रहे हो, इट्स वे ऑफ वर्शिपिंग गॉड। सो दैट इज व्हाट वॉज टॉट सिंस बिगिनिंग। यू नो वहां पर आपको बचपन में फोर्स किया जाता है काम करने को। उस टाइम हमें लगता था कि ऐसा क्यों करना है? वेन यू ग्रोअप यू अंडरस्टैंड।
नीलेश मिसरा—इसने शेप किया आपको एक इंसान के तौर पर?
तापसी—हां, इसी चीज ने और काफी चीजों ने। मेरे घर में मेरे को कभी ये नहीं बताया गया कि कास्ट क्या होती है। कई बार किसी पूजा में बैठती हूं तो लोग गोत्र पूछते हैं तो मेरे को नहीं पता होता है कि क्या बोलूं रिटर्न में। इस बात को मैं आज तक नहीं बता पाई की क्या कहना है। मेरे को अपना सरनेम पता है, क्योंकि वो दिया है। स्कूल में हमें सिखाया गया था ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र। ये बात जानने के बाद मैं जब घर आई तो मैंने अपने घर पर पूछा, हम क्या हैं? तो मुझे बड़ा ही अंबिगुअस सा जवाब मिला था कि ज्यादातर सिख कम्युनिटी के लोग क्षत्रिय में आते हैं। इकॉनामिक्स ट्रैटा की वजह से मैंने डिफ्रेंस देखा है। अगर मेरे घर में काम वाली आती थी तो उसे चाय दो या खाना दो, वो उसे किचन में नीचे बैठकर खाती थी। ये चीजें मुझे बहुत अजीब लगती थीं कि ऐसे क्यों बैठ रही है। मम्मी से मैं पूछती की वो नीचे क्यों बैठी है? मम्मी कहतीं, मैंने तो उसकों नीचे बैठने के लिए नहीं बोला है। तो वो बातें मुझे थोड़ी सी अजीब लगती थीं।
फिर जब मैं बड़ी हुई तो मैंने सोचा था कि ये सब चीजें अपनी लाइफ में नहीं लाऊंगी। किसी को इस तरह से डिफ्रेंटशिएट नहीं कर सकती कि तुम नीचे बैठो और मैं ऊपर बैठूंगी। वो चाहे मेरा स्पॉट ब्यॉय हो या वो मेरी हाउस हेल्प हो। चाहे वो चाय पीएंगे या खाना खाएंग तो मेरे बगल में ही बैठकर। स्पॉट ब्यॉय तो मेरे साथ हर जगह जाता है। अगर मैं किसी रेस्टोरेंट में खाना खाने जाती हूं तो मैं उसको अपने साथ बिठाकर खाना खाती हूं। मुझे ऐसा लगता है कि उसका काम है मेरा ख्याल रखना बट उसके काम के प्रोफाइल में नहीं आता नीचे बैठकर खाना खाना। क्योंकि ये मुझे ऑकवर्ड लगता रहेगा अगर वो कहीं और बैठेंगे।
नीलेश मिसरा— आर यू रिलीजियस?
तापसी पन्नू — नॉट टू मच। मतलब हार्ड कोर एक्स्ट्रीमियस नहीं हूं। हमारे फेस्टिवल भी इतने नहीं होते कि याद रखने पड़ें, इतने रिचुअल्स नहीं होते। आधा फेस्टिवल का एक ही रिचुअल है, लंगर में जाओ, खाना बनाओ या स्टॉल लगाकर शर्बत दो या फिर खाना दो। रेलीजन के नाम पर हमें इतना कुछ एक्स्ट्रीम नहीं सिखाई गईं। बी नाइस, सेवा करो।
नीलेश मिसरा—- ये जो आइडेंटिटी है इंसान की जो उसके नाम से आती है इस पर मैं सोचता हूं कई बार। हम जब पैदा होते हैं तब हमें अपने नाम के साथ एक आइडेंटिटी, एक वर्ल्ड व्यू, कौन अच्छा है हमारे लिए, कौन बुरा है, क्या सही है, क्या गलत है ये सौंप दिया जाता है। ये हमारे अधिकार में नहीं होता है। उसके बाद हम अपनी समझ से, अपनी अक्ल से क्वेश्चन करते हैं या नहीं करते हैं, या फालो करते रहते हैं, स्पेशली सोशल मीडिया के युग में। मुझे लगता है हम दूसरा बनकर नहीं सोच पाते हैं। आईडेंटिटी एक बड़ा सवाल बन जाता है। चाहे ये किस भी तरह की आईडेंटिटी हो, रिलीजियस या रिजनल हो, जेंडर हो। जैसे में रोज जब रेडियो पर कहानियां सुनाता हूं तो मैं कोई और बन जाता हूं। आप ऐज एन एक्ट्रेस दूसरा बनती हैं अलग-अलग तरीके के पात्रों को निभाती हैं। क्या ये किसी तरह से आपको शेप करता है?
तापसी—- हां, जैसे आपने बोला की आपको बेटर ह्यूमन बीइंग बनने में हेल्प करता है। वैसे नॉर्मल जॉब में शायद आप खुद ही बनकर जीते हैं या खुद के प्वाइंट ऑफ व्यू से चीजों को देखते हैं। खुद की लाइफ के हिसाब से डिसीजन लेते हैं, बट एक एक्टर बनते हो तो तीस-चालिस दिन का वक्त रोज 12 घंटे आप कोई और हो। अब आप चाहो न चाहो, पसंद आए न आए आपको सोचना पड़ेगा अगर अपने जॉब से जस्टिस करना चाहते हो। और वो चीज आप चालीस-पचास दिन लगातार रोज कर रहे हो तो ऑबियस है कि वो आपके दिमाग पर चोट या असर न करे। ऐसा मुश्किल ही होता है।
नीलेश मिसरा— जैसे?
तापसी पन्नू — ये बातें मेरे को समझ में आईं जब मैंने एक्टिंग शुरू की। इसके लिए मुझे काफी साल लगे। आई थिंक आप मान लीजिए करीब-करीब पिंक के आसपास जब मैंने वो किरदार जिया कुछ तीस पैतीस दिन। उसके बाद उससे निकलना, क्योंकि वो आप 12- 12 घंटे वो किरदार जी रहे हो। बाकी 12 घंटे में से जब आठ घंटे सोते हो रिमेनिंग टाइम में आप प्रेप कर रहे होते हो। आप तैयारी कर रहे हो बनने के लिए वो किरदार। जब आप वो किरदार जी रहे होते हो तब उससे निकलने में थोड़ी परेशानी तो होती ही है, क्योंकि आप यूज टू हो चुके होते हैं। पिंक के बाद से मैंने काफी ऐसे किरदार निभाए जब मैं साइकोलॉजिकली आउट ऑफ माई रेग्यूलर फ्रेम ऑफ माइंड चली जाती थी।
नीलेश मिसरा— क्या स्टेट ऑफ माइंड था आपका, कैसे इफेक्ट किया ?
तापसी पन्नू — मैं न बहुत जल्दी वल्नरेबल (चपेट में) हो गई थी। बहुत ही जल्दी रो पड़ती थी चीजें देख कर। छोटी-छोटी चीजें मुझे बहुत जल्दी निगेटिव अफेक्ट कर जाती थीं। तुम अगर एक मॉडलेस्टिव वुमन का किरदार निभा रहे हो तो तुम्हारे को जिंदगी अच्छी तो लगती नहीं है। हर चीज में तुम निगेटिव और खराब ही देखते हो। उस दौरान जब मुझे कोई गरीब आदमी भीख मांगता दिखता था न तो उसे दो सेकेंड दिखने के बाद मेरी आंखों में आंसू आ जाते थे। मतलब यहां तक की टीवी में जन गण मन चलता रहता था तो मेरी आंखों में आंसू आ जाते थे। सो, कोई भी चीज आपको बहुत जल्दी इमोशनल कर जाती है। वो ऐसे स्टेट ऑफ माइंड हो गई थी मेरी। फिर मैंने सोचा, ये ऐसे तो चलेगा नहीं। फिर थोड़ा सा ब्रेक लेकर फोर्सफुली उस जोन से खुद को निकाला। उसके बाद खुद को बहुत बिजी रखना चालू कर देती हूं, और ये चीज मेरे को बहुत हेल्प करती है जो मेरी फैमिली है फिल्म वर्ल्ड से रिलेटेड नहीं है। वो बिल्कुल ही अलग दुनिया है। एक बार जब पैकअप करके घर आती हूं तो वो डिफ्रेंट दुनिया है।
मेरे घर के अंदर मेरे 18 साल के बाद की कोई फोटो नहीं होगी। फिल्म रिलेटेड मेरा कोई अवार्ड भी नहीं है मेरे घर के अंदर, जो मुझे घर आकर याद दिलाए कि मैं एक्टर हूं। घर में कोई आता है तो पहले पूछता है कि ये एक्टर का घर नहीं लगता है, क्योंकि उसमें कोई फैंसी आर्टी फैक्ट्स नहीं हैं। बहुत ही रेगुलरली कोजी अपार्टमेंट है जिसे मैंने और मेरी बहन ने बनाया है। हम वहीं रहते हैं साथ में। सो ये सब चीजें मुझे नॉर्मलाइज होने में हेल्प करती हैं। अगर मैं नॉर्मलाइज नहीं होती हूं तो मुझे नहीं लगता कि मैं एक रियल तरीके से कोई रियल किरदार निभा सकती हूं। क्योंकि अगर मैंने एक टिंटेड ग्लास से लाइफ देखी है और एक पेडेस्टल से लाइफ देख रही हूं तो मेरा प्वाइंट ऑफ व्यू रियल नहीं रहेगा। वो बहुत दूर का हो जाएगा। शायद ये मेरा एक तरह का बार्टर है। चाहे वो मेरी सोशल लाइफ हो। मैं दस बजे के बाद कहीं बाहर जाती नहीं हूं। मेरे तो खुद दोस्तों ने मुझे डिस्ओन कर दिया है इस वजह से। एक बारी मेरी बहन ने अंल्टीमेटम दिया था मेरे को कि तापसी अगर तू सैटरडे को हमारे साथ बाहर नहीं गई, तो हम तेरे को अपने ग्रुप से बाहर निकाल रहे हैं।
उस दिन जबरदस्ती तैयार होकर मैंने खुद से कहा कि तापसी आज तो पार्टी की जान तू ही बनने वाली है। (जोर से हंसते हुए) बट ऐसा होता नहीं है यूजुअली, क्योंकि ने तो मैं सिगरेट पीती हूं और न ड्रिंक करती है। सो मेरे पर सोशिअलाइज करने के लिए हाथ में वो ड्रिंक लेकर खड़े होने का कोई बहाना है नहीं। अपने आप ही नींद आती है कुछ टाइम के बाद अगर बिजी नहीं हो उन सबके अंदर। इस वजह से लोगों ने मुझे बुलाना बंद कर दिया पार्टी में। मेरी न सुनने के बाद कोई मुझे कनवेंस करने की कोशिश भी नहीं करता है अब। ये सब चीजे हैं जो आई थिंक मैंने फोर्सफुली अपने पास रखी हैं चेंज करने को। लेकिन कुछ चीजों को चेंक करने की कोशिश नहीं की, क्योंकि कहीं ऐसा न हो जाए कि आप ऐसी जगह पहुंच जाओ जहां से वापस आने के समय आपको दिक्कत न हो। उस चीज को लेकर बहुत कॉन्शस हूं मैं।
नीलेश मिसरा— मैं भी यही सोचता हूं कि एक अच्छा कलाकार होने के लिए और मेरे कॉन्टेक्स्ट में एक अच्छा स्टोरीटेलर या कम्युनिकेटर होने के लिए एक अच्छा आब्जर्वर और एक अच्छा लिसनर होना बहुत जरूरी है। हर आर्टिस्ट एक टाइम फ्रेम लेकर आता है। एक एक्सपाइरी डेट लेकर आता है। कुछ को इसका ख्याल रहता है और कुछ को नहीं रहता। कुछ को शोहरत की, कैमरे की आदत पड़ जाती है। कुछ को लत लग जाती होगी शायद और कुछ ग्राउंडेड रहते हैं। आप फेम को कैसे देखती हैं?
तापसी पन्नू — अगर बहुत बड़ा बरगद का पेड़ है मेरा करियर तो ये एक तरह की शाखा है मेरे फ्रोफेशन की जो अच्छी खासी चौड़ी होती है, बट अंत में एक शाखा ही है वो रुट नहीं है। वो एक रूट का पार्ट है। ये ड्राइविंग फोर्स नहीं था मेरा यहां आने का। आई वॉज लिविंग माई लाइफ।
नीलेश मिसरा— मशहूर होने का लालच नहीं था?
तापसी— बिल्कुल भी नहीं, क्योंकि मैं एक लिओ हूं। मुझे नहीं पता कि आप इन चीजों को मानते हैं या नहीं। लिओ की एक कैरेक्टरिस्टिक होती है जो मेरे को 80-90 प्रतिशत सही बैठती हैं। एक उसमें से ये है कि वे सेंटर ऑफ अट्रैक्शन होते हैं जहां पर भी जाएंगे। चाहे बचपन में मैं क्लास मॉनीटर, हेड गर्ल, स्टूडेंट ऑफ दि ईयर, टॉपर ऑफ दि स्कूल, द लीडर ऑफ ग्रुप ऑल दैट वो शुरू से ही रहा है। तो मेरे कभी एक्स्ट्रा अफर्ड मारकर वो लेने की जरुरत नहीं रही अटैंशन या फेम की। फेम वाज नॉट दैट रीजन कि मैं एक्टर बनी हूं। अभी भी मैं अगर काम नहीं कर रही हूं तो लोग खड़े होकर मुझे पब्लिक प्रापर्टी की तरह फोटो खींच रहे हैं तो मुझे थोड़ा सा इरिटेशन होता है, क्योंकि मैं कहती हूं, मैं पब्लिक फिगर हूं, पब्लिक प्रापर्टी नहीं हूं। तो ये चीजे जो हैं जो मुझे थोड़ी सी खलती हैं कि मैंने कभी बचपन से शीशे में देखकर ये नहीं बोला न कि मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं। अब में खुद ये कहती हूं तापसी हर चीजें तुम्हारे फेवर की नहीं होंगी।
कुछ चीजें ऐसी भी होंगी जो तुम्हें एक्सेप्ट करनी पड़ेंगी। वो कर रही हूं धीरे-धीरे। सो फेम इज नॉट रीजन टू इंटर हियर, बट जब तक एक्टर हूं तब तक अगर ऐसा नहीं हुआ कि लोग नहीं पहचान पाए, या नहीं रिकॉग्निशन दे पाए तब तो कुछ गलत कर रही हूं। वरना तो तुम लव्ड एक्टर तो नहीं हो फिर। वो एक शूट है जिसके बिना भी नहीं बनता, जो जिसके साथ शायद तुम जिंदगी भर नहीं रह सकते शायद। जिंदगी भर अगर आप टू अटैच्ड हो जाओ न तो तुम ऐसे डिसिजन ले लोगे जो तुम्हें नहीं लेने चाहिए। तो उसको भी मैं हमेशा ऑफ स्प्रिंग देखती हूं।
नीलेश मिसरा— व्हाट इस इट लाइक बीइंग अ गर्ल इन इंडिया ? पर मैं ये आपके अनुभवों के आधार पर नहीं। ये जो हमारी दुनिया है, हम पुरुषों की दुनिया है, वो छोटी-छोटी चीजें नहीं जान पाते, नहीं जानना चाहते, न ही रजिस्टर कर पाते जो एक लड़की के प्वाइंट ऑफ व्यू से होती है। फॉर एग्जांपल, अगर आप सड़क पर जा रहे हैं, कोई आपको देख रहा है। वी डोंट नो हॉउ दैट फील्स। पीठ पर जो निगाहें गड़ रही होती हैं हम वो महसूस नहीं कर पाते हैं। इस पर कुछ बात करना चाहेंगी?
तापसी पन्नू — स्कूल कॉलेज के टाइम से ये गिवेन सेट ऑफ रूल है जो लड़कियों के लिए अप्लाई होते हैं। हमारे लिए कुछ अलग रूल्स होते हैं, एक्स्ट्रा होते हैं जो उनके बराबर के नहीं होते हैं। जो हमेशा फील कराते रहते हैं कि आप अलग हैं। अब आप बेटर हैं या बेकार है आप देख लीजिए। बट अलग तो हैं, आप उनकी इक्वल तो नहीं हैं तो ये आपको फीलिंग आ जाती है। वो ऐसा लगता था कि जो तुम्हारे पास जिम्मेदारी है सही करने की, सही नॉट इन योर टर्म्स, सही जो आपको बताया जाता है, सही है। चाहे वो सही बिहेवियर हो, सही कपड़े हों, सही चलना हो, सही तरह के लाइफ डिसिजन वो जो दूसरों के लिए आपके लिए सही हैं वो जो आपके रूल्स हैं उसकी सारी जिम्मेदारी जो है वो आपके ही ऊपर है। मुझे याद है कॉलेज तुम शेर हो, आप सिर उठा के चलोगे वहां पर। लेकिन जैसे ही मैं कॉलेज से निकलती थी बस स्टॉप तक जाती थी, मुझे पता होता था कि इस समय पर इस बस में इस तरह का क्राउड होता है कि मैं अनकंफर्टेबल हूं जाने के लिए। हांलाकि वो मुझे घर के पास उतारती है।
नीलेश मिसरा—ये डीटीसी की बस है?
तापसी पन्नू —हां, ये डीटीसी की बस है। ये जो दूसरी बस है उसकी फ्रिक्वेंसी ज्यादा है और वो घर से थोड़ा दूर उतारती है, जिसके बाद आगे जाने के लिए मुझे रिक्शा लेना होगा, बट उसके अंदर जाना थोड़ा ज्यादा सेफ है। मुझे ये चीज उस समय कुछ ऑड नहीं लगती थी क्योंकि लगता था कि मेरे को बस ध्यान रखना है मेरी सेफ्टी का तो मैं चूज करुंगी कि मैं इस वाली बस में जाऊंगी और आगे जाकर रिक्शा लूंगी वो चाहे मेरे को समय ज्यादा लगता है। वो जो मैं सो सकती हूं, या उस समय रेस्ट कर सकती हूं उस समय का कॉप्रोमाइज हो जाता है। बट उस बस से नहीं जाऊंगी क्योंकि वहां के लोग अजीब सा बिहेव करते हैं। बट आई डिसाइडेड टू चेंज मेरा पैटर्न दैन क्वैश्चनिंग दैट। एन इट वाज फाइन विद मी अनटिल नॉउ। जब मैंने काम करना शुरू किया और ये कंडीशनिंग अपनी ब्रेक करनी शुरू करी। ये तब होती है जब आप इंडिपेंडेंट हो जाते हो। पहले भी क्वैश्चन पूछती थी, बट इतनी रैडिकल नहीं होती थे जो अब पूछती हूं। अब इंडिपेंडेंट हूं, मेरे हाथ में मेरी लाइफ की डिसिजन मेकिंग है। रिस्पॉसिबल भी खुद ही हूं अपनी डिसिजन मेकिंग की। बट उस समय ऐसा नहीं था। एक तो चलने का जो तरीका होता है न। लोग कहते हैं कि हम फोन में देखकर नीचे देखकर चलते हैं तो कहते हैं टेकनेक हो जाएगी तो ऐसे गर्दन की शेप खराब हो जाएगी। एज अ गर्ल आपकी गर्दन की शेप तो मतलब जबसे आप बाहर चलने शुरू हुए हैं।
नीलेश मिसरा— बिल्कुल सही कह रही हैं। हम तो कल्पना भी नहीं कर सकते हैं आपको सामने दुनिया है और नीचे सिर करके चल रहे हो। चाहे आप कितने भी कॉन्फिडेंट हो। यू नो।
तापसी पन्नू — यस, चाहे तुम शेर हो अपने कॉलेज की और अपने घर में भी तुम पैंपर्ड हो बट तुम जैसे ही अपनी प्रिमायसेस से बाहर निकलोगे तुम सिर झुकाकर ही चलोगे। क्योंकि तुम जहां नजर उठाआगे, वहां पर तुम्हारे को कोई घूर रहा है। से ये अनसेड रूल होता है जो आप फॉलो करते हैं। एक्सपीरियंस से ही आपको बताया जाता है बट आप फॉलो करते हैं। आप ऐसे ही करके बैठेंगे। आप क्रॉस लेग करके बैठेंगे। अब तो आदत सी हो गई है तो हम ऐसे ही क्रॉस लेग करके बैठ जाते हैं। मेरे फादर भी जब मैं घर से बाहर निकलती थी तो कहते थे, ये कैसे कपड़े हैं? पता है मेरे फादर का रिफरेंस प्वाइंट ये होता था कि लोग क्या कहेंगे। वो जो ज्यादातर फैमिली में होता ही है हमारी कंट्री में। ही यूज टू ब्लंटी, अगर लोगों ने ऐसा कहा तो मैं तो शर्म से पानी हो जाऊंगा। या लोगों ने सोचा तेरे बारे में, या कुछ कहा तेरे बारे में तो ऐसा हो जाएगा। उन्होंने अपनी पूरी लाइफ सिर्फ लोगों के लिए ही जी है कि लोग क्या फील कर रहे हैं तेरे बारे में।
उनको इतना इंब्रेसिंग होता था जब मैंने मॉडलिंग स्टार्ट करी थी कि लड़की आपकी ये सब कर रही है इंस्पाइट ऑफ इंजीनियरिंग। आप उसे इंजीनियरिंग कराइए। जब तक उनके फ्रेंड्स ने ये बोलना नहीं शुरु किया कि आपकी बेटी की फोटो हमने देखी वहां पे, अरे इतना बड़ा होर्डिंग लगा था, अरे इस फलानी मैगजीन की कवर पर आई तब उनको लगना शुरू हुआ कि यार मतलब इतना बुरा नहीं है ये सब। मेरे बोलने से उनको कंर्फमेशन नहीं हुआ कि मैं कुछ बुरा नहीं कर रही हूं। अब सब सही है, क्योंकि अब मेरे फादर के पैरेंट्स के बच्चों को मेरे साथ फोटो चाहिए। लेकिन उस समय सही नहीं था।
नीलेश मिसरा— और शायद यही डर औसत फादर की कहानी है हिंदुस्तान में, क्योंकि यही कंडिशनिंग, यही दुनिया है जब वो घर से निकलते होंगे तो वो मोहल्ले में देखते होंगे कि ये बदतमीज लड़के बैठे हुए हैं?
तापसी पन्नू —हां, उनको यही था। मुझे याद है मेरी इंजीनियरिंग प्रिपरेशन के दौरान जो कोचिंग क्लास थी। उस समय वहां जाने के वक्त दो लड़के मुझे पसंद करते थे। इसी बात को लेकर उन दोनों की आपस में लड़ाई हो गई और बुलाया किसके फादर को गया मेरे। लोगों ने कहा कि इस लड़की की वजह से ऐसा हुआ है। मैंने कहा, मैंने तो नहीं बोला था इनको लड़ने के लिए, और न ही मैंने इनको बोला मुझे पसंद करने के लिए। दैट वाज फर्स्ट एंड वोनली टाइम कि मेरे फादर को किसी निगेटिव काम के लिए बुलाया गया हो। अभी तक हेड गर्ल ले रही है उसके लिए बुलाया गया, मेरे अचीवमेंट के लिए बुलाया गया। सो दैट डे अ काइंड आफ मतलब जैसे कोई मर गया है घर में। उस दिन उस तरह का महौल था घर के अंदर। वो भी जब मेरी कोई गलती नहीं थी। बिकॉज ऑफ आई एम अ गर्ल इन मिडिल तो उन लड़कों का क्या, वे तो लड़ते रहते हैं। इसी लड़की की कैरेक्टर की वजह से ही कुछ हुआ है कि दो लड़के लड़ रहे हैं। उस टाइम आपको रिएलाइज होता है कि तुम एक लड़की हो।
नीलेश मिसरा—आपने बताया कि आपने बस बदली या ऐसे आप ने कुछ अनप्लेजेंटनेस उस दौरान अपने इर्द-गिर्द या अपने दोस्तों के इर्द-गिर्द देखी और उसका क्या कोई असर हुआ आपकी सोच पर?
तापसी पन्नू — हां होती है, वो बस बदलने का रीजन भी यही था। उसके अलावा मुझे याद है नगर कीर्तन हो रहा था गुरुनानक जी के बर्थडे का और हर साल हमारी फैमिली स्टॉल लगाती थी वहां पर खाने के लिए। वहां पर बहुत भीड़ होती है। पूरी सड़क ब्लाक होती है और कोई ट्रैफिक नहीं आ सकती वहां पर। आई थिंक उस समय मैं स्कूल में ही थी 11वीं या 12वीं में रही होंगी। हम लोग उस वक्त का बहुत इंतजार करते रहते थे। हम लोग गुरुद्वारे जाने के लिए चल रहे थे। मैंने एक रेग्यूलर पैंट और टीशर्ट डाली थी। तभी पीछे से कोई आया और वो उंगली करने लग गया मेरी बॉडी पर। एक दो बार किया उसने और मुझे थोड़ा ऑकवर्ड होने लगी। तब मैंने सोचा कि किसको बोलूं, क्योंकि अब तुम अपने पैरेंट्स को तो ये बात बोल नहीं सकते कि कैसे उन्हें समझाऊं। ऐसे में मैंने अपना हाथ पीछे रख लिया। मैंने सोच लिया कि अब किसी ने कुछ किया तो उसकी उंगली मरोड़ दूंगी और एक्चुली मैंने करा। किसी ने दोबारा उंगली लगाई तो मैंने उसकी उंगली ही पकड़ ली और मोड़ दी पूरी। आप मानेंगे नहीं, उस समय भी मेरे में इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं मुड़ के देखूं कि आखिर वो है कौन। सो दैट वाज लाइक की मुझे देखना नहीं है बट मुझे मत छूओ।
नीलेश मिसरा—इस तरह के अनुभवों से हिंदुस्तान की करीब-करीब हर महिला अपनी जिंदगी में गुजरती है और हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि ऐज मेल्स कि ये करता क्या है आपको। कितनी गहरी चोट डालता है आपको। एंड दैन फिल्म्स हैपेन। आपने बताया था कि आप दो भाषाओं में एक ही साल में फिल्म कर रही थीं। वो एक आपकी जिंदगी का नया पड़ाव था जिसकी आप सपने देख रही थीं। वो तो एक इत्तेफाक था एक नया करियर जो चलकर आपके पास आया था क्योंकि होर्डिंग्स पर आपकी तस्वीरें थीं। एक तो ये नहीं हुआ होता, वो फोन नहीं आए होते तो क्या होता?
तापसी पन्नू — फिर मैं एमबीए करती अगले साल दोबारा एग्जाम देकर। किसी मार्केटिंग कंपनी में होती।
नीलेश मिसरा—कितने साल की यात्रा रही?
तापसी पन्नू – 2010 में शुरू की थी। उसी साल ही एक पिक्चर रिलीज हुई थी। मैंने पहले तेलगू शूट किया फिर तमिल, फिर तेलगू फिर तमिल तो मेरे दिमाग में जो खिचड़ी थी न तमिल तेलगू की वो शुरू से ही बन रही थी। आई वाज इंज्वाइंग ऐट ऑल, आई वाज ट्राइंग माई बेस्ट बट ऐसा नहीं था कि ये मेरे लाइफ का प्रोफेशन है। पहली तेलगू फिल्म झुमांदी नादम रिलीज हो गई 2010 में। वो राघवेंद्र राघव जी की मूवी थी जिन्होंने श्रीदेवी मैम को लॉच किया था। उनके बारे में ये कहा जाता है कि जिसको ये लांच करते हैं वो बड़ी स्टार बन जाती हैं। ये चीज मुझे वहां आने के बाद पता चली। कुछ 105वीं मूवी थी उनकी जो उन्होंने मेरे साथ निर्देशित की थी।
मेरा डेब्यू काफी लकी रहा है। मेरी स्ट्रगल सोकॉल्ड शुरू होता है मेरी पहली पिक्चर के बाद, क्योंकि उसे मेंटेन करना है। अब उसको अप करना है। पहले तो आपसे लोगों को उम्मीद नहीं होती है। उसके बाद सेंस आफ प्रेशर मेरे अंदर आने लगा। फैमिली मे तो कोई जानता नहीं था इस इंडस्ट्री के बारे में तो जो लोग थे आसपास उनसे यही सुनने को मिलता था कि बड़े हीरो के साथ काम करो। बड़े प्रोड्यूशर के साथ काम करो। बड़ी बिग बजट फिल्म होनी चाहिए। सारी बड़ी हीरोइनें आप देख लो जो एक बड़ी लिस्ट है, वो यही करती हैं। आप ऐसे ही बनोगे बड़े स्टार। तब मैंने सोचा, अगर यही होता है तो यही करते है। मैंने उसी हिसाब से लेनी शुरू कर दी।
जो बड़े हीरो की फिल्म आ रही थी मैं ले लेती थी। बड़े प्रोड्यूशर, बड़े डायरेक्टर की। वो लेते हुए ये हुआ कि दो तीन पिक्चरें बैक टू बैक फ्लाप होने लगीं। अजीब ये लगा कि उनका इल्जाम जो लगा फ्लाप होने का मेरे सिर पर आने लगा। लोग बोलने लगे कि ये बैडलक चार्म है। ये पनौती है। इसके साथ काम करोगे तो आपकी पिक्चर फ्लाप हो जाएगी। तब तक मुझे ये समझ में नहीं आया था कि मैं ये कैसे हैंडल करुं। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि पिक्चर में तो मेरे सिर्फ पांच सीन थे, उसकी वजह से कैसे फ्लाप हो सकती है। लॉजिक तो समझ में नहीं आया उस चीज का। आयरन लेग बोला जाता था वहां पर मुझे। आयरन लेग इज बैडलक चार्म बोला जाता है वहां पर। वो सब थोड़ा टाइम चला। उसके बाद मैं हिंदी में आ रही थी, बट मेरे सक्सेज रेट काफी हाई थे तमिल में।
ज्यादातर लड़कियां देख लो अगर साउथ की हिरोइनें हैं वो नहीं कोशिश करना चाहती हिंदी में आने की, क्योंकि उन्हें लगता है कि यहां सब कुछ अच्छा ही तो है। यू आर ट्रिटेड लाइक सुपरस्टार। यू पेड वेल, यू ट्रिडेट वेल। बट मेरे को था कि मेरी भाषा तो हिंदी है तो उसमें क्यों न कोशिश की जाए। तीन साल ओल्ड थी मैं साउथ में। कुछ दर्जन भर फिल्में मैंने करी होंगी, जब मैंने हिंदी में स्टार्ट किया। सो यू यूज टू बीइंग फ्रंट रो गेस्ट।
एंड वेन यू इंटर इन हिंदी यू आर ट्रिटेड लाइक आप आन दोज स्ट्रगलर हैं जो आप छठें सातवें रो में बैठेंगे। जब आपने मेहनत खुद के बलबूते पर की है इतनी पिक्चरें करने के बाद, कुछ अचीव करने के बाद और सडेनली आपको उस कैटेगरी में रख दिया जाए जस्ट बिकॉज की आपने हिंदी में पिक्चरें नहीं की हैं। तो वो मेहनत करने वाले इंसान पर थोड़ा सा झटका तो लगता है। तब लगता कि मेरी वैल्यू इसलिए नहीं समझी जा रही है कि मैंने हिंदी फिल्में नहीं की है। उस समय लगा कि इंडियन फिल्म इंडस्ट्री को फिल्म इंडस्ट्री की तरह ट्रीट होनी चाहिए न। तुमने तमिल में, तेलगू में, कन्नड में, पंजाबी में फिल्में की हैं क्या फर्क पड़ता है। उस समय वो चीज मुझे थोड़ी अजीब लगी। मैंने सोच लिया था मैं आउंगी ही नहीं। मैं उस समय आउंगी पब्लिक एपियरेंसेज में जब वैल्यू होगी मेरी कोई। जब ये लोग जानते होंगे कि मैं कौन हूं और मैंने क्या किया है। मेरे काम के बेसिस पर मेरी वैल्यू होगी। फिर मैंने वेट किया। आई थिंक पिंक के बाद मैंने पब्लिक एपियरेंसेज पर आना शुरू किया। उसके बाद अब थोड़ा रिस्पेक्टेड फील होता है।
तापसी पन्नू का इंटरव्यू पार्ट-2 : सब से अधिक तब रोई जब आईआईटी में सेलेक्शन नहीं हुआ : तापसी