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उत्तर पूर्व मानसून से तमिलनाडु में भारी बारिश और तबाही

उष्णकटिबंधीय तरंगों की वजह से तमिलनाडु में भारी बारिश हुई है। इसकी वजह से यह राज्य कम बारिश वाले क्षेत्र से बाहर निकल कर अधिक बारिश वाले क्षेत्र में पहुंच गया है। हालांकि यह बारिश अपने साथ तमाम तरह की कठिनाईयां लाई है। इस बारिश की वजह से राज्य में जान-माल का काफी नुकसान हुआ है। मौसम के जानकारों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के इस दौर में यह नई सामान्यता (न्यू नॉर्मल) है।
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दक्षिण पश्चिमी मानसून में सामान्य से दस फीसदी अधिक बारिश के बाद भारत में उत्तर पूर्व मानसून ने प्रवेश कर लिया है। इस उत्तर पूर्व मानसून से सबसे अधिक बारिश तमिलनाडु में हुई है।

28 नवंबर से 3 दिसंबर तक तमिलनाडु में भारी बारिश हुई। बारिश संबंधी इन घटनाओं से तमिलनाडु में लगभग 25 लोगों की मौत हो गई है। कोयम्बटूर में तेज बारिश की वजह से एक दीवाल गिर गई, जिसके नीचे दबने से 17 लोगों की मौत हो गई।

तेज बारिश की वजह से शिक्षण संस्थानों में छुट्टी कर दी गई और टूथुकुडी, कुडेलोर और तिरुनेलवली जिलों में राहत शिविरों की भी स्थापना की गई। यह तीन जिले बारिश से सबसे अधिक प्रभावित हैं।

आईआईटी बॉम्बे के आईडीपी क्लाइमेट स्टडीज के फैकल्टी मेंबर श्रीधर बालासुब्रम्ण्यम गांव कनेक्शन को बताते हैं, “28 नवंबर से एक दिसंबर के बीच तमिलनाडु में भारी बारिश हुई। कम समय में अधिक बारिश मौसम की एक नई सामान्यता (न्यू नॉर्मल) है।”

28 नवंबर तक राज्य में सामान्य से 43 प्रतिशत कम बारिश हुई थी। इसके बाद अगले तीन से चार दिन राज्य में भारी बारिश हुई, जिसकी वजह से जान-माल का काफी नुकसान हुआ। 2 दिसंबर तक आते-आते तमिलनाडु कम बारिश वाले राज्यों की सूची से बाहर निकल कर अधिक बारिश वाले राज्यों में शामिल हो गया। 2 दिसंबर तक राज्य में सामान्य से 11 फीसदी अधिक बारिश हुई।

अगले दिन 3 दिसंबर को राज्य में उत्तर पूर्व मानसून सीजन की 13 प्रतिशत बारिश हुई। उत्तर पूर्व मानसून को विंटर मानसून भी कहते हैं क्योंकि यह सर्दियों के सीजन में आता है। इस मानसून सीजन में देश के दक्षिणी प्रायद्वीप, जिसमें तटीय आंध्रा, रायलसीमा, तमिलनाडु और पुड्डुचेरी, दक्षिणी कर्नाटक और केरल के मौसम उपक्षेत्र शामिल हैं, में बारिश होता है। तमिलनाडु और पुड्डुचेरी क्षेत्र में इसी मानसून सीजन के दौरान सबसे अधिक बारिश होती है।

भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) की डाटा के अनुसार 2 दिसंबर को तमिलनाडु में सामान्य से 345 प्रतिशत अधिक बारिश हुई। अगले दिन यानी 3 दिसंबर को राज्य में सामान्य से 186 फीसदी अधिक बारिश हुई।

चेन्नई के क्षेत्रीय मौसम विभाग के डाटा के अनुसार, 1 दिसंबर से 3 दिसंबर के बीच रामनाथपुरम, तिरुनेलवली, पुडुकोट्टाई, टूथुकुडी और कोयम्बटूर जिलों में क्रमशः 73 प्रतिशत, 54 प्रतिशत, 52 प्रतिशत, 44 प्रतिशत और 43 प्रतिशत बारिश हुई।

“हाल के कुछ सालों में मैंने राज्य में इतनी भारी बारिश नहीं देखी। उत्तर पूर्व मानसून के समय राज्य में छिट-पुट बारिश ही होती थी। लेकिन जलवायु परिवर्तन के इस दौर में हमें अब ऐसी तेज बारिश देखने को मिलेंगी, जिसमें कम समय में अत्यधिक बारिश होती है।”, आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर श्रीधर बालासुब्रम्ण्यम कहते हैं।

(ग्राफ देखें- उत्तर पूर्व मानसून, 2019 के दौरान तमिलनाडु और पुड्डुचेरी क्षेत्र में हुई बारिश)

सोर्स- आईएमडी चेन्नई, http://www.imdchennai.gov.in/hydro.pdf

सोर्स- आईएमडी चेन्नई, http://www.imdchennai.gov.in/hydro.pdf

चेन्नई में बसे एक निजी मौसम ब्लॉगरएस. पार्थसारथी के अनुसार, उत्तर पूर्व मानसून के तीन महीने के सीजन के दौरान तमिलनाडु में सामान्यतया 44 सेंटीमीटर बारिश होती है।

“लेकिन इस बार 3 दिसंबर तक ही राज्य में 41 सेंटीमीटर से अधिक बारिश हुई। इस महीने के आखिरी तक राज्य में दो बार और तेज बारिश होने की संभावना जताई गई है। इस तरह इस मानसून सीजन में सामान्य से 5-10 फीसदी अधिक बारिश की संभावना जताई जा रही है।”, पार्थसारथी कहते हैं।

यह दक्षिण भारत के लिए अच्छी खबर है। पिछले साल उत्तर पूर्व मानसून सीजन में सामान्य से 24 फीसदी कम बारिश हुई थी, जिसकी वजह से दक्षिण भारत को सूखे का सामना करना पड़ा था।

“लेकिन इस बार भी चेन्नई में कम बारिश होने की संभावना जताई जा रही है, क्योंकि राज्य के उत्तरी भाग में मानसून की सक्रियता काफी कम है। 3 दिसंबर तक चेन्नई में सामान्य से 7 फीसदी कम बारिश हुई है।”, पार्थसारथी आगे बताते हैं।

सूखा नवंबर

सामान्यतया, नवंबर महीना तमिलनाडु के लिए सबसे अधिक बारिश वाला महीना होता है। लेकिन यह साल काफी अलग रहा।

बालासुब्रम्ण्यम इसके पीछे के कारणों को बताते हुए कहते हैं, “मानसून के नजरिये से देखे तो तमिलनाडु के लिए यह सूखा नवंबर था। ऐसा अरब सागर में बने दो चक्रवातों ‘क्यार’ और ‘माहा’ के कारण हुआ। इन दोनों चक्रवातों ने बंगाल की खाड़ी से उसकी नमी छीन ली और किसी भी महत्वपूर्ण मौसम प्रणाली को खाड़ी में नहीं बनने दिया। ये मौसम प्रणाली राज्य में नवंबर के दौरान अच्छी बारिश करते हैं। खाड़ी में बनने वाला अकेला चक्रवात ‘बुलबुल’ भी इन परिस्थितियों में उत्तर की तरफ चला गया।”

इसके अलावा ‘माहा’ चक्रवात भी अप्रत्याशित रूप से अरब सागर में बहुत लंबे समय तक चक्कर काटता रहा, जिससे मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन (एमजेओ) को बंगाल की खाड़ी में आगे बढ़ने का मौका नहीं मिला। इस वजह से नवंबर के महीने में उत्तर पूर्व मानसून के दौरान दक्षिण भारत के राज्यों में कम बारिश हुई।

कोई भी चक्रवात, महासागर और वायुमंडल से उसकी तापीय और गतिज ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा सोख लेता है। जिससे महासागरीय-वायुमंडलीय विनिमय कमजोर होता है और यह कमजोर मानसून का कारण बनता है।

पूर्वी ताम्बरम का इलाका (फोटो- विजयप्रभु)

पूर्वी ताम्बरम का इलाका (फोटो- विजयप्रभु)

ऐसा इस साल जून में भी हुआ था, जब अरब सागर में चक्रवात ‘वायु’ के बनने के कारण मुंबई में दक्षिण-पश्चिमी मानसून आने में देरी हुई। बालासुब्रमण्यम कहते हैं, “इस बार अक्टूबर-नवंबर में भी दो चक्रवात क्यार और माहा सक्रिय थे, जिसके कारण उत्तर पूर्व मानसून अपने शुरुआती चरणों में कमजोर हुआ।”

यह अनुमान लगाया गया था कि नवंबर के आखिरी और दिसंबर के शुरुआत में यह मानसून फिर से सक्रिय होगा। इसका परिणाम भी हमें देखने को मिला और 28 नवंबर से 2 दिसंबर के बीच तमिलनाडु में भारी बारिश हुई।

‘उष्णकटिबंधीय तरंगें’

पिछले कुछ दिनों में राज्य में भारी बारिश का मुख्य कारण ‘उष्णकटिबंधीय तरंगें’ भी है। पार्थसारथी कहते हैं, “रॉस्बी तरंगों की वजह से तमिलनाडु में भारी बारिश हुई। रॉस्बी तरंग पश्चिम की ओर बढ़ने वाली एक उष्णकटिबंधीय तरंग है, जो हिंद महासागर से बंगाल की खाड़ी की तरफ बहती है।”

सीधे शब्दों में कहें तो उष्णकटिबंधीय तरंग एक प्रकार का अपेक्षाकृत कम दबाव वाला वायुमंडलीय गर्त होता है, जो कि पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर चलता है। इस वजह से बंगाल की खाड़ी में बादल बनते हैं। ये बादल पूर्वी हवाओं के साथ मुख्य भूमि की तरफ आते हैं और बारिश होती है। हाल ही में ऐसा तमिलनाडु में घटित हुआ।

हालांकि यह कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं है। “उष्णकटिबंधीय तरंगों को सैटेलाइट के मदद से आसानी से देखा जा सकता है। इन तरंगों की क्षमता पर बारिश की तीव्रता निर्भर होती है। 28 नवंबर से 2 दिसंबर के बीच दक्षिणी राज्यों में उष्णकटिबंधीय लहर बहुत मजबूत थे, जिसके परिणामस्वरूप भारी बारिश हुई।”, बालासुब्रमण्यम बताते हैं।

पार्थसारथी ने बताया कि रॉस्बी लहर अब तमिलनाडु से दूर चला गया है और उष्णकटिबंधीय लहर और एमजेओ दोनों अरब सागर में हैं। “दिसंबर महीने के बीस दिन अभी भी बचे हुए हैं। राज्य में अभी भी दो से तीन बार अत्यधिक बारिश की घटनाएं हो सकती हैं। लेकिन यह बारिश मुख्य रूप से राज्य के दक्षिणी हिस्से में ही सीमित रहेगी। कुल मिलाकर इस बार उत्तर पूर्व मानसून से राज्य में सामान्य बारिश होगी।”, बालासुब्रमण्यम आगे बताते हैं।

अत्यधिक वर्षा, चक्रवात और जलवायु परिवर्तन

साल 2019 को मौसम संबंधी चरम (Extreme) घटनाओं का साल कहा जा सकता है। साल की शुरुआत में, देश का आधे से अधिक हिस्सा सूखे का सामना कर रहे था। दक्षिण-पश्चिम मानसून के आने में भी देरी हुई। लेकिन एक बार जब यह भारत में प्रवेश किया, उसके बाद पूरे देश में भारी बारिश हुई।

कई राज्यों में इस बारिश से फसल और इंफ्रास्ट्रक्चर को भारी नुकसान पहुंचा और जान-माल की भी अत्यधिक हानि हुई। देश के कई हिस्सों में अभूतपूर्व बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हुई।

बालासुब्रमण्यम चेतावनी भरे लहजे में कहते हैं, “मौसम की चरम घटनाएं (एक्स्ट्रीम) नई सामान्यता है और भविष्य में इससे भी बुरा होने वाला है। हमें इसे स्वीकार करने की जरुरत है।”

उनके अनुसार, “बदलती जलवायु के इस दौर में उष्णकटिबंधीय तरंगे कैसी प्रतिक्रिया देंगी, यह बहुत स्पष्ट नहीं है। इसके लिए अभी और शोध की आवश्यकता है। लेकिन, यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन और महासागरों के गर्म होने के कारण, वर्षा आधारित सिस्टम और मजबूत होंगे, जिसके परिणामस्वरूप अत्यधिक वर्षा की घटनाएं निकट भविष्य में और होंगी।”

भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के हाल के एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार इस साल उत्तरी हिंद महासागर के ऊपर लगभग 11 चक्रवाती विक्षोभ हुए, जिसमें से चार बंगाल की खाड़ी और सात अरब सागर के ऊपर थे। इसके अलावा बंगाल की खाड़ी में तीन और अरब सागर में चार चक्रवात की घटनाएं हुईं।

आईएमडी के 4 दिसंबर के प्रेस रिलीज के अनुसार, “इस तरह, 2019 के दौरान अरब सागर में कुल 7 चक्रवाती विक्षोभ सक्रिय हुए, जो कि सामान्य औसत 1.7 चक्रवाती विक्षोभ/वर्ष से कहीं अधिक है। इसी तरह, इस साल अरब सागर के ऊपर कुल 4 चक्रवातीय घटनाएं घटित हुई, जो कि एक चक्रवात/वर्ष से कहीं अधिक है।

प्रेस विज्ञप्ति में आगे लिखा है, “1981 से 2018 के पिछले आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि अरब सागर के ऊपर इस साल सबसे अधिक चक्रवाती विक्षोभ का निर्माण हुआ। इसके अलावा यह साल अरब सागर के ऊपर बने सबसे अधिक चक्रवातों का भी गवाह बना।”

इसलिए यह समय की मांग है कि मौसम विभाग, राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों के बीच एक प्रभावी संचार प्रणाली विकसित हो। साथ ही, राज्यों, शहरों और गांवों को जलवायु परिवर्तन के इस दौर में आपदारोधी इंफ्रास्ट्रक्चर को भी विकसित करने की जरूरत है।

2013 में, तमिलनाडु ने ‘जलवायु परिवर्तन पर तमिलनाडु राज्य कार्य योजना’ नाम से एक ड्रॉफ्ट तैयार किया था, जिसे मार्च 2015 में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा समर्थन भी दिया गया। इस ड्रॉफ्ट में यह उल्लेख किया गया, “तमिलनाडु में इस सदी के अंत तक (2081-2100) वार्षिक वर्षा का औसत बढ़ेगा। उत्तर-पूर्वी मानसून के दौरान बारिश 9 से 22 मिमी/दिन तक बढ़ेगी। तटीय इलाकों में और भारी वर्षा होगी।”

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन में भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (INDCs) को भी शामिल कर इस कार्ययोजना को 31 मार्च, 2019 तक संशोधित किया जाना था। सितंबर, 2019 तक इसे केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के समक्ष इसे प्रस्तुत किए जाने की भी योजना थी। लेकिन संशोधित योजना का अंतिम प्रारुप अभी तक तैयार नहीं किया जा सका है।

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