बिहार की राजधानी पटना से करीब 90 किलोमीटर पूरब की ओर बसे मोकामा क्षेत्र की कई पहचान है। कुछ पहचान ऐतिहासिक है और कुछ पौराणिक। इन पहचानों से इतर एक और पहचान है, जो यहां की अर्थव्यवस्था से गहरे जुड़ी हुई है।
मौसम के लिहाज से दक्षिण बिहार और उत्तर बिहार दो ध्रुवों पर खड़ा नजर आता है। दक्षिण बिहार में अपेक्षाकृत अधिक गर्मी और अधिक सर्दी पड़ती है। यहां मॉनसून की बारिश सामान्यतः कम होती है। उत्तर बिहार मौसम के लिहाज से लोगों के लिए ज्यादा माकूल है। यहां दक्षिण बिहार के मुकाबले कम गर्मी पड़ती है और पर्याप्त बारिश होती है। ये बारिश उत्तर बिहार में भयावह बाढ़ का कारण भी बनती है।
मोकामा ठीक उस जगह पर स्थित है, जहां उत्तर बिहार और दक्षिण बिहार एक दूसरे से जुड़ता है। शायद यह एक वजह हो सकती है कि यहां कुछ अलग ही किस्म के फसलों की खेती बहुतायत में होती है।
गंगा के दक्षिणी तट पर बसा मोकामा टाल का यह इलाका दाल का एक बड़ा उत्पादक क्षेत्र है। मोकामा को ‘दाल का कटोरा’ भी कहा जाता है। यहां मूंग, मसूर और चना समेत अन्य दालों की व्यापक खेती होती है। मसूर की खेती यहां सबसे अधिक की जाती है। मोकामा देश के मसूर की दाल के उत्पादन का देश में दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है।
मॉनसून के सीजन में बारिश से मोकामा एक विशाल भूभाग (खेत) पानी में डूब जाता है। मोकामा के भूगोल से अनजान कोई व्यक्ति अगर मॉनसून में मोकामा के खेतों का रुख करता है, तो पहली नजर में वह यकीन नहीं कर पायेगा कि जिस जलमग्न क्षेत्र को वो देख रहा है, वह तालाब नहीं है बल्कि वहां दाल की फसलें लहलहाती हैं। कई महीनों तक मोकामा के एक बड़े भूभाग में पानी भरे होने के कारण इसे “ताल” कहा जाता था, जो बाद में स्थानीय बोलचाल में बिगड़ कर “टाल” हो गया।
गंगा जल उद्भव योजना
गंगा जल उद्भव योजना (गंगा वाटर लिफ्ट स्कीम) पर पिछले कई सालों से चर्चा चल रही थी। पिछले साल दिसंबर में इस प्रोजेक्ट को आखिरकार बिहार कैबिनेट की मंजूरी दे दी गई। इसकी शुरुआत जल-जंगल-हरियाली मिशन के अंतर्गत की गई है। फिलहाल मोकामा के हथीदह में काम भी शुरू हो गया है। यहीं से 190 किलोमीटर अंडरग्राउंड पाइप डालकर गंगा का पानी राजगीर, नवादा, गया और बोधगया ले जाया जाएगा।
गंगा जल उद्भव योजना बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महात्वाकांक्षी योजना मानी जा रही है और यही वजह है कि पिछले साल दिसंबर में कैबिनेट की मंजूरी मिलने के साथ ही काम में भी तेजी आई। 30 अगस्त को सीएम नीतीश कुमार ने खुद हथीदह का दौरा कर कामकाज का जायजा लिया।
जल संसाधन विभाग के मुताबिक पहले चरण के तहत गया और राजगीर तक गंगा के पानी की सप्लाई की जाएगी। इसके लिए दोनों जगहों पर रिजर्वायर बनाये जा रहे हैं। गया में 43 मिलियन क्यूबिक मीटर और राजगीर में 7 मिलियन क्यूबिक मीटर की सप्लाई होगी।
जल संसाधान विभाग के एक अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, “विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है कि एक व्यक्ति को रोजाना 135 लीटर पानी चाहिए। उसे ध्यान में रखते हुए इतना पानी गंगा से निकाला जाएगा कि राजगीर, गया और बोधगया के लोगों को रोजाना 135 लीटर पानी मिल सके।”
The Ganga Water Lift Scheme to address water scarcity in Nawada, Nalanda and Gaya districts of S Bihar is one of @WRD_Bihar‘s key projects under @NitishKumar ji’s #JalJeevanHariyali campaign. 1st-hand field appaisals by top officials already underway post our tech review ystrday pic.twitter.com/WA8dWf1vQg
— Sanjay Kumar Jha (@SanjayJhaBihar) September 6, 2019
प्रस्ताव में गंगा वॉटर लिफ्ट स्कीम से मोकामा के मरांची स्थित गंगा नदी का पानी पाइपलाईन के जरिए गया, बोधगया और राजगीर में पेयजल मुहैया करवाया जा सकेगा। सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड के आंकड़ों के हवाले से बताया गया कि पिछले दस वर्षों में इन प्रस्तावित क्षेत्रों में भूजल लगभग 5.06 मीटर नीचे जा चुका है। राजगीर के संदर्भ में कहा गया कि ब्रह्म कुंड, सप्तधारा, व्यास कुंड, मार्कंडेय कुंड, अनंत ऋषि कुंड, यमुना कुंड, मखदुम कुंड, सीता कुंड आदि में पानी का संकट अप्रत्याशित रूप से गहरा गया है। वहीं, गया में भूजल के संकट के संदर्भ में कहा गया कि गर्मी के मौसम में ज़िले के अधिकांश हिस्से में पानी की सप्लाई टैंकरों के माध्यम से की जा रही है।
गंगा जल उद्भव योजना के पहले चरण में गया और राजगीर में पानी की सप्लाई की जाएगी। इसके लिये गया और राजगीर में जलाशयों का निर्माण किया जा रहा है। राजगीर के घोड़ा कटोरा क्षेत्र में 9.81 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम), गया के तेतर में 18.53 एमसीएम और अबगिल्ला पहाड़तल्ली में 1.29 एमसीएम की क्षमता का जलाशय तैयार किया जा रहा है। योजना के पहले चरण में 2836 करोड़ रुपये खर्च किये जाएंगे और अगले साल जून तक पहला चरण पूरा हो जाएगा।
मोकामा टाल और गाद की समस्या
मोकामा का खेती वाला क्षेत्र ‘मोकामा टाल’ के नाम से मशहूर है। स्थानीय लोग बताते हैं कि मोकामा टाल के भीतर भी कई टाल हैं। मसलन बख्तियारपुर टाल, बाढ़ टाल, मोर टाल, बड़हिया टाल, सिंघौल टाल, फतुहा टाल आदि। ये सभी टाल मिलकर मोकामा टाल कहे जाते हैं। मोकामा टाल क्षेत्र करीब 110 किलोमीटर लंबा और 6 से 15 किलोमीटर तक चौड़ा है। हेक्टेयर में बात करें, तो मोकामा टाल क्षेत्र करीब 106200 हेक्टेयर में फैला हुआ है।
यहां उपजने वाली दलहन फसलों पर दो लाख किसान और करीब पांच लाख खेतिहर मजदूर निर्भर हैं। मोकामा में दलहन उत्पादन किस पैमाने पर होता है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यहां के खेतों में काम करने के लिए पड़ोसी राज्य झारखंड से मज़दूर मंगवाये जाते हैं।
लेकिन यह क्षेत्र पिछले कुछ दशकों से गाद की समस्या से भीषण रूप से जकड़ा हुआ है। स्थानीय खेतिहरों का मानना है कि 1975 में 150 करोड़ रुपए की लागत से तामीर हुए फ़रक्का बराज के कारण उन्हें इस समस्या से जूझना पड़ रहा है।
ग़ौरतलब है कि फरक्का बराज बनाने का सुझाव ब्रिटिश काल में एक इंजीनियर ने दिया था, लेकिन उस वक्त इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। मगर देश की आजादी के बाद यह बराज बनाने पर गंभीरता से विचार किया जाने लगा।
दरअसल, बराज बनाने के पीछे सबसे बड़ी वजह कोलकाता पोर्ट की ड्रेजिंग से जुड़ी हुई थी। कोलकाता पोर्ट गाद की समस्या से अक्सर दो चार होता था, ऐसे में फरक्का बराज को इस समस्या के प्रभावी समाधान के रूप में देखा गया था।
बताया जाता है कि उस वक्त इंजीनियरों ने ये अनुमान लगाया था कि बराज से होकर प्रति सेकेंड 40 हजार क्यूबिक फीट पानी निकलेगा और जो हुगली नदी (जिसके किनारे कोलकाता पोर्ट है) की गाद को बहा ले जाएगा, जिससे हर साल हुगली नदी में ड्रेजिंग करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मगर उस वक्त पश्चिम बंगाल के सिंचाई विभाग में तैनात एक इंजीनियर कपिल भट्टाचार्य ने तर्क दिया था कि बराज बनने से गाद की समस्या और बढ़ जाएगी। उनकी बातों को उस वक्त गंभीरता से नहीं लिया गया, लेकिन अब जब गाद की समस्या न केवल कोलकाता पोर्ट के संचालन को प्रभावित कर रही है बल्कि मोकामा टाल की भी मुश्किलें बढ़ा दी हैं, तो उस इंजीनियर के कहे पर यकीन होने लगा है।
मोकामा क्षेत्र के किसान अरविंद सिंह गांव कनेक्शन के साथ बातचीत में कहते हैं, “नब्बे के दशक से मोकामा टाल क्षेत्र में गाद की समस्या बढ़ने लगी। पहले मोकामा टाल के मुकाबले गंगा नीचे थी, लेकिन अब मोकामा टाल और गंगा बराबर में आ गई है। इसकी वजह से ज्यादा बारिश होने पर मोकामा टाल में जो पानी भरता है, उसे निकलने में काफी वक्त लग जाता है।”
मोकामा टाल में अरविंद सिंह की करीब 70 बीघा जमीन है। पिछले साल ज्यादा दिनों तक खेत में पानी जमा रह गया था जिस कारण वह दलहन की बुआई नहीं कर पाये थे।
“पिछले साल बारिश ज्यादा हो गई थी, लेकिन गाद के कारण चूंकि गंगा की सतह ऊपर हो गई है, तो पानी काफी धीरे-धीरे निकल पाया, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। मेरी तरह सैकड़ों किसान पिछले साल बुआई नहीं कर पाये। पिछले साल मोकामा टाल के करीब 10,000 बीघे में खेती नहीं हो पाई थी”, अरविंद सिंह कहते हैं।
पिछले वर्ष केंद्र सरकार द्वारा एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया गया था। इस कमेटी ने गंगा के बहाव क्षेत्र में 11 हॉटस्पॉट चिन्हित किए जहां से अविलंब गाद हटाए जाने की अनुशंसा की गई। फिलहाल यह रिपोर्ट सेंट्रल वाटर रिसॉर्स डिपार्टमेंट के पास है। महीनों बाद भी इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है।
मीडिया से बात करते हुए एक्सपर्ट कमेटी के सदस्य रामाकर झा ने चेताया था, “बिहार में बक्सर से लेकर पश्चिम बंगाल में फरक्का तक, गंगा का लगभग 544 किलोमीटर का स्ट्रेच गाद से बुरी तरह प्रभावित है। हमने अपनी रिपोर्ट में 11 जगहों से गाद हटाने की बात कही है। अगर अगले पांच वर्षों में इन 11 जगहों से गाद नहीं हटाया गया तो बिहार में बाढ़ का और भी विकराल रूप देखने को मिल सकता है।”
उन्होंने आगे कहा कि गाद हटाने से नदी का बहाव सही रहेगा। बाढ़ के वीभत्स स्वरूप को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।
गाद का खेती-बारी पर असर
मोकामा टाल के किसान बताते हैं कि 90 के दशक से पहले तक दशहरा खत्म होते ही बुआई होने लगती थी। छठ व्रतियों में चने का साग खाने का रिवाज है। छठ पूजा तक चने के पौधे इतने बड़े हो जाते थे कि छठव्रतियों के लिए चने का साग बनाया जाता था, लेकिन अभी छठपूजा खत्म होने के बाद बुआई शुरू होती है।
गंगा में गाद की समस्या से तो मोकामा के किसान परेशान हैं ही मोकामा टाल से गुजरने वाली दर्जनों पइन व छोटी नदियां भी गाद की समस्या से भी जूझ रही हैं।
टाल क्षेत्र में एक दर्जन नदियां और 100 से अधिक पईन हैं। ये नदियां और पईन एक दूसरे से जुड़ती हैं और त्रिमोहान के पास एक धारा में बदल जाती है। इसे हरोहर नदी कहा जाता है। ये नदी लखीसराय में किउल नदी से जुड़ती है। यहां इसका नाम किल्ली हो जाता है। ये आगे जाकर गौरीशंकर धाम के पास गंगा में समा जाती है।
मोकामा के किसान नेता आनंद मुरारी कहते हैं, “मोकामा टाल विकास योजना को अब तक लागू नहीं किया गया है और न ही यहां की छोटी नदियों और पइन की उड़ाही ही हो रही है। बस, चुनाव के कुछ दिन पहले गाद हटाने का थोड़ा-बहुत काम कर दिया जाता है।”
गाद की समस्या का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि कलकत्ता से वाराणसी जाने के लिए 14 दिनों की गंगा ट्रिप की सुविधा है, पर आये दिन गाद की वजह से जहाज फंस जाते हैं।
गंगा और मोकामा टाल में जाल की तरह बिछे नदी और पइन में जमे गाद से यहां के किसान वैसे ही परेशान हैं और अब बिहार सरकार ने एक नई योजना ला दी है। इससे भी यहां के किसानों में आशंका बनी हुई है कि ये उनकी खेती-बाड़ी को और भी प्रभावित कर सकती है।
मानसून के सीजन में निकाला जाएगा पानी
जल संसाधन विभाग के सर्किल 3 के सीनियर इंजीनियर (प्लानिंग व मॉनीटरिंग) संजय कुमार तिवारी ने गांव कनेक्शन से कहा, “गंगा नदी से पानी मॉनसून के सीजन में महज चार महीने तक निकाला जाएगा। मॉनसून के सीजन में गंगा में पर्याप्त पानी रहता है और ये पानी बंगाल की खाड़ी की तरफ चला जाता है। पानी उसी समय निकाला जाएगा, जब उसमें पर्याप्त पानी उपलब्ध रहेगा।”
गया, बोधगया, राजगीर और नवादा शहर पहुंचेगा गंगा जल!
पर्यटन एवं धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चार शहरों का पेयजल संकट दूर करेगी #बिहार में पहली बार शुरू हुई जल संसाधन विभाग की अति महत्वाकांक्षी ‘गंगा जल उद्वह योजना’
26 अगस्त को जुड़िए हमारे साथ#WRDBiharProjects #JoinOn26thAugust pic.twitter.com/AV1T43El06
— Sanjay Kumar Jha (@SanjayJhaBihar) August 23, 2020
इस प्रोजेक्ट के पीछे सरकार का तर्क है कि गया और राजगीर में गर्मी के सीजन में पेयजल की किल्लत हो जाती है क्योंकि यहां का भूगर्भ जलस्तर काफी नीचे जा रहा है। लेकिन, इस प्रोजेक्ट को लेकर कई गंभीर सवाल भी उठ रहे हैं। मसलन कि 190 किलोमीटर दूर पाइप से पानी ले जाने की जगह गया और राजगीर में बारिश का पानी संग्रह कर रखने की योजना पर क्यों काम नहीं किया जा रहा है? चूंकि यह एक पर्यावरण प्रोजेक्ट है इसलिए इसके लिए पर्यावरण प्रभाव आंकलन (EIA) और जनसुनवाई ना होने पर भी सवाल उठाया जा रहा है।
मोकामा के स्थानीय निवासी प्रणव शेखर शाही ने कहा कि मोकामा क्षेत्र में इसको लेकर कोई जनसुनवाई नहीं हुई। अखबारों से उन्हें पता चला कि ये योजना लाई जा रही है। वहीं नित्यानंद सिंह मौर्या का कहना है कि सरकार को एनवायरमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट कराना चाहिए था। उन्होंने कहा, “जिस पाइपलाइन के जरिये पानी ले जाया जायेगा, उसकी चौड़ाई काफी ज्यादा है। चूंकि पाइपलाइन अंडरग्राउंड से जाएगी तो जाहिर है कि जमीन के भीतर बड़े गड्ढे बनाने होंगे। फिर जहां पानी जायेगा, वहां इसे स्टोर करना होगा। इन सबसे जाहिर तौर पर पर्यावरण पर प्रभाव पड़ेगा। लेकिन, कितना प्रभाव पड़ेगा, ये तब मालूम होता, जब अध्ययन किया गया होता।”
सवाल यह भी है कि मॉनसून के सीजन में गया, नालंदा का पानी पईन और नदियों के जरिये मोकामा टाल में ही गिरता है, तो क्यों न इस पानी को वहीं रोक लिया जाए, क्योंकि ऐसा करने से मोकामा टाल में 4-5 महीने तक पानी जमा नहीं रहेगा और किसान एक की जगह दो फसल उगा सकते हैं। मोकामा के लोग ये भी पूछ रहे हैं जो पानी बिहार सरकार गया और राजगीर ले जाएगी, वो पानी इस्तेमाल होने के बाद तो वापस मोकामा टाल में ही आएगा और इससे संभव है कि मोकामा टाल में पानी की जमाव और लंबा खिंच जाए, तो क्या सरकार ने इसके बारे में सोचा है और अगर सोचा है, तो सरकार की क्या योजना है?
इन सबके अलावा सवाल गंगा की अपनी जैव विविधता, इकोलॉजी और मोकामा से भागलपुर तक गंगा में पाये जाने वाले डॉलफिन का भी है। अगली कड़ी में हम मोकामा के लोगों की चिंताओं और इस प्रोजेक्ट की व्यावहारिकता पर बात करेंगे।
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