सुमित यादव, कम्युनिटी जर्नलिस्ट, उन्नाव
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)। यूपी के उन्नाव जिले में घायल पशु-पक्षियों के इलाज के लिए अखिलेश अवस्थी ने एक हेल्पलाइन नम्बर जारी किया है जिससे उन्हें घायल पशुओं की सूचना मिल सके।
राजधानी लखनऊ से लगभग 70 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले में सिविल लाइन में “हनुमंत जीवाश्रय सेवा संस्थान” है, जहाँ आवारा घायल पशुओं का इलाज और उनकी देखरेख होती है।
गायों के साथ हो रही क्रूरता से आहत होकर अखिलेश अवस्थी (52 वर्ष) ने 17 दिसंबर 2016 को एक छोटी सी किराए की जगह लेकर टीन शेड रखकर एक स्थायी गौशाला की नींव रखी। गायों की इलाज के लिए बनी इस गौशाला में धीरे-धीरे कुत्ता, बिल्ली, घोड़ा, बंदर सांड जैसे तमाम पशु-पक्षियों की इलाज होने लगी।
अखिलेश अवस्थी गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “जीवाश्रय में हर महीने औसतन घायल 40-50 जानवर लाए जाते हैं। इनकी देखरेख और इलाज के लिए आठ कर्मचारी रखे गये हैं। एक हेल्पलाइन नम्बर 8005228833 भी जारी किया जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग मुझसे संपर्क कर सकें।”
‘हनुमंत जीव जीवाश्रय संस्थान’ नाम के इस आश्रम में अबतक 2,000 से ज्यादा पशु-पक्षियों का इलाज हो चुका है। कोरोनाकाल में हुए देशव्यापी लॉकडाउन के समय ये टीम सड़कों पर घूम रहे आवारा पशुओं को चारा बांटती थी। जीवाश्रय मनुष्यों की अंतिम यात्रा के लिए दो अनंत रथ और शव रखने के लिए चिलर बॉक्स भी उपलब्ध कराता है।
“जो हेल्पलाइन नम्बर हमने जारी किया है, कोई भी व्यक्ति हफ्ते में 24 घंटे कभी भी फोन करके घायल जानवरों की सूचना हम तक पहुंचा सकता है। जानवरों की देखरेख के लिए हमें दो लोगों ने अपनी पुरानी गाड़ी दान दीं जिसे हमने एम्बुलेंस बना लिया,” अखिलेश अवस्थी ने बताया।
गम्भीर रूप से घायल पशुओं के लिए यहाँ अलग से इमरजेंसी वार्ड बनाया गया है जिससे दूसरे जानवरों को कोई दिक्कत न हो। जो जानवर चल नहीं पाते उन्हें स्ट्रेचर के सहारे यहाँ तक पहुंचाया जाता है।
उत्तर प्रदेश पशुधन संख्या के लिहाज से देश का सबसे बड़ा राज्य है।19वीं पशुगणना 2012 के अनुसार राज्य में 205.66 लाख मवेशी हैं जिनमे अनुमानित 10-12 लाख आवारा पशु हैं। सरकार का कहना है कि वर्तमान में राज्य में 523 गोशालाएं पंजीकृत हैं और कुछ का निर्माण चल रहा है। लेकिन छुट्टा पशुओं की संख्या सरकार के लिए चुनौती बनी हुई है। सरकार द्वारा बनी गौशालाओं की स्थिति भी ठीक नहीं है।
“पहले हमें कोई भी घायल गाय दिख जाती मैं अपने साथियों के साथ उनका इलाज करने पहुंच जाता। यह सिलसिला लंबे समय तक चला। कुछ समय तक टेंट लगाकर इलाज करता रहा। अभी तो लोग फोन करके सूचना दे देते हैं और हम तुरंत गाड़ी भेज देते हैं,” अखिलेश ने बताया।
अखिलेश दूसरी गौशालाओं में भी जाकर घायल पशुओं का इलाज करते हैं। अखिलेश बताते हैं, “हम बचपन से ही गायों की सेवा कर रहे हैं। हमारे घर 16 गायें थीं, माँ पेशे से शिक्षक थीं। उनके साथ रोज सुबह गायों की देखरेख में मदद करवाता तब पढ़ने जाता था। अभी गायों की ये दुर्दशा देखता हूँ तो बहुत तकलीफ होती है।”