कैमूर (बिहार)। बिहार सहित पूरे देश में महापर्व छठ व्रत की शुरुआत हो चुकी है। शहर हो या गांव कोई भी इस व्रत से अछूता नहीं है। इस पर्व को लेकर लोगों के अंदर काफी उत्साह नजर आ रहा है। लोगों ने अपने आसपास के तालाब, नदी व अन्य गड्ढों की साफ सफाई करनी शुरू कर दी है।
बिहार के कैमूर जिला के देवहलिया गांव की रिचा सिंह का यह पहला छठ व्रत है। वह बताती हैं, “मैं पहली बार यह व्रत कर रही हूं और मैंने देखा की इस व्रत में साफ-सफाई के साथ प्रकृति से जुड़े सभी सामानों का उपयोग पूजा के रुप में किया जाता है। यहां प्रसाद बनाने के लिए भी मिट्टी के चूल्हे का उपयोग में किया जाता है। पहले मेरी सास इस पूजा को करती थी अब इस बार मैं कर रही हूं।”
छठ का व्रत 31 अक्टूबर से नहाय खाय के साथ शुरू हुआ और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य के साथ यानी 3 नवम्बर के सुबह तक चलेगा। 2 नवम्बर को डाल का छठ शाम को शुरू होगा। वही व्रत के दूसरे दिन संध्या के समय व्रती अपने घाट की पूजा करती हैं और शाम को खीर और रोटी बनायी जाती है। मोटे तौर पर कहें तो खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू करती हैं।
माना जाता है कि इस खीर और रोटी के प्रसाद का बड़ा महत्व है। साथ ही यह प्रसाद खाने के बाद जो व्रत करते है वे जमीन को ही अपना आसान बनाते हैं या लकड़ी की चौकी को। पहले यह व्रत बिहार के गंगा के घाट से शुरू होता था। आज पूरे देश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
क्यों मनायी जाती है छठ पूजा
कार्तिक मास की षष्टी को छठ मनाई जाती है। छठे दिन पूजी जाने वाली षष्ठी मइया को बिहार में आसान भाषा में छठी मइया कहकर पुकारते हैं। मान्यता है कि छठ पूजा के दौरान पूजी जाने वाली यह माता सूर्य भगवान की बहन हैं। इसीलिए लोग सूर्य को अर्घ्य देकर छठ मैया को प्रसन्न करते हैं।
वहीं, पुराणों में मां दुर्गा के छठे रूप कात्यायनी देवी को भी छठ माता का ही रूप माना जाता है। छठ मइया को संतान देने वाली माता के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि जिन छठ पर्व संतान के लिए मनाया जाता है। खासकर वो जोड़े जिन्हें संतान का प्राप्ति नही हुई। वो छठ का व्रत रखते हैं, बाकि सभी अपने बच्चों की सुख-शांति के लिए छठ मनाते हैं।