देश में सूखा: जलशक्ति मंत्रालय की निश्चिंतता कहीं भारी ना पड़े

Suvigya JainSuvigya Jain   13 Jun 2019 9:25 AM GMT

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देश में सूखा: जलशक्ति मंत्रालय की निश्चिंतता कहीं भारी ना पड़े

पानी को लेकर देश में हाहाकार मचा है। देर से आई मानसून की वजह से यह संकट और गहराने का अंदेशा है। इसी बीच देश के जल शक्ति मंत्री ने कहा है कि देश में पानी की कोई कमी नहीं है। उनका कहना है कि देश के बांधों में हर साल जितना पानी उपलब्ध रहता था लगभग उतना पानी इस साल भी जमा है। यानी केंद्रीय मंत्री ने एक बात यह कही कि पानी की कमी की खबरें गलत हैं।

इस तरह से एक दूसरी बात उन्होने यह कही है कि अगर देशभर में मानसून आने में देरी भी होती है तो कोई चिंता की बात नहीं। आखिर सरकार का काम ही नागरिकों को निश्चिंतता का बोध कराना होता है। सो उन्होंने यह कहकर ठीक ही किया। लेकिन अब पानी की कमी की खबरें देने वाले पत्रकारों पर जिम्मेदारी आ गई है कि वे जांच पड़ताल करके बताएं कि आखिर बांधों में पर्याप्त पानी होने के बावजूद देश के 47 फीसद हिस्से में इस साल सूखा क्यों दिख रहा है।

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पानी की कमी की बात कोई एक दो हफ्ते या एक दो दिन पहले की बात नहीं है। बल्कि तीन महीने पहले आईआईटी गांधीनगर के जलविज्ञानियों ने बताया था कि पिछले मानसून में कहां-कहां बारिश कम हुई है और इतनी कम हुई हैं कि देश का 40 फीसद से ज्यादा हिस्सा सूखे की चपेट में है। यानी सरकार की तरफ से ही तैनात किए गए आईआईटी के वैज्ञानिकों के उस आकलन की पड़ताल जरूर होनी चाहिए। उस पडताल से हकीकत से रूबरू होने का मौका मिलेगा।


बहरहाल जलशक्ति मंत्री के बयान से इस सिद्धांत को चुनौती मिल गई है कि पानी कम गिरने से सूखा पड़ा करता है। यह भी दावा किया गया है कि देश सूखे की चपेट में नहीं है। यह भी कहा गया है कि इस साल भी अगर बारिश कम होती है तो चिंता की कोई बात नहीं क्योंकि देश के बांधों में पानी जमा रखने का पुख्ता इंतजाम है।

जल शक्ति मंत्रालय को अपनी इस बात को भी गौर से देखने की जरूरत है। वह इसलिए कि इन दिनों बांधों में जो औसत भंडारण का आंकड़ा निकाला गया है वह पूरे देश का औसत भंडारण है। यानी देश के चार जोन का औसत है। सिर्फ उत्तरी जोन के बांधों में पिछले साल से भी ज्यादा पानी होने के कारण औसत सामान्य बताया जा रहा है। जबकि बाकी तीन जोन में भंडारण की हालत ठीक नहीं है। गौरतलब है कि अभी हमारे पास एक जोन के बांधों का पानी दूसरे जोन में पहुंचाने का इंतजाम नही है।

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बहरहाल देश में सूखे के हालात हैं या नहीं है? इसे लेकर एक भ्रम तो पैदा हो ही गया है। सरकारी बयान इस समय भले ही सामान्य हालात बता रहे हो लेकिन कुछ दिन पहले ही केंद्र सरकार ने ही छह राज्यों को सूखे की एडवाइजरी जारी की थी। इस एडवाइजरी को जारी करने का आधार ही था कि उन प्रदेशों में पानी की कमी है। हालांकि बुंदेलखंड में सूखे की दबी छुपी हालत और महाराष्ट्र में सबके सामने उजागर हालात देख कर इस मामले में किसी भ्रम की गुंजाइश बचती नहीं है।


रही बात बांधों में पर्याप्त पानी होने की तो यह कई साल से कहा जा रहा है कि हमारे पास बारिश में गिरे पानी में से बहुत ही थोड़ा पानी बांधों में जमा रखने का ही इंतजाम हो पाया है। इसीलिए सामान्य बारिश होने के बाद भी देश के ज्यादातर हिस्सों में सूखे के हालात बनते है। इसलिए यह तर्क नहीं बनता कि जल भंडारण पिछले साल या पिछले दस साल जितना ही है सो चिंता की कोई बात नहीं।

हालांकि गांव कनेक्शन के इसी स्तंभ में कई शोधपरक आलेखों में देश के जल प्रबंधन की स्थिति समझने की कोशिश की चुकी है। नई परिस्थितियों में उन्हे एक बार फिर दोहराने की जरूरत है।

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देश की धरती पर 4000 अरब घनमीटर पानी बरसता है। इसमें से हम सिर्फ 300 अरब घनमीटर पानी रोक कर रख पाते हैं। यानी कुल बरसे पानी का सिर्फ साढ़े सात फीसदी। इस पानी से देश के 50 फीसद खेतों तक पानी दे पाते हैं। वह भी वास्तविक जरूरत से कम। यानी खेती की आधी से ज्यादा जमीन पर बारिश के सहारे ही खेती होती है। इसे बारानी खेती कहते हैं।

कम पानी गिरने से सूखे के शिकार ये वर्षाश्रित किसान ही होते हैं। यानी पुराने बने बांधों में पानी की मात्रा से देश के आधे से ज्यादा किसानों का कोई नाता है ही नहीं।



रही बात पीने के पानी की तो बेशक बांधों का पानी पेयजल के लिए भी सप्लाई होता है। लेकिन उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड, महाराष्ट्र और गुजरात के कई इलाकों से पीने के पानी को लेकर महीने भर से मचे हाहाकार की जो खबरें आ रही हैं वे तो भयावह हालात बता रही हैं। हो सकता है कि बांधों में पानी हो लेकिन उस पानी को रिहाइशी इलाकों तक पहुंचाया न जा पा रहा हो। अगर ऐसा है तो ये तो और ज्यादा गंभीर बात है।

लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आम तौर पर सूखे की बात खेतों में पड़े सूखे के बारे में होती है। पीने के पानी के लिए देश की बहुत बड़ी आबादी ने भूजल उलीचने के अपने निजी इंतजाम कर रखे हैं। ये अलग बात है कि पानी कम गिरने से भूजल का पुनर्भंडारण कम हो पाता है और कुंए, बोरवेल, टयूबवेल भी जबाव दे रहे हैं।

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अभी ये पक्का पता नहीं कि जून के तीसरे हफ्ते तक देश में भूजल स्तर की क्या स्थिति होगी? लेकिन इतना तय है कि जिन इलाकों में मानसून देर से पहुंचेगा वहां हालात और बिगड़ेगें। बेशक अभी ये अंदेशाभर है। लेकिन अंदेशे जताना इसलिए काम का होता है ताकि किसी आफत से बचने का इंतजाम किया जा सकें।

अच्छी बात है कि जलशक्ति मंत्री ने निश्चिंतता जताई है और नागरिकों को भी निश्चिंत रहने का संदेश उन्होंने दिया है। लेकिन ये सकारात्मकता जोखिम भरी है क्योंकि कई बार आग लग जाती है लेकिन कुएं नहीं खोदे जाते। इंतज़ाम पहले से ही कर के रखना पड़ता है।

   

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