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देश में एक तरफ बाढ़, एक तरफ सूखा

देश का 44 फीसदी हिस्सा सूखे से ग्रस्त। अनुमान से 19 फीसदी कम बारिश। खरीफ की फसल प्रभावित
#drought

“यहां हर हफ्ते अखबारों में किसानों की आत्महत्या की खबर आती है। कोई भी महीना ऐसा नहीं बीतता, जब दो-तीन किसानों ने आत्महत्या नहीं की हो। जुलाई बीतने वाली है लेकिन छिट-पुट बारिश ही बारिश हुई है। हम किसान अभी भी बादलों की तरफ आस लगाए बैठे हुए हैं।”, लातूर के किसान संदीप बदगिरे ने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया।

जहां बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर के राज्य बाढ़ की तबाही झेल रहे हैं, वहीं देश का एक बड़ा हिस्सा अभी भी सूखे की मार झेल रहा है। मराठवाड़ा और विदर्भ में किसान बारिश की आस में आसमान की तरफ आंख लगाए हुए हैं। बारिश ना होने से निराश एक किसान शिवाजी पवार ने  गत 22 जुलाई को आत्महत्या कर ली थी।

आईआईटी गांधीनगर के ड्रॉट मॉनीटर मैप के अनुसार देश का 44 फीसदी हिस्सा सूखे से ग्रसित है। मानसून आने के बाद देश भर में अनुमान से 19 फीसदी कम बारिश हुई है। सूखा झेलने वाले राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड के अलावा बाढ़ की मार झेल रहा बिहार भी शामिल है।


भारत के मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक बिहार की राजधानी पटना, गया, नवादा, नालंदा, जमुई, औरंगाबाद, सहरसा और बेगुसराय सहित कुल 14 जिले सूखे की मार झेल रहे हैं। इसमें से भी बेगुसराय और गया सूखे से सबसे अधिक प्रभावित है।

जून महीने में लू और सूखे के कारण गया जिले में धारा 144 लागू कर दी गई थी। इन जिलो में अभी भी हालत बेहतर नहीं हुई है। लोग पीने के पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जबकि सिंचाई के पानी के लिए भी जमीन में 250 से 300 फीट तक का बोरवेल करना पड़ रहा है।


बिहार की तरह का हाल कुछ हद तक महाराष्ट्र में है। एक तरफ जहां, पश्चिम महाराष्ट्र के जिले पालघर, ठाणे, पुणे और मुम्बई में बाढ़ जैसे हालात हैं, वहीं पूर्वी महाराष्ट्र (मराठवाड़ा और विदर्भ) सूखे से प्रभावित हैं। गत 22 जुलाई को लातूर में आत्महत्या करने वाले किसान शिवाजी पवार जुलाई में भी बारिश ना होने से परेशान थे।

पवार के रिश्तेदारों के मुताबिक उन्होंने खेती के लिए कर्ज ली थी। उन्हें उम्मीद थी कि इस मानसून में अच्छी बारिश होगी। लेकिन जब जुलाई में भी बारिश नहीं हुई तो पवार ने अपने खेत में ही आत्महत्या कर ली।

मराठवाड़ा में लगातार दूसरे साल भयंकर सूखा पड़ा है। इस दौरान राज्य के 26 बांधों में पानी का स्तर 18 मई को शून्य तक पहुंच गया था। मराठवाड़ा के आठ जिलों में एक जनवरी से 15 जुलाई के बीच 458 किसानों ने कथित तौर पर आत्महत्या की है।


लातूर के किसान संदीपन बदगिरे ने गांव कनेक्शन को बताया, “खेतों में अभी भी बुआई का काम शुरू नहीं हुआ है। बारिश के अलावा सिंचाई का कोई साधन नहीं है। पिछले साल अकाल पड़ा था। इसलिए जमीन में भी पानी कम है। 500-600 फीट पर पानी मिलता है, जिससे आप एक दिन में सिर्फ 800 से 1000 लीटर पानी ही निकाल सकते हैं।” संदीपन बदगिरे ने कहा कि सूखा इतना जबरदस्त है कि आस-पास की सभी नदियां भी सूख गई हैं।

बिहार के पड़ोसी राज्य झारखंड में भी हालात खराब हैं। मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक सिर्फ साहेबगंज को छोड़कर झारखंड के सभी जिले 23 सूखे की मार झेल रहे हैं। गढ़वा, खुन्ती, गोड्डा, गिरीडिह और पाकुर सूखे से सबसे अधिक प्रभावित जिले हैं।

झारखंड के गिरीडिह जिले के तिसरी प्रखंड के जयराम प्रसाद ने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया, “किसानों ने अभी तक धान की बुआई नहीं शुरू की है, वहीं मक्के की फसल मर रही है। पिछले दो दिन से थोड़ी बारिश हुई है। अगर बढ़िया बारिश हो जाए तो किसानों को थोड़ा सा राहत मिले। अभी किसान परेशान और चिंता में हैं।”


जयराम ने बताया कि झारखंड में अधिकतर किसान सिंचाई के लिए बारिश पर निर्भर होते हैं। इसलिए किसान आसमान की तरफ आंख लगाए बैठे हुए हैं। उन्होंने बताया कि जो कुछ नाले, डैम और बोरवेल थे, वे भी सूख गए हैं।

गुजरात के भी 4-5 जिलों को छोड़कर सभी जिले सूखे से प्रभावित हैं। कच्छ से लेकर पोरबंदर तक का सम्पूर्ण पश्चिमी तट और अहमदाबाद सूखे से सर्वाधिक प्रभावित जिले हैं। वहीं बनासकांठा, साबरकांठा, राजधानी गांधीनगर, भावनगर, जूनागढ़ और राजकोट सहित राज्य के 33 में से 28 जिले सूखे से प्रभावित हैं।


गुजरात का पड़ोसी राज्य राजस्थान का आधा हिस्सा सूखे से प्रभावित है। बीकामेर, जैसलमेर, बाड़मेर सहित पूरा पश्चिमी राजस्थान सूखा झेल रहा है। हालांकि गुरूवार को राज्य के अधिकतर हिस्सों में बारिश होने से लोगों को थोड़ी सी राहत मिली है।

पूरे भारत में 19 फीसदी कम बारिश

मानसून आने से पहले मौसम विभाग ने इस साल अच्छे बारिश का अनुमान लगाया था, लेकिन 23 जुलाई की डाटा के अनुसार पूरे भारत में 19 फीसदी कम बारिश हुई है। उत्तर-पश्चिमी भारत, मध्य भारत और दक्षिण भारत में 21 फीसदी कम बारिश हुई है, जबकि पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में पूर्वानुमान से 13 फीसदी कम बारिश हुई है।


 खरीफ की फसल प्रभावित

पूरे देश में कम बारिश होने से खरीफ की फसल प्रभावित हो रही है। सरकारी डाटा के अनुसार, कम बारिश की वजह से 63.28 लाख हेक्टेयर खेती योग्य जमीन पर किसानों ने बुआई नहीं की है। इसमें धान की फसल प्रमुख है। इस साल औसत से 32.06 लाख हेक्टेयर कम जमीन पर धान की बुआई हुई है। वहीं दाल, बाजरा, मक्का, गन्ना और जूट की खेती भी कम बारिश की वजह से प्रभावित हुई है।     

डाटा स्त्रोत- भारतीय मौसम विज्ञान विभागडाटा स्त्रोत- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग

 

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