असम के तिनसुकिया के बाघजान तेल कुएं में लगी आग को बहुत हद तक नियंत्रित कर लिया गया है, ऑयल इंडिया लिमिटेड के अधिकारियों का ऐसा दावा है। अधिकारियों के अनुसार अब आग सिर्फ़ कुएं के मुंह तक ही सीमित है।
लेकिन इस घटना की कई अनसुलझी पहेलियां हैं, जिनका जवाब शायद ही कभी मिल पाए। हर बार की तरह सांस्थानिक जवाबदेहियों पर पर्दा डालने की कोशिशें जारी हैं। वापस वही डर उठ खड़े हुए हैं कि आखिर पर्यावरण संबंधी सुरक्षा मानकों को कब तक दरकिनार किया जाता रहेगा और कब पर्यावरण हमारी प्राथमिकताओं की सूची में सर्वोच्च वरीयता पा सकेगा?
ऑयल इंडिया लिमिटेड के वरिष्ठ प्रबंधक (पब्लिक अफेयर्स) जयंत बोरमुड़ोई ने समाचार एजेंसी पीटीआई को आग नियंत्रित करने की बात कही है। “हमने सुरक्षा की दृष्टि से कुएं से डेढ़ किलोमीटर के गोलार्ध क्षेत्र को रेड जोन घोषित कर दिया है,” उन्होंने कहा।
कंपनी की ओर से जानकारी दी गई कि अमेरिका और कनाडा से विशेषज्ञों को बुलाया जा रहा है। सिंगापुर की कंपनी एलर्ट डिजास्टर कंट्रोल के तीन विशेषज्ञ सोमवार से ही गैस के रिसाव को रोकने के काम में लगे हैं। बताया जा रहा है कि कुएं में मंगलवार को हुए ब्लास्ट से करीब दस-बारह दिन पहले से गैस का रिसाव शुरू था। पहला विस्फोट (जो कि उतना प्रभावशाली नहीं था) 27 मई को हुआ था। इसकी पुष्टि ऑयल इंडिया ने की है। सोमवार यानि 7 जून को सिंगापुर से विशेषज्ञ आए थे।
Baghjan well blowout:
Huge arrangements made by OIL workforce to prevent hazard from blowout.
OIL workforce continuously & dedicatedly pumping water into the Baghjan well since the day of blowout to minimize chances of fire from it. pic.twitter.com/WOBidlgy7O— Oil India Limited (@OilIndiaLimited) June 8, 2020
बाघजान विस्फोट में दो लोगों की जान चली गई- तिकेशवर गोहेन और दुर्लव गोगोई। ऑयल इंडिया से लंबे जुड़ाव के आधार पर तिकेशवर को कंपनी की ओर से एक करोड़ और गोगोई को 60 लाख का मुआवजा दिया जाएगा। परिवारों को पेंशन और दूसरी सुविधाएं भी कंपनी सुनिश्चित करवाएगी।
गोगोई ऑयल इंडिया की फुटबॉल टीम में गोलकीपर थे। वे असम के लिए कई राष्ट्रीय व राजकीय प्रतियोगिताओं का प्रतिनिधित्व कर चुके थे। गैस रिसाव के कारण 7000 लोगों को पलायन करने को मजबूर होना पड़ा है। उन्हें 12 राहत शिविरों में रखा गया है। कोरोना महामारी के बीच राहत शिविरों में सोशल डिस्टेंसिंग जैसे स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रॉटोकॉल (एसओपी) को बनाए रखना अपने-आप में एक चुनौती है।
पीड़ित परिवारों के लिए 30 हजार रूपये और परिवार के एक व्यक्ति को नौकरी देने की घोषणा ऑयल इंडिया की तरफ से हुई है। डिब्रूगढ़ सैखोवा नेशनल पार्क को भारी नुकसान पहुंचा है। जलीय जीवों और जीवन को भयानक क्षति पहुंची है। फिलहाल सरकार की या कंपनी की ओर से पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई को लेकर कोई बयान नहीं आया है।
अनसुलझे सवाल
विशेषज्ञों ने ऑयल इंडिया और उसके काम करने के ढर्रे पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं। मसलन एक प्रोड्यूसिंग यूनिट (जहां उत्पादन चालू था) उस में ब्लास्ट कैसे हुआ। अमूमन ब्लास्ट की संभावना ड्रिलिंग के दौरान होती है। इससे शक पैदा होता है कि ऑयल इंडिया की ओर से कुछ लापरवाहियां जरूर बरती गई होंगी।
दूसरा बड़ा सवाल यह है कि ऑयल इंडिया ने तेल के कुओं की देखरेख का जिम्मा जॉन एनर्जी नाम की कंपनी को दे रखा था। जॉन एनर्जी पर आरोप है कि उसके पास इंजीनियर स्तर के तकनीकी कर्मचारियों की कमी है। प्रथमदृष्ट्या तो ऑयल इंडिया को अपने तेल कुंओं की देखरेख एक दूसरी कंपनी को क्यों आउटसोर्स करना पड़ा? क्या कॉस्ट कटिंग की आड़ में पर्यावरण और जीवन को खतरे में डाल दिया गया है?
जॉन एनर्जी के एक कर्मचारी जो घटनास्थल पर मौजूद थे, उन्होंने पूर्वोत्तर के एक प्रमुख समाचार पोर्टल इनसाइड नॉर्थ ईस्ट से एक जरूरी बात साझा की है। नाम न उजागर करने की शर्त पर उन्होंने बताया, “विस्फोट के एक दिन पहले, सिमेंटिंग की प्रक्रिया चल रही थी। 3987 मीटर की गहराई पर कुएं की सिमेंटिंग होनी थी। सामान्यत: सिमेंटिंग की प्रक्रिया के 48 घंटे बाद पाइपों को बाहर निकाला जाता है। लेकिन हमें 6-7 घंटे बाद ही सिमेंटिंग इंजीनियर ने पाइप निकालने का आदेश दे दिया।”
उस कर्मचारी के अनुसार, इतने के बावजूद विस्फोट की स्थिति नहीं आती। मगर ऑयल इंडिया के इंजीनियर ने ब्लो आउट प्रिवेंटर (बीओपी) भी निकलवा दिया। “अगर इस प्रिवेंटर को 48 घंटे बाद निकाला जाता तो शायद बाघजान को इतनी बड़ी त्रासदी से बचाया जा सकता था,” कर्मचारी ने कहा।
इस बाबत हमने ऑयल इंडिया के आधिकारिक प्रवक्ता त्रिदिव हज़ारिका ने कई बार संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मीडिया से बात करना उचित नहीं समझा।
Another visual from the site#BaghjanOilField #Baghjan
Video Courtesy Bitupon Chawrok (fb) pic.twitter.com/zx8jJPtRVp— Na🅱️ajyoti Lahkar (@NabajyotiLahkar) June 9, 2020
वरिष्ठ पत्रकार व पर्यावरण कार्यकर्ता अपूर्व वल्लब गोस्वामी ने जॉन एनर्जी और ऑयल इंडिया दोनों पर बाघजान थाने में शिकायत दर्ज करवाई है। उन्होंने मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहा कि डॉलफिन, मछलियां और कछुओं की मौत की विचलित करने वाली तस्वीरें सोशल मीडिया पर देखी जा रही है। न सिर्फ डिब्रु सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान को नुकसान पहुंचा है बल्कि इससे नुकसान अभूतपूर्व हो सकते हैं। उन्होंने अपनी शिकायत में यह भी कहा कि राहत शिविरों की हालत दयनीय है। कोरोनावायरस के वक्त सोशल डिस्टेंसिंग जैसे जरूरी एहतियात नहीं बरते जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने जांच के आदेश दिए हैं। प्रधानंत्री ने असम के मुख्यंत्री को हर संभव मदद देने की बात कही है। प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से ट्वीट में बताया गया कि केंद्र सरकार बाघजान की घटना को मॉनिटर कर रही है।
PM @narendramodi spoke to Assam CM Shri @sarbanandsonwal to discuss the situation in the wake of the Baghjan fire tragedy. PM assured all possible support from the Centre. The situation is being monitored closely.
— PMO India (@PMOIndia) June 10, 2020
दिकोम की याद
ऑयल इंडिया के इतिहास में यह पिछले पंद्रह वर्षों में दूसरी बड़ी घटना है। वर्ष 2005 में दिकोम तेल कुएं में आग लगी थी। तब भी दिकोम चाय बगानों और आसपास के गांवों से सैकड़ों परिवारों को पलायन करना पड़ा था। दिकोम की आग को नियंत्रित करने में 20 दिन का वक्त लगा था। हॉस्टन की बूट्स एंड कूट्स से तकनीकी विशेषज्ञों को बुलाना पड़ा था। पंद्रह साल बाद भी हालात वैसे ही नज़र आते हैं। आजतक कंपनी के पास अपने विशेषज्ञ नहीं है जो आपदा के वक्त तुरंत बुलाए जा सके।
16 दिसंबर 2019 को फिक्की की केमिकल (इंडस्ट्रियल) डिस्साटर मैनेजमेंट की वार्षिक पुस्तिका में ऑल इंडिया लिमिटेड के चीफ मैनेजर जॉयदेव लहिरी ने तेल व गैस संबंधी आपदाओं के बारे में बताते हुआ लिखा, “हमारा देश तेल व गैस के हादसों पर नियंत्रण पाने में असक्षम है और हमें विदेशी विशेषज्ञों की जरूरत पड़ती है।” यह बात उन्होंने लाल रंग में, बड़े-बड़े अक्षरों में लिखी थी।
छह महीने बाद कंपनी को वैसे ही हादसे का सामना करना पड़ा। कंपनी यह स्पष्ट जानती थी कि उसके पास विशेषज्ञ नहीं हैं। लेकिन फिर भी उसके पास कोई बैकअप प्लान नहीं था।
डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान को भारी नुकसान
पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अनुसार “ऑयल इंडिया ने डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान तथा मागुरी मोटापुंग बील के आसपास के क्षेत्र में पर्यावरण प्रभाव का आकलन करने के लिए एक प्रत्यायित एजेंसी की सेवाएं ली हैं।” एजेंसी का नाम उजागर नहीं किया गया है।
650 वर्ग किलोमीटर में फैले डिब्रू सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान और उसके साथ लगे मागुरी मोटापुंग बील के क्षेत्र को पर्यावरण के लिहाज से अति-संवेदनशील इलाकों में शामिल किया जाता है। डिब्रू-सैखोवा में पक्षियों की 483 प्रजातियां और मागुरी मोटापुंग में 293 प्रजातियां पाई जाती हैं। डिब्रू-सैखोवा बायोस्पेयर रिसर्व को दुनिया के 35 सबसे संवेदशनशील बायोस्फेयर रिजर्व में शामिल किया गया है। पक्षी विज्ञानियों द्वारा ये क्षेत्र सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। न सिर्फ जलीय जीवों के लिहाज से यह महत्वपूर्ण है बल्कि ये घास के मैदानों के लिए भी जाना जाता है।
पर्यावरणविदों के मुताबिक बाघजान की घटना पर्यावरण को तीन चरणों में प्रभावित कर सकती है। पहले चरण में हवा, पानी और मिट्टी को नुकसान पहुंचता है। मसलन आग से निकलने वाले धुएं, जहरीले हाइड्रोकार्बन, कार्बन मोनोऑक्साइड से पक्षियों को सांस संबंधी परेशानियां होती हैं। पानी में तेल के रिसाव से ऑक्सिजन की कमी होती है और वह जलीय जीवों के लिए खतरा पैदा करता है। दूसरे चरण में जहरीले रिसाव जो जीवों के शरीर में प्रवेश करता है, उससे होता है। हाइड्रोकार्बन पॉलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन बनाते हैं और ये पूरे फूड चेन को प्रभावित करता है। तीसरे चरण का नुकसान लंबे वक्त में दिखता है। जैसे खास किस्म के पेड़-पौधों या जीवों के प्रजनन पर असर पड़ना।”
This incident has caused enormous damage the wildlife, wetlands and biodiversity of Dibru-Saikhowa National Park, a biodiversity hotspot. Approx. 3,500 people have been shifted to relief camps and 2 firefighters have died while making efforts to douse fire. #SaveBaghjanSaveAssam pic.twitter.com/v0K86NnBPw
— Kapil Agarwal (@kapil_agarwal27) June 10, 2020
पेंच इंवॉयरमेंट क्लियरेंस का
बीते 11 मई को पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इसी ऑयल इंडिया को डिब्रू सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान में सात नए जगहों पर ड्रिलींग की मंजूरी दी है।
याद दिलाते चलें कि पिछले दिनों केंद्र सरकार ने इंवॉयरमेंटल इंपैक्ट एसेसमेंट (ईआईए) नोटिफिकेशन 2020 जारी किया था। कहा गया कि भारत में औद्योगिक प्रक्रियाएं सरल बनाए जाने की जरूरत है। नये मसौदे के हिसाब से कंपनियां बिना इंवॉयरमेंट क्लियरेंस लिए अपना प्रोजेक्ट शुरू कर सकती हैं। ऐसे प्रोजेक्ट की कैटेगरी बढ़ा दिए जाने की योजना है जिसमें जन सुनवाई की प्रक्रिया को अपनाना अनिवार्य नहीं होगा। कंपनियों को यहां तक आज़ादी होगी कि वे खुद ही हर साल इंवायरमेंट एसेसमेंट रिपोर्ट जमा कर दिया करेंगी। पहले यह प्रक्रिया हर छह महीने में करना अनिवार्य होता था।
अनगिनत ऐसे उदाहरण हैं जहां सरकार द्वारा प्राकृतिक रूप से संवेदशील इलाकों के रेखांकन पर मूल निवासियों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के बीच टकराव की स्थिति बनी है। मसलन गुजरात और राजस्थान के सूखे घास के मैदान जिनकी गिनती मंत्रालय प्राकृतिक रूप से संवेदनशील इलाकों में नहीं करता. मंत्रालय के नए मसौदे के अनुसार, अब इन इलाकों को कॉरपोरेट के लिए खोला जा सकता है। हाल में ही विशाखापत्तनम में हुआ केमिकल रिसाव इसका उदाहरण है।
मजेदार बात कि मंत्रालय ने लॉकडाउन के बीच आम लोगों से ड्राफ्ट पर सुझाव मांगे थे। जब पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश, भाजपा सांसद राजीव चंद्रशेखर और सिविल सोसायटी में इसका विरोध हुआ तब जाकर मंत्रालय ने सुझाव देने की समयसीमा को अगले तीन महीने तक बढ़ाया है।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ प्रवक्ता और प्रबजन विरोधी मंच के कवेंनर उपमन्यु हज़ारिका ने हाल की घटनाओं का जिक्र करते हुआ कहा, “कुछ दिनों पहले डेहिंग पटकई में कोयला खनन के विस्तार को मंजूरी दी गई है। कुछ दिनों पहले डेहिंग पटकई में भयानक हादसा भी हुआ था। उन्होंने राष्ट्रीय उद्यान के एक बड़े हिस्से को रिजर्व के रूप में चिन्हित किया। इससे होता है कि वे औद्योगिक गतिविधियों को विस्तार दे सकते हैं। हमें ध्यान देने की जरूरत है कि डेहिंग पटकई या डिब्रू-सैखोवा नेशनल पार्क का क्षेत्र असम का एकमात्र ट्रॉपिकल रेन फॉरेस्ट रिजन है। यह एक अति संवेदनशील क्षेत्र है।” हजारिका ने कहा है कि बिना इंवॉरमेंट क्लियरेंस के डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान में ड्रिलिंग के विस्तार को चिंतनीय बताया।
“A thick film of oil covers almost everything in sight within the two kilometres radius of the burning oil well, and water in the Maguri Motapung beel (lake) has turned blue and yellowish due to the oil spill.” #BaghjanFire #assamfire pic.twitter.com/aL4bBTWF0w
— Nidhi Jamwal (@JamwalNidhi) June 11, 2020
(रोहिण कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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