नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) के पास होने के बाद से देशभर में इसका विरोध हो रहा है। कई जगह यह विरोध हिंसक रूप भी ले रहा है। इस विरोध को नियंत्रित करने के लिए सरकार इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगा रही है। पूर्वोत्तर के कुछ शहरों के बाद यूपी के मेरठ, सहारनपुर और अलीगढ़ में इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (एसएलएफसी) के एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में भारत में अब तक इंटरनेट शटडाउन के कुल 93 मामले सामने आ चुके हैं। वहीं फोर्ब्स की एक रिपोर्ट के अनुसार इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने में भारत दुनिया में सबसे आगे है।
एसएलएफसी की ‘लिविंग इन डिजिटल डार्कनेस’ नाम की इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में इंटरनेट सेवा बंद करने के कुल 134 मामले सामने आए थे जो कि दुनिया में सबसे अधिक हैं। धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में अगस्त से लेकर नवंबर तक लगभग 133 दिन तक इंटरनेट सेवा बंद रही थी जो विश्व रिकॉर्ड है। जम्मू कश्मीर के अभी भी कई हिस्सों में इंटरनेट सेवाएं बंद हैं। वहीं अयोध्या मामले में फैसला आने के बाद भी देश के कई हिस्सों में इंटरनेट बंद किए गए थे।
इंटरनेट शटडाउन के मामले में भारत के बाद दूसरा स्थान पाकिस्तान का है। फोर्ब्स की रिपोर्ट के अनुसार 2018 में पाकिस्तान में इंटरनेट शटडाउन के सिर्फ 19 मामले ही सामने आए। वहीं दूसरे पड़ोसी देश बांग्लादेश में सिर्फ 5 बार इंटरनेट शटडाउन हुआ। भारत और पाकिस्तान के बाद जिन देशों में इंटरनेट बंद किए जाने के सबसे अधिक मामले सामने आए, उनमें इराक (8), सीरिया (8) और तुर्की (7) प्रमुख हैं।
भारत में इंटरनेट शटडाउन का मामला साल दर साल लगातार बढ़ रहा है। इस रिपोर्ट के अनुसार 2015 में भारत में इंटरनेट शटडाउन के सिर्फ 14 मामले ही सामने आए थे, लेकिन 2016 में यह बढ़कर 31 हो गया। इसके बाद 2017 में इसमें दोगुने से भी अधिक उछाल आया और कुल 79 बार इंटरनेट बंद किए गए। 2018 में भारत में 134 बार इंटरनेट बंद किया गया।
इंटरनेट शटडाउन का प्रभाव अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक रूप से पड़ रहा है। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक (ICRIE) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2012 से लेकर 2017 तक हुए इंटरनेट शटडाउन में भारतीय अर्थव्यवस्था को लगभग 21584 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। अभी 2018 और 2019 का डाटा नहीं आया है।
यूएन के अंतरराष्ट्रीय समझौते के अनुसार सामान्यतया इंटरनेट सेवाओं को बाधित नहीं किया जा सकता। कम्प्यूटर युग में इंटरनेट की उपलब्धता सामान्य मानावाधिकार की श्रेणी में शामिल है। लेकिन आपातकालीन और बिगड़ते कानून व्यवस्था की स्थिति में सरकार इस पर प्रतिबंध लगा सकती है। हालांकि बार-बार इंटरनेट सेवाओं के बंद होने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की साख गिर रही रही है।
एसएलएफसी के कार्यकारी निदेशक सुंदर कृष्णन ने गांव कनेक्शन से फोन से बातचीत में कहा, “डिजिटल इंडिया के इस दौर में हम डिजिटल डार्कनेस की तरफ बढ़ रहे हैं और यही सच्चाई है।” उन्होंने आगे कहा कि यह हाल तब है जब हम कश्मीर में लंबे समय के शटडाउन को सिर्फ ‘एक शटडाउन’ मान रहे हैं, नहीं तो यह संख्या और भी अधिक होती।
यह भी पढ़ें- नागरिकता कानून: यूपी में भी प्रदर्शन, अलीगढ़-मेरठ में इंटरनेट सेवा बंद
गांव कनेक्शन सर्वेः ग्रामीण भारत में लगातार बढ़ रहा इंटरनेट का प्रभाव