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संविधान दिवस: जानिए कहां है संविधान का मंदिर और होती है पूजा

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जगदलपुर (छत्तीसगढ़): बस्तर संभाग के जगदलपुर जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर तोकापाल ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले बुरुंगपाल गांव में यहां के स्थानीय जनजातीय निवासियों ने संविधान का मंदिर बनवाया है, जिसे स्थानीय भाषा में लोग ‘गुड़ी’ कहते हैं। इस मंदिर में संविधान की पूजा की जाती है।

लगभग दो हजार की आबादी वाला यह गांव देश का अकेला ऐसा गांव है, जहां संविधान का मंदिर स्थित है। यह कोई भव्य मंदिर नही बल्कि एक आधारशिला है, जिस पर संविधान में निहित जनजातीय क्षेत्रो में पांचवी अनुसूची के प्रावधान और अधिकारों को लिखा गया है। 6 अक्टूबर 1992 को जब इसकी आधारशिला रखी गई थी तब से ग्रामीण इसे ही मंदिर समझते है और इसकी सेवा-पूजा करते हैं।

6 अक्टूबर, 1992 को इस इलाके के मावलीभाटा में एसएम डायकेम के स्टील प्लांट का शिलान्यास हुआ था। आदिवासियों ने इस स्टील प्लांट के खिलाफ एक आंदोलन किया। इसके बाद यह मंदिर स्थापित हुआ। एसएम डायकेम के स्टील प्लांट के जमीन अधिग्रहण को लेकर जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका लगाईं गई थी। याचिका का फैसला ग्रामीणों के पक्ष में आया। जिस दिन यह फैसला आया, उसी दिन को ग्रामीण विजय उत्सव के रूप में यहां एकजुट होकर मनाते है।

बस्तर अनुसूचित जनजातीय क्षेत्र है। यहां संविधान में निहित पांचवी अनुसूची लागू है, जो कि भारत सरकार अधिनियम 1935 की अनुच्छेद 91 और 92 की मूल आधार पर बनी है। उस वक्त प्लांट के विरोध में आदिवासी लामबंद हुए थे। आंदोलन की अगुवाई यहां कलेक्टर रह चुके डॉ. बी.डी.शर्मा ने की थी। उन्होंने इस आन्दोलन की रूपरेखा तय की थी। यही नही उन्होंने पेसा कानून का ड्राफ्ट भी यही रह कर तैयार किया था। इसी जगह से पूरा संवैधानिक आन्दोलन संचालित होता था।

आप को बता दें कि बस्तर में दशहरा के दो दिन पूर्व आसपास के 50 गांव के आदिवासी, अनुसूचित जाति और ओबीसी समुदाय के लोग इकट्ठा होकर संविधान में आदिवासियों और पांचवीं अनुसूचित के प्रावधान अधिकार शक्तियों का वाचन करते हैं और इसके बाद चर्चा-परिचर्चा की जाती है।

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