देश की जेलों की हालत खराब है। इन जेलों में क्षमता से कहीं ज्यादा कैदी भरे हुए हैं। हाल ही में जारी हुई ‘भारतीय जेल सांख्यिकी 2017‘ की रिपोर्ट से पता चलता है कि 31 दिसंबर, 2017 तक भारत में कुल 1,361 जेल हैं, जिनकी कुल क्षमता 3,91,574 कैदियों की है। लेकिन इन जेलों में क्षमता से कहीं ज्यादा 4,50,696 कैदी (115.1%) रह रहे हैं। यह आंकड़ा खुद में यह बताने के लिए काफी है कि भारतीय जेलों का हाल बुरा क्यों है।
इतना ही नहीं 2015 से लेकर 2017 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर जेलों की कुल संख्या में 2.85% की कमी भी आई है। 2015 में जेलों की संख्या 1,401 थी, जो कि 2017 में 1,361 रह गई। एक ओर जहां जेलों की संख्या घट रही थी, वहीं इन जेलों में रहने वाले कैदियों की संख्या में इजाफा हो रहा था। 2015 से 2017 के बीच ही कैदियों की संख्या में 7.4% की वृद्धि हुई है। 2015 में जहां 4,19,623 कैदी जेल में रह रहे थे, वहीं 2017 में यह संख्या बढ़कर 4,50,696 हो गई।
ऐसे में साफ है कि जेलों पर कैदियों का बोझ दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है और जेल कम होती जा रही हैं। इस स्थिति में इसका सीधा असर जेल में बंद कैदियों और जेल कर्मचारियों पर पड़ रहा होगा। इस असर को समझने के लिए गांव कनेक्शन ने जेल प्रशासन से जुड़े कुछ अधिकारियों, क्रिमिनोलॉजिस्ट और कैदियों का पक्ष रखने वाले वकील से बात की।
इसी कड़ी में बिहार के पूर्णिया सेंट्रल जेल के सुपरिटेंडेंट जितेंद्र कुमार से बात हुई। पूर्णिया सेंट्रल जेल में क्षमता से दोगुना कैदी बंद हैं। इस स्थिति पर जितेंद्र कुमार बताते हैं, ”पूर्णिया सेंट्रल जेल की क्षमता 890 कैदियों की है, लेकिन यहां 1646 कैदी रह रहे हैं। इसकी वजह से दिक्कत तो होती ही है। ज्यादा कैदियों की वजह से उन्हें सेनिटेशन और हाइजीन की दिक्कत होती है। गर्मी में स्वास्थ्य पर भी असर होता है।”
जितेंद्र कुमार कहते हैं, ”इसके अलावा हम पर दबाव भी है। हमें स्ट्रेस रहना है, हम 12-12 घंटे ऑफिस में रहते हैं। जो लोग समाज के लिए सही नहीं हैं वो एक खास इलाके में रखे गए हैं। इनमें से 30 से 40 प्रतिशत कैदी क्रिमिनल माइंड के होते हैं। यह लोग छोटी-छोटी बात पर भी झगड़ा फसाद करने को तैयार रहते हैं। कोई बाथरूम जा रहा है और अगले किसी का पैर लग गया तो विवाद हो जाएगा। हमें बहुत ध्यान देना होता है। जैसे जेल में अलग-अलग गैंग के लोग भी होते हैं। हम दोनों को एक में नहीं रख सकते हैं। बच्चों को अपराधियों से अलग रखना होता है। 60 से ऊपर वाले कैदियों को अलग रखा जाता है। यह सब परेशानी है, जिससे हम रोज जूझ रहे हैं।”
पूर्णिया सेंट्रल जेल की तरह ही उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित नैनी सेंट्रल जेल में भी क्षमता से दोगुना कैदी रह रहे हैं। इस बारे में डीआईजी जेल इलाहाबाद जोन बी.आर. वर्मा कहते हैं, ”नैनी सेंट्रल जेल की क्षमता 2060 कैदियों की है, लेकिन लगभग 4000 कैदी यहां बंद हैं। जब क्षमता से ज्यादा बंदी होते हैं तो सभी प्रकार की समस्या आती है। जैसे हाइजीन की समस्या से लेकर लॉ एंड ऑडर तक की समस्या आती है। पता चला कि किसी बैरक में 30 की क्षमता है और उसमें 60 से लेकर 70 बंदी होंगे तो दिक्कत होगी ही।”
बी.आर. वर्मा कहते हैं, ”ऐसी स्थिति में जितना स्थान एक कैदी को रहने के लिए अपेक्षित है और उतना अगर नहीं मिल पाएगा तो एक दूसरे से संघर्ष की संभावना भी बढ़ेगी। जब कैदी ठीक से लेट नहीं पा रहा है, ठीक से सो नहीं पा रहा है तो उनको मानसिक दिक्कत भी होगी। ऐसी तमाम चुनौतियां हैं, लेकिन इससे हम निपट भी रहे हैं।”
दिल्ली हाईकोर्ट के वकील हरप्रीत सिंह होरा कैदियों के मानवाधिकार के लिए काम करते रहे हैं। हाल ही में उन्होंने तिहाड़ जेल में सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए कोर्ट में केस भी किया था। हरप्रीत बताते हैं, ”जेल प्रशासन कभी इस बात को सीरियस नहीं लेता कि उनकी क्षमता से ज्यादा कैदी वहां रह रहे हैं। एक बात समझने की जरूरत है कि जेलों को अंग्रेजों ने बनाया था। उन्होंने इसमें भारतीयों को यातनाएं देने और अपने खिलाफ आवाज उठाने वालों को इसमें रखने के लिए जेल बनाई थी। लेकिन हमारी जेलों का काम कभी भी सजा देना नहीं होता। इसका मुख्य काम है सुधार करना, इसीलिए जेल को सुधार गृह कहते हैं। न हम किसी से बदला लेने के लिए उसे जेल में बंद करते हैं, न ही सजा देने की नियत से जेल में बंद किया जाता है। हमारा फोकस हमेशा ये रहता है कि जो भी जेल में जाए वो सुधर कर वापस आए।”
हरप्रीत सिंह होरा कहते हैं, ”ऐसे में जब जेल में क्षमता से ज्यादा कैदी रहते हैं तो मैनेजमेंट में दिक्कत आती है। ज्यादा कैदी होंगे तो उनमें झगड़े और मारपीट की नौबत बढ़ जाती है। इसका सीधा उदाहरण यह है कि जो इलाके खुले होते हैं वहां संघर्ष कम होते हैं, जिन इलाकों में जनसंख्या ज्यादा होती है वहां दंगे भी ज्यादा होते हैं। इस चीज को आप राज्य के स्तर पर भी देख सकते हैं। जैसे लद्दाख में किसी झड़प की बात आप कम ही सुनते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार को देखें तो यहां संघर्ष आम है।”
हरप्रीत सिंह होरा बताते हैं, ”कई बार जो आदमी जेल में गया है वो हार्डकोर क्रिमिनल नहीं होता है। मान लीजिए की कोई इंजीनियर है और उसकी गाड़ी से कोई टकराकर मर गया, उसे चार साल की सजा भी हो गई। आपने उसे एक ऐसे सेल में डाल दिया जहां खतरनाक अपराधी हैं। अब वो चार साल बाद या तो पागल होकर बाहर निकलेगा, या फिर अगर थोड़ा भी क्रिमिनल माइंडेड होगा तो अपराधी तो बनना तय है। अब सोच लीजिए कि जब वो जेल गया था तो उसपर सिर्फ एक इलजाम था कि उसकी गाड़ी से गलती से कोई मरा था, लेकिन जब वो बाहर आ रहा है तो वो जेब भी काट सकता है और गला भी काट सकता है। तो ऐसी तमाम दिक्कतें जेलों में ओवर क्राउड होने से आती हैं।”
हरप्रीत सिंह होरा की तरह ही क्रिमिनोलॉजिस्ट दीपक चौधरी भी यह मानते हैं कि जेलों में ज्यादा कैदियों के बंद होने से तमाम तरह की दिक्कतें आती हैं। दीपक बताते हैं, जेलों में बंद कैदियों में सबसे ज्यादा अंडरट्रायल कैदी होते हैं। इनकी संख्या 68 प्रतिशत के आस पास हैं। इनके जेलों में रहने के पीछे सबसे बड़ा कारण है ट्रायल में देरी होना। क्योंकि इन्हें अपने मामले में 2 से लेकर 3 महीने तक की डेट मिलती है। इसके पीछे जो कारण समझ आता है वो है जजों की संख्या उस हिसाब से नहीं हैं। एक-एक जज पर बहुत ज्यादा केस हैं, तो डेट भी लंबी मिलेगी और फिर आरोपी ज्यादा देर तक कैदी की तरह जेल में रहेगा।
दीपक चौधरी जिन अंडरट्रायल कैदियों का जिक्र कर रहे हैं उनकी संख्या की बात करें तो भारतीय जेल सांख्यिकी के मुताबिक, 2017 में करीब 3,08,718 अंडरट्रायल कैदी जेल में बंद थे। यह संख्या कुल कैदियों के करीब 68% की है। इन अंडरट्रायल कैदियों में से करीब 75% कैदी एक साल से कम या एक साल तक जेल में रहे हैं।
दीपक चौधरी कहते हैं, ”जेलों की क्षमता तो बढ़ाई जा रही है, लेकिन उस हिसाब से नहीं बढ़ाई जा रही जैसे अपराध बढ़े रहे हैं। इसका समाधान यह है कि ज्यादातर जेलों में सिंगल फ्लोरिंग हैं। इन जेलों में अगर मल्टी फ्लोरिंग इमारतें बनाई जाएं तो यह सबसे अच्छा समाधान है। क्योंकि इसमें न तो ज्यादा जगह की जरूरत होगी। जो हमारे पास मौजूद है उसी में बढ़ाना है। कुछ ऐसा तिहाड़ जेल में किया गया है। हमें बहूमंजिला इमारतें बनाने की जरूरत है। साथ ही केस के निपटारे पर भी ध्यान देना चाहिए।”
ऐसा नहीं है कि जेलों की संख्या और इसकी क्षमता को लेकर सरकार की ओर से कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। जेलों की बेहतरी को लेकर सरकार की ‘जेल आधुनिकीकरण योजना’ है। इस योजना पर 1800 करोड़ रुपये की लागत आएगी और इसका उद्देश्य 199 नई जेलें, 1572 अतिरिक्त बैरक एवं जेल कर्मियों के लिए 8568 आवासीय परिसर (क्वार्टर) बनाना है। ऐसे में आने वाले वक्त में जेलों की स्थिति में कुछ सुधार देखने को मिल सकता है।