इंटरनेट शटडाउन : खेती से लेकर कारोबार तक सब प्रभावित

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गोसाइगंज, लखनऊ से चंद्रकांत मिश्रा और मेरठ से मोहित सैनी के इनपुट के साथ

लखनऊ। गोरखपुर निवासी दीपक प्रसाद (24 वर्ष) लखनऊ में रहकर एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करते हैं। उनकी मां की तबियत आजकल बहुत खराब रहती है। डिजिटल इंडिया के इस दौर में वह रोज वीडियो कॉल कर अपनी मां का हाल-चाल लेते और खुद को आश्वस्त करते हैं। लेकिन इंटरनेट शटडाउन की वजह से वह पिछले एक हफ्ते से ऐसा नहीं कर पा रहे हैं।

संसद में नागरिक संशोधन बिल पारित होने के बाद इसके विरोध में लगातार देश भर में हिंसा और विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इस दौरान देश भर के 7 राज्यों के लगभग 50 जिलों में इंटरनेट बंद किया गया। उत्तर प्रदेश के 22, पश्चिम बंगाल के 11 और असम के 10 जिलों में इंटरनेट बंद किया गया। वहीं कर्नाटक, गुजरात, दिल्ली और असम के कुछ जिलों में भी इंटरनेट बंद किए गए।

इस नेटस्लोडाउन से ओला, उबर, जोमैटो, स्विगी, अमेजन, फ्लिपकॉर्ट जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों और उससे जुड़े युवाओं के कारोबार प्रभावित हुए हैं, वहीं टेलीकॉम कंपनियों को भी हर रोज 1.5 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। इस इंटरनेट शटडाउन की मार आम लोगों पर भी पड़ी। कोई अपने फीस नहीं भर पा रहा है, वहीं किसी को अपने प्रतियोगी परीक्षाओं के फॉर्म और तारीख जानने में परेशानी हो रही है। किसी को खेती तो किसी को कारोबार करने में दिक्कतें आ रही हैं। इसी तरह गांवों में लोगों को कई ऑनलाइन सेवाओं के फॉर्म भरने में परेशानी हो रही है। गौरतलब है कि 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद कई तरह की सरकारी सेवाएं ऑनलाइन कर दी गई हैं।

लखनऊ के गोसाईगंज के एक सहज जनसेवा केंद्र (सीएससी) पर अपनी बहू का आधार कार्ड ठीक कराने आईं सरोजा देवी (62 वर्ष) को इंटरनेट ना चलने की वजह से निराश हैं। उन्हें अपनी बहू के आधार कार्ड पर दर्ज उसके मायके के पते को उसके ससुराल के पते से बदलना है, ताकि गर्भवती बहू को सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ मिल सके। लेकिन इंटरनेट बंद होने से उन्हें सहज जन सेवा केंद्र से निराश वापस लौटना पड़ा। हालांकि सरोजा देवी को उम्मीद है कि यह स्थिति जल्द ही समाप्त हो जाएगी और उनकी बहू के आधार कार्ड का पता ठीक हो जाएगा।

इस सहज जनसेवा केंद्र (सीएससी) को चलाने वाले अनिल कुमार कहते हैं कि पिछले पांच दिनों में जो दिक्कतें सामने आई हैं, वैसी पहले कभी नहीं आईं। वह बताते हैं कि उनके लिए सबसे अधिक मुश्किल आम ग्रामीणों को समझाना है कि उनका काम क्यों नहीं हो पा रहा।

अनिल बताते हैं, “गांव के लोगों को नहीं पता कि इंटरनेट शटडाउन क्या होता है और इंटरनेट ना होने से क्या दिक्कतें आ रही हैं। उन्हें बस यही लगता है कि हम लापरवाही कर रहे, जिससे उनके काम में देरी आ रही है। अब उन्हें हम कैसे समझाएं कि इंटरनेट ठप होने की वजह से ये सब हो रहा।”

उधर बैंकों में सर्वर डाउन होने से लोगों को पैसे जमा करने और निकालने में भी दिक्कतें आ रही हैं, जिससे काफी लोगों का काम प्रभावित हुआ है। लखनऊ के भिरवा गांव के निवासी विशेष वर्मा कहते हैं, “पिछले 5 दिनों से पूरे लखनऊ जिले में इंटरनेट डाउन है। हमारे पिता जी को खाद और कीटनाशक खरीदने के लिए बैंक से पैसे निकालने थे लेकिन बैंक में सर्वर ना होने से वह पैसे नहीं निकाल पा रहे हैं। इस तरह हमारी खेती इंटरनेट डॉउन होने से प्रभावित हो रही है।”

उत्तर प्रदेश के एक अन्य शहर मेरठ में भी हिंसा होने के बाद इंटरनेट बंद कर दिया गया था। सोमवार दोपहर बाद मेरठ में इंटरनेट सेवाओं की बहाली हुई, लेकिन इसके पहले पूरे जिले के लोग इससे प्रभावित दिखे। मेरठ के नवीन कृषि मंडी के डाकघर में पोस्टमास्टर के पद पर तैनात संजय सक्सेना कहते हैं कि इंटरनेट बंद होने से मंडी के किसान को बहुत दिक्कतें हुई।

“किसान भाई मंडी की अपनी रोज की बिक्री को अपने खाते में जमा करते थे, लेकिन पिछले 5 दिनों से इंटरनेट बंद होने से यह पूरी प्रक्रिया ही रुक गई थी। आज जब इंटरनेट फिर से खुला है, तो ब्रांच पर काफी भीड़ हो गई है। लोग पैसे जमा करने के लिए लाईन में लगे हैं। हम कर्मचारियों को भी इस भीड़ का प्रबंधन करने में अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ रही है,” संजय सक्सेना कहते हैं।

जहां उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक,गुजरात और असम के कई हिस्सों में नागरिकता संशोधन बिल पास होने के बाद इंटरनेट शटडाउन के मामले सामने आए हैं, वहीं जम्मू-कश्मीर में धारा 370 के रद्द होने के बाद पिछले 5 अगस्त से इंटरनेट सुविधाएं ठप हैं। हालांकि राज्य के कुछ हिस्सों में इंटरनेट सेवाएं धीरे-धीरे बहाल की जा रही हैं लेकिन राज्य का एक बड़ा हिस्सा अभी भी इंटरनेट से वंचित है।

श्रीनगर में ग्रामीण विकास विभाग में  मास्टर ट्रेनर के रुप में कार्यरत जमीर अहमद कहते हैं कि इंटरनेट बंद होने से कश्मीर के आम नागरिकों को बहुत नुकसान हो रहा है और उन्हें पढ़ाई, नौकरी से लेकर कई तरह की सरकारी सेवाओं और सुविधाओं की सूचना नहीं मिल पा रही है। जमीर कहते हैं, “मुझे अजमेर जाने के लिए एक टिकट चाहिए थी, लेकिन इंटरनेट ना होने की वजह से मैंने मुंबई में रह रहे अपने दोस्त से टिकट करने को कहा। उन्होंने टिकट कटा कर फिर मुझे फैक्स किया। अब मैं कहीं जा सकता हूं।”

जमीर अहमद बताते हैं, “हाल ही में आई सीटीईटी के फॉर्म को उनके सहित कई युवा भरना चाहते थे, लेकिन इंटरनेट शटडाउन के कारण नहीं भर सके। वहीं कई लोग हज के लिए जाना चाहते थे, वे लोग हज का फॉर्म नहीं भर पाए। जबकि इंटरनेट बंद होने से मनरेगा की पुरानी लिस्ट अपडेट नहीं हो पाई है और लोगों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है।” 

आप जमीर अहमद से हमारी बातचीत को यहां सुन सकते हैं-

जमीर ने बताया कि छात्रों और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों कर रहे अभ्यर्थियों की सुविधा के लिए प्रशासन ने जिलाधिकारी कार्यालय पर इंटरनेट की व्यवस्था की है लेकिन वहां पर भी कुछ वेबसाइट के अलावा अन्य वेबसाइट नहीं चलती। कश्मीर के एक वरिष्ठ पत्रकार नजीर अहमद कहते हैं कि मीडिया के लोगों के लिए मीडिया सेंटर बना है, वहीं पर ही इंटरनेट की सुविधा थोड़ी-बहुत मिल पाती है। बाकी किसी आम आदमी के लिए अभी भी इंटरनेट तक पहुंच नहीं हो पाई है। नजीर ने बताया कि कश्मीर में इंटरनेट सेवाओं की बहाली कब होगी, प्रशासन इसके बारे में कुछ नहीं बता रहा। 

सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (एसएलएफसी) की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में भारत में अब तक इंटरनेट शटडाउन के कुल 93 मामले सामने आ चुके हैं। वहीं फोर्ब्स की एक रिपोर्ट के अनुसार इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने में भारत दुनिया में सबसे आगे है।

एसएलएफसी की ‘लिविंग इन डिजिटल डार्कनेस’ नाम की इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में इंटरनेट सेवा बंद करने के कुल 134 मामले सामने आए थे जो कि दुनिया में सबसे अधिक हैं। धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में अगस्त से लेकर नवंबर तक लगभग 133 दिन तक इंटरनेट सेवा बंद रही थी जो विश्व रिकॉर्ड है। जम्मू कश्मीर के अभी भी कई हिस्सों में इंटरनेट सेवाएं बंद हैं।

इंटरनेट शटडाउन का प्रभाव अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक रूप से पड़ रहा है। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक (ICRIE) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2012 से लेकर 2017 तक हुए इंटरनेट शटडाउन में भारतीय अर्थव्यवस्था को लगभग 21584 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। अभी 2018 और 2019 का डाटा नहीं आया है।

एसएलएफसी के कार्यकारी निदेशक सुंदर कृष्णन ने गांव कनेक्शन से फोन से बातचीत में कहा, “डिजिटल इंडिया के इस दौर में हम डिजिटल डार्कनेस की तरफ बढ़ रहे हैं और यही सच्चाई है।” उन्होंने आगे कहा कि यह हाल तब है जब हम कश्मीर में लंबे समय के शटडाउन को सिर्फ ‘एक शटडाउन’ मान रहे हैं, नहीं तो यह संख्या और भी अधिक होती।

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