कोई दो सौ किलोमीटर, तो कोई 150 किलोमीटर। कोई गर्भवती तो कोई अपने बच्चे को गोद में लिए। ये लोग पैदल ही झारखंड की राजधानी रांची पहुंचे हैं और सीएम हाउस से आधा किलोमीटर दूर मोरहाबादी मैदान में खुले आकाश तले आंदोलन शुरू कर रहे हैं। सरकार से इन लोगों की इतनी ही गुहार है कि इनकी नौकरियों को स्थायी कर दिया जाये। ये झारखंड के सहायक पुलिसकर्मी हैं, जिन्हें तीन साल पहले 2017 में रघुवर दास की सरकार ने अति नक्सल प्रभावित 12 जिलों के ग्रामीण इलाकों के युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए पुलिसबल में शामिल किया था।
इसमें नक्सली संगठन से वापस आए युवा भी शामिल हैं। हथियार चलाने के अलावा इन्हें सबकुछ सिखाया गया। दंगा से लेकर मेला तक, कोविड से लेकर ट्रैफिक संभालने तक में ड्यूटी लगाई गई। कहा गया था कि जिनका परफॉर्मेंस अच्छा रहा, तीन साल बाद उनकी नौकरी स्थायी कर दी जाएगी।
इसी मांग को ले, अब जब ये आंदोलन कर रहे हैं तो सरकार भी इन्हें चेतावनी दे रही है कि मांगों को छोड़ो और ड्यूटी पर लौटो, अगर नहीं लौटे तो बर्खास्त कर दिए जाएंगे। इनके परिजनों पर दवाब डाला जा रहा है कि अपने बेटे-बेटियों को वापस बुला लें नहीं तो वे इस नौकरी से भी हाथ धो बैठेंगे। लेकिन वाह्ट्सएप और फेसबुक के माध्यम से संगठन बनाकर ये सहायक पुलिसकर्मी बिना किसी संगठन के बीते 11 तारीख से शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं। ये सभी पुलिसकर्मी नक्सल प्रभावित जिलों के ग्रामीण इलाकों के युवा हैं।
शुक्रवार 18 सितंबर को ये सहायक पुलिसकर्मी सीएम हाउस का घेराव करने निकल पड़े। इस दौरान झारखंड पुलिस के जवानों ने इन पर जमकर लाठियां बरसाई। सूचना के मुताबिक इस लाठीचार्ज में 10-15 लोग घायल हुए हैं।
इधर मौका देख नक्सली इनके घरों पर पोस्टर चिपका रहे हैं, कह रहे हैं कि फिर से संगठन में आ जाओ। अब इन्हें डर है कि अगर सरकार इनकी बात नहीं मानेगी तो घर लौटने पर क्या होगा। दो महिला कॉन्सटेबल ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि अगर उनको स्थायी नहीं किया जाता है, उनका वेतन 10 हजार से नहीं बढ़ाया जाता है, तो फिर उनके पास और क्या रास्ता बचेगा।
मैदान में कभी कड़ी धूप तो कभी बारिश में 2500 से अधिक पुलिसकर्मी आंदोलन कर रहे हैं। कोई भी अपना नाम अब मीडिया को नहीं बताना चाह रहे क्योंकि इन्हें डर है कि पुलिस तो इनके परिजनों को धमकाएगी ही, नक्सली भी इनके घरों तक पहुंच सकते हैं।
तीन साल पहले पश्चिमी सिंहभूम, चतरा, गुमला से 300-300, पलामू, गढ़वा, दुमका और खूंटी से 200-200, सिमडेगा, लोहरदगा में 150-150, पूर्वी सिंहभूम और गिरिडीह से 100-100 युवक- युवतियों को सहायक पुलिस के तौर पर तीन साल के लिए बहाल किया गया था। अब इनकी नौकरी की अवधि भी खत्म होने जा रही है। इन्हें डर है कि दस हजार की ये नौकरी भी कहीं हाथ से न निकल जाए।
आंदोलनकर्मियों पर दर्ज हुआ एफआईआर
आंदोलन करने के लिए सरकार इन पर कोविड एक्ट के तहत एफआईआर भी कर चुकी है। इसमें 20 सिपाहियों को नामजद भी किया गया है। गढ़वा के एक सहायक पुलिसकर्मी के मुताबिक उन लोगों को अभी तक एफआईआर की कॉपी उपलब्ध नहीं कराई गई है, जबकि यह 24 घंटे के अंदर देना होता है। पुलिस विभाग की तरफ से आंदोलन रद्द करने के लिए इनपर लगातार दवाब बनाया जा रहा है। गढ़वा के एक सिपाही ने बताया कि हर दिन ये डर भी रहता है कि परेशानियों को देख कोई साथी टूट न जाए।
हाल ये है कि हर दिन 11 बजे आंदोलनरत सिपाहियों की गिनती की जाती है। इसके बाद राष्ट्रगान भी गाया जाता है। लेकिन उस वक्त अगर कोई पुलिस अधिकारी आ जाता है तो डर से नहीं गाते। वहीं कुछ गर्भवती सिपाहियों को घर भेज दिया गया है। इस दौरान कुछ लोग तेज धूप की वजह से बेहोश भी हुए तो कई बीमार हो रहे हैं।
ये पुलिसकर्मी राज्यपाल, सीएम या अन्य किसी बड़े अधिकारी के आवास का घेराव न कर दें, इसके लिए तीन किलोमीटर गोलाई में फैले मोरहाबादी मैदान के चारो तरफ बैरिकेड लगा दिया गया है। साथ ही भारी संख्या में पुलिसकर्मियों को भी इन्हें रोकने के लिए लगाया गया है।
एक सिपाही ने बताया कि वे चावल दाल चोखा खाकर इस उम्मीद में बैठे हैं कि सीएम हेमंत सोरेन आएंगे और कुछ सकारात्मक पहल करेंगे। लेकिन अभी तक सरकार के तरफ से कोई भी बात करने नहीं पहुंचा है। वहीं विपक्ष जरूर इस मुद्दे को ले सरकार को घेर रही है। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास भी बीते 16 तारीख को इन पुलिकर्मियों से मिलने पहुंचे। उन्होंने साफ कहा कि अगर उनकी सरकार होती तो इनकी नौकरी को जरूर स्थायी कर दिया जाता। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, रांची की मेयर आशा लकड़ा भी इनसे मिलने पहुंचे।
इनको इनके हाल पर छोड़ सीएम चले दुमका, होने हैं उपचुनाव
वहीं सीएम हेमंत सोरेन बीते तीन दिनों तक अपने गृह जिला दुमका में व्यस्त रहे। यहां इन्होंने 140 करोड़ से अधिक की योजनाओं की शुरूआत की है। बिहार विधानसभा चुनाव के साथ झारखंड में भी दो सीटों पर चुनाव होने हैं। इसमें दुमका और बेरमो सीट शामिल है। बरहेट सीट से भी हेमंत विधायक बने थे। नियम के तहत इन्हें एक सीट छोड़ना था, सो उन्होंने दुमका सीट छोड़ दिया।
बीजेपी प्रवक्ता कुणाल षाडंगी कहते हैं कोविड की वजह से देश भर के राज्य आर्थिक मुश्किलों से गुजर रहे हैं। जाहिर सी बात है बाहर की कोई कंपनियां नहीं आ रही है। नए रोजगार सरकार पैदा नहीं कर रही है क्योंकि इसको लेकर उसके पास कोई रोडमैप नहीं है। बुरी बात ये है कि जो रोजगार पहले से लोगों को मिल चुके हैं, उसको भी स्थायी करने में इस सरकार को दिक्कत है। ऐसे में हेमंत सोरेन की ओर से किया गया तीन महीने में पांच लाख रोजगार का वादा मजाक ही लगता है।
सरकार और झारखंड मुक्ति मोर्चा की तरफ से इस मसले पर बात करने के लिए कई प्रयासों के बाद कोई उपलब्ध नहीं हो पाया। जैसे ही बातचीत होगी, उनका पक्ष भी जोड़ दिया जाएगा।
18 अगस्त से राज्य का विधानसभा सत्र चालू हो रहा है। विपक्ष सिपाहियों के इस मुद्दे को जरूर भुनाएगा। चूंकि सरकार का अब तक इस मुद्दे पर कोई रुख सामने नहीं आया है। ऐसे में देखना होगा कि वह इस मसले पर क्या जवाब देती है।