रांचीः शिक्षा से संबंधित प्रथम संस्था की असर रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में पांचवी कक्षा तक के 34 प्रतिशत बच्चे ही दूसरी कक्षा के पाठ पढ़ पाते हैं, वहीं 70 प्रतिशत छात्र तीसरी कक्षा का पाठ नहीं पढ़ पाते हैं। आठवीं कक्षा तक के 56 प्रतिशत बच्चों को भाग देना नहीं आता। इन बच्चों को पढ़ाने के लिए बहाल किए गए शिक्षकों में लगभग 400 शिक्षकों को बीते छह सालों से वेतन नहीं मिला है। ये शिक्षक अल्पसंख्यक विद्यालयों के हैं।
धनबाद की कीर्ति कुमारी (बदला हुआ नाम) उन्हीं शिक्षकों में से एक हैं। कहती हैं, “बीते छह सालों से एक बार भी सैलरी नहीं मिली है। पहले तो इंतजार में कुछ साल काट दिए। सरकार के अनुनय-विनय के बाद भी नहीं मिला तो स्कूल के साथ दूसरे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी। लॉकडाउन में वह ट्यूशन भी बंद हो चला है।”
वहीं एक और शिक्षिका डीएवी मध्यविद्यालय पुराना बाजार धनबाद की त्रिशा कुमारी (बदला हुआ नाम) कहती हैं, “वह साल 2016 में बहाल हुई थीं। तब से आज तक उन्हें एक रुपया नहीं मिला है। उनके विद्यालय में 500 से अधिक छात्र-छात्राएं और आठ शिक्षक हैं। किसी शिक्षक को वेतन नहीं मिला है। लगभग सभी ट्यूशन पढ़ाकर काम चला रहे हैं।”
झारखंड अल्पसंख्यक एवं सहायता प्राप्त प्राथमिक विद्यालय शिक्षक संघ की ओर से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक राज्य में ऐसे विद्यालयों की संख्या 847 है, जहां 4,036 शिक्षक फिलहाल बहाल हैं। वहीं पढ़ने वाले छात्रों की संख्या 2,09,423 बताई जा रही है। इन विद्यालयों में कक्षा एक से आठ तक की पढ़ाई होती है।
इन स्कूलों के भवनों के निर्माण का जिम्मा सरकार का नहीं होता है या तो कोई ट्रस्ट जिसके तहत वह स्कूल चल रहा होता है या फिर कोई जनप्रतिनिधि, अन्य लोगों के दिए पैसे से निर्माण होता है। फिर सरकारी अनुमोदन मिलने के बाद शिक्षकों की बहाली जिला शिक्षा अधिकारी और विद्यालय प्रबंधन की निगरानी में होता है। परीक्षा सहित अन्य कामकाज डीएसई की निगरानी में ही होता है। यानी सबकुछ योजना मद के तहत चल रहे प्राथमिक विद्यालय, माध्यमिक विद्यालय और उच्च विद्यालय की तरह ही। बस सैलरी इन विद्यालयों की तरह नियमित नहीं है।
आखिर इन्हें पैसा मिल क्यों नहीं रहा?
ऐसे में सवाल उठता है कि चार हजार में इन 400 शिक्षकों का वेतन क्यों नहीं मिला? वेतन की प्रक्रिया देखिये. इन स्कूलों को राज्य सरकार की गैर योजना मद से वेतन मिलता है। बिल (सैलरी) बनकर पहले विद्यालय प्रबंधन समिति के पास जाती है। वह उसे जिला शिक्षा अधीक्षक के पास ले जाता है। अधीक्षक फिर उसे प्राथमिक शिक्षा निदेशक को भेजते हैं। फिर वहां से वित्त विभाग और तब सैलरी बनकर तैयार होती है। यानी कभी छह महीने पर तो कभी साल भर पर वेतन मिलता रहा है। इन चार सौ शिक्षकों को बहाली के बाद यह भी नसीब नहीं हुआ है।
शिक्षक संघ के महासचिव निरंजन कुमार शांडिल्य बताते हैं, “2005 से पहले बिहार ट्रेजरी कोड लागू था, जिससे सीधे शिक्षकों के खाते में पैसा आता था। इसके बाद विद्यालय प्रबंधन समिति के माध्यम से पैसा मिलने लगा। साल 2016 में झारखंड ट्रेजरी कोड बना। इसमें तय हुआ कि फिर से सीधे शिक्षक के खाते में जाएगा। लेकिन इसे लागू नहीं किया गया।”
उनके मुताबिक, ”सरकार अभी तक विद्यालय प्रबंधन समिति को लाभुक मान रही है और उसी के खाते में पैसा आता है, फिर शिक्षकों को मिलता है। जबकि शिक्षक कह रहे हैं कि उन्हें ही लाभुक माना जाए और सीधे उनके खाते में पैसा मिले।”
इन शिक्षकों की दुश्वारियां यहीं खत्म नहीं होती। जब सब कुछ तय होकर मामला प्राथमिक शिक्षा निदेशक के पास जाता है तो कभी बहाली में आरक्षण न होने का मसला आता है तो कभी टेट पास न होने का मसला। इन मसलों को आपत्ति का कारण बता फिर पैसा नहीं मिलता है।
इस संदर्भ में साल 2017 में झारखंड हाईकोर्ट की ओर से एक आदेश भी दिया गया, जिसमें कहा गया कि अल्पसंख्यक स्कूलों को आरक्षण नीति को फॉलो करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। इस याचिका को दायर करनेवाले तीन शिक्षकों को इस आदेश के बाद वेतन भी मिला। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या सभी शिक्षकों को वेतन पाने के लिए हाईकोर्ट ही जाना पड़ेगा?
मंत्री ने कहा उन्हें मामले की जानकारी ही नहीं, सच्चाई कुछ और
शिक्षामंत्री जगरनाथ महतो इस संबंध में कहते हैं, ”ये सब बात फोन पर नहीं होता है। आकर मिलिये, पूरा मामला बताइए फिर बताएंगे कुछ।” सवाल यह है कि शिक्षक संघ के लोग दो बार आपसे आकर मिले, पूरा मामला बताया है, ज्ञापन दिया है, फिर भी आपको जानकारी नहीं है?
जवाब में वह कहते हैं- ”कब मिला, कौन मिला आकर हमको नहीं पता। जब फाइल देखेंगे, तब बता पाएंगे।” इतना कहकर फोन काट दिया जाता है। दोबारा संपर्क करने पर वह कहते हैं, “आइए ऑफिस और पूरा मामला बताइए, कुछ समाज सेवा कीजिए। अभी समय नहीं मिल रहा है, जब समय मिलेगा, फाइल देखेंगे फिर फैसला लेंगे।”
इसके बाद रिपोर्टर ने सवाल किया कि शिक्षा विभाग से जुड़े अन्य फैसले तो लिए जा रहे हैं, फिर ये क्यों नहीं? इस पर जगरनाथ महतो कहते हैं, ”ये सब अब लॉकडाउन खत्म होने के बाद करेंगे। आपका आदेश हुआ है तो करबे करेंगे।” समय सीमा के सवाल पर लगभग खीझते हुए उन्होंने कहा, ”आपका आदेश हुआ है तो करबे करेंगे। अब हो गया, रहने दीजिए।”
मंत्री के जवाब से साफ समझा जा सकता है कि इन शिक्षकों को अपने हक के वेतन के लिए अभी और दुश्वारियों से गुजरना होगा। इस परिस्थिति में एक सवाल और उठता है कि क्या बिना वेतन पाए शिक्षक उस समपर्ण से बच्चों के इतने लंबे समय से पढ़ाते आ रहे होंगे। इस सवाल के जवाब और असर के उस रिपोर्ट दोनों को मिलाने पर राज्य के शिक्षा व्यवस्था की पूरी स्थिति खुद-ब-खुद सामने आ जाएगी।
(लेखक रांची, झारखंड से स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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