– राहुल यादव/शिवांगी सक्सेना
दिल्ली हरियाणा के सीमा पर स्थित सिंघू बॉर्डर के नजदीक हजारों किसान पिछले 10 दिनों से डेरा डाले हुए है। वे तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं और केंद्र सरकार से अपील कर रहे हैं कि वे इसे वापस ले लें।
सिंघू बॉर्डर के आसपास वाले इलाके में बहुत सारी फैक्ट्रियां हैं। इनमें से ज्यादातर कारखाने बड़ी कंपनियों के लिए कच्चा माल बनाने का काम करते है। इन्हीं कारखानों में देश के कई राज्यों से मजदूर आकर कम करते हैं। पास में कूड़ा बीनने वालों की भी एक बस्ती है।
हाइवे बंद होने के कारण परिवहन पर अच्छा खासा असर पड़ा है जिसके कारण कारखाने नियमित रूप से नहीं चल पा रहे हैं। यही कारण है कि इन कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को अब काम मिलने में दिक्कतें आ रही हैं। पास की ही एक चप्पल फैक्ट्री में काम करने वाले सुनील ठाकुर ( बिहार, दरभंगा ) कहते है कि उनकी कंपनी 27 नवंबर से ही बंद है। पहले उनको नियमति रूप से पगार मिलती थी लेकिन अब कंपनी के बंद होने की वजह से उनको नियमति पगार नहीं मिल पा रहा है। बावजूद इसके सुनील ठाकुर का कहना है कि वो किसानों के साथ हैं और चाहते हैं कि सरकार जल्द से जल्द इनकी मांगों को पूरा करे। उन्होंने कहा कि हम यहां लंगर में भोजन भी कर लेते है तो ये लोग हमारे भाई – बहन ही हुए और हम पूरी तरह किसानों के साथ हैं।
धरनास्थल से ट्रक पर बैठे लोगों की तस्वीर लगातार आ रही है। एक ट्रक पुलिस बैरिकेड से कुछ ही मीटर की दूरी पर फंस गया है। ट्रक के हेल्पर बलदेव सिंह से हमने बात की जो कि अजमेर के रहने वाले है।
बलदेव सिंह कहते हैं कि वो पिछले 8 दिनों से यहां खड़े हैं। वह सिंघू बॉर्डर से कुछ मीटर की दूरी पर ही थे कि पुलिस ने बैरिकेड लगा दिए जिसकी वजह से वो वहीं फंस गए। बलदेव सिंह ने हमें बताया कि ट्रक में लगभग 40 टन माल है और यदि कुछ दिन और उनका ट्रक ऐसे ही खड़ा रहा तो टायर फटने का अंदेशा है। उनको ये भी डर है कि कहीं आंदोलन उग्र ना हो जाए और उनके ट्रक को किसी तरह का कोई नुकसान ना झेलना पड़े।
जब हमने उनसे खाने पीने को लेकर सवाल किया तो बलदेव सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, ” आप देख रहे हो यहां खाने – पीने की सुविधा तो दिन रात उपलब्ध है और हमें खाने के लिए कोई परेशानी नहीं उठानी पड़ रही है बस मुझे अपने ट्रक के टायर फटने या अन्य किसी तरह के नुकसान हो जाने को लेकर थोड़ी शंका है।” किसान आंदोलन को लेकर बलदेव ने कहा कि उनका परिवार तो खुद राजस्थान के अजमेर में खेती करता है तो वो कैसे नहीं किसानों के साथ होंगे।
प्रीती जो कूड़ा बिनने का काम करती है, वह इस आंदोलन से बड़ी खुश नज़र आईं। चूंकि प्रीती का काम प्लास्टिक इकट्ठा करने का है और धरनास्थल पर प्लास्टिक की बोतलें, चम्मच, ग्लास आदि भरपूर मात्रा में इकट्ठा करने को मिल रहा है। प्रीती कहती हैं कि उनके लिए तो ये डबल फायदे का काम हो गया। अब दिहाड़ी भी बढ़ गई है और वो लंगर में खाना भी कहा लेती हैं। प्रीती ने हमें बताया कि उनकी कमाई पहले 200 – 250 रुपए तक होती थी जो अब बढ़कर 400-500 रुपये प्रतिदिन हो गई है। पिछले 5 दिनों से प्रीती ने अपने घर में चूल्हा नहीं जलाया है क्योंकि उनको लंगर से भोजन मिल जाता है।
चूंकि आंदोलन दिल्ली बॉर्डर पर चल रहा है तो जो लोग काम के लिए रोज़ाना बॉर्डर क्रॉस करते है और जो ऑटोचालक बॉर्डर से इधर-उधर सवारियां ले जाते, उनका भी नुकसान हो रहा है मगर फिर भी वो किसानों के साथ खड़े हैं। ऐसी ही एक व्यक्ति देवीलाल से हमारी भेंट हुई जो अपने हाथ में एक थैला और पीठ पर बस्ता लटकाए, गन्नौर (सोनीपत) से दिल्ली को जा रहे थे। उन्होंने बताया कि ऑटो ना मिलने के चलते वो सुबह नौ बजे के घर से निकले हुए हैं और पैदल दिल्ली जा रहे हैं।
बॉर्डर बंद होने से पहले वो डेढ़ घंटे में दिल्ली पहुँच जाया करते लेकिन अब उन्हें कोई बस या ग्रामीण सेवा नहीं दिखाई पड़ रही जो दिल्ली जा रही हो। देवीलाल ने हमें बताया कि अगर वो यूँही पैदल चलते रहे तो दिल्ली पहुँचने में अब भी उन्हें दो घंटे का और लग जाएंगे। इसी सिलसिले में जब हमने ऑटोचालक मनोज से बात की तो उन्होंने कहा कि ऑटो तो चल रहे है मगर उनकी संख्या पहले की तुलना में कम हो गई है। इसके पीछे का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि बॉर्डर सील होने के कारण ऑटो को अंदर गावों से घुमाते हुए लेकर जाना पड़ता है और गावों का रास्ता बहुत खराब है और इसमें समय भी ज्यादा लगता है।
मनोज ने बताया कि अब रास्ता दोगुना लंबा हो गया है इसलिए उन्होंने किराया भी डबल कर दिया है। पहले जहां 20-30 रुपए लगते थे अब वहां 50-60 रुपए किराया लिया जा रहा है। मनोज ने बहुत जोर देते हुए ये बात कही कि भले ही उनके धंधे पर इस आंदोलन का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है मगर वो किसानों के साथ खड़े है। ‘किसान है तो सारा देश चल रहा है, किसान के बिना सब भूखे मर जाएंगे’, वह कहते हैं।
ठीक इसी तरह सिंघू बॉर्डर के आसपास अपना रोज़गार चलाने वाले लोग किसानों के साथ खड़े हैं। उनका कहना है कि सरकार को किसानों के इस मसले का जल्द निपटारा करना चाहिए ताकि सारी चीज़े सुचारू रूप से चल सके और वो लोग भी अपनी रोज़ी रोटी नियमति रूप से कमाते रहे।
आंदोलनकारियों के लिए समाजसेवी ने लगवाया वाई-फाई
सिंधू बॉर्डर पर किसान आंदोलन के बीच सभी अपने तरीके से मदद पहुंचा रहे हैं। आंदोलन में बड़ी संख्या में बच्चे भी शामिल हुए हैं. अपनी मांग और नारों के बीच बच्चे समय निकाल कर ऑनलाइन पढ़ाई भी कर रहे हैं। इसको देखते हुए बसंत विहार के युवा समाजसेवी अभिषेक जैन ने उनके लिए वाई-फाई लगवा दिया है। बड़ी संख्या में बच्चे उसका इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्होंने यूजर आईडी और पासवर्ड वहां पोस्टर पर लिखकर टांग दिया है। ताकि कोई भी जरूरतमंद इसका इस्तेमाल कर सके।
अभिषेक ने बताया कि किसान हैं, तभी हम हैं। ऐसे में जब किसान सड़क पर आंदोलन कर रहे हैं तो उसमें हर किसी को सहयोग करना चाहिए. यहां मैंने बड़ी संख्या में बच्चों को देखा है। कई तो समय निकाल कर पढ़ाई भी कर रहे हैं। मुझे लगा कि अगर इन्हें फ्री डेटा की मदद मिल जाए तो उनके काम आ सकते हैं। इसलिए उन्होंने यहां वाई-फाई लगवा दिया है। उन्होंने बताया कि अगर जरूरत पड़ी तो कुछ और जगहों पर वह लगाएंगे, ताकि जो लोग घर से बाहर हैं, वह इस फ्री डेटा का इस्तेमाल कर घरों में बात कर सकें। बीते चार दिनों से वह लगातार वहां आ रहे हैं। राशन-पानी की मदद वह किसानों को पहुंचा रहे हैं।
अभिषेक ने इससे पहले दिल्ली के वसंत बिहार के दो स्लम एरिया नेपाली कैंप और भंवरसिंह कैंप में फ्री वाई-फाई लगवाई है। हर दिन 100 से अधिक बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई के लिए इसका लाभ ले रहे हैं।