जब आप इस लेख को पढ़ रहे हैं, तब कम से कम एक लाख मछुआरे और प्रवासी मछली मज़दूर महाराष्ट्र के तट से दूर अरब सागर में अपनी मछली पकड़ने वाली नावों में फंसे हुए हैं। राज्य में बड़ी संख्या में ऐसे मछुआरे रहते हैं जो गहरे समुद्र में मछली पकड़ते हैं और उन्हें इसके लिए कई दिनों या हफ्तों तक समुद्र में ही रहना पड़ता है। जब वे मछली पकड़ने के लिए समुद्र की तरफ जाते हैं तो वे नाव में अपने साथ पर्याप्त दिनों के लिए भोजन-पानी की भी व्यवस्था कर के चलते हैं।
“हमेशा की तरह ये मछुआरे गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए ही गए थे। जब वे समुद्र में ही थे, तभी प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना वायरस के बचाव में देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा कर दी। अब ये मछुआरे वापस नहीं लौट सकते। वे समुद्र में अपनी नावों में ही रह रहे हैं,” महाराष्ट्र मछीमार कृति समिति की किरण कोली गांव कनेक्शन को बताते हैं।
“हमारे अनुमान के अनुसार समुद्र में ऐसे लगभग डेढ़ लाख मछुआरे और मछली श्रमिक फंसे हुए हैं। हमने उन्हें सूखे राशन और पीने के पानी की आपूर्ति की है। अब वे 14 अप्रैल को 21 दिन की लॉकडाउन अवधि समाप्त होने के बाद ही अपनी नावों से वापिस आ सकते हैं,” उन्होंने आगे जोड़ा।
इन फंसे हुए मछुआरों में बड़ी संख्या उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड से आए प्रवासी मछली श्रमिकों की है। वे अपनी आजीविका के लिए इन राज्यों से महाराष्ट्र की तरफ आते हैं।
“यदि ये एक लाख से अधिक फंसे हुए मछुआरे वापस लौटते हैं, तो हम भीड़-भाड़ से कैसे बच पाएंगे? हम प्रवासी मछली श्रमिकों को कहाँ रखेंगे? ट्रेन और बसें भी नहीं चल रही हैं, इसलिए वे अपने गृह राज्यों में भी नहीं लौट सकते हैं। उनके पास समुद्र में नावों में रहने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं है,” कोली कहते हैं।
सरकार फंसे हुए प्रवासी मत्स्य श्रमिकों की दुर्दशा से अनजान नहीं है। 28 मार्च को लिखे गए अपने पत्र में मत्स्य पालन विभाग ने उल्लेख किया था, “विभिन्न राज्यों में बड़ी संख्या में प्रवासी मत्स्य श्रमिक जहाजों और लैंडिंग साइटों पर फंसे हुए है। ऐसे प्रवासी मतस्य श्रमिकों के पास लौटने के लिए कोई साधन नहीं है। इसलिए वे ऐसे-तैसे, जहां-तहां रूके हुए हैं।”
विभाग ने राज्यों को पर्याप्त भोजन, पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने और मछुआरों को मजदूरी उपलब्ध कराने का आदेश जारी किया है। राज्य प्रशासन से यह भी कहा गया है कि वह मछुआरों के बारे में पूरी जानकारी जैसे- उनके नाम, निवास और अन्य विवरण बना कर रखें और उनकी स्थिति के बारे में उनके परिवारों को भी सूचित किया जाए। इन प्रवासी श्रमिकों के परिवारों को उनके संबंधित राज्यों में राशन और अन्य आवश्यक आपूर्ति सामाग्री देने की भी बात कही गई है।
देश भर में लॉकडाउन होने से देश के लगभग एक करोड़ 60 लाख मछुआरों और मछली श्रमिकों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। इनमें से लगभग आधी संख्या (5,570,217) महिलाओं की है क्योंकि देशभर में मछलियों की बिक्री महिलाओं के द्वारा ही अधिक की जाती है।
“लॉकडाउन होने के बाद भारत मे मछली पकड़ने की गतिविधियाँ एकदम से ठप हो गई हैं। मछली पकड़ने के लिए मछुआरे समुद्र में नहीं उतर रहे हैं क्योंकि बर्फ, मछली श्रमिकों और परिवहन सुविधाओं की उपलब्धता नहीं है,” राष्ट्रीय मछुआरा फोरम के महासचिव टी पीटर ने गाँव कनेक्शन को बताया।
“तटीय राज्यों के सभी 1,547 फिश लैंडिंग केंद्र बंद हैं। मछुआरों के परिवार भूखे रह रहे हैं और उन्हें राशन और वित्तीय सहायता की आवश्यकता है, ” उन्होंने आगे बताया।
“कृपया सरकार को हमारी मदद करने के लिए कहें। हमारे घरों में जो भी भोजन था वह समाप्त हो गया है। हमें नहीं पता कि हमारे अगले दिन का भोजन कहाँ से आएगा,” आंध्र प्रदेश में पारंपरिक मछुआरों के व्यापार संघ से जुड़े एक मछुआरे रहमान ने गाँव कनेक्शन को बताया।
“सरकार ने प्रति व्यक्ति पांच किलोग्राम चावल और एक किलोग्राम दाल देने का आदेश दिया था। लेकिन राशन की दुकान वाले एक दिन में सिर्फ 50 लोगों को ही यह राशन देते हैं,” रहमान आगे कहते हैं।
देश के पूर्वी तट पर रहने वाले रहमान और अन्य मछुआरों की चिंता केवल यहीं खत्म नहीं हो जाती हैं। 15 अप्रैल से देश के पूर्वी तटों पर 61दिनों का मानसून प्रतिबंध लागू होता है, इस दौरान मछुआरों को मछली पकड़ने की मनाही होती है। “मार्च के महीने में हमारी ज्यादा आय नहीं हुई थी। कोरोना वायरस के कारण अप्रैल के आधे दिन भी लॉकडाउन में चले गए। इसके बाद आगे के दो महीने हम मछली पकड़ने की प्रतिबंध के कारण मछली नहीं पकड़ पाएंगे,” असहाय रहमान बताते हैं।
“किसानों की तरह, हमें भी आत्महत्या करनी पड़ सकती है,” वह आगे कहते हैं।
इसी तरह की आवाजें देश के पश्चिमी तट से भी आ रही हैं। “पिछले साल 1 अगस्त से 15 नवंबर तक अरब सागर में अत्यधिक वर्षा हुई थी और कई तूफान आए थे, जिसके कारण मछुआरे नियमित रूप से मछली पकड़ने का काम नहीं कर सके थे। मछली पकड़ने का पहला सीजन ऐसे ही खत्म हो गया और मछुआरों को भारी नुकसान हुआ,” कोली ने बताया।
उन्होंने आगे कहा, “दिसंबर से मछली पकड़ने का दूसरा सीजन चलता है, लेकिन इस सीजन में उतनी मछलियां नहीं मिलती। इसलिए 50 प्रतिशत से अधिक नावें नहीं चलती हैं। होली के बाद मछली पकड़ने का तीसरा सीजन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। इस सीजन में ही सबसे अधिक मछलियां पकड़ी जाती हैं। लेकिन कोरोनो वायरस के कारण हमें यह सीजन भी गवांना पड़ रहा है। अब एक जून से देश के पश्चिमी तटों पर 61दिनों का मानसून प्रतिबंध रहेगा। इससे अधिक विपदा शायद ही हमने कभी देखी हो। सरकार को हमारी तुरंत सहायता करनी चाहिए।”
महाराष्ट्र में मछली पकड़ने की कुल 28,000 पंजीकृत नावें हैं, जबकि 15,310 नौकाओं के पास मछली पकड़ने का लाइसेंस है। राज्य में लगभग 9,310 मछुआरे मछली पकड़ने की गतिविधियों को पूरा करने के लिए डीजल सब्सिडी के पात्र हैं।
चौंकाने वाली बात यह है कि महाराष्ट्र सरकार पर इस डीजल सब्सिडी का 187 करोड़ रुपये बकाया है। “हम अपनी मछली पकड़ने की नावों के लिए डीजल खरीदते हैं और सरकार बाद में हमें सब्सिडी के रूप में पैसे का एक हिस्सा लौटाती है,” कोली ने बताया। “हालांकि चार-पांच साल से अधिक हो गया है लेकिन राज्य सरकार ने मछुआरों को इन पैसे का भुगतान नहीं किया है। यह लगभग 187 करोड़ रुपया है।”
इस साल 14 फरवरी को महाराष्ट्र मछिमार कृति समिति के प्रतिनिधियों ने राज्य के मत्स्य मंत्री असलम शेख के साथ बैठक कर डीजल सब्सिडी जारी करने का अनुरोध किया था। राज्य ने 78 करोड़ रुपये जारी करने का दावा किया है। लेकिन कोली के अनुसार लाभार्थियों के बैंक खातों में पैसा अभी तक नहीं पहुंचा है।
लॉकडाउन ने उन मछुआरों के संकट में वृद्धि ही की है जो केंद्र और राज्य से राहत की मांग कर रहे हैं।
24 मार्च को पीएम मोदी के 21 दिन की देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के तुरंत बाद राष्ट्रीय मछुआरों के फोरम ने केंद्रीय मत्स्य मंत्रालय में राज्य मंत्री प्रताप चंद्र सारंगी को पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने सरकार को सूचित किया कि लॉकडाउन से पहले ही कई तटीय राज्यों में नौकाओं को बंदरगाह छोड़ने को कहा गया था।
समाचार रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र के मछुआरों को बर्फ और परिवहन सुविधाओं की कमी के कारण 10,000 टन मछलियों को वापस समुद्र में फेंकना पड़ा। इसी तरह की रिपोर्ट दूसरे राज्यों से भी आ रही हैं।
केन्द्रीय मत्स्य विभाग ने 24 मार्च के एक पत्र लिखकर सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को निर्देश दिया था कि मछली और झींगा जैसी वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं की सूची में शामिल कर इसे लॉकडाउन के प्रतिबंध से हटाया जाए। लेकिन बर्फ फैक्ट्रियों के बंद होने और परिवहन साधनों की कमी के कारण मतलब मछलियां सड़ गईं और मछुआरों को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
राष्ट्रीय मछुआरों के फोरम ने केंद्र सरकार से मछुआरा समुदाय के लिए एक विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा करने की मांग की है। फोरम के अनुसार इससे ना सिर्फ मछुआरे प्रभावित हुए हैं बल्कि वे करोड़ों लोग भी प्रभावित हुए हैं, जो मछुआरों और उनके काम पर निर्भर रहते हैं।
फोरम ने तीन महीने की अवधि के लिए प्रति मछुआरे परिवार को 10,000 रुपये के मासिक भत्ते की भी मांग की है। उन्होंने मछली श्रमिकों को खाना पकाने के ईंधन के साथ राशन की पर्याप्त आपूर्ति की भी मांग की है।
30 मार्च को लिखे गए अपने पत्र में केंद्रीय मत्स्य विभाग ने संकेत दिया है कि वह मछुआरों के आधार कार्ड से जुड़े बैंक खातों के द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान करेगा।
कोरोना वायरस महामारी केवल एक स्वास्थ्य संकट नहीं है। यह देश के लाखों मछुआरों और मछली श्रमिकों के लिए एक आजीविका का भी संकट बन कर उभरा है।
अनुवाद- दया सागर
ये भी पढ़ें- Corona Crisis : मनरेगा मजदूरों के लिए केंद्र सरकार से तत्काल मदद की गुहार लगा रहे और राज्य