मलकानगिरी, ओडिशा. सूरज ढल रहा है और शाम हो रही है। उसी दौरान आशा कार्यकर्ता अपर्णा सरकार हल्के नीले रंग की साड़ी, कलाई पर लाल-सफेद चूड़ियां, माथे पर बिंदी, मांग में सिंदूर लगाए हुए और एक बड़ी घंटी लेकर घर से बाहर निकलती हैं।
अपर्णा सरकार ओडिशा के मलकानगिरी जिले के मथिली ब्लॉक में खैरापाली गांव में जाती हैं और रात 8 बजे तक घंटी बजाकर ग्रामीणों को सोने से पहले मच्छरदानी लगाने की याद दिलाती हैं। इस मच्छरदानी को आधिकारिक रूप से ‘लॉन्ग लास्टिंग इन्सेक्टीसाइड नेट’ के नाम से जाना जाता है, जिसे पिछले साल ग्रामीणों को बांटा गया था।
यह मच्छरदानी तीन साल तक प्रभावी रहता है। इन मच्छरदानियों में सोने से मच्छरों और मलेरिया जैसी वेक्टर जनित बीमारियों से सुरक्षा मिलती है। बता दें कि वेक्टर रोगवाहक जीवाणु होता है, जो बीमारी को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमित कर सकता है।
मलकानगिरी जिले में मलेरिया रोग स्वास्थ्य विभाग के लिए एक गंभीर चिंता का सबब बन चुका है। नक्सलवाद, गरीबी और कुपोषण से प्रभावित आदिवासी जिला मलकानगिरी मलेरिया बीमारी का केंद्र बन गया है। भारत में कुल मलेरिया मरीजों का 40 फीसदी हिस्सा ओडिशा राज्य में है। ओडिशा में मलेरिया के कुल जितने मामले सामने आते हैं, उनमें से करीब 50 फीसदी मामले मलकानगिरि जिले के होते हैं।
जिला प्रशासन मलेरिया के खिलाफ लड़ाई लड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। जिला प्रशासन के विभिन्न प्रयासों के चलते मलकानगिरी जिले में मलेरिया के मामले कम हुए हैं। साल 2019 में मलेरिया से 7,700 लोगों की मौत हुई थी।
जिला प्रशासन ने मलेरिया के खिलाफ अभियान के तहत लोगों को जागरूक करने के लिए व्हाट्सएप ग्रुप बनाया, माइक से घोषणाएं हुई, फ्रंटलाइन स्वास्थ्य वर्करों को प्रशिक्षित किया गया, स्थानीय शिक्षकों और स्कूलों से मदद ली गई, लोगों का मास स्क्रीनिंग किया गया, स्वच्छता अभियान चलाया गया, लॉन्ग लास्टिंग इन्सेक्टीसाइड नेट( मच्छरदानी) के प्रयोग को बढ़ावा दिया गया है।
मलकानगिरी जिले की मलेरिया विभाग के प्रमुख और अतिरिक्त जिला लोक स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. धनेश्वर मोहापात्र ने गांव कनेक्शन को बताया कि मलकानगिरी जिले में जनवरी 2020 में 1,272 मलेरिया के मामले सामने आए थे। लेकिन, इस साल जनवरी 2021 में केवल 235 मामले सामने आए हैं, पिछले साल की तुलना में 81 फीसदी मामले कम हुए हैं।
अपर्णा सरकार जैसी आशा कार्यकर्ता इस पूर्वी राज्य में मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम की रीढ़ बन चुकी हैं। इसके अलावा मलकानगिरी जिले को मलेरिया मुक्त बनाने के लिए राज्य सरकार के 14 विभाग मिलकर काम कर रहे हैं।
मलेरिया से मुक्ति के लिए मलकानगिरि में अभियान
मलकानगिरी को मलेरिया मुक्त बनाना बहुत ही चुनौतिपूर्ण है। इस जिले में 57.83 फीसदी आबादी आदिवासियों की है। मलकानगिरि की परिस्थितिक (इकोलॉजिकल) स्थितियां जैसे पहाड़ी क्षेत्र, जलजमाव, उच्च आर्द्रता (humidity) तापमान और हर साल 1,700 मिलीमीटर बारिश मलेरिया के मच्छरों को पनपने में मदद करती हैं। मलकानगिरी जिले के बच्चों में कुपोषण के मामले भी काफी सामने आए हैं। 2015-16 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के अनुसार, जिले में पांच साल से कम उम्र के बच्चे आधे से अधिक कम वजन के थे। पांच साल से कम उम्र के 47 फीसदी से ज्यादा बच्चे छोटे कद के थे।
पिछले साल जून महीने तक जिले में मलेरिया के बहुत अधिक मामले सामने आए थे। पिछले साल जनवरी में मलेरिया के 1,272 मामले सामने आए थे. वहीं, जनवरी 2019 में 621 मामले मलेरिया के दर्ज किए गए थे।
जून 2020 तक मेलरिया के मामले बढ़े थे, इसे इस ग्राफ में देखा जा सकता है।
“दिसंबर 2019 में हमें केंद्र सरकार से लॉन्ग लास्टिंग इन्सेक्टीसाइड नेट (मच्छरदानी) मिले। हमने साल 2020 के जनवरी, फरवरी और मार्च में इसे ग्रामीणों में बांटा। 4 लाख और 39 हजार मच्छरदानी ग्रामीणों को बांटा गया था। हालांकि, इसके बावजूद भी जिले में मलेरिया के मामले बढ़ रहे थे,” धनेश्वर मोहापात्र ने बताया।
वह आगे बताते हैं कि पिछले साल अप्रैल और मई में जब राष्ट्रव्यापी कोविड-19 लॉकडाउन लगाया गया था, उस दौरान जिले के कितने ग्रामीण घरों में नए मच्छरदानियों का प्रयोग किया जा रहा है, यह जानने के लिए एक सर्वे किया गया था। इस डोर-टू-डोर सर्वे में पंचायत सदस्यों और स्थानीय शिक्षकों को शामिल किया गया था। सर्वे में पता चला कि केवल 30 फीसदी लोग ही इस विशेष मच्छरदानी का इस्तेमाल कर रहे थे।
इसके बाद पिछले साल 11 जून को मलकानगिरि के तत्कालीन कलेक्टर मनीष अग्रवाल ने मलेरिया-मुक्त मलकानगिरी अभियान शुरू किया। इस अभियान के तहत राज्य सरकार के 14 विभागों ने मिलकर काम करने का फैसला लिया। इस अभियान का फायदा हुआ और मलेरिया पर नियंत्रण हुआ। इससे मलकानगिरी अब एक मॉडल के रूप में उभरा है।
निगरानी और रिपोर्टिंग
मलकानगिरी मॉडल त्रिस्तरीय अंतर विभागीय व्यवस्था पर आधारित है। इसमें जिला, ब्लॉक और पंचायत शामिल हैं, जो पारदर्शी निगरानी और रिपोर्टिंग प्रणाली को मजबूत बनाती है। वन ग्रामों में मलेरिया नियंत्रण के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए वन विभाग के 70 गार्ड और 100 वन समितियों का गठन किया गया है।
मलकानगिरी जिले में कुल सात ब्लॉक हैं, इसको ध्यान में रखते हुए जिला प्रशासन ने मलेरिया को लेकर बड़े पैमाने पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने के लिए हर उप-केंद्र के लिए 30 माइक्रोफोन (माइक) खरीदे हैं। इस योजना के तहत जिला प्रशासन द्वारा हर गांव के लिए एक माइक की व्यवस्था की गई है। 2011 की जनगणना के अनुसार जिले में 192 गांव हैं।
आशा कार्यकर्ताओं की भूमिका
मलकानगिरी के एंटी-मलेरिया अभियान की फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर रीढ़ हैं। वे प्रतिदिन एक घर से दूसरे घर का दौरा कर लोगों को स्वास्थ्य संबंधित जानकारियां देती हैं, रात में घंटी बजाकर या माइक पर घोषणा कर लोगों को नए मच्छरदानी लगाने के लिए जागरूक करती हैं।
ASHAs of Malkangiri district have proven their dedication towards wiping off #Malaria from their district through this unique move – each ASHA residence has been declared as Malaria Treatment Center where blood collection for testing Malaria is being done. #Health4All pic.twitter.com/shZhBZLVVW
— H & FW Dept Odisha (@HFWOdisha) September 7, 2018
“हमारा मुख्य काम मलेरिया, इसके लक्षणों और ग्रामीणों द्वारा बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में जानकारियां देना होता है। हमने ग्रामीण स्तर पर स्वयं सहायता समूहों के साथ बैठकें की और उन्हें मलेरिया को लेकर जागरूक किया और नए मच्छरदानी के प्रयोग के बारे में बताया,” अपर्णा सरकार ने गांव कनेक्शन को बताया।
अपर्णा सरकार ने बताया कि इसके अलावा हर एक आशा कार्यकर्ता प्रतिदिन 10 घरों में मलेरिया की जांच करने की लिए जाती हैं। हम देखते हैं कि लोग नए मच्छरदानी का प्रयोग करते हैं या नहीं। हम रोगियों का स्वास्थ्य कार्ड बनाते हैं। साथ ही हम लोग मलेरिया परीक्षण किट भी साथ में लिए रहते हैं, जो 20 मिनट के अंदर मलेरिया संक्रमण की जांच करता है।
प्रतिदिन घर के दौरे ने न केवल लोगों में मलेरिया के बारे में जागरूकता बढ़ाई है, बल्कि फ्रंटलाइन वर्करों को मलेरिया की रियल टाइम की घटनाओं और घरेलू स्तर पर मलेरिया से बचने के लिए अपनाई जा रही सावधानियों के बारे में भी परिचित कराया है।
मलकानगिरी जिले के सभी ब्लॉक में व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया है, जिसमें आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हर दिन घर के दौरे और रोगी के रिकॉर्ड के बारे में जानकारी शेयर करती हैं। वे तस्वीरें भी व्हाट्सएप ग्रुप में भेजती हैं।
अगर किसी व्यक्ति को मलेरिया है तो उसे आशा कार्यकर्ता के सामने ही दवा दी जाती है। इसके बाद उस बीमार व्यक्ति के पड़ोस में चार से पांच घरों की कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और ग्रामीणों में बुखार की निगरानी की जाती है।
“मलकानगिरी को मलेरिया मुक्त बनाने के लिए लॉन्ग लास्टिंग इन्सेक्टीसाइड नेट( मच्छरदानी) का सौ फीसदी प्रयोग पर जोर दिया गया और जागरूकता के लिए फ्रंटलाइन वर्कर के साथ निरंतर अभियान चलाया गया, इससे हम मलकानगिरी को मलेरिया मुक्त बनाने में सफल हुए,” मोहापात्र ने बताया।
“पिछला साल बहुत चुनौतीपूर्ण रहा, मलेरिया जागरूकता कार्यक्रम के अलावा हम आशा कार्यकर्ताओं को भी कोविड-19 के दौरान दिन-रात काम करना पड़ा। जब हमें पता चला कि मलेरिया के मामले हमारे गांवों में कम हुए हैं तो हमें खुशी मिली और हमारे लिए यह उपलब्धि जैसा था,” अपर्णा सरकार ने बताया।
आशा कार्यकर्ता अपर्णा सरकार पिछले साल जुलाई महीने में कोविड-19 से संक्रमित हो गई थीं और अब उन्होंने कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज ले ली है।
अनुवाद- आनंद कुमार
इस स्टोरी को मूल रूप से अंग्रेजी में यहां पढ़ें- Malkangiri Model: Mic, mosquito nets and mass awareness to fight malaria
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