आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)। मुंबई से झांसी तक बस और उसके आगे ट्रेन के सहारे अपने परिवार के साथ निकले राम अवध किसी तरह बस अपने गाँव पहुंचना चाहते थे। लेकिन रास्ते में ही ट्रेन में तबियत खराब हुई और मौत हो गई, लेकिन चार दिन तक पोस्टमार्टम न हो पाने के कारण शव कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर रखा रह गया।
आजमगढ़ के मख्खूनपुर मकरौदा गाँव के रहने वाले रामअवध मुंबई में राजमिस्त्री का काम करते थे, लॉकडाउन से काम बंद होने से, उन्होंने भी घर वापस आने का फैसला किया। 45 वर्षीय राम अवध, अपने दो बेटों, पत्नी, बेटी और सास के साथ बस से झाँसी आए थे। झांसी से वे आजमगढ़ के लिए मंगलवार को चले थे।
मृतक राम अवध चौहान के बेटे कन्हैया से बात कि तो वो रोने लगे और और बताया, “26 मई की शाम 5.30 बजे मेरे पिता की मौत हुई थी। लेकिन आज तक उनका पोस्टमार्टम नहीं हो सका। हमें बताया जा रहा है कि यहां कोरोना की जांच नहीं होती और इसी वजह से पोस्टमार्टम भी नहीं हो पा रहा था।”
कन्हैया अपनी मां, भाई-बहन के साथ पिछले तीन दिनों से कानपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर एक पर रहने को विवश थे। वो कहते हैं, “वहां पर खाने पीने को भी कुछ नहीं मिल रहा था। हम मरे बाप का शरीर लेकर भूख से मर रहे थे। बस यही सोचते थे कि जल्दी से मेरे पिता का पोस्टमार्टम करा दिया जाए। और हम सबको घर भेज दिया जाए।”
कन्हैया ने आरोप लगाया है कि झांसी से निकलने तक उन्हें खाने के लिए कुछ नहीं मिला था। झाँसी से जब वे चले तो ट्रेन में पूड़ी-सब्ज़ी और पानी का एक-एक पाउच मिला था। मध्यप्रदेश के गुना में सोमवार की शाम उन्होंने आखिरी बार भोजन ठीक से किया था। सही से भोजन न मिलने की वजह से शुगर की दवा भी नहीं ले पा रहे थे। जब हमनें मदद की गुहार लगाई तो घंटों की देरी के बाद डॉक्टर कानपुर स्टेशन पर उनके पिता की जांच करने पहुंचे।
कन्हैया कहते हैं, “मेरे पिता के पास ढाई महीने से कोई काम नहीं था। ऐसे में आज़मगढ़ लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।”
रामअवध के भाई कहते हैं कि कुछ दिनों पहले ही उनका परिवार मुम्बई शिफ्ट हुआ था और तीनों बच्चों का वहीं स्कूल में नाम भी लिखवाया गया था। अब तो पूरा परिवार तबाह हो गया।
मृतक राम अवध चौहान के भाई रमेश चौहान से स्थिति के बारे में जानने पर वो कहते हैं कि गर्मी के कारण राम अवध चौहान का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा था। उन्होंने अपने कपड़े उतार दिए थे क्योंकि उनका शरीर बहुत गर्म हो गया था। उनको दिक्कत महसूस होने लगी तो उनके बेटे ने चेन खींची, लेकिन ट्रेन नहीं रुकी। उन्होंने रेलवे हेल्पलाइन नंबर भी डायल किया, लेकिन कोई मदद नहीं मिली। इलाज न मिलने के कारण वो मर गए।
सरकार के रवैये को लेकर नाराज परिजन कहते हैं कि सरकार जिंदा मजदूरों की तो मदद कर नहीं रही है। और मरने के बाद भी जहालत के लिए छोड़ दिया जा रहा है। आजमगढ़ के रिहाई मंच के कार्यकर्ता राजीव यादव उनके घर मिलने गए तो वो बताते हैं कि एक सामान्य से घर में रहने वाला परिवार पूरी तरह से तबाह हो गया है।मृतक के पिता एकदम बूढ़े हैं जो कुछ भी बोल पाने की स्थिति में नहीं थे। लेकिन राम अवध की बूढ़ी मां उनको पकड़कर रोने लगी और कहने लगी कि अब लगत ह हम हमार भइया के लाशियो न देख पाइब।