हरदोई (यूपी)। इन दिनों यूपी और बिहार के गांवों में प्रवासी मजदूरों का जमघट लगा हुआ है। कोरोना लॉकडाउन के बाद महानगरों से आए हुए अधिकतर मजदूर अभी फिर से वापस जाने के मूड में नहीं हैं और अभी अपने घर-गांव में ही टिके हुए हैं। ऐसे में मनरेगा उनके लिए रोजगार का एक बड़ा साधन बन रहा है। उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में ऐसे ही कुछ प्रवासी मजदूरों ने मनरेगा में मजदूरी कर पौराणिक महत्व के एक लगभग मर चुके तालाब को पुनर्जीवित कर दिया।
होली पर 84 कोसी परिक्रमा यात्रा के चतुर्थ पड़ाव में पड़ने वाले हरदोई जिले के कोथावां ब्लाक के उमरारी गांव में पड़ने वाले इस तालाब का अपना धार्मिक, ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है। लेकिन पिछले कई सालों से यह उपेक्षा का शिकार था और एक गंदे नाले में बदल चुका था। हरदोई जिला प्रशासन के आदेश पर इस तालाब का कायाकल्प मनरेगा के तहत अन्य प्रांतों से आए प्रवासी मजदूरो द्वारा कराया गया।
गांव और आस-पास के बुजुर्ग बताते हैं कि चौरासी कोसी परिक्रमा यात्रा के दौरान देश-प्रदेश से आने वाले श्रद्धालु इस तालाब में आस्था की डुबकी लगाते थे लेकिन काफी लंबे समय से इस तालाब पर कुछ ग्रामीणों ने अतिक्रमण कर कब्जा कर लिया था और इसको पाट कर के गंदे नाले में तब्दील कर दिया गया था। फरवरी महीने में इस तालाब का निरीक्षण करने जब जिलाधिकारी हरदोई पुलकित खरे उमरारी गांव पहुंचे तो ग्रामीणों ने उनको अवगत कराया कि यह पौराणिक स्थल पर बने इस तालाब पर ग्रामीणों ने अवैध कब्जा कर लिया है, जिसके चलते अब यह तालाब सिमटकर गंदे नाले में तब्दील हो गया है।
इसके बाद जिलाधिकारी पुलकित खरे ने मामले को संज्ञान में लेते हुए संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया कि तालाब की पैमाइश कराकर इसे कब्जा मुक्त कराया जाया और एक कार्य योजना बनाकर इसे पुनः जिंदा किया जाए। मार्च में कोरोना वायरस के चलते लगे देशव्यापी लॉकडाउन के चलते काफी प्रवासी मजदूरों को शहर से गांव की ओर पलायन करना पड़ा। ऐसे में अन्य राज्यों से पलायन कर गांव आए 60 मनरेगा मजदूरों को मनरेगा के तहत जिलाधिकारी द्वारा काम दिया गया और गंदे नाले में तब्दील हो चुके इस सूर्यकुंड की सूरत फिर से बदल गई।
‘मनरेगा में काम नही मिलता तो भूखे मर जाते’
लॉकडाउन से पहले चंडीगढ़ के एक निजी कम्पनी में काम करने वाले फारूक बताते हैं कि अगर उनको गाँव मे काम नही मिलता तो खाने के लाले पड़ जाते है। उन्होंने जो पैसा कमाया था वह सब लॉकडाउन के दौरान खर्च हो गया। घर मे दो वक्त की रोटी की पर संकट मंडराने लगे थे।
उन्होंने कहा कि मैं अपने जिले के जिलाधिकारी धन्यवाद देना चाहता हूं, जिन्होंने हमें अपने गांव मे ही काम दिया। एक अन्य मजदूर इस्माइल बताते हैं कि वे दिल्ली में सिलाई का काम करने के लिए मार्च में ही गये हुए थे, लेकिन तब तक कोरोना महामारी के चलते लाकडाउन की घोषणा होते ही सिलाई का कारखाना बन्द हो गया और उन्हें वापस लौटना पड़ा।
वह कारखाना बन्द होने से कुछ पैसा भी नहीं कमा पाए थे। वह जब गांव पहुचे तो यहां मनरेगा में काम मिला जिसको पाकर वह काफ़ी खुश हैं। महिला मजदूर साबिया बताती हैं कि इस बार ईद के मौके पर हमारे घर मे खाने के लाले पड़े हुए थे, काम कहीं नहीं मिल रहा था। बच्चों के लिए नए कपड़े तो दूर की बात थी। तब डीएम हरदोई हमारे लिए फ़रिश्ता बनकर आए और हम लोगो को नरेगा में काम दिलाया।
उमरारी के प्रधान प्रतिनिधि कमलेश अवस्थी ने बताया कि 5500 वर्ग मीटर में फैले तालाब पर रोजाना 80 मजदूरो ने काम किया। यह काम एक माह पंद्रह दिन तक अनवरत जारी रहा, जिसमें 60 प्रवासी मजदूर शामिल थे। सभी मजदूरों को 201 रुपये प्रतिदिन मजदूरी दिया जाता था।
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