द स्लो मूवमेंट के
संस्थापक, नीलेश मिसरा ने हाल ही
में उत्तर प्रदेश के सीतापुर से गुड़ बनता हुआ एक वीडियो ट्वीट किया। इस ट्वीट के जवाब
में लोग अपने बचपन के दिनों को याद करने लगें। उन्होंने इसे नॉस्टेल्जिया यानी
बीते दिनों की भूली बिसरी लेकिन अच्छी यादों से जोड़ा। कुछ लोगों ने अपने उन दिनों
को याद किया जब वे बच्चे थे और अपने दादी-नानी के घर पर तरल गुड़ का आनंद लेते थे।
कुछ लोगों ने बंगाल में सर्दियों के दिनों में बेहद पसंद किए जाने वाले गुड़ नोलेन
(देसी खजूर से बना हुआ गुड़) का भी जिक्र किया। वहीं कुछ अन्य लोगों ने रोटी के
साथ गर्म पिघला हुआ गुड़ खाने की बात कही।
In Sitapur, Uttar Pradesh today with colleagues to visit our jaggery setup. So much nostalgia. Brought my daughter too, she is having the best time! Do you have memories of having hot gud गुड़? pic.twitter.com/OWVZj6ydo3
— Neelesh Misra (@neeleshmisra) December 14, 2020
वास्तव में, नीलेश मिसरा के नए वेंचर, ‘स्लो प्रोडक्ट्स’ के अधिकांश उत्पादों का एक मकसद यह भी है। बाजरे की कुकीज़ हो या शहद, ये ऐसे उत्पाद
हैं जो हमारे पूर्वजों द्वारा सदियों से उपयोग की जाती हैं। इन उत्पादों के जरिए
हमारी पुरानी यादें भी ताजा होती हैं। असल में स्लो प्रोडक्ट्स, द
स्लो मूवमेंट का ही एक हिस्सा है, जो कि अपने विभिन्न उत्पादों के ज़रिए लोगों के बचपन की यादों को ताज़ा करता
है।
नीलेश मिसरा ने हाल ही
में घोषणा की थी कि स्लो प्रोडक्ट्स भारतीय किसानों और उत्पाद निर्माताओं को
दुनिया भर के बाजारों से जोड़ेगा। ये उत्पाद ना सिर्फ शुध्दता के पैमाने पर खरे
उतरेंगे बल्कि इनकी कीमत भी वाजिब होगी। इसमें किसानों और उत्पादकों को उनकी उपज
की लागत के अलावा, शुद्ध लाभ का 10 प्रतिशत भी दिया जाएगा।
ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म स्लो
बाजार (www.slowbazaar.com) पर स्लो प्रोडक्ट्स उपलब्ध हैं, जहाँ से वे पूरे भारत में लगभग 27,000 पिन कोड इलाकों तक अपने उत्पाद पहुँचा सकते
हैं। आने वाले सालों में इसे भारत के बाहर अन्य देशों में भी पहुंचाने की योजना
है।
स्लो प्रोडक्ट के अंतर्गत
शहद (मल्टीफ्लॉवर, सरसो, शीशम, नीलगिरी, अजवाईन), बाजरा कुकीज़,
गाय का घी, आटा, अनाज और नारियल
तेल के अलावा खिलौने और हस्तशिल्प समेत कई तरह के उत्पाद आते हैं।
स्लो प्रोडक्ट्स के बारे
में बात करते हुए नीलेश मिसरा ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “स्लो प्रोडक्ट्स के ज़रिए हम ऐसे उत्पादों को
लोगों के सामने लेकर आ रहे हैं, जो बिल्कुल शुद्ध और किफायती हैं। ये उत्पाद
दूरदराज के गांवों के किसानों और उत्पादकों द्वारा बनाए गए हैं।” इसके साथ ही
उन्होंने यह भी बताया कि इसका मकसद ना सिर्फ लोगों को अच्छे उत्पाद उपलब्ध कराना
है बल्कि किसानों और उत्पादकों को इसकी सही कीमत भी मुहैया कराना है।
भारत के सबसे बड़े
ग्रामीण मीडिया प्लेटफ़ॉर्म गाँव कनेक्शन की ऑपरेशन हेड यामिनी मिसरा, स्लो प्रोडक्ट्स की सह-संस्थापक और सीईओ हैं।
अक्सर यामिनी से पूछा जाता है कि बाजार में शहद पर्याप्त मात्रा में क्यों उपलब्ध
नहीं है? उदाहरण के लिए
इस साल जामुन, नीम, लीची और तुलसी जैसे विशिष्ट ग्रीष्मकालीन शहद
बाजार में या तो उपलब्ध नहीं थे या इनकी आपूर्ति कम थी।
“साधारण मधुमक्खी पालक किसान, मधुमक्खी के बक्सों को उत्तराखंड, मध्यप्रदेश और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में नहीं ले जा सकते,
जहां हम आम तौर पर जाते हैं। कई लोगों को लगता
है कि शहद में मिलने वाला स्वाद उसमें अलग से जोड़ा जाता है। लेकिन असल में यह
स्वाद, फूलों का रस चूसने वाली
मधुमक्खियों की वजह से होता है,” यामिनी कहती हैं।
Launching soon: Slow Jaggery!
Organic jaggery coming soon at https://t.co/HBA6ppQyq1 — where lots else healthy and pure is available!
Slow Products is part of @TheSlowMovement pic.twitter.com/igiaYvPezr
— SlowProducts (@SlowProducts) December 14, 2020
यामिनी आगे बताती हैं कि
मधुमक्खी के बक्सों को सरसों के खेतों के बीच रखा जाता है। यहां मधुमक्खियां विचरण
करती हैं और फूलों का रस चूसकर उसे अपने दूसरे विशेष पेट में रख लेती हैं, जो
विशेष रूप से शहद के संग्रहण के लिए ही बना होता है। वे इस रस को “चबाने वाली”
मधुमक्खियों को देती हैं। चबाने वाली मधुमक्खियां रस इकट्ठा करती हैं और इसे लगभग 30 मिनट तक चबाती हैं। इस पूरी प्रक्रिया में
सरसों का फूल सबसे महत्वपूर्ण है जिसके ज़रिए शहद बन कर तैयार होता है।
इसी तरह स्लो प्रोडक्ट्स
की टीम ने गुड़ के तीनों रूपों – तरल गुड़ (राब), ठोस गुड़ और गुड़ का चूरन बनाने का फैसला किया है। गुड़
बनाने की प्रक्रिया में जो पहली चीज़ बनती है वह तरल गुड़ है जिसे स्थानीय भाषा
में राब भी कहा जाता है। इसके बाद घन आकार के खांचों की सहायता से ठोस गुड़ बनाया
जाता है। इसके साथ ही गुड़ का चूरन बनाने के लिए इसे और निर्जलीकृत किया जाता है।
“I am slowing down my life. Are you?”
Meet our co-founder and CEO, @yamini_misra
Next, we want you on our poster!Follow us and DM us your picture and a line or note on how you are slowing down your life!
And visit https://t.co/HBA6ppQyq1 pic.twitter.com/e4LqG7kegf— SlowProducts (@SlowProducts) December 11, 2020
यामिनी आगे बताती हैं,
“सबसे पहला काम हमने यह किया कि लोगों से पूछा
कि वे गुड़ में मिलावट किस तरह से करते हैं, तो लोगों ने बताया कि
इसका रंग हल्का करने के लिए इसमें सोडे का इस्तेमाल किया जाता है।”
स्लो प्रोडक्ट की बाजरे
के बिस्किट (मिलेट कुकीज) आजकल काफी लोकप्रिय है, लेकिन इसे लोकप्रिय होने में काफी मेहनत पूरी टीम को करनी पड़ी। यामिनी कहती
हैं, “हम इसमें केवल बाजरे का
इस्तेमाल करते हैं, जिसका बना बिस्किट
आसानी से बिखर जाता है। यही वजह है कि इसे एक जगह से दूसरे जगह पर भेजने में
दिक्कत आती है। लेकिन फिर हमने अंदाजा लगाया कि इसे किस तरह से ठीक किया जा सकता
है।” जब ये गुड़ दुकानों में आ जाएंगे, उसके बाद यामिनी बाजरे और गुड़ को साथ मिलाकर एक प्रयोग करने का सोच रही हैं।
कंपनी ने अपने सहयोगियों
के साथ मुनाफे को साझा करने के बारे में क्यों सोचा? इस सवाल का जवाब देते हुए यामिनी कहती हैं, “इससे किसानों की भागीदारी बढ़ेगी और उन्हें
गौरव की अनुभूति होगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे खुद को अपने शहरी
सहयोगियों के समकक्ष के रूप में देखेंगे। यामिनी ने कहा कि वास्तव में यह किसानों
के लिए ESOP [Employee Stock Ownership Plan-कर्मचारी स्टॉक स्वामित्व योजना] की तरह है।
Honey from nature’s lap.
Order Now: https://t.co/JoGtZ5H679 pic.twitter.com/NEfTyrL6KC— SlowProducts (@SlowProducts) December 15, 2020
स्लो प्रोडक्ट्स, भारत के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया प्लेटफ़ॉर्म
गांव कनेक्शन के नेटवर्क के माध्यम से सीधे किसानों की मदद करने के लिए एक पहल है।
इसके ज़रिए उन ग्रामीण समुदायों की मदद होगी जो मसाले, खाद्य उत्पाद, हस्तशिल्प, खिलौने और अन्य
चीजों का उत्पादन करते हैं। इससे उनकी आमदनी बढ़ेगी और उपभोक्ताओं को एक अच्छा उत्पाद
मिलेगा। कंपनी उन लोगों के कौशल और प्रतिभा को बढ़ावा देने में विश्वास करती है
जिन्हें किसी वजह से एक अच्छा प्लेटफार्म नहीं मिल पाया है। इसके साथ ही इससे उनकी
भी मदद होगी जिन्हें अपने काम को आगे बढ़ाने के लिए उचित ऋण या मुआवजा नहीं मिल
पाता है। इसका मकसद गांव कनेक्शन के स्थापित नेटवर्क के माध्यम से, ग्रामीण कारीगरों व उत्पादकों को एक पहचान देना
है।