“आप मे से अगर कोई संत नगर बुराड़ी से हो तो कृपया वहां एक मजदूर परिवार को मदद की जरूरत है। परिवार में कुल 5 सदस्य हैं, जिसमें पति-पत्नी और तीन बच्चे हैं। काम ना होने की वजह से वे लोग इस समय काफी परेशानी का सामना कर रहे हैं। घर में खाने-पीने का कुछ भी नहीं बचा है। उनकी मदद करें।”
प्रभावित मजदूर के नाम और मोबाइल नंबर के साथ फेसबुक पर एक ऐसा पोस्ट किया जाता है और एक घंटे में ही मजदूर के घर तक सहायता पहुंच जाती है। ठीक ऐसे ही आगरा के निकट कासगंज से एक व्यक्ति फेसबुक पर बताता है कि उसकी किडनी ट्रांसप्लांट की दवाइयां आस-पास के बाजार सहित आगरा में भी मौजूद नहीं है। उन्हें इस दवाई की सख्त जरूरत है क्योंकि यह एक इमरजेंसी दवा है। सोशल मीडिया के लोग उन्हें भी दिन भर के अंदर दवा पहुंचाने का आश्वासन देते हैं।
पूरी दुनिया भर में फैल चुकी कोरोना वायरस से एक जंग सोशल मीडिया पर भी लड़ी जा रही है। लॉकडाउन की वजह से देश के अलग-अलग हिस्सों में लोग इधर-उधर फंसे हुए हैं। इससे खासकर कामगार वर्ग प्रभावित है, जो रोज की कमाई से अपना पेट भरता है। लॉकडाउन की वजह से इनके पास खाने-पीने और राशन की समस्या पैदा हो गई है। आस-पास दुकानें तो खुल रही हैं लेकिन राशन खरीदने के लिए इनके पास पैसे नहीं हैं।
सरकार ऐसे कमजोर तबकों तक राशन-पानी मुहैया कराने की कोशिश कर रही हैं। वहीं कई लोग ऐसे भी हैं, जो सरकारी योजनाओं से वंचित रह जा रहे हैं। इसमें खासकर प्रवासी मजदूर हैं जो कि अपने घर-गांव से सैकड़ों किलोमीटर दूर मजदूरी के लिए जाते हैं। इनके पास सरकारी योजनाओं के लिए कोई कागज नहीं होता है। ऐसे में ये लोग भूखे-प्यासे ही दिन काटने को मजबूर हैं। सोशल मीडिया पर तमाम लोग ऐसे लोगों तक मदद पहुंचा रहे हैं।
दरअसल सोशल मीडिया खासकर फेसबुक पर किसी ग्रुप या पोस्ट द्वारा एक ऐसा चैन तैयार किया जा रहा है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति के शहर के किसी सक्षम व्यक्ति तक संपर्क स्थापित किया जाए। यह सक्षम व्यक्ति कोई सरकारी अधिकारी, कोई एनजीओ या कोई व्यक्ति हो सकता है। इसी चेन के जरिये भूखे-प्यासे और गरीब लोगों तक खाना-पानी और राशन उपलब्ध कराया जा रहा है।
फेसबुक पर ऐसा ही एक ग्रुप ‘कोरोना वारियर्स’ नाम से सक्रिय है। महज चार दिन पहले बने इस ग्रुप में लगभग 4500 लोग जुड़ गए हैं। इस ग्रुप के द्वारा जम्मू कश्मीर से तमिलनाडु और गुजरात से लेकर असम तक लोगों तक मदद पहुंचाई जा रही है।
ऐसे ही एक मजदूर से गांव कनेक्शन ने बात की। आश मोहम्मद नाम के इस मजदूर ने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया कि उनके साथ झारखंड के लगभग 200 मजदूर लुधियाना में फंसे हुए हैं। उनके पास खाने-पीने का कोई राशन नहीं है। आश मोहम्मद ने स्थानीय प्रशासन से इस बारे में फोन करके मदद मांगी। इसके अलावा उन्होंने झारखंड के अपने स्थानीय विधायक से भी संपर्क किया लेकिन कोई मदद नहीं मिला।
ऐसे समय में उन्होंने एक पत्रकार से संपर्क किया, जो कि कोरोना वारियर्स नाम के ग्रुप से जुड़े हुए थे। ग्रुप पर आश मोहम्मद और 200 अन्य मजदूरों की तकलीफें पोस्ट होने पर लोगों ने तुरंत सक्रियता दिखाई और एक स्थानीय एनजीओ की मदद से उन्हें राशन उपलब्ध कराया गया। ऐसा ही मेरठ में रहने वाले बिहार के लगभग 300 मजदूरों के लिए किया गया।
#गुवाहाटी@JhaRahul_Bihar भैयाजी को कोटि-कोटि धन्यवाद।
आपकी जितनी तारीफें की जाए कम हैं।
आज आपके प्रयास से उन्हें(25लोग) को, #आटा #चावल #आलू #तेल व अन्य सामग्रियां मिल गयी। उन्होंने आभार जताया हैं। 😊🙏@SanjayJhaBihar https://t.co/WeELbt3Qzk pic.twitter.com/M4Bj6BtPho— प्रशांत भारती 🇮🇳 😊 (@Bhart_09) March 30, 2020
इस ग्रुप पर मिल रहे समर्थन और प्रतिक्रियाओं से खुश ग्रुप कॉर्डिनेटर अनुप्रिया नरायण सिंह गांव कनेक्शन से फोन पर बताती हैं, “यह मेरे लिए एक सुखद आश्चर्य का विषय है।” प्रयागराज में रहकर सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाली अनुप्रिया कहती हैं, “मेरे और मेरे साथियों द्वारा किया गया ऐसा पहला प्रयोग था। मुझे नहीं पता था कि यह सफल होगा। बस लोगों को परेशान देखकर लगा कि एक जैसी सोच वालों खासकर लोगों को मदद करने वालों को एक साथ आना चाहिए। इसलिए हमने इस ग्रुप का निर्माण किया।”
अनुप्रिया के साथ इस मुहिम में अंकिता सिंह, संदीप सिंह और अरूण राजपुरोहित प्रमुख रूप से शामिल हैं, जिन्हें ग्रुप के अन्य 4500 लोगों का सहयोग मिल रहा है। अनुप्रिया कहती हैं कि हमारा काम कुछ नहीं है, हमें घर से बाहर भी नहीं निकलना पड़ता। हमें बस कॉर्डनिशेन करना पड़ता है, जो हम सुबह 10 बजे से रात के दो बजे तक करते हैं। उन्होंने बताया कि इससे उनको रात में सोने से पहले काफी संतुष्टि मिलती है।
उन्होंने बताया कि इस मुहिम में कई पत्रकारों के जुड़ने से भी काफी मदद मिली है, क्योंकि उनका कॉन्टैक्ट देश के लगभग हर बड़े शहरों में होता है। बिहार के एक पत्रकार ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि चमकी बुखार और बिहार बाढ़ के समय भी सोशल मीडिया के माध्यम से दूर-दराज के इलाकों में मदद पहुंचाने में सहूलियत मिली थी। कोरोना के इस आपातकाल में भी सोशल मीडिया एक बड़ा सहारा बन रहा है।
इसके अलावा ट्वीटर पर भी तमाम गैर सरकारी और स्वयंसेवी संस्थाएं सक्रिय हैं, जो एक ट्वीट या फोन कॉल पर जरूरतमंदों तक सहायता पहुंचा रही हैं। ऐसी ही एक स्वयंसेवी संस्था ‘आजिविका मिशन’ है, जो गुजरात और राजस्थान में फंसे मजदूरों के लिए काम कर रही है।
We have been attempting to deliver rations to #Odia migrant workers in #Surat. There are over 800,000 Odia migrants in Surat, coming from #Ganjam alone, most of whom are employed in its #powerloom industry. https://t.co/KddQkMLsPV
‘आजिविका ब्यूरो’ की अमृता शर्मा ने गांव कनेक्शन से फोन पर बताया कि ना हम सिर्फ मजदूरों को सहायता उपलब्ध करा रहे हैं बल्कि उनकी स्थिति को ट्वीटर के माध्यम से दुनिया के सामने भी लाने की कोशिश कर रहे हैं। आजिविका मिशन ने केंद्र और राज्य सरकारों से मजदूरों के लिए एक मांग पत्र (डिमांड चार्टर) भी निकाला है, जिसका उद्देश्य है इस महामारी के दौरान और बाद में मजदूरों को आर्थिक और सामाजिक संकट से निकालना है। आप उस चार्टर को यहां पढ़ सकते हैं-