रूस की राजधानी मॉस्को स्थित एक विश्वविद्यालय ने कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने का दावा किया है। मॉस्को के सेचेनोव विश्वविद्यालय के अनुसार इस वैक्सीन का इंसानों पर सफल ट्रायल हो चुका है और यह कुछ दिनों में आम प्रयोग के लिए तैयार है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से अभी तक इस वैक्सीन की मंजूरी नहीं मिली है। जानकारों का मानना है कि इसमें अभी समय लग सकता है।
यह वैक्सीन सेचेनोव विश्वविद्यालय के गेमली इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी विभाग ने तैयार किया है। विभाग के निदेशक अलेक्सेंडर गिन्ट्सबर्ग ने रूसी समाचार एजेंसी स्पुतनिक को बताया कि यह इंसानी ट्रायल बीते 18 और 23 जून को चला, जिसमें क्रमशः 18 और 20 इंसानों पर इसका ट्रायल किया गया। उन्होंने बताया कि ये सभी लोग इस वैक्सीन का डोज लेने के बाद कोविड निगेटिव पाए गए और इन्हें आगामी 15 और 20 जुलाई को डिस्चार्ज कर दिया जाएगा।
🦠#Sechenov University has successfully completed tests on volunteers of the world’s first vaccine against #COVID19.
“The #vaccine is safe. The volunteers will be discharged on July 15 and July 20″, chief researcher Elena Smolyarchuk told TASS ➡️ https://t.co/jVrmWbLvwX pic.twitter.com/V8bon4lieR
— Russia in India (@RusEmbIndia) July 12, 2020
सितम्बर तक हो सकती है वैक्सीन उपलब्ध?
गिन्ट्सबर्ग ने कहा कि यह वैक्सीन कोरोना वायरस से लड़ने के लिए इंसानों में इम्युनिटी को बढ़ाएगी और इसका असर लंबे समय तक रहेगा। उन्होंने कहा कि इस वैक्सीन का डोज लेने के बाद इंसान कम से कम दो साल तक कोरोना वायरस से बचा रहेगा। वहीं एक अन्य वैज्ञानिक अलेक्जेंडर लुकाशेव ने रूसी न्यूज़ एजेंसी TASS को बताया कि इस परीक्षण के दौरान उनकी टीम का लक्ष्य सभी वालंटियर्स पर इसका सुरक्षापूर्वक ट्रायल करना था, जिसमें वे सफल भी रहें। उन्होंने कहा कि सुरक्षा के सभी मानकों पर इस वैक्सीन की जांच की जा चुकी है और हम इसमें सफल भी हुए। अब हमें इसके लिए आगे की परमिशन की जरूरत है ताकि यह सितंबर तक बाजार में उपलब्ध हो जाए।
इस ट्रायल को रूस की सरकार का भी साथ मिला है। रूसी रक्षा मंत्रालय इस ट्रायल पर लगातार नजर बनाए हुई है। रक्षा मंत्रालय के अनुसार यह ट्रायल 15 जुलाई को खत्म होगा। 13 जुलाई को वालंटियर्स के अंदर वैक्सीन का दूसरा हिस्सा डाला जाएगा ताकि लंबे समय तक इम्युनिटी बनी रहे। मंत्रालय ने बताया कि जिस पर ट्रायल किया गया उसमें सर्विसमैन, महिलाएं, स्वास्थ्य कर्मी और शहर के नागरिक शामिल रहें ताकि ट्रायल में विविधता बनी रहे।
WHO की मंजूरी का इंतजार
वैक्सीन बनने के बाद इसको विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से मंजूरी मिलने का इंतजार है। हालांकि जानकारों के मुताबिक यह इतना आसान नहीं होगा। सबसे पहला सवाल इस वैक्सीन के सभी जगह सफल होने की हो रही है। जानकारों का कहना है कि इस वैक्सीन का परीक्षण रूस के एक शहर में हुआ, इसलिए इसका दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के लोगों में क्या प्रभाव होगा यह देखने वाली बात होगी। डब्ल्यूएचओ बिना इसकी यूनिवर्सलिटी को जांचे, इसकी मंजूरी नहीं दे सकती। हो सकता है कि इसके अप्रूवल से पहले इसका दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में भी पहले क्लिनिकल और फिर ह्यूमन ट्रायल हो।
अगर ऐसा होता है तो रूस कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने वाला पहला देश हो जाएगा। चीन, अमेरिका, ब्रिटेन और भारत सहित दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में कोरोना वायरस के वैक्सीन बनने के अलग-अलग ट्रायल चल रहे हैं। कहीं यह ट्रायल प्रारंभिक, कहीं क्लिनिकल तो कहीं ह्यूमन ट्रायल के चरण में है।
रूस ने ही बनाई कोरोनाविर नाम की दवा
इससे पहले रूस की ही एक बायो-फार्मा कंपनी आर-फार्मा ने कोरोनाविर नाम की एक दवा तैयार करने का भी दावा किया था। कंपनी के अनुसार इस दवा के क्लिनिकल ट्रायल के बाद इसका कोरोना मरीजों पर भी सफल परीक्षण किया गया। यह दवा कोविड मरीजों में कोरोना वायरस की संख्या को रेप्लिकेट होने यानी बढ़ने से रोकती है।
आर-फार्मा कंपनी के अनुसार, उन्होंने इस दवा का सेवन करने और ना सेवन करने वाले मरीजों की तुलना की और पाया कि कोरोनाविर दवा लेने वाले मरीजों में 55 फीसदी तक का अधिक सुधार हुआ। इस दवा के क्लिनिकल ट्रायल में सामने आया कि दवा को लेने वाले लगभग 80 फीसदी मरीजों में यह वायरस 5 दिन के बाद नहीं मिलता है। कंपनी का दावा है कि यह विश्व की पहली ऐसी दवा है जो कोरोना मरीजों के लक्षणों को ना देखकर प्रमुखतः बीमारी को लक्ष्य बनाकर बनाई गई है।
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