अक्सर हम सुनते हैं कि गांव के प्रधान ने कुछ काम नहीं किया। आम बोलचाल में तो यह बहुत ही सामान्य सी बात हो गई है। लेकिन इस सामान्य सी बात के इतर कई प्रधान ऐसे भी हैं जो अपने बेहतर काम के लिए जाने जाते हैं। ऐसे ही एक ग्राम प्रधान हैं दिलीप त्रिपाठी।
उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के गांव हसुडी औसानपुर के प्रधान दिलीप त्रिपाठी को लगातार दूसरी बार नाना जी देशमुख राष्ट्रीय गौरव ग्राम सभा एवं पंडित दीन दयाल उपाध्याय पंचायत सशक्तिकरण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
ग्राम प्रधान दिलीप त्रिपाठी अपने काम के बारे में बताते हुए कहते हैं, ”2015 में जब मैं प्रधान बना तो लगा गलती हो गई। हर काम में कमिशन फिक्स होता था। ऊपर से गांव की राजनीति तो अलग ही होती है। लोग पैर खींचने में लगे रहते हैं। लेकिन मैं कुछ बेहतर करने की नियत से चुनाव लड़ा था।”
दिलीप त्रिपाठी बताते हैं, ”इसके बाद जिस तरीके से सांसद गांव को गोद लेते हैं, मैंने खुद के गांव को गोद लिया। सबसे पहले मैंने गांव के सरकारी स्कूल को अच्छा करने का प्लान तैयार किया, लेकिन दिक्कत यह थी कि ग्राम पंचायत के बजट में सरकारी स्कूल के लिए अलग से बजट नहीं आता है। बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से 10 हजार रुपए स्कूल की मरम्मत के लिए आते थे, लेकिन वो काफी नहीं थे।”
दिलीप आगे कहते हैं, ”फिर मैंने खुद के पास से और कुछ गांव के लोगों से मदद लेकर स्कूल को बेहतर करने का काम शुरू किया और देखते ही देखते स्कूल पूरी तरह से बदल गया। यहां मैंने लाइब्रेरी बनवाई, स्कूल की इमारत को बेहतर किया, शौचालय बनवाए। आज इस स्कूल में करीब 250 बच्चे पढ़ रहे हैं। इसमें से बहुत से सरकारी नौकरी करने वाले परिवार के बच्चे हैं।”
ग्राम प्रधान दिलीप त्रिपाठी बताते हैं, ”इतना ही नहीं हसुडी औसानपुर की एक पहचान ‘डिजिटल गांव’ की बनी है। यहां मैंने जीआईएस (जियोग्राफिकल इनफार्मेशन सिस्टम) मैपिंग भी करवाई। साथ ही सीसीटीवी और पब्लिक एड्रेस सिस्टम जैसे प्रयोग भी किए हैं।”
दिलीप त्रिपाठी के इस काम को देखते हुए पिछले साल उन्हें ‘नाना जी देशमुख राष्ट्रीय गौरव ग्राम सभा’ का पुरस्कार मिला था। इस पुरस्कार के मिलने के बाद उनकी मुलाकात सीएम योगी आदित्यनाथ से हुई थी। सीएम योगी से हुई मुलाकात को याद करते हुए दिलीप कहते हैं, ”महाराज जी (सीएम योगी आदित्यनाथ) ने मुझसे कहा अपना स्कूल दिखाओ। मैंने उन्हें जब तस्वीर दिखाई तो वो बोले- यह तो कोई कॉन्वेंट स्कूल है, मुझे सरकारी स्कूल दिखाओ। मैंने उनसे कहा, महाराज जी यही गांव का स्कूल है। इतना सुनने के बाद वो आश्चर्य से मेरी ओर देखने लगे।”
उन्होंने बताया, ”मैंने प्रधान बनने के बाद अपने खर्च पर गुजरात के कुछ मॉडल गांव का दौरा किया। वहां जाकर समझा कि आखिर कौन से कदम उठाए जाएं जिससे गांव का विकास हो सके। इसके बाद मैंने गांव आकर लोगों से बताया कि हमारा गांव भी मॉडल गांव बन सकता है, बस साझा प्रयास की जरूरत है। फिर खुली बैठक में गांव की तस्वीर बदलने की रूपरेखा तैयार की गई।”
दिलीप कहते हैं, ”इसी बैठक में यह तय हुआ कि हम अपने गांव की सड़कों को कब्जेदारों से मुक्त कराएंगे। इसकी वजह से गांव के ही बहुत से लोग नाराज भी हुए, लेकिन हमारे लिए गांव का विकास जरूरी थी। ऐसे में कब्जा मुक्त कराकर सड़कें बनवाई गईं। साथ ही गांव के घरों को पिंक रंग से रंगा गया, जिसकी वजह से इस गांव की पहचान ‘पिंक विलेज’ के तौर पर बनी है।”