22 सितंबर को विपक्षी पार्टियों के भारी विरोध के बावजूद सरकार ने देश में श्रम क्षेत्र में ‘सुधार’ का दावा करते हुए लोकसभा में श्रम कानून से जुड़े तीन महत्वपूर्ण बिल पास कराए। इनमें सामाजिक सुरक्षा बिल 2020, आजीविका सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशा संहिता बिल 2020 और औद्योगिक संबंध संहिता बिल 2020 शामिल है।
श्रम और रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने विधेयकों को पेश करते हुए कहा कि सरकार ने श्रम एवं रोजगार संबंधी संसदीय स्थायी समिति की 233 सिफारिशों में से 174 को स्वीकार कर लिया है, इसलिए इन विधेयकों के स्वरूप में आमूल-चूल बदलाव आया है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि सरकार ने व्यापक अध्ययन और परामर्श के बाद ही इन विधेयकों को तैयार किया है। इनका मसौदा तैयार करते वक्त नौ त्रिपक्षीय बैठकें आयोजित की गई थी।
The Minister of State (I/C) Shri @santoshgangwar introduced three Labour Codes in Lok Sabha heralding the path of game changing labour welfare reforms in the country.#Atmanirbharshramik@PIB_India @mygovindia @PMOIndia @MIB_India pic.twitter.com/lix7lS5oL0
— Ministry of Labour (@LabourMinistry) September 19, 2020
हालांकि असंगठित क्षेत्र के लोगों के लिए काम करने वाली संस्था “वर्किंग पीपुल्स चार्टर” ने इन विधेयकों के वर्तमान स्वरूप को “मजदूर-विरोधी” करार दिया है। उनका कहना है कि इन विधेयकों के जरिए सरकार का इरादा श्रम सुरक्षा के ताबूत में आखिरी कील ठोंकना है।
कांग्रेस सहित प्रमुख विपक्षी दलों का भी कहना है कि ये श्रम कानून मजदूर विरोधी और पूंजीपतियों व उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने वाले हैं। पहले आर्थिक सुस्ती और फिर लॉकडाउन के बाद देश में श्रमिकों की हालत पहले से ही खराब है, ये श्रम कानून इन्हें और भी कमजोर बनाएंगे। कभी भी हायर और फायर की नीति के कारण कंपनियों को मनमानी करने का मौका मिलेगा।
साल 2019 में व्यापक विरोध के बावजूद वेतन संहिता विधेयक को पारित कर दिया गया था, जबकि तीन अन्य विधेयकों को कई दौरों की बातचीत और परामर्श के बाद हाल ही में 19 सितंबर को पूर्ण रूप से तैयार कर लिया गया। सरकार का दावा है कि उन्होंने श्रमिक यूनियनों की सभी मांगों को गंभीरता से इन बिलों में शामिल किया है। वहीं वर्किंग पीपुल्स चार्टर ने एक बयान में कहा है कि इन विधेयकों के वर्तमान स्वरूप में श्रमिक यूनियनों का लगभग कोई भी सुझाव सार्थक रूप से शामिल नहीं किया गया है। इसके साथ ही उनका यह भी दावा है कि यह विधेयक असंगठित क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा, जिनमें प्रवासी मजदूर भी शामिल हैं, के साथ ही स्व-रोजगार नियोजित श्रमिकों, घर पर काम करने वाले श्रमिकों और अन्य कमजोर समूहों को किसी भी तरह से सामाजिक सुरक्षा देने में बुरी तरह से विफल है।
श्रमिक यूनियनों को विधेयक से क्यों है आपत्ति?
सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 के संबंध में श्रमिक युनियनों की सबसे बड़ी चिंता यह है कि यह सामाजिक सुरक्षा को एक अधिकार के तौर पर महत्व नहीं देता है। संहिता की धारा 2 (6), 10 और उससे अधिक भवन व अन्य निर्माण श्रमिकों की पुरानी सीमा को बरकरार रखती है। इस विधेयक में “व्यक्तिगत आवासीय निर्माण कार्य” जो दैनिक मजदूरी के तौर पर बड़े स्तर पर लोगों को काम देता है, को संहिता के प्रावधानों से बाहर रखा गया है। इसके साथ ही भविष्य निधि के लिए केवल उन प्रतिष्ठानों को ही मान्य किया गया है, जहां 20 या अधिक कर्मचारी हों, जबकि लाखों सूक्ष्म और लघु उद्यमों को इसके दायरे से बाहर कर दिया गया है।
सीधे शब्दों में इसका मतलब यह है कि ऐसे कर्मचारी जो उन प्रतिष्ठानों में काम करते हैं जहां कर्मचारियों की संख्या 10 या इससे अधिक हो, केवल वे ही सामाजिक सुरक्षा कानून के तहत दावा कर सकते हैं। पुणे निवासी एक श्रमिक कार्यकर्ता चंदन कुमार कहते हैं कि इस देश में श्रम कानूनों की एक पारंपरिक राजनीति रही है, जो एक बड़ी संख्या में काम करने वाले लोगों को सामाजिक सुरक्षा कानूनों के दायरे से बाहर कर देती है।
चंदन कहते हैं कि कोरोनो वायरस (COVID-19) संकट के दौरान मजदूरों का जो बुरा हाल हुआ है उसे देखते हुए भारत सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए था और मजदूरों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सामाजिक सुरक्षा उपायों और मातृत्व लाभों पर बेहतर काम करना चाहिए था। लेकिन संसद में पेश किए गए तीनों विधेयकों में सरकार ने इसका बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखा है।
श्रमिक यूनियनों की यह भी मांग है कि अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों (विभिन्न राज्यों में काम के लिए जाने वाले श्रमिक) का अलग-अलग वर्गीकरण किया जाए। इसके साथ ही उनके कल्याणकारी कोष में योगदान के लिए एक उचित प्रणाली की व्यवस्था की जाए, जिसमें काम करने वाली इस अस्थायी आबादी के लिए सामाजिक सुरक्षा शामिल हो।
वर्तमान में अंतर-राज्य प्रवासी कामगार (रोजगार और सेवा की स्थिति का विनियमन) अधिनियम, 1979 अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों के रोजगार को नियंत्रित करता है। यह केवल पांच या अधिक प्रवासी श्रमिकों पर ही लागू होता है लेकिन नए प्रावधानों के अनुसार इस सीमा को बढ़ाकर दस कर्मचारी या उससे अधिक कर दिया गया है।
श्रमिक कार्यकर्ता यह भी आरोप लगाते हैं कि लोकसभा में पेश किए गए तीनों विधेयक इंट्रा-स्टेट माइग्रेंट वर्कर्स (यानी उसी राज्य के भीतर चल रहे पलायन) पर चुप हैं, जो देश में प्रवासी श्रमिकों की आबादी का एक बड़ा हिस्सा है।
खेतिहर मजदूर व्यावसायिक सुरक्षा से वंचित
व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थल स्थिति विधेयक 2020 व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कामकाजी परिस्थितियों को विनियमित करने वाले कानूनों को समेकित और संशोधित करने का प्रयास करता है। हालांकि वर्किंग पीपुल्स चार्टर के हालिया बयान में कहा गया है, ” यह विधेयक आर्थिक गतिविधियों की कई शाखाओं को छोड़ देता है, विशेष रूप से कृषि क्षेत्र जो भारत की कुल कार्यशील आबादी के 50% से अधिक हिस्से को रोजगार देता है।”
संस्था का आरोप है कि यह विधेयक असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों के एक बड़े हिस्से को छोड़ देता है। जैसे कि छोटी खदानें, होटल और छोटे भोजनालय, मशीनों की मरम्मत, निर्माण, ईंट-भट्टे, हथकरघे, कालीन या कारपेट निर्माण और ऐसे श्रमिक या कर्मचारी जो संगठित क्षेत्रों में अनौपचारिक तौर पर काम कर रहे हैं, जिसमें नए और उभरते क्षेत्रों जैसे आईटी और आईटीईएस, डिजिटल प्लेटफॉर्म, ई-कॉमर्स समेत कई क्षेत्र शामिल हैं।
श्रमिक यूनियनों ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का स्वागत किया है, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने दैनिक श्रमिकों और खेत मजदूरों सहित सभी श्रमिकों के लिए व्यावसायिक सुरक्षा और कार्यस्थल में बेहतर माहौल की भी मांग की है।
चंदन का कहना है कि महाराष्ट्र में गन्ना काटने वाले हजारों ऐसे श्रमिक हैं जो राज्य के भीतर ही एक जगह से दूसरी जगह पर पलायन करते हैं। वे बंधुआ मजदूरों की तरह काम करते हैं। इन श्रमिकों की कोई औपचारिक मान्यता नहीं है जिसकी वजह से उन्हें श्रमिकों को मिलने वाले लाभ नहीं मिल पाते। सरकार का हालिया विधेयक ऐसे श्रमिकों की भी उपेक्षा करता है।
दैनिक वेतन भोगी श्रमिक और खेत मजदूर पहले से ही असुरक्षित हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की हालिया वार्षिक रिपोर्ट 2019 में भारत में दुर्घटना से होने वाली मौतों और आत्महत्याओं के आंकड़ों के अनुसार देश में आत्महत्या से मरने वाले लगभग एक-चौथाई लोग दिहाड़ी मजदूर हैं। वहीं साल 2019 में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 10,281 है, जो कि देश के कुल 1,39,123 आत्महत्याओं का 7.4 प्रतिशत है। वहीं बीते साल आत्महत्या करने वाले किसानों में से लगभग 5,957 किसान थे, जबकि 4,324 (42 प्रतिशत) खेतिहर मजदूर थे।
रिपोर्ट के अनुसार कृषि क्षेत्र में आत्महत्या के सर्वाधिक मामले महाराष्ट्र में दर्ज किए गए जहां यह 38.2 प्रतिशत थी। इसके बाद कर्नाटक में 19.4 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश में 10 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 5.3 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में यह 4.9 प्रतिशत रहा।
यह विधेयक ऐसे श्रमिकों द्वारा स्व-घोषणा और डेटा शीट को भरने और उनका पंजीकरण करने की बात करता है, लेकिन यह विधेयक ये नहीं बताता कि इन चीजों को जमीने स्तर पर कैसे लागू किया जाएगा।
वर्किंग पीपुल्स चार्टर का कहना है कि इस विधेयक से जुड़ा एक अन्य विवादास्पद मुद्दा यह है कि यह ठेकेदारों पर श्रमिकों की सुरक्षा का दबाव डालता है न कि प्रमुख नियोक्ताओं या मालिकों पर। “सुरक्षा और स्वास्थ्य के संबंध में नियोक्ताओं पर कोई जिम्मेदारी तय नहीं करने की वजह से यह विधेयक मजदूरों के हित में नहीं हैं इसके साथ ही यह दैनिक और साप्ताहिक कार्य घंटों के लिए भी न्यूनतम मानक तय नहीं करता है।
हड़ताल करने का अधिकार
श्रमिक यूनियनों का दावा है कि औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक 2020 ‘मजदूर’ की परिभाषा को सीमित भी करता है। इसमें लाखों नए और मौजूदा श्रेणियों को वैधानिक औद्योगिक संबंध संरक्षण के दायरे से बाहर छोड़ दिया जाएगा, जिसमें प्लेटफॉर्म श्रमिक, प्रशिक्षु, आईटी श्रमिक, स्टार्टअप्स और लघु, कुटीर एवं मध्यम उपक्रम में कार्यरत, स्व-नियोजित श्रमिक, घर-आधारित श्रमिक, असंगठित और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिक, वृक्षारोपण श्रमिक व मनरेगा श्रमिक शामिल हैं।
इसके साथ ही दूसरी ओर, हड़ताल की परिभाषा के तहत किसी उद्योग में कार्यरत पचास प्रतिशत या उससे अधिक श्रमिकों द्वारा एक निश्चित दिन पर आकस्मिक अवकाश को शामिल किया गया है। यह श्रमिकों की प्रदर्शनों में भाग लेने की क्षमता को बाधित करता है।
यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक 2020 श्रमिकों पर ज्यादती करने के लिए मालिकों को खुली छूट देगी। इस विधेयक के अनुसार अब तीन सौ से कम कर्मचारियों वाली कंपनी सरकार से मंजूरी लिए बिना कर्मियों की जब चाहे छंटनी कर सकेंगी।
लोकसभा में श्रम विधेयक पेश किये जाने के दौरान सांसद शशि थरूर ने कहा कि यह विधेयक मज़दूरों के हड़ताल के अधिकार को प्रतिबंधित करता है और राज्य या केंद्र सरकारों को छंटनी करने की अनुमति देता है।”
हालांकि, श्रम और रोजगार मंत्री गंगवार ने लोकसभा को सूचित किया कि सरकार ने विभिन्न हितधारकों के साथ इन तीनों विधेयकों पर व्यापक विचार-विमर्श किया है और 6,000 से अधिक टिप्पणियां ऑनलाइन प्राप्त हुईं हैं। बाद में यह बिल स्थायी समिति को भी भेजा गया व उनकी 233 सिफारिशों में से 174 को स्वीकार कर लिया गया।
लोकसभा में श्रम संहिता विधेयक को पेश करते हुए सरकार ने श्रम क्षेत्र में ‘सुधारों’ का दावा किया लेकिन मजदूर यूनियन सरकार पर अनौपचारिक क्षेत्र और प्रवासी श्रमिकों की उपेक्षा करने का आरोप लगा रहे हैं।
चंदन कहते हैं कि, “यह विधेयक कामगारों को एक पहचान प्रदान करने में विफल हैं व सामाजिक सुरक्षा और कार्यस्थल पर सभी श्रमिकों के लिए सुरक्षित परिस्थितियों की व्यवस्था पर ध्यान नहीं देती हैं। लेकिन, हमें डर है कि अन्य विधेयकों की तरह सरकार बहुमत के बल पर इस विधेयक को भी पारित कर लेगी। सरकार के इस तरह के कदमों का विरोध करने के लिए एकजुटता की आवश्यकता है।”
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