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ग्रामीण झारखण्ड का सौर-ऊर्जा से युक्त यह अस्पताल कर रहा है कोरोना महामारी से मुकाबला

झारखण्ड के पलामू जिले में 100 बेड का नव जीवन अस्पताल आज कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में ग्रामीण झारखंड की अगुवाई कर रहा है।
#Jharkhand

– लॅन्विन कांसेसो, धीरज कुमार गुप्ता , पामली डेका

एक तरफ जहां दुनिया के स्वास्थ्य विशेषज्ञ कोविड-19 महामारी के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों के सामने खड़े खतरे को लेकर चिंता जताते हुए इससे निपटने के लिये सरकार की तरफ से व्यापक रणनीति अपनाने की जरूरत पर जोर दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर झारखण्डर के सुदूर क्षेत्र में सीमान्त समुदायों के लिये खोला गया एक अस्पताल संकट को लेकर तैयारी की राह दिखा रहा है। झारखण्ड के पलामू जिले में 100 बेड का नवजीवन अस्पताल आज कोविड-19 के खिलाफ ग्रामीण झारखंड की लड़ाई की अगुवाई कर रहा है।

इस अस्पताल को वर्ष 1961 में राज्य के दो सबसे पिछड़े जिलों पलामू और लातेहार को सुविधा देने के लिए स्थापित किया गया था। इस दौरान अस्पमताल ने स्थानीय समुदायों की आवश्यकताओं की पूर्ति और अपने सेवाओं में बढ़ोतरी के लिये अनेक कदम उठाये। आज पूरे क्षेत्र में एकमात्र यही अस्पाताल है, जहां एक्यूट केयर यूनिट है और यहां ट्यूबरकुलोसिस यानी क्षय रोग जैसी संक्रामक बीमारी के भी इलाज की सुविधा है।

ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित ज्यादातर अस्पतालों की तरह नवजीवन को भी इन सुविधाओं के सुगम संचालन के लिये अनेक बाधाओं और चुनौतियों से जूझना पड़ा, खासकर अनियमित बिजली आपूर्ति और वोल्टेज का लगातार कम-ज्यादा होना। जनवरी 2020 में इसके परिसर में लगाये गये 10 किलोवॉट उत्पादन क्षमता के सौर ऊर्जा (पीवी) सिस्टम ने इस अस्पताल को एक नयी जिंदगी दी है। इस सौर ऊर्जा प्रणाली से अस्पताल की ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय सुधार आया है और उसके संचालन को भी स्थायित्व मिला है।

अस्पताल में सौर ऊर्जा प्रणाली बहुत सही समय पर लगायी गयी है। वर्ष 2020 में कोरोना वायरस के रूप में एक अभू‍तपूर्व संकट ने तेजी से पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है और सरकारें शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में सक्षम चिकित्सा सहयोग स्थापित करने के लिये संघर्ष कर रही हैं, ऐसे में राजधानी रांची से 120 किलोमीटर दूर यह छोटा सा अस्पताल संकट से निपटने के लिये तैयार है।

झारखण्ड सरकार ने अप्रैल के शुरू में नवजीवन अस्पताल को कोविड-19 के मद्देनजर मुख्य स्वालस्थ्य केन्द्र के तौर पर चिह्नित किया था। इस क्षेत्र के 450 गांवों को इसके दायरे में लिया गया था। राज्य सरकार के मार्गदर्शन में इस अस्पताल में कोरोना के संदिग्ध और पुष्ट मामलों के लिये बेड तैयार किए गए हैं। कोविड-19 संक्रमण के पुष्ट मामलों के इलाज के लिये सुविधाएं बढ़ायी गई हैं और गम्भीर मरीजों के लिये इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) में चार बेड आरक्षित किये हैं।

यह कदम भी सही समय पर उठाया गया। पलामू, झारखण्ड के 24 में से 21वां जिला है जो कोविड-19 से प्रभावित हुआ है। गत 25 अप्रैल को पलामू में कोविड-19 के तीन पुष्ट मामले सामने आये थे। लगभग एक महीने बाद, नवजीवन अस्पताल में भर्ती होने की पुष्टि होने वाले मामलों की संख्या 15 है, जिनमें से सभी को अस्पताल से अब रिहा किया गया है।

जरूरी हैं ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं

कोविड-19 ने पूरे देश में अपने पैर पसार लिये हैं। अब तक (01 जून) देश भर में इस संक्रमण के 190,000 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं और 5,408 लोगों की मौत हो चुकी है। ऐसे में इस वायरस के विस्तार को रोकने के लिये एक ठोस और भरोसेमंद चिकित्सा तंत्र को बेहद जरूरी माना गया है।

देश की अर्थव्यवस्था शहरों में स्थित वित्तीय केन्द्रों से चलती है। इसे देखते हुए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि इस संकट से निपटने के ज्याादातर प्रयास नगरीय क्षेत्रों पर ही केन्द्रित है। बहरहाल, देश की 66 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है। ऐसे में ग्रामीण स्वास्थ्य के मूलभूत ढांचे को संकट के लिये फौरन तैयार करना बेहद आवश्यंक है। आंकड़ों से पता चलता है कि द्वितीय और तृतीय श्रेणी के शहरों में कोविड-19 के करीब 50 प्रतिशत पुष्ट मामले (01 जून 2020) हैं। झारखण्ड में 75 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है। इस राज्य में पहले से ही कोविड-19 संक्रमण के लगभग 80 प्रतिशत पुष्ट मामले रांची से बाहर के हैं। इस राज्य में संक्रमण के मामले औसत दर से अधिक तेजी से बढ़ रहे हैं। चूंकि शहरों से प्रवासी मजदूरों का ग्रामीण तथा अर्द्धनगरीय इलाकों में आना जारी है, ऐसे में उनका स्थानीय आबादी से मेलजोल होने पर संक्रमण का खतरा और भी बढ़ सकता है। इससे पहले से ही दबाव में जी रहे समुदायों में पॉजिटिव मामलों की संख्याे बढ़ सकती है।

किसी भी सामान्य दिन में दूर-दराज के इलाकों में स्थित स्वास्थ्य केन्द्रों को गम्भीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उनके बेहद दूर होने, संसाधनों, दवा एवं उपकरण की आपूर्ति सीमित होने, स्टॉफ की कमी होने और अन्य तमाम मुश्किलों की वजह से ये दिक्कतें हो रही है। अब कोविड-19 संक्रमण के इस दौर में ये अस्पताल इससे निपटने के लिये जूझ रहे हैं। उनके पास प्रमुख आपदाओं से निपटने का कोई प्रत्यक्ष अनुभव या समझ नहीं है। साथ ही उनके पास संक्रमण के संदिग्ध मामलों से निपटने के लिये प्रबन्ध का भी कोई साधन नहीं है। नवजीवन अस्पताल ने हाल के वर्षों में अपनी सेवाओं को बेहतर बनाने के लिये प्रेरणादायक कदम उठाकर और हाल ही में अपने यहां बिजली तंत्र को विकेन्द्रित सौर ऊर्जा से युक्त करके इस ग्रामीण अस्पताल में आपदा प्रबन्धन की क्षमताओं को सुधारने और आत्मनिर्भरता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

संकट की तैयारी के लिये भरोसेमंद बिजली व्यवस्था

नवजीवन की प्रगति और सुविधाओं में उन्नति कोई एक रात में घटी घटना नहीं है, बल्कि यह वर्षों की समझदारीपूर्ण योजना और पूर्वविवेक का नतीजा है। कई सालों तक, अस्पताल ने सीमित बुनियादी सुविधाओं के कारण फ्लैशलाइट और पेट्रोमैक्स लैंप की रोशनी में सर्जरी और प्रसव कराये हैं। स्थिति में सुधार के साथ इसमें तीन-चरण ग्रिड कनेक्शन मिले, हालांकि लगातार और लंबे वक्त तक बिजली कटौती और वोल्टेज में उतार-चढ़ाव की वजह से अस्पताल के कार्य संचालन में बाधा उत्पन्न होती रही। इसके अलावा, मानसून के दौरान बिजली ग्रिड को अनिवार्य रूप से नुकसान होने से लंबे समय तक बिजली की कटौती होती रही, जिससे अस्पताल डीजल जनरेटर पर निर्भर थे जो काफी खर्चीले (वार्षिक डीजल ईंधन खर्च 10 लाख रुपये तक) थे और प्रदूषण भी फैलाते थे।

ऐसे में जब अस्पताल प्रशासन विकल्पों की तलाश कर रहा था, तभी टीम में शामिल एक डॉक्टर ने इस साल की शुरुआत में एक महत्वपूर्ण निवेश किया और अपने पहले सौर पीवी सिस्टम की स्थापना के लिए धन दिया। यह 10 किलोवॉट उत्पादन क्षमता वाली सौर ऊर्जा प्रणाली अब अस्पताल में सबसे महत्वपूर्ण जरूरतों में से कुछ के संचालन में मदद करती है। यह कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए आवश्यक उपकरण चलाने में बिजली के प्राथमिक स्रोत के रूप में कार्य करता है। सौर ऊर्जा आईसीयू वेंटिलेटर को बिजली देता है और आपात स्थिति के लिए राज्य से खरीदे गए अतिरिक्त वेंटिलेटर भी संचालित कर सकता है।

भरोसेमंद स्वास्थ्य प्रणाली की जरूरत

पूरी दुनिया में कहर बरपाने वाली कोविड-19 महामारी भारत के ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे के लिये टर्निंग प्वाइइंट साबित हो सकती है, बशर्ते हम इससे सीख लें और सतत तथा कम खर्चीली बिजली प्रणालियों के जरिये अपनी क्षमताओं को बढ़ाने की कोशिश करें। ‘कोई भी पीछे छूट न जाए’ के मूलमंत्र पर ज्यादा ध्यान देना होगा और अपनी स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों को भरोसेमंद बनाते हुए उन्हें किसी भी मुश्किल समय के लिये और तैयार करना होगा।

नव जीवन अस्प‍ताल एक उदाहरण पेश करता है कि ग्रामीण अस्पताल किस तरह से विश्वसनीय ऊर्जा तक बेहतर पहुंच के साथ-साथ अपनी बुनियादी और क्रिटिकल-केयर सेवाओं को बेहतर बना सकते हैं। विकेन्द्रीकृत अक्षय ऊर्जा ग्रामीण अस्पतालों को निर्बाध सेवाओं, डीजल लागत और प्रदूषण को कम करने के साथ-साथ दक्षता में सुधार कर सकती है। इसे प्राप्त करने के लिए एकीकृत नीतियों, टिकाऊ प्रौद्योगिकीय समाधानों और नवीन वित्तपोषण मॉडल के माध्यम से लचीली स्वास्थ्य सेवा वितरण प्रणालियों की आवश्यकता पर राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय संवाद करना महत्वपूर्ण है।

इस लेख के लेखकगण वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टी्ट्यूट इंडिया (डब्ल्यूआरआई) के ऊर्जा कार्यक्रम का हिस्सा है। डब्ल्यूआरआई वर्तमान में भारत के कुछ सबसे पिछड़े क्षेत्रों में विकास के लिए ऊर्जा की भूमिका का अध्ययन कर रहा है। झारखंड में यह नव जीवन जैसे ग्रामीण अस्पतालों के साथ काम कर रहा है ताकि बिजली के विश्वसनीय, टिकाऊ और किफायती स्रोत तक पहुंच में सुधार हो सके। IKEA फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित, इस परियोजना का उद्देश्य भारत और पूर्वी अफ्रीका में 1 मिलियन लोगों तक स्वच्छ बिजली पहुंचाना है।

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