कोरोना लॉकडाउन की वजह से भारत की बेरोजगारी दर में बेतहाशा वृद्धि हो सकती है। इसको लेकर सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने अपने रिपोर्ट्स के जरिये चेतावनी जारी की है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार भारत के असंगठित क्षेत्र के 40 करोड़ से अधिक श्रमिक कोरोना से हुए लॉकडाउन से प्रभावित हो सकते हैं। जिससे उनका रोजगार और कमाई प्रभावित होगा।
इस रिपोर्ट के अनुसार, “भारत, नाइजीरिया और ब्राजील के साथ उन देशों में शामिल है, जो इस महामारी से उत्पन्न होने वाली स्थितियों से निपटने के लिए अपेक्षाकृत सबसे कम तैयार थे। इस वजह से इसका असर देश के अंसगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों पर पड़ेगा और वे बेरोजगारी और गरीबी के गहरे दुष्चक्र में फंसते चले जाएंगे।”
गौरतलब है कि लॉकडाउन को लागू करते वक्त पीएम नरेंद्र मोदी ने सभी नियोक्ताओं को अपने कर्मचारियों को बनाए रखने और उन्हें समय से पूरा वेतन जारी करने की एडवायजरी जारी की थी। लेकिन लॉकडाउन होने के बाद से ही तमाम संगठित और असंगठित क्षेत्रों से वेतन कटौती और छंटनी की खबरें आने लगी हैं।
आईएलओ के निदेशक जनरल गाई रायडर ने अपने बयान में कहा, “कोरोना संकट के कारण इस समय कामगार और कारोबार दोनों भयावह वक्त का सामना कर रहे हैं। इस संकट को खत्म करने के लिए सरकारों को तेजी से कदम उठाने होंगे। सही दिशा में उठाया गया कदम ही इस समय में निर्णायक साबित होगा।”
उन्होंने आगे कहा, “यह दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा संकट और पिछले 75 वर्षों के दौरान अंतरराष्ट्रीय सहयोग की सबसे बड़ी परीक्षा है। यदि कोई एक देश विफल होगा, तो हम सभी विफल हो जाएंगे। हमें ऐसे समाधान खोजने होंगे जो वैश्विक समाज के सभी वर्गों की मदद करें। विशेष रूप से उनकी जो सबसे कमजोर हैं या जो अपनी मदद करने में खुद सक्षम नहीं हैं।”
New @ILO data shows the impact of #COVID19 is expected to wipe out the equivalent of 195 million full-time jobs.
Workers and businesses are facing catastrophe in developed and developing economies. We must act fast, decisively and together.
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— Guy Ryder (@GuyRyder) April 7, 2020
आईएलओ की इस रिपोर्ट में भारत में प्रवासी मजदूरों के रिवर्स माइग्रेशन का भी जिक्र है, जिसमें प्रवासी मजदूर लॉकडाउन की घोषणा होने के बाद अपने गांवों की तरफ लौटने लगे।
वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत करीब से नजर रखने वाली एजेंसी सीएमआईई ने भी एक रिपोर्ट जारी कर बताया है कि मार्च, 2020 में भारत में बेरोजगारी दर 8.7% रही, जो कि पिछले 43 महीनों मे सबसे अधिक है। सीएमआईई की रियल टाईम मीटर के अनुसार वर्तमान में भारत में बेरोजगारी की दर 23 फीसदी से ऊपर पहुंच गई है।
सीएमआईई की इस रिपोर्ट में संस्था के प्रबंध निदेशक महेश व्यास ने कहा, “बेरोजगारी के के ये आंकड़े डराने वाले और चिंताजनक हैं। देश में रोजगार के मौके लगातार कम हो रहे हैं। यही कारण है कि मार्च, 2020 में श्रम भागीदारी दर या देश में सक्रिय कार्यबल (LPA) भी घटकर 41.9 फीसदी तक पहुंच गई, जो कि जनवरी में 42.96 फीसदी थी।”
महेश व्यास आगे बताते हैं कि मार्च, 2020 में लगभग 90 लाख लोग सक्रिय कार्यबल या श्रम भागीदारी से बाहर हुए। सक्रिय श्रम बल का आंकड़ा जनवरी, 2020 में 44.3 करोड़ था जो कि मार्च में घटकर 43.9 करोड़ हो गया। इसका साफ अर्थ है कि लगभग 90 लाख लोगों का रोजगार मार्च के महीने में प्रभावित हुआ।
महेश व्यास लॉकडाउन को इसकी प्रमुख वजह मानते हैं, जिसकी वजह से कुछ प्रमुख सेक्टरों को छोड़कर अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ठप है। महेश व्यास का मानना है कि कोरोना और लॉकडाउन के कारण यह आंकड़े अगले आने वाले महीनों में और बढ़ेंगे।
इक्रा का अनुमान, भारत की जीडीपी विकास दर होगी सिर्फ 2 फ़ीसदी
वहीं इन्वेस्टमेंट एंड क्रेडिट रेटिंग एजेंसी (ICRA) का अनुमान है कि जनवरी-मार्च 2020 की तिमाही के दौरान भारत की विकास दर 4.5% तक नीचे जाएगी। जिस कारण भारत का सकल घरेलू विकास दर 2020-21 सत्र में 2 फ़ीसदी तक रह सकता है।
इक्रा के उपाध्यक्ष शमसेर दीवान के अनुसार, “कोविड-19 महामारी के कारण मांग में गिरावट, लोगों की क्रय शक्ति में कमी, छंटनी और वेतनों में कटौती हो सकती है। इसके अलावा दूसरे देशों में भी पूर्ण या आंशिक लॉकडाउन की स्थिति के कारण तेल एवं गैस जैसी वस्तुओं के निर्यात में भी गिरावट आएगा, जिससे अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी और जीडीपी में गिरावट आएगा।”
दुनिया भर में लगभग 19.5 करोड़ नौकरियों को खतरा
उधर आईएलओ ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि कोरोना महामारी का वैश्विक स्तर पर प्रसार होने से काम के घंटों और कमाई पर प्रभाव पड़ा है। दुनिया भर में आंशिक या पूर्ण लॉकडाउन की वजह से पांच में से चार लोग (लगभग 81 फीसदी लोग) प्रभावित हुए हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, “वर्तमान कोरोना संकट के कारण 2020 की दूसरी तिमाही (अप्रैल-जून) में 6.7 प्रतिशत कामकाजी घंटे समाप्त होने की आशंका है, जिससे लगभग 19.5 करोड़ नौकरियां खत्म हो सकती हैं।”
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