सब कुछ सही चल रहा था। मै कॉलेज में अपनी पढ़ाई का आनंद ले रहा था। फरवरी के बीच में मैंने कोरोना वायरस के बारे में थोड़ा-बहुत सुनना शुरू किया। तब यह मुख्य रूप से सिर्फ चीन में था। लेकिन अचानक 22 फरवरी को हमने सुना कि मिलान के करीब एक शहर में कुछ लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। अगले दिन रविवार को हमें विश्वविद्यालय की तरफ से एक ई-मेल मिला कि हमारे क्षेत्र लोम्बार्डी में सभी विश्वविद्यालय बंद होंगे। हालांकि ऑनलाइन कक्षाओं के जारी रहने की बात कही गई।
शुरू में यह सब ठीक लग रहा था। हमें लग रहा था कि यह सब जल्द ही बीत जाएगा, क्योंकि यह ‘सिर्फ एक फ्लू’ है। कुछ दिन बाद मैंने अपनी खिड़की से महसूस किया कि सड़कें थोड़ी खाली हैं, हालांकि अभी भी मुझे कुछ बड़ा होता नहीं दिख रहा था। लेकिन कुछ ही समय में कोरोना मामलों की संख्या बढ़ने लगी और यातायात और कम होने लगा। उस समय हमने मिलान में किसी भी पॉजिटिव केस के बारे में नहीं सुना था। इसलिए शाम को लोग अभी भी चिल कर रहे थे, बाहर जा रहे थे और अपने जीवन का आनंद ले रहे थे। 23 फरवरी वह दिन था जब मैं आखिरी बार कुछ किराने का सामान खरीदने बाहर निकला था।
एक छात्र के रूप में मैंने यह जरूर महसूस किया कि विश्वविद्यालय हमारी कक्षाओं को बंद करने और ऑनलाइन कक्षाओं का निर्णय लेने में बहुत तत्पर थी। लेकिन उसी समय अन्य सेवाएं सामान्य रूप से चल रही थीं। मैं घर से बाहर कदम नहीं रख रहा था और जो भी संभव हो सावधानी बरत रहा था क्योंकि मैं इटली में और खासकर मिलान के आसपास के शहरों में तेजी से बढ़ रहे मामलों को देख सकता था।
घर में कैद हुए मुझे एक सप्ताह से अधिक का समय हो गया था। स्काइप और अन्य माध्यमों से क्लास करना, विश्वविद्यालय द्वारा दिए गए असाइनमेंट्स पूरा करना और कोई वेब सीरीज या फिल्म देखना, यही मेरी दिनचर्या रह गई थी। सिर्फ दूध और सब्जी खरीदने के लिए हर चार दिन में मुझे घर से बाहर निकलना पड़ता था क्योंकि लंबे समय तक ऐसे खाद्य पदार्थों का स्टॉक करना मुश्किल था।
मैं बहुत ही सामाजिक व्यक्ति हूं। इसलिए अब घर के अंदर बंद होना उबाऊ हो रहा था। लोगों से व्यक्तिगत रूप से नहीं मिलना-जुलना, उनसे बात नहीं करना, ये सब मुश्किल हो रहा था। लेकिन फिर भी भविष्य को लेकर मैं आशातीत था। एक सप्ताह के बाद 8 मार्च को मैं और मेरे कुछ सहपाठी एक वर्कशॉप में भाग लेने के लिए दो सप्ताह के लिए एंटवर्प (बेल्जियम) की यात्रा करने वाले थे। मैं बहुत उत्साहित और खुश था कि मैं मिलान से बाहर जाऊंगा और बेल्जियम में सुरक्षित रहूंगा।
लेकिन अगले तीन दिनों में इटली में बढ़ते कोरोना वायरस के मामलों के कारण उस वर्कशॉप को रद्द कर दिया गया और यह घोषणा की गई कि इसे ऑनलाइन आयोजित ही किया जाएगा। यह वास्तव में निराशाजनक था। लेकिन मैं स्थिति की गंभीरता को भी समझ रहा था क्योंकि अब इटली सहित दुनिया भर में इसके मामले बढ़ रहे थे।
हालांकि मैं वर्कशॉप में भाग ले रहा था लेकिन यह उतना मजेदार नहीं था, जितना हो सकता था। मैं अपने शरीर को निष्क्रिय महसूस कर रहा था। बाहर स्थिति भी काफी गंभीर थी। सुपरमार्केट खाली थे। हर दूसरे दिन भारत के मेरे सहपाठी फोन करते थे और चर्चा करते थे कि क्या हमें भारत वापस जाना चाहिए? लेकिन मुझे लग रहा कि मैं अंदर ही अधिक सुरक्षित हूं। हवाई अड्डे पर जाने से संक्रमित होने का खतरा बहुत अधिक था।
मैंने इटली और दूसरे देशों के सहपाठियों से भी बात की। हालांकि सभी परेशान थे, लेकिन आम धारणा यह थी कि यह जवान लोगों को प्रभावित नहीं करेगा। 7 मार्च की शाम को हम में से कुछ अगले दिन एक पार्क में मिलने की योजना बना रहे थे क्योंकि मौसम बढ़िया था। हमें नहीं पता था कि उसी रात हमें मिलान के लंबे समय तक (8 मार्च से 3 अप्रैल) लॉकडाउन होने की खबर मिलेगी।
अब मैं गंभीरता से विचार कर रहा था कि क्या मुझे भारत वापस जाना चाहिए या नहीं। इस पर मैं अपने पिता के साथ चर्चा करना चाह रहा था। लेकिन उस वक्त वहां रात के 11 बज और भारत में 3 बज रहे थे। इसलिए मैंने उन्हें सुबह तक कॉल करने का मन बनाया। लेकिन अगली सुबह इससे पहले कि मैं जागता मेरे मोबाइल में पिता का एक संदेश था। वह मुझसे मिलान छोड़ने को कह रहे थे क्योंकि मिलान लॉकडाउन होने जा रहा था। लेकिन मुझे नहीं पता था कि मुझे मिलान छोड़ने और भारत वापस जाने की अनुमति दी जाएगी या नहीं। मैंने मिलान में भारतीय वाणिज्य दूतावास और रोम में भारतीय दूतावास से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन असफल रहा क्योंकि वह रविवार का दिन था।
मैंने मिलान से नई दिल्ली की उड़ानों की तलाश शुरू की और मिलान में विमान सेवाओं और हवाई अड्डा प्राधिकरण से भी संपर्क करने की कोशिश की। लेकिन कहीं से भी मैं सफल नहीं हुआ। मुझे पता था कि अगर मैं मिलान नहीं छोड़ सकता, तो टिकट खरीदने का भी कोई मतलब नहीं। इसलिए मैंने बस अपने बैग में कुछ कपड़े डाले और हवाई अड्डे तक पहुंच गया।
जब मैं एयरपोर्ट पहुंचा, तो वह सुनसान था इसलिए मेरी चिंताएं बढ़ गईं। हालांकि जब मैंने मैंने हवाई अड्डे पर तैनात अधिकारियों से बात की तो उन्होंने मुझे बताया कि अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें अभी भी चल रही हैं। मैंने जल्दी से एक टिकट खरीदा। लेकिन आधे घंटे के भीतर ही वह फ्लाइट कैंसिल हो चुकी थी। कई अन्य उड़ानें भी रद्द हुई थीं। मुझे बताया गया कि चूंकि उस उड़ान में बहुत कम लोग थे इसलिए उसे रद्द करना पड़ा। सौभाग्य से हवाई अड्डे के अधिकारियों ने मुझे एक और उड़ान में डाल दिया जो उसी दिन शाम को आ रही थी। मैं 9 मार्च को नई दिल्ली, भारत वापस आ गया।
दिल्ली में हवाई अड्डे के निकास पर यात्रियों को इमिग्रेशन फॉर्म सौंपे गए। इस फॉर्म में हमें अपनी यात्रा और बीमारी का इतिहास विस्तृत रूप से लिखना था। उन्होंने हमारे शरीर के तापमान की जांच की। चूंकि मैं इटली से वापस आया था, मेरा इमिग्रेशन एक अलग काउंटर पर हुआ। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए मुझे लगा था कि हवाई अड्डे पर बहुत समय लगेगा। लेकिन हवाई अड्डा काफी खाली था और ये सभी प्रक्रियाएं बहुत जल्दी ही पूरी हो गईं। अब मैं अपने घर वापस पहुंच चुका था।
मैं 9 मार्च से अपने घर पर सेल्फ क्वारंटाइन में हूं। मैं अपने परिवार से जितना हो सकता हूं उतना खुद को अलग रख रहा हूं। एहतियात के तौर पर जब से मैं इटली से आया तब से मेरा पूरा परिवार, जिसमें मेरे माता-पिता और भाई शामिल हैं, सब सेल्फ क्वारंटाइन में हैं। हर दूसरे दिन मुझे केंद्र और राज्य सरकार के स्वास्थ्य अधिकारियों से फोन आते हैं जो मेरा हाल चाल पूछते हैं।
कल 14 दिनों की सेल्फ क्वारंटाइन*/वधि का मेरा आखिरी दिन था। लेकिन भारत की स्थिति को देखते हुए इस अवधि को मैं और बढ़ा रहा हूं। मुझे उम्मीद है कि दूसरे भी ऐसा करेंगे। मैं इटली की वर्तमान स्थिति से भी काफी चिंतित हूं क्योंकि वहां मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। भारत में अभी हम उस स्थिति के करीब भी नहीं हैं। लेकिन हमें सावधानी बरतनी है, आश्वस्त नहीं हो जाना है।
आइए उन सभी लोगों का समर्थन और आभार व्यक्त करें जो हमारे देश में कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। मैं सरकार को भी सलाम करता हूं कि उसने स्थिति से निपटने के लिए सक्रिय और कड़े कदम उठाए हैं। मैं देश के हर एक नागरिक से निवेदन करता हूं कि सोशल डिस्टेंशिंग की बात को बहुत गंभीरता से लें, नहीं तो स्थिति बिगड़ने में देर नहीं लगेगी।
(काव्य संघवी मिलान में मास्टर्स की पढ़ाई कर रहे हैं। वह अक्टूबर, 2019 से वहां रह रहे हैं।)
ये भी पढ़ें- ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा की पहली सिपाही आशा कार्यकत्री कोरोना से लड़ने के लिए कितना तैयार है?
कोरोना का साया: फूलों को हर दिन तोड़कर फेंकने को मजबूर हैं किसान