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शिक्षा देने की बजाय भिक्षा मांगने को क्यों मजबूर हैं बिहार के नियोजित और टीईटी शिक्षक?

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समान काम के लिए समान वेतन, पेंशन, ग्रेच्युटी, सहायक शिक्षक व राज्यकर्मी का दर्जा और सेवाशर्त सहित अन्य मांगों को लेकर बिहार के साढ़े चार लाख से अधिक नियोजित और टीईटी शिक्षक अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। ये शिक्षक बिहार के अलग-अलग जिलों में धरना-प्रदर्शन और हड़ताल कर रहे हैं। कई टीईटी शिक्षक राजधानी पटना की सड़कों पर घूम-घूम कर लोगों से भिक्षा भी मांग रहे हैं।

भिक्षा मांग रहे इन शिक्षकों का कहना है कि यह बिहार सरकार के विरुद्ध हमारा सांकेतिक प्रदर्शन है। “सरकार हमें सम्मानजनक वेतन नहीं दे पा रही है। इसलिए हम भिक्षाटन कर सरकार के खजाने के लिए पैसा जुटा रहे हैं ताकि हमें वह सम्मानजनक वेतन दे सके,” एक प्रदर्शनकारी टीईटी शिक्षक ने नाम ना जाहिर करने की शर्त पर गांव कनेक्शन को बताया।

ये शिक्षक पिछले 17 फरवरी से हड़ताल और प्रदर्शन कर रहे हैं, जिससे राज्य के लगभग पौने दो करोड़ छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। इसके अलावा राज्य में प्राथमिक, माध्यमिक और बोर्ड की परीक्षाएं चल रही हैं जिससे परीक्षा और उत्तर पत्रों के निरीक्षण का कार्य भी प्रभावित हो रहा है। सरकार ने इस पर कड़ी कार्रवाई करते हुए लगभग चार सौ शिक्षकों को निलंबित और बर्खास्त करने का भी कार्य किया है।

हालांकि लगभग 20 दिन की हड़ताल के बाद सरकार ने कुछ नरमी के भी संकेत दिए हैं। राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने विधानसभा में कहा कि राज्य सरकार नियोजित शिक्षकों को लेकर संवेदनशील है और जल्द ही नियोजित शिक्षकों का वेतन बढ़ाया जाएगा। उन्होंने दो टूक कहा कि अगर ये लोग हड़ताल पर नहीं जाते तो भी दो महीने बाद इनका वेतन बढ़ा दिया जाता। हालांकि उन्होंने साफ किया कि नियोजित शिक्षकों को समान काम के लिए समान वेतन नहीं दिया जा सकता है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने भी शिक्षकों की ऐसी मांग को खारिज कर दिया है।

वहीं प्रदर्शन कर रहे शिक्षकों का कहना है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश के एक हिस्से को तो मान रही है लेकिन एक दूसरे महत्वपूर्ण हिस्से को दरकिनार भी कर रही है, जिसमें कोर्ट ने नियोजित और टीईटी शिक्षकों को ‘एक्सपर्ट शिक्षक’ मानने और उन्हें सम्मानजनक वेतन देने की बात की है। टीईटी शिक्षक संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक अमित विक्रम गांव कनेक्शन को बताते हैं, “सरकार बेहद चालाकी से अपने को सही साबित करने की कोशिश कर रही है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के उसी निर्णय के पारा 78 में नियोजित शिक्षकों और शिक्षामित्रों को बेहतर और सम्मानजनक वेतन देने की भी बात कही गई है, सरकार उसे पिछले 10 महीनों से लागू नहीं कर पाई।”

अमित विक्रम सुप्रीम कोर्ट के जिस निर्णय की बात कर रहे वह सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई 2019 को जारी किया था। बिहार सरकार बनाम शिक्षक संघर्ष समिति मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी किया था, “नियोजित शिक्षकों को भी राज्य के नियमित शिक्षकों की तरह ही समान स्तर पर भुगतान किया जाना चाहिए। वहीं टीईटी जैसी परीक्षाओं को पास करने वाले विशेषज्ञ शिक्षकों को बेहतर पे स्केल देना चाहिए।”

अमित बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के इस सुझाव के बाद भी राज्य में नियोजित और टीईटी शिक्षकों की स्थिति नहीं सुधरी। इस वजह से शिक्षकों को हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी। हाईकोर्ट ने बीते 22 फरवरी को मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सुझाव और फैसले को अक्षरशः लागू किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने इस मामले में बिहार सरकार को चार महीने का समय दिया है।

बिहार राज्य शिक्षक संघर्ष समन्वय समिति के सदस्य अभिषेक कुमार कहते हैं, “इस पूरे मामले में सरकार का रवैया हठधर्मितापूर्ण रहा है। हम लगातार उनसे वार्ता करने की गुहार लगा रहे हैं लेकिन उन्होंने कभी हमें वार्ता के लिए नहीं बुलाया। हमने इस आंदोलन और हड़ताल के बारे में पहले से ही सरकार को सूचना दी थी लेकिन सरकार हमारी सुनवाई करने की बजाय हमारे कई साथियों का निलंबन कर रही है। सरकार का यह रवैया बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।”

अभिषेक बताते हैं, “सुप्रीम कोर्ट के सुझाव और हाई कोर्ट के आदेश से बहुत पहले 2015 में भी सरकार ने हमारी मांगों को मानने और 3 महीने सेवा शर्तों को लागू करने की बात कही थी। तब हमने 41 दिनों का हड़ताल किया था लेकिन 5 साल बीत जाने के बाद भी कोई सेवाशर्त लागू नहीं हुआ। वह कहते हैं कि सुशील मोदी दो महीने के भीतर वेतन बढ़ाने की बात तो कर रहे हैं लेकिन उन्होंने हमें वार्ता के लिए अभी तक नहीं बुलाया है। इससे पता चलता है कि सरकार के नियत में खोट है।”

अमित विक्रम ने बताया कि सरकार के आश्वासन के बावजूद उनका हड़ताल जारी रहेगा क्योंकि सरकार पूर्व में भी आश्वासन देती रही है। उन्होंने कहा कि होली के बाद 13 मार्च को आंदोलनरत शिक्षक सामूहिक मुंडन कर सरकार के विरूद्ध अपना विरोध प्रकट करेंगे। बुधवार को भी राजगीर सहित कई जगहों पर आंदोलनरत शिक्षकों ने बाल मुंडा कर अपना विरोध प्रकट किया था।

शिक्षकों के इस हड़ताल से राज्य में शिक्षण कार्य और मिड डे मील का कार्य बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। इसकी पुष्टि खुद राज्य सरकार के एक पत्र से भी होती है। राज्य के माध्यान्ह भोजन निदेशक द्वारा सभी जिला कार्यक्रम पदाधिकारियों को भेजे गए पत्र में उन्होंने लिखा है कि 27 फरवरी की दोपहर की समीक्षा में पता चला है कि 4 दिनों में महज 19 प्रतिशत स्कूलों में ही मिड डे मील का संचालन हो रहा है। इससे पता चलता है कि 80 फीसदी से अधिक स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई का कार्य पूरी तरह ठप है।

अमित विक्रम ने कहा कि राज्य के 90 फीसदी से अधिक नियोजित और टीईटी शिक्षक इस आंदोलन में भाग ले रहे हैं। अब सिर्फ 60 हजार नियमित शिक्षकों के भरोसे तो स्कूल नहीं चल सकते। गौरतलब है कि बिहार के 76 हजार से अधिक प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में 60 हजार नियमित शिक्षक, 2.5 लाख शिक्षामित्र और 1.5 लाख टीईटी पास शिक्षक तैनात हैं। 

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