भीड़ की शक्ल लिए 100 से ज्यादा लोग ‘मारो-मारो’ की तेज आवाज करते एक घर की तरफ बढ़ रहे हैं। यह घर डेयरी चलाने वाले उस्मान अंसारी का है। गुस्से से भरी भीड़ इस अफवाह के बाद उस्मान के घर पहुंची है कि उसने अपनी एक गाय को काट दिया है। भीड़ ने पहले उस्मान को मारा फिर उनके घर में आग लगा दी। उस घर में जिसमें पहले से उस्मान की पत्नी और बच्चे मौजूद थे। पुलिस ने बीच-बचाव कर जैसे-तैसे उस्मान और उसके परिवार को बचाया।
यह घटना 27 जून 2017 को झारखंड के गिरिडीह जिले के देवरी थानाक्षेत्र के बैरिया गांव की है। पुलिस ने उस्मान और उसके परिवार को तो बचा लिया, लेकिन बहुत से लोग उस्मान की तरह खुशकिस्मत नहीं थे। झारखंड में काम कर रहे अलग-अलग सामाजिक संगठनों के मुताबिक, 2016 से लेकर अब तक करीब 20 लोगों को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला है। ऐसे में समझा जा सकता है कि मॉब लिंचिंग राज्य में कितनी बड़ी समस्या बनकर उभरी है।
झारखंड के विधानसभा चुनाव में भी मॉब लिंचिंग एक बड़ा मुद्दा है। कांग्रेस ने तो अपने घोषणपत्र में मॉब लिंचिंग पर कड़े कानून लाने का वादा भी किया है। इतना ही नहीं वक्त-वक्त पर राज्य की विधानसभा से लेकर देश की संसद तक में झारखंड में हो रही इन घटनाओं पर चर्चा की गई है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तो झारखंड को ‘लिंचिंग-पैड’ तक करार दिया था।
कब हुई शुरुआत
ऐसे में सवाल उठता है कि झारखंड के चुनाव में बड़ा मुद्दा बनने वाले मॉब लिंचिंग की शुरुआत आखिर कब हुई। इसका जवाब देते हुए बीबीसी हिंदी से जुड़े और झारखंड में हो रही मॉब लिंचिंग की घटनाओं को लगातार रिपोर्ट करने वाले वरिष्ठ पत्रकार रवि प्रकाश बताते हैं, ”झारखंड में मॉब लिंचिंग की पहली घटना 18 मार्च 2016 को लातेहार जिले में दर्ज हुई थी। यहां के बालूमाथ थाना क्षेत्र के झाबर गांव में भीड़ का यह खौफनाक चेहरा देखने को मिला था। भीड़ ने एक पशु व्यापारी मजलूम अंसारी और उनके 12 साल के सहयोगी इम्तेयाज खान की पहले पीट-पीटकर हत्या कर दी और बाद में उनकी लाशों को बरगद के एक पेड़ से लटका दिया। झारखंड में यह वो पहला मामला था जब लोगों ने धर्म आधारित जुर्म का ऐसा उग्र रूप देख था।”
”ऐसा नहीं है कि झारखंड में लिंचिंग के मामले इससे पहले नहीं होते थे। इससे पहले भी किसी को डायन बताकर मारने के कई मामले सामने आए थे, लेकिन लातेहार में मजलूम अंसारी ओर इम्तेयाज के साथ हुई घटना हेट क्राइम की शुरुआत करती है, जहां किसी को सिर्फ इसलिए मार दिया जाता है कि वो किसी धर्म से जुड़ा है। इस शुरुआत के बाद से एक के बाद एक कई घटनाएं होने लगीं और राज्य में मॉब लिंचिंग इतना बड़ा मुद्दा बन गया।” – रवि प्रकाश कहते हैं
रवि प्रकाश जिन हेट क्राइम की घटनाओं का जिक्र कर रहे हैं, वैसी ही एक घटना गुमला जिले के डुमरी प्रखंड के जुर्मु गांव में 10 अप्रैल 2019 को हुई थी। इस गांव के रहने वाले आदिवासी ईसाई प्रकाश लकड़ा की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। प्रकाश लकड़ा के दामाद सूरज कोली उस दिन को याद करते हुए बताते हैं, ”जुर्मु गांव के ही रहने वाले अधियास कुजूर का बैल 9 अप्रैल से ही लापता था। गांव वालों ने उसे ढूंढा, लेकिन वो मिला नहीं। इसके बाद 10 अप्रैल की शाम को बैल गांव के ही बाहर नहर के पास पुलिया के नीचे मरा हुआ मिला।”
सूरज कोली बताते हैं, ”इसके बाद अधियास कुजूर मेरे ससुर प्रकाश लकड़ा से आकर मिले और उन्हें बैल की खाल छीलने के लिए चलने को कहा। इस खाल का इस्तेमाल लोग ढोल बनाने और मांदर बनाने में करते हैं। ऐसे में मेरे ससुर और उनके साथ तीन अन्य ग्रामीण बैल की खाल छीलने लगे। इस बात को पास के ही गांव जैरागी के रहने वाले एक लड़के ने देख लिया। वो जैरागी गांव गया और फिर वहां से भीड़ मौके पर पहुंच गई। लोगों ने बिना कुछ पूछे मेरे ससुर और उनके साथ मौजूद अन्य लोगों को मारना शुरू कर दिया।”
”मेरे ससुर भीड़ से कह रहे थे कि हमने अगर गलत किया है तो पुलिस के पास ले जाओ, हमें मारो मत। इतना सुनने के बाद भीड़ में शामिल लोग और गुस्सा हो गए और फिर उन्हें ही बुरी तरह से मारने लगे, जिससे उनकी मौत हो गई।” यह बात कहते हुए सूरज कोली की आवाज में भारी पन आ जाता है।
सूरज कोली कहते हैं, ”भीड़ ने उनके साथ बहुत बुरा किया। उनसे धार्मिक नारे लगवाए गए, उन्हें पेशाब पीने के लिए मजबूर किया गया। जब वो बदहवास हो गए तो उन्हें और उनके तीन साथियों को एक गाड़ी में लादकर 19 किमी दूर थाने के सामने फेंक दिया गया। मेरे ससुर की तो मौत हो गई, लेकिन तीन लोग बुरी तरह घायल थे जिनकी शिनाख्त पर 8 लोगों के खिलाफ नामजद और 30 अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। इनमें से कुछ लोग जेल गए और फिर जमानत पर वापस आ गए हैं और खुले आम घूम रहे हैं।”
सूरज बताते हैं, ”पुलिस की चार्जशीट और पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी साफ बता रहे थे कि किस कदर की दरिंदगी की गई थी। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में तो बताया गया है कि उनका बायां फेफड़ा फट गया था। शरीर की कई हड्डियां टूटी थीं। चार्ज शीट में भी ऐसी ही बाते लिखी गईं, लेकिन नजाने कैसे आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं।”
भीड़ के जिस खौफनाक चेहरे का सामना करते हुए प्रकाश लकड़ा की मौत हुई, वैसा ही सामना करते हुए झारखंड में कई और लोगों ने अपनी जान गंवाई है। इसमें तबरेज अंसारी, मुर्तजा अंसारी, शेख हलीम, गणेश गुप्ता जैसे कई नाम शामिल हैं। लेकिन जब हम इस जुर्म को करने वाले अपराधियों को सजा की बात करते हैं तो ज्यादातर मामले लंबित ही नजर आते हैं।
इन्हीं मामलों पर बात करते हुए झारखंड में ‘अमन बिरादरी’ के कॉर्डिनेटर अफजल अनीस कहते हैं, ”मुझे लगता है कि सरकार के नुमाइंदों की ओर से जिस तरीके के कदम उठाने चाहिए थे वो नहीं उठाए गए हैं। जैसे जब झारखंड के रामगढ़ में बीफ ले जाने के शक में मारे गए युवक अलीमुद्दीन की हत्या के 8 आरोपियों को झारखंड हाई कोर्ट ने जमानत दी तो जमानत मिलने के बाद तब के केंद्रीय नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने इन आरोपियों का माला पहनाकर स्वागत किया था। इस तरह का काम अपराधियों के हौसले ही बढ़ाएगा।”
अफजल अनीस कहते है, ”इतना ही नहीं झारखंड के मुख्यमंत्री इन घटनाओं पर यह बयान देते हैं कि बीते पांच साल में मॉब लिंचिंग से हुई मौत के अधितकर मृतक विक्षिप्त थे। इन्हें चोर होने के संदेह में भीड़ के द्वारा इतना पीटा गया कि वे मर गए। पहली बात कि सब विक्षिप्त थे यह बात ही गलत है, दूसरा यह कि अगर विक्षिप्त भी होते तो भीड़ को पीट-पीटकर मारने का अधिकार कौन देता है।” अमन बिरादरी सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व आईएएस अफसर हर्ष मंदर के द्वारा चलाया जाता है। यह संगठन मॉब लिंचिंग के डेटा को इकट्ठा करता है और पीड़ितों के परिवारों को न्याय दिलाने में सहायता करता है।
अफजल कहते हैं, ”झारखंड में लगातार सिविल सोसइटी और समाजिक संगठनों से जुड़े लोग मॉब लिंचिंग के खिलाफ कड़ा कानून लाने की मांग कर रहे हैं। हालांकि तब विपक्ष ने इस मुद्दे पर खास ध्यान नहीं दिया था, लेकिन देर से ही सही इनकी नींद तो टूटी है। यह अच्छा है कि कांग्रेस इस मामले पर कानून लाने की बात कर रही है, लेकिन सिर्फ चुनाव तक यह बात नहीं होनी चाहिए, इससे आगे भी बात होनी चाहिए। मॉब लिंचिंग के मामलों में अलग से कानून बनाने की बहुत ज्यादा जरूरत है। क्योंकि जब तक कानून कड़े नहीं होंगे तो ऐसी घटनाओं पर रोक नहीं लगने वाली है।”
मॉब लिंचिंग पर कांग्रेस के कानून लाने की बात पर एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) के झारखंड चैप्टर के सचिव जियाउल्लाह कहते हैं, ”मॉब लिंचिंग की घटनाओं को आप देखेंगे तो इससे साफ होगा कि कुछ खास धर्म से जुड़े लोग इससे ज्यादा प्रभावित हैं। ऐसे में अगर कांग्रेस इस मुद्दे पर कानून लाने की बात करती है तो वो सीधे इस वोट बैंक पर असर करेगा। यह भी एक कारण है कि कांग्रेस कानून लाने की बात कर रही है। लेकिन जो भी हो राज्य में ऐसे कानून की जरूरत है, क्योंकि पिछले कुछ साल में जिस तरीके की घटनाएं सामने आई हैं उससे एक डर का माहौल बना है।”
वहीं जब इस मामले पर झारखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव से बात की गई तो उन्होंने बताया, ”सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि मॉब लिंचिंग पर कानून बनना चाहिए। राज्य में अगर हमारी सरकार बनती है तो हम इसपर कानून लाएंगे।” जब उनसे पूछा गया कि घोषणा पत्र में मॉब लिंचिंग को लेकर कानून लाने की बात लिखने से पहले क्या कुछ स्टडी की गई कि कितने लोगों ने अपनी जान गंवाई है? इसके जवाब में रामेश्वर उरांव ने कहा, ”मैं अभी इंटरव्यू नहीं देना चाहता। मैं मीटिंग में हूं। मैं बस इतना कहूंगा कि हम कानून लाएंगे।” इसके बाद उन्होंने फोन काट दिया।
रामेश्वर उरांव के इस जवाब से पता चलता है कि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में मॉब लिंचिंग को जल्दबाजी में रखा है। फिलहाल कांग्रेस के कानून लाने की बात के बाद से ही राज्य में मॉब लिंचिंग पर बहस छिड़ गई है। ऐसे में नेता भी इस मामले को खुले मंच से बोलते नजर आत रहे हैं। अब देखना होगा कि आने वाले वक्त में झारखंड में मॉब लिंचिंग के खिलाफ कोई कानून बन पाता है या नहीं।