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लाख टके का सवाल: क्या 2020 में भी किसान जलाएंगे पराली?

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पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर ने 23 सितंबर, 2019 से 26 नवंबर, 2019 के बीच पराली जलाने के आंकड़े जारी किए हैं। इन आकंड़ों के अनुसार 2019 में पराली जलाने के कुल 52,942 मामलों को दर्ज किया, जो कि 2018 के 50,590 मामलों से 2352 बार अधिक है। इस दौरान पराली जलाने के मामले में 23,277 मामलों में किसानों पर जुर्माना लगाया गया, वहीं 1,737 मामलों में एफआईआर दर्ज की गई। इसके अलावा 266 मामलों में वायु अधिनियम, 1981 की धारा 39 के तहत मैजिस्ट्रियल शिकायतें भी दर्ज की गई।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के आंकड़ों के अनुसार, 2018 में हरियाणा में पराली जलाने के कुल 9225 मामले सामने आए थे, हालांकि 2019 में यह घटकर 6364 हो गई। इसी तरह उत्तर प्रदेश में 2018 में यह आंकड़ा 6623 था, जो कि 2019 में घटकर 4230 हो गया। इस तरह पंजाब एकमात्र ऐसा राज्य रहा, जहां पर 2019 में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ीं।

पंजाब के कृषि सचिव कहन सिंह पन्नू के अनुसार, 2018 में हैप्पी सीडर, सुपर-स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (एस-एसएमएस), चॉपर, मल्चर, कटर-कम-स्लैशर जैसी 28,000 मशीनों को किसानों के बीच सब्सिडी दर पर बांटा गया, जो कि फसल अवशेष प्रबंधन का काम करती हैं। इस साल भी ऐसे 18,000 मशीनों की खरीद पर किसानों को सब्सिडी दी गई।

व्यक्तिगत रूप से ऐसी मशीन खरीदने वाले किसानों को सरकार के द्वारा 50 प्रतिशत की सब्सिडी दी गई, वहीं स्वयं सहायता समूहों द्वारा इसे खरीदने पर सब्सिडी को बढ़ाकर 80 प्रतिशत तक कर दिया गया। हालांकि कई किसान ऐसे भी रहें जिन्होंने सरकार द्वारा सब्सिडी योजना घोषित करने से पहले ही इन मशीनों को बिना सरकारी मदद के खरीद लिया था।

इस तरह पंजाब में ऐसे मशीनों की संख्या 50000 से अधिक हो जाती है, जिसमें लगभग 14000 हैप्पी सीडर्स, 6000 एस-एसएमएस, 8000 चॉपर/श्रेडर/ मल्चर, 7000 रोटावेटर, 4000 नए किस्म के आधुनिक हल, 5500 ड्रिलर और 350 बेलर शामिल हैं।

केंद्र सरकार ने इन आधुनिक मशीनों के लिए कुल 1151.80 करोड़ रुपये की सहायता राशि जारी की। पंजाब को 546.18 करोड़ रुपये, हरियाणा को 329.90 करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश को 253.88 करोड़ रुपये और दिल्ली को 4.52 करोड़ रुपये मिले।

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अब, बड़ा सवाल यह है कि क्या ये मशीनें किसानों की पराली जलाने की समस्या को हल कर पाईं? जैसा अब तक देखने को मिला है, जवाब ‘नहीं ही’ है। इन मशीनों के बावजूद 2019 में पराली जलाने की घटनाएं हुईं, वहीं कई राज्यों में बढ़ीं भी।

पराली का प्रबंधन जिन दो प्रमुख मशीनों पर मुख्य रूप से टिका है, उसमें पहला सुपर-स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (एस-एसएमएस) है, जो हार्वेस्टर कॉम्बिनेशन में लगाया जाता है। यह मशीन सुनिश्चित करती है कि पराली छोटे-छोटे भागों में कटे और खेत में समान रूप से वितरीत हो। दूसरा मशीन है “हैप्पी सीडर”, जिसके प्रयोग से आप धान की फसल से बचे हुए पुआल को जलाये बिना ही खेत में गेहूं की रोपाई कर सकते हैं।

पुआल और पराली की प्रबंधन करने वाली दूसरी मशीनों जैसे- चॉपर, श्रेडर और मल्चर का प्रयोग धान के ठूंठ को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटने, रोटावेटर और रिवर्सिबल का प्रयोग पुआल को गहरी जुताई के माध्यम से खेत में दबाने और बेलर का प्रयोग पुआल को बंडलों में बांधने के लिए होता है।

फिर भी किसान दो कारणों से पराली जलाते हैं। पहला और सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि किसान फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों को खरीदने या किराए पर लेने की क्षमता नहीं रखते हैं। इससे प्रति एकड़ फसल पर लगभग 3500 से 4000 रुपये की अतिरिक्त लागत आती है।

ध्यान देने योग्य एक और बात यह है कि फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों की अतिरिक्त लागत से धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं बढ़ता है और हम उम्मीद करते हैं कि किसान अपने लाभ में कटौती कर पराली ना जलाए, जो कि पहले से ही कर्ज में डूबे होते हैं। क्या इसे उचित कहा जा सकता है?

दूसरा कारण यह था कि फसल अवशेष प्रबंधन के लिए पंजाब में उपलब्ध मशीनों की संख्या पर्याप्त नहीं है। सुपर एसएमएस के साथ जुड़ा हार्वेस्टर कंबाइन एक दिन में लगभग 12-15 एकड़ फसल की कटाई कर सकता है। पंजाब में ऐसे 6000 सुपर एसएमएस हैं। अगर इन सभी 6000 हार्वेस्टरों को संचालित किया जाता है, तो 25 दिनों में लगभग 9 लाख हेक्टेयर खेत में ही कटाई हो सकती है जो कि पंजाब की खेतों के कुल क्षेत्रफल का सिर्फ एक तिहाई हिस्सा है।

पिछले साल पंजाब में चावल की खेती 31.03 लाख हेक्टेयर जमीन पर की गई थी, जिसमें धान के तहत 25.92 लाख हेक्टेयर जमीन और बासमती के तहत 5.11 लाख हेक्टेयर जमीन शामिल था। हैप्पी सीडर मशीनों के साथ भी ऐसा ही हुआ।

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हैप्पी सीडर मशीन एक दिन में 7-8 एकड़ भूमि की बुवाई कर सकता है। यदि हम 25 दिनों की गणना करें, तो यह लगभग 11.5 हेक्टेयर में बुवाई कर सकता है जो कि पंजाब के गेहूं के रकबे का सिर्फ एक तिहाई हिस्सा है। पिछले साल पंजाब में गेहूं का रकबा 35 लाख हेक्टेयर था।

इस प्रकार एक औसत किसान इन मशीनों का प्रयोग नहीं कर सकता। पुआल का प्रबंधन करने के कई दूसरे तरीके भी हैं, जिसमें मल्चर और रोटावेटर का उपयोग करके पहले पुआल को बारीक टुकड़ों में काटना और फिर हल की मदद से उन कटे हुए टुकड़ों को खेत में जुताई करना प्रमुख है। लेकिन इन मशीनों को किराये पर लेना काफी महंगा पड़ता है, जिसे साधारण किसान वहन नहीं कर सकते।

लेकिन कोई भी समस्या की असल जड़ को समझने के लिए तैयार नहीं था कि किसान “फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों” को खरीदने या किराए पर लेने में असमर्थ हैं। इस बीच 6 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने पराली नहीं जलाने वाले पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के छोटे और सीमांत किसानों को 7 दिन के भीतर गैर-बासमती धान पर 100 रुपये प्रति क्विंटल देने का आदेश दिया।

इस निर्णय का किसानों ने स्वागत किया, क्योंकि उन्हें सरकार की इस योजना में कुछ अच्छा दिखा। लेकिन दुर्भाग्य से यह निर्णय तब आया जब 90% कटाई हो चुकी थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश में उन किसानों को नहीं शामिल किया गया जिनके पास 5 एकड़ से अधिक खेत है। इसके अलावा इस योजना में बटाईदार किसानों को भी शामिल नहीं किया गया, जो किसी दूसरे की जमीन को किराये पर लेकर खेती करते हैं।

यह बेहतर होता, यदि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश में सभी किसानों को शामिल कर लिया जाता। हालांकि उम्मीद की एक किरण अभी बाकी है। पंजाब और हरियाणा के किसान संघों ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि उन्हें इस मामले में एक पक्षकार होने की अनुमति दी जाए। ये किसान संघ लगातार मांग कर रहे हैं कि पराली ना जलाने वाले सभी किसानों को बिना स्वामित्व की सीमा के 100 रुपये प्रति क्विंटल की सहायता प्रदान की जाए।

पराली जलाने की घटनाएं समाप्त हो सकती हैं, बशर्ते सभी किसानों को पराली के प्रबंधन के लिए 100 रुपये प्रति क्विंटल की सहायता सुनिश्चित किया जाए। अगर राज्य सरकारें इस वित्तीय सहायता के लिए एक मजबूत और सहज वितरण तंत्र तैयार करती हैं, तो किसानों को अगली धान की फसल की कटाई से पहले यह सहायता किसानों को मिल सकती है। यदि इनमें से कोई भी स्थिति पूरी नहीं होती है, तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा कि अगले सीजन में फिर से हमें पराली जलाने की घटनाएं देखने को मिलें। 

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