'डॉक्टर ने थर्मामीटर तोड़ दिया, क्योंकि मुझे एड्स है'

Deepanshu MishraDeepanshu Mishra   30 Jun 2018 7:15 AM GMT

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डॉक्टर ने थर्मामीटर तोड़ दिया, क्योंकि मुझे एड्स है

समाज में एक बड़ा तबका फिर तैयार हुआ है जो अछूत है। उसको लोग अपने पास नहीं फटकने देते, डाॅक्टर इनका इलाज नहीं करते। स्कूलों ये पढ़ नहीं पाते। आप इनका दर्द सुनेंगे तो रूह कांप जाएगी।

"बुखार से तड़पती और कांपते हुए जब मैं अपने पड़ोस के डॉक्टर के पास दवाई लेने के लिए पहुंची तो डॉक्टर के सहायक ने मुझे थर्मामीटर लगाया। लेकिन जैसे डॉक्टर ने मुझे देखा तो अपने सहायक को चिल्लाते हुए बोला, पता नहीं ये कैसा मरीज है। तुम्हे जरा सी भी अक्ल नहीं है। इसे 'एड्स' है और इतना कहकर उसने जमीन पर पटककर थर्मामीटर तोड़ दिया।" आँखों में आंसू भरे हुए बच्चे के सिर पर हाथ फेरते हुए नगमा (बदला हुआ नाम) ने बताया।

लखनऊ में अपने पति और तीन बच्चों, दो बेटे और एक बेटी के साथ एक छोटे से मकान में ख़ुशी से रहती हैं नगमा। नगमा को एड्स है। नगमा के साथ-साथ उनके पति और दोनों बेटे भी इस बीमारी से ग्रसित हैं। पति टैक्सी ड्राइवर हैं। तीनों बच्चे लखनऊ के एक स्कूल में पढ़ने के लिए जाते हैं।

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एचआईवी इंफेक्शन से होने वाली मौत का सबसे बड़ा कारण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस बीमारी का पहला केस 1981 में सामने आया था, तब से अब तक करीब 39 मिलियन लोग इस बीमारी का शिकार हो चुके हैं। पिछले 15 वर्षों में एड्स के मामलों में 35% कमी आई है और पिछले एक दशक में एड्स से हुई मौतों के मामलों में 42% कमी आई है।

नगमा बताती हैं, "इससे पहले एक और शादी हुयी थी। मरे पति की भी एक आैर शादी हो चुकी है। मेरे पति की पहली पत्नी को एड्स था और उन्हीं से ही मेरे पति को एचआईवी हो गया है। मेरे पति की पहली पत्नी इस बीमारी से लड़कर हार गयी और उन्होंने अपना जीवन खो दिया। ठीक ऐसे ही मेरे पहले पति को एड्स था, वो भी अब इस दुनिया में नहीं हैं। मेरे पति की वजह से ही मुझे एड्स हुआ था। मुझे अपने एचआईवी होने का पता तब चला जब मैं अपनी डिलीवरी के लिए अस्पताल गयी और जांच हुई।

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भारत में एड्स का पहला मामला 1986 में सामने आया था। यूएन एड्स रिपोर्ट के अनुसार 2016 में भारत में 80 000 नए एचआईवी संक्रमण और 62 000 एड्स से संबंधित मौतें थीं। 2016 में एचआईवी के साथ रहने वाले 2 100 लोग थे, जिनमें से 49% एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी तक पहुंच रहे थे।

2014 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में एचआईवी पीड़ितों की स्थिति। साभार: स्वास्थ्य मंत्रालय भारत सरकार, नाको

"मेरे पति की मौत के बाद मेरे दूसरे पति से शादी से पहले ही मेरा मिलना-जुलना होने लगा। हम दोनों को एचआईवी पीड़ित थे। इस वजह से हमने शादी का फैसला कर लिया और हम दोनों ने शादी कर ली। शादी के बाद मेरे दो बच्चे, एक बेटी और एक बेटा हुआ, जिसमें से मेरे बेटे को एचआईवी निकला लेकिन बेटी एकदम सही है। मेरे पति की पहली पत्नी के बच्चे को एड्स है वो भी हमारे साथ ही रहता है।" नगमा ने आगे बताया।

"समाज का बहुत डर रहता है। लोग इस बीमारी को बहुत गंदा मानते हैं क्योंकि उनकी सोच अभी तक बदली नहीं है। मेरे पड़ोस में अपने क्लीनिक पर बैठने वाली डॉक्टर को मेरे पिता जी ने पता नहीं किन कारणों से बता दिया था कि मेरी बेटी को एड्स है। तबसे एक पढ़ी-लिखी डॉक्टर मेरे साथ अनपढ़ों वाला व्यवहरा करती है। मुझे समाज के बाहर का प्राणी समझा जाता है। बुखार से तड़पते हुए मैंने वो पूरी रात काट दी। ठंडे पानी के कपड़े से मैंने अपने बुखार को काबू किया।"

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नगमा ने बताया, "मैंने अपने बच्चों को अभी तक अपनी और उनकी बीमारी के बारे में बताया नहीं है, और ये भी नहीं बताया है कि उन्हें एचआईवी है। उन्हें जब हर महीने दवाई के लिए जाना पड़ता है तो उनसे झूठ बोलती हूं चलो विटामिन और कैल्सियम कि दवाई खिला लाते हैं। बच्चों के स्कूल में किसी को भी इस बीमारी के बारे में नहीं बताया है। बच्चों को पढ़ाकर आगे बढ़ाना चाहती हूँ लेकिन कभी-कभी ये सोच कर अपने बच्चों को गले लगाकर रोने लगती हूं ये ऐसी बीमारी है जो कि कभी सही नहीं होगी। बस दवाई ही इस बीमारी का सहारा है।

भारत में एचआईवी से प्रभावित प्रमुख आबादी में सेक्स वर्कर्स एचआईवी के 2.2% के प्रसार के साथ, समलैंगिक पुरुषों और पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले अन्य पुरुष 4.3% की एचआईवी प्रत्यावर्तन के साथ, 9.9% की एचआईवी प्रसार के साथ, जो लोग दवाओं को इंजेक्ट करते हैं और एचआईवी संक्रमण के साथ ट्रांसजेंडर लोग 7.2% हैं।

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नगमा आगे कहती हैं "विहान संस्था हमें इस बीमारी से लड़ने के लिए शक्ति प्रदान करती है। हमें समय-समय पर बताती भी है कि हमें कैसे अपना ख्याल रखना है। कभी-कभी मैं सोचती हूं कि मेरी बेटी के भविष्य का क्या होगा। अगर हमें कुछ हो गया, लेकिन बाद में सोचती हूँ नहीं ये बीमारी कुछ नही हैं। इसी शक्ती के साथ इतना जीवन काट लिया है और आगे का जीवन भी काट लूंगी।

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नोट- गाँव कनेक्शन ऐसे लोगों आवाज लगातार बना रहेगा। हमारी कोशिश है कि इस बीमारी की चपेट में आए ये लोग अपनी बाकी जिंदगी सम्मान से जी सकें।

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