‘मोहब्बत तो सभी करते हैं, किसी की छिप जाती है तो किसी की छप’
Mithilesh Dhar 1 Feb 2018 4:48 PM GMT

कवि और कविता की बात हो और हिंदुस्तानी पीछे रह जाएं, ऐसा कभी हो नहीं सकता। भारत में हमेशा से कविता एक ऐसा माध्यम रहा है जिसे लोगों ने सुख-दुःख और समस्याओं के समाधान का सहारा बनाया है। सरकार की तानाशाही के खिलाफ आवाज हो या फिर क्रांतिकारियों के अंग्रेजों के खिलाफ आवाज। सभी में कविता ही एक ऐसा माध्यम बनकर निकली है जिसने बिना किसी को आत्मिक ठेस पहुंचाये अपना सन्देश आगे बड़ी आसानी से भेजा है।
आज जब कविता युवाओं के अंदर से ख़त्म होती जा रही है, उस समय उन्हें कविता की महत्ता बताने वाले लोगों की जरूरत है। युवाओं के अंदर अभी कविताएं और अच्छा साहित्य जीवित है। मगर उस साहित्य को बाहर निकालने की जरूरत है। युवाओ के अंदर अभी भी कविताओं के लिए 'चाह' जिन्दा है, उन्हें बस जरूरत है एक मध्यम की जो उनकी कविताओं को एक जगह दे पाए, जो बिना किसी राजनीति के उनकी कविताओं को समाज के सामने रखने में उनकी सहायता कर पाए। उनके अंदर के शुरूआती डर को ख़त्म कर पाए।
कविशाला देश का पहला एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो देश के कई बड़े शहरों, कस्बो और गांवों में नए, युवा और पुराने अनसुने कवियों को एक स्थान देता है। यहाँ बिना किसी रोकटोक कवि अपनी कविताएं सुना सकते हैं। लोगों के साथ कविताओं के बारे में बात कर सकते हैं और एक दूसरे को जान सकते हैं। कविशाला देश भर में करीब तीस से ज्यादा जगहों पर हर महीने मीटअप करता है जिसमें करीब हर जगह 100 से 200 कविता प्रेमी इसमें भाग लेते हैं और कविताओं के बारे में जानते हैं।
शहर-शहर, कस्बे-कस्बे, गांव-गांव भटकने के बाद मैंने देखा की आज के नए कवियों में अच्छी कविताओं और विचारों की कमी नहीं है। उनके पास आज भी अच्छी कविताएं हैं और अच्छे तरीके हैं। मगर उनके अंदर एक डर है। बड़े कवियों का, जो उन्हें हमेशा हतोत्साहित करते हैं। उनके पास ऐसे मंच नहीं हैं जो निरंतरता से काम करते हों और जो उनकी कविताएं लोगों तक पहुंचा पाएं। बस इसीलिए कविशाला इस दुनिया में अस्तित्व रखता है।अंकुर मिश्रा, फाउंडर - कविशाला
इसमें कोई कवि उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव से होता है तो कोई उत्तराखंड की पहाड़ियों से, कोई मायानगरी मुंबई से होता है तो कोई नवाबों के शहर लखनऊ से तो कोई जयपुर से होता है तो कोई चेन्नई से। देश के हर कोने से लाल्लुक रखने वाले कवि और कविता प्रेमी कविशाला के साथ जुड़े हुए हैं।
कविशाला एक नॉन प्रॉफिट संस्था है जो कविताओं के लिए काम करती है। अंकुर मिश्रा एक व्यवसायी है जिन्हे साहित्य से एक अलग जुड़ाव है। खुद एक कवि होने के साथ-साथ अच्छे लेखक भी हैं जिन्होंने चार किताबें लिखी हैं।
कविशाला की शुरुआत करीब डेढ़ साल पहले अंकुर मिश्रा ने की थी। शुरुआत में कविशाला केवल एक वेबसाइट थी जहाँ नए कवि अपनी कविताएं साझा कर सकते थे। जिसमें देश भर के आज करीब 8000 से ज्यादा कवि जुड़ चुके हैं जिनकी कविताओं की संख्या करीब 50000 से ज्यादा है। अगर आप कविशाला में ऑनलाइन लिखते हैं तो एक अच्छी संख्या आपकी कविताएं रोजाना यहाँ पढ़ी जाती हैं। करीब 30000 पाठक रोजाना कविशाला की वेबसाइट पर आते हैं कविताएं पढ़ते हैं, कविताएं साझा करते हैं।
मगर साहित्य की यह समस्या केवल ऑनलाइन साल्व नहीं की जा सकती। इसलिए कविशाला ने मार्च 2017 में मंथली मीटअप की शुरुआत की। शुरुआती दिनों में कविशाला के मंथली मीटअप दिल्ली, लखनऊ और जयपुर तक ही सीमित थी। मगर उनका क्या जो लोग गांवों और कस्बो में अपनी कविताएं और साहित्य लिए बैठे हैं। इस तरह तो उनका साहित्य ख़त्म हो जायेगा। बस इसीलिए कविशाला की शुरुआत अंकुर मिश्रा ने की
हर महीने इनकी कविताएं सबके सामने आती हैं और वहां उनकी कविताओं की अच्छाइयों-बुराइयों के बारे में बात करते हैं। यहीं से कुछ अच्छे कवि बाहर निकलकर आते हैं जो कविताओं में अपना जीवन देखते हैं। आज कविशाला उतर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान आदि के गांवों-कस्बों के साथ देश के हर बड़े शहर में उपस्थित है।
छिपने से छपने के बीच में बस एक 'चाह' की जरूरत होती है। उसी चाह को जगाने के लिए कविशाला काम करता है।
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