महापुरुषों की मूर्तियों पर राजनीति की कालिख

Mithilesh DharMithilesh Dhar   8 March 2018 4:46 PM GMT

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महापुरुषों की मूर्तियों पर राजनीति की कालिखकहीं लेनिन की मूर्ति तोड़ी गयी तो कहीं श्यामा प्रसाद मुखर्जी मूर्ति पर कालिख पोत दी गयी।

त्रिपुरा से शुरू हुई मूर्ति तोड़ने की राजनीति अब तेजी से देश के बाकी हिस्सों में भी फैल रही है। बुधवार को कोलकाता में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति तोड़ कर उसके मुंह पर कालिख पोत दी गई। केरल के कन्नूर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा को क्षतिग्रस्त करने का मामला सामने आया है। कन्नूर के थालिपरंबा इलाके में कुछ अज्ञात लोगों ने गांधी मूर्ति के चश्मे को तोड़ दिया। मूर्ति तोड़ने के बाद उपद्रवी फरार हो गए हैं।

लेनिन को साम्यवादी आंदोलन का जनक कहा जाता है। उन्होंने रूस में बोल्शेविक क्रांति की शुरुआत की थी। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी और कश्मीर में एक झंडा एक संविधान की मांग की थी। ई एम रामासामी तमिलनाडु में दलित राजनीति के जनक माने जाते हैं जिन्हें दलितों का मसीहा यानि पेरियार की उपाधि दी गयी। पेरियार ने दलितों के हकों को लेकर और सवर्ण जातियों के अत्याचार के खिलाफ बड़ा सामाजिक आंदोलन शुरू किया था जिसे अन्नादुरई ने राजनीतिक रूप दिया और डीएमके पार्टी बनी। इसी पार्टी से करुणानिधि और एम जी रामचन्द्र जुड़े थे।

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लेनिन वाम मोर्चे की विचारधार के करीब हैं। श्यामा प्रसाद मुखर्जी बीजेपी और संघ की विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। पेरियार दलित आंदोलनों के प्रेरक रहे हैं। इन तीनों का अपना-अपना सामाजिक और राजनीतिक महत्व है। वाम दलों के लिए लेनिन का जो महत्व है वही बीजेपी के लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी का है। वहीं पेरियार का महत्व एआईडीएमके और डीएमके तक या फिर तमिलनाडु तक सीमित नहीं है।

महात्मा गांधी की मूर्ति से लटका टूटा हुआ चश्मा।

देशभर में मूर्ति तोड़े जाने के चल पड़े सिलसिले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने इस मामले में गृह मंत्रालय से भी बात की है और कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। गृहमंत्रालय ने सभी राज्यों में एडवाइजरी जारी की है। गृहमंत्रालय की तरफ से जारी एडवाइजरी में सभी राज्यों को निर्देश दिए गए हैं कि इस तरह की घटनाओं पर जरूरी कार्रवाई की जाएं। आरोपियों के खिलाफ सख्त से सख्त कदम उठाए जाएं। पूर्वोत्तर राज्यों में चुनाव नतीजों के बाद देश के कई राज्यों से मूर्तियां तोड़ी जाने की घटनाएं सामने आ रही हैं।

मेरठ के मवाना के खुर्द गांव में असामाजिक तत्वों ने डॉक्टर बीआर आंबेडकर की प्रतिमा खंडित कर दी। आक्रोशित लोगों ने इसे लेकर जमकर हंगामा किया। मूर्ति को नुकसान पहुंचाए जाने की सूचना मिलते ही पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया और पुलिस ने घटना स्थल पर पहुंचकर स्थिति को काबू किया। तमिलनाडु के वेल्लोर जिले में समाज सुधारक और द्रविड़ आंदोलन के संस्थापक ईवी रामासामी पेरियार की मूर्ति क्षतिग्रस्त कर दी गई। इस पर भी काफी विवाद हुआ। पेरियार की मूर्ति को क्षति पहुंचाई जा सकती है ऐसा दावा बीजेपी के एक नेता ने पहले ही किया था।

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बीजेपी ने मूर्ति तोड़ने वाले नेता का सीधे पार्टी से बर्खास्त कर डैमेज कंट्रोल की कोशिश की है। त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति तोड़े जाने पर कुछ बीजेपी नेताओं ने इसके समर्थन में बयान दिये थे। कुछ ने तो लेनिन को आतंकवादी तक करार दिया था तो कुछ ने सवाल उठाया था कि आखिर विदेशी लेनिन की मूर्ति त्रिपुरा में लगाई ही क्यों गयी। तब न तो पीएम मोदी की तरफ से प्रतिक्रिया आई और न ही अमित शाह ने मूर्तियां तोड़े जाने के खिलाफ बयान दिया। लेकिन पेरियार की मूर्ति तोड़े जाने पर पार्टी बैकफुट पर आई है।

कोलकाता में जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा पर कालिख पोत दी गई और नुकसान भी पहुंचाया गया। मुखर्जी को हिंदू विचारक माना जाता है। बताया जा रहा है कि इस घटना में लेफ्ट की ओर झुकाव रखने वाले छात्रसंगठन का हाथ है जिसके कुछ सदस्यों को हिरासत में भी लिया गया है।

मायावती से लेकर अन्य विपक्षी दल बीजेपी को सवर्णों की पार्टी बताते हुए उसे दलित विरोधी बताते रहे हैं। बीजेपी तुरंत-फुरंत में कार्रवाई कर रही है। उधर मायावती से लेकर कांग्रेस के नेता जानते हैं कि पेरियार की मूर्ति तमिलनाडु से हजारों किलोमीटर दूर यूपी बिहार की हिन्दी पट्टी तक में असर डाल सकने की गुंजाइश रखती है लिहाजा वह संसद नहीं चलने दे रहे हैं। यहां पूरा खेल वोट बैंक का है। और इस खेल में कोई पार्टी पीछे नहीं रहना चाहती।

बी आर अम्बेडकर की प्रतिमा से टूट कर गिरा पड़ा सिर।

हमारे देश में मूर्तियों को लेकर हमेशा से राजनीति होती रही है। कुछ साल पहले तक बाबा साहब बी आर अम्बेडकर की मूर्तियां तोड़े जाने की खबरें आती रही थीं। हमारे देश में तो शहीदों की मूर्तियों को लेकर भी सियासत होती रही है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर नेताओं, महापुरुषों की मूर्तियां लगायी ही क्यों जाती हैं। इसलिए कि आम लोग चौराहे से गुजरते हुए उस महापुरुष को नमन करें, उनके दिखाए रास्ते पर चलने की कोशिश करें और प्रेरित हों। लेकिन ऐसा होता ही नहीं है। ऐसा होता तो कम से कम न तो मूर्तियां तोड़ी जा रही होतीं, न मुंह पर कालिख पोती जा रही होती और न ही सियासत हो रही होती।

 

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