कैसा है राजस्थान-हरियाणा बॉर्डर पर किसानों के आंदोलन का रंग?

दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के साथ ही राजस्थान-हरियाणा बॉर्डर पर भी किसान आंदोलन कर रहे हैं, यहां पर राजस्थान के अलग-अलग जिलों से आए किसानों ने डेरा डाल रखा है, पढ़िए रिपोर्ट

Madhav SharmaMadhav Sharma   19 Dec 2020 9:50 AM GMT

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सुबह के 7 बजे हैं और दिन गुरूवार का है। जयपुर-दिल्ली हाइवे पर गाड़ियां सनसनाती हुई दौड़ रही हैं, लेकिन इनकी स्पीड पर ब्रेक कोटपूतली आते ही लग रहा है। किसान आंदोलन के चलते पुलिस ने हाइवे पर कई जगह बेरीकेटिंग की हुई है। बड़े वाहनों को यहीं रोक लिया है। अलवर जिले के शाहजहांपुर (खेड़ा) की ओर आगे बढ़ने पर हमारे साथ-साथ दोनों तरफ के खेत भी लग रहा है मानो चल रहे हों। इन खेतों में फूलों से लदी और ओस से ढंकी सरसों भी हमारे साथ चलती हुई दिख रही है। हम 9 बजे शाहजहांपुर से 4 किमी आगे बढ़े और एक फ्लाईओवर पर चढ़े। यहां से उतरते हुए हाइवे के एक तरफ किसानों का डेरा दिखाई दे रहा है।

ये राजस्थान का दिल्ली की ओर बढ़ते हुए आखिरी गांव खेड़ा है, जहां राजस्थान के श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ और अन्य जिलों से आए किसान 12 दिसबंर से डेरा जमाए बैठे हैं। गुजरात के 25 किसानों का एक जत्था भी यहां मौजूद है। हालांकि यहां टिकरी और सिंघु बॉर्डर जैसी भीड़ तो नहीं है, लेकिन आंदोलन के तौर-तरीके, रंग और जज्बा सब वैसा ही है।


ये सुबह-सुबह का वक्त है। रात की ओस, बूंद बनकर तिरपाल से टपक रही है। इन बूंदों से कई किसानों के गद्दे गीले हो चुके हैं। धूप तेज है, लेकिन हवा की ठंडक नश्तर सी शरीर में चुभ रही है। इस चुभन के बीच किसान अपने काम कर रहे हैं। ज्यादातर किसान चाय-नाश्ता और दोपहर के लंगर का इंतजाम कर रहे हैं। कुछ किसान खाना बना रहे हैं तो कुछ अपने निजी काम निपटा रहे हैं।

ट्रैक्टरों की बैटरी से मोबाइल चार्ज हो रहे हैं। कई किसान सोलर पैनल भी साथ लाए हैं, ताकि बिजली की छोटी-मोटी जरूरतें पूरी हो सकें। युवा मोबाइल में बिजी हैं तो कुछ किताबें पढ़ कर ठंड दूर करने की कोशिश कर रहे हैं।

कुछ किसान अपने ट्रैक्टरों पर लगे लाउड स्पीकरों को फुल वॉल्यूम पर चलाकर किसान एकता के गाने गाते हुए निकल रहे हैं। 12 बजते-बजते लंगर तैयार हो चुका है। किसानों के साथ-साथ आंदोलन कवर करने आए पत्रकार और सपोर्ट के लिए आए लोग भी यहां खाना खा रहे हैं। करीब एक किमी में छह लंगर लगे हुए हैं।

तभी पावटा से किसानों का एक समूह अपना समर्थन देने यहां पहुंचता है। चंग की ताल पर लड़की बने हुए दो लड़के कुछ बुजुर्ग किसानों के साथ धमाल नृत्य कर रहे हैं। धमाल ढूंढाड़ क्षेत्र का पारंपरिक नृत्य है। जिसमें पुरुष महिला के वेश में नृत्य करते हैं।

किसान आंदोलन में कर रहे राजस्थान का लोकनृत्य धमाल। फोटो: माधव शर्मा

ये किसानों के आंदोलन के वे रंग हैं, जिसे वे फसल बोते या काटते वक्त बिखेरते हैं, लेकिन इस समूह का नेतृत्व कर रहे राधेश्याम शुक्लावास कहते हैं, "अब सड़कों पर ही ये रंग बिखेरा जाएगा, क्योंकि सरकार ने तीन ऐसे कानून बनाए हैं, जिनसे हमारे खेतों की रंगत उड़ने वाली है।"

फ्लाई ओवर से धरना स्थल (हरियाणा बॉर्डर) तक दो किमी में नाचते-गाते ये दल हरियाणा पुलिस के लगाए बेरीकेट्स तक पहुंच गए, जहां किसानों का मुख्य मंच है। इसके बाद एक-एक कर कानूनों के नुकसान के बारे में भाषण अलग-अलग किसान नेताओं ने दिए।

दोपहर तक यहां 600 से ज्यादा किसान मौजूद हैं। किसानों का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा के पदाधिकारियों का कहना है कि अगले दो-तीन दिन में ये संख्या हजारों में पहुंचेगी। गुरूवार शाम तक यहां गंगानगर, हनुमानगढ़, कोटा सहित कई जिलों से किसान पहुंचने लगे थे। शुक्रवार को भी कई जिलों से किसान अपने ट्रेक्टरों में महीनों का राशन भरकर खेड़ा गांव पहुंचे हैं।


संयुक्त किसान मोर्चा के पदाधिकारियों का कहना है कि अगले दो-तीन दिनों में यहां किसानों की संख्या बढ़ेगी। ऑल इंडिया किसान सभा के अध्यक्ष अमराराम ने गांव कनेक्शन को बताया कि 11 दिसंबर तक प्रदेश में पंचायत समिति और नगर निकायों के चुनाव थे। इसीलिए 12 को अधिक किसान यहां नहीं पहुंच पाए। अब किसान अलग-अलग जत्थों में दिल्ली की ओर कूच कर रहे हैं। लड़ाई लंबी लड़ने और उसकी तैयारियों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि किसानों के एक छोटे समूह ने आंदोलन स्थल के पास के एक होटल की कुछ जगह को एक महीने के लिए किराए पर ले लिया है। ताकि उनके सोने, नहाने, कपड़े धोने और मोबाइल चार्ज किए जा सकें।

अमराराम कहते हैं, "आजादी के बाद ये सबसे बड़ा किसान आंदोलन है। दिल्ली को चारों दिशाओं से किसानों ने घेर लिया है, लेकिन दिल्ली में बैठी सरकार कोई निर्णय नहीं ले पा रही। हमने तय किया हुआ है कि जब तक तीनों कानून वापस नहीं लिए जाएंगे, किसान भी खेतों में वापस नहीं जाएंगे।"

प्रचार के लिए सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे किसान

आंदोलन स्थल पर हो रहे भाषण, कार्यक्रमों को आम जनता तक पहुंचाने के लिए किसान सोशल मीडिया का भी उपयोग कर रहे हैं। ऑल इंडिया किसान संघर्ष समन्यवय कमेटी के नाम से फेसबुक पर एक पेज बनाया हुआ है। इस पर आंदोलन स्थल पर हो रहे हर एक कार्यक्रम और प्रेस में आंदोलन के बारे में छप रहे लेखों को अपलोड किया जा रहा है। साथ ही वाट्सअप पर भी कई ग्रुप बनाए गए हैं और पल-पल की खबरें यहां शेयर की जा रही हैं।


हनुमानगढ़ से आए युवा किसान गुरप्रीत ने बताया कि जब सरकार आंदोनल को खत्म करने के लिए आईटी टीम, फेक पोस्ट्स का सहारा ले रही है तो फिर किसान अपनी आवाज़ पहुंचाने के लिए ये क्यों ना करें? वे बताते हैं कि आंदोलन में युवा बड़ी संख्या में आए हुए हैं, जो नई तकनीकी के जानकार हैं। हमें सब कुछ आता है।

इसके अलावा यहां कुछ टीवी न्यूज चैनलों के रिपोर्टरों का भी किसान विरोध कर रहे हैं। किसानों का आरोप है कि वे अपनी कवरेज से इस आंदोलन को बदनाम कर रहे हैं। शुक्रवार को एक निजी न्यूज चैनल का किसानों और कुछ युवाओं ने नारेबाजी कर विरोध किया।

राज्यपाल भाजपा के, राज्य के बने कानून पास ही नहीं होंगे- अमराराम

राजस्थान सरकार ने 31 अक्टूबर को केन्द्र के कृषि कानूनों के बाद आवश्यक वस्तु (विशेष उपबंध और राजस्थान संशोधन विधेयक), कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक और कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयकों को विधानसभा में पास किया है। हालांकि तीनों विधेयक अभी राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए अटके हुए हैं।


इस संबंध में अमराराम से जब गांव कनेक्शन ने सवाल किया कि क्या ये विधेयक राजस्थान के किसानों के लिए फायदेमंद नहीं होंगे? अमराराम ने जवाब दिया कि पहले कानूनों को राज्यपाल से मंजूरी मिलेगी तब कुछ फायदे-नुकसान का आंकलन हो सकेगा। राज्यों में भाजपा के नियुक्त राज्यपाल हैं, वे कानूनों को मंजूरी ही नहीं दे रहे। यही बात शुक्रवार को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सरकार के दो साल पूरे होने पर हुए कार्यक्रम में कही। उन्होंने कहा कि हमने तीन संशोधिक कानून पारित किए, लेकिन राज्यपाल ने इन्हें अभी तक मंजूरी नहीं दी है। राष्ट्रपति भी हमें मिलने का वक्त नहीं दे रहे।

कभी भी जाम हो सकता है हाइवे

अनौपचारिक बातचीत में आंदोलन में मौजूद किसान और उनके नेताओं ने बताया कि वे फ्लाईओवर से आगे नहीं जाएंगे। अगर किसानों की संख्या बढ़ती है तो दिल्ली से आने वाले रास्ते को भी जाम किया जाएगा। हालांकि आधिकारिक रूप से इस पर कोई किसान नेता बयान नहीं दे रहा। किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है कि हमारा मकसद दिल्ली पहुंचना है, जहां अभी बैठे हैं, वहीं से दिल्ली जाएंगे। जनता को परेशान करना हमारा मकसद नहीं है।

लेकिन वहां मौजूद युवा किसानों से बात करने पर पता चला कि संख्या बढ़ते ही सिंघु और टिकरी बॉर्डर की तरह किसान दूसरी तरफ का हाइवे भी जाम कर सकते हैं।

20 तारीख को राजस्थान के 45 हजार गांवों में मृत किसानों को श्रद्धांजलि

किसानों के इस आंदोलन में अपनी जान गंवाने वाले सभी किसानों को 20 नवंबर के दिन श्रद्धांजलि दी जाएगी। किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट ने बताया कि अब तक इस आंदोलन में 22 से ज्यादा किसानों की मृत्यु हो चुकी है। इसीलिए हम प्रदेश के 45,539 गांवों में श्रद्धांजलि सभा आयोजित कर रहे हैं।

खैर! शाम के पांच बजने को हैं। ठंडी हवाओं ने किसानों के तंबुओं को घेर लिया है। दोपहर की धूप से खिले सरसों के फूल वापस से झुकने लगे हैं। राजस्थान-हरियाणा के खेड़ा गांव की फिजाओं में कानूनों के विरोध के नारे गूंज रहे हैं। अलाव जल उठे हैं। ज्यादातर किसान शाम के खाने का इंतजाम करने लगे हैं, इस उम्मीद से कि जल्द कोई हल निकलेगा...

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