यहां है बाहुबली का राज्य माहिष्मती, काल्पनिक नहीं हैं बाहुबली के किरदार, ये रहे प्रमाण

Mithilesh DharMithilesh Dhar   1 May 2017 6:53 PM GMT

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यहां है बाहुबली का राज्य माहिष्मती, काल्पनिक नहीं हैं बाहुबली के किरदार, ये रहे प्रमाणये तस्वीरें कुछ कहती हैं। फोटो- साभार

लखनऊ। बाहुबली 2 सफलता के नए किर्तिमान स्थापित कर रही है। दर्शकों को ये फिल्म खूब भा रही है। बावजूद इसके कुछ फिल्म समीक्षक इसकी सफलता पर सवालिया निशान भी लगा रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि इसकी कथा काल्पनिक है, जो इसे कामजोर साबित करती है। लेकिन इन सब आलोचनाओं का फिल्म की लोकप्रियता पर कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है। दरअसल ये फिल्म, इसकी लोकप्रियता, दर्शकों की इसके प्रति दीवानगी हिंदी भाषा के फिल्म कहानीकारों के लिए चुनौती साबित हो रही है।

काल्पनिक कथा होने के बावजूद लोग फिल्म को सत्यकथा की तरह देख रहे हैं और पसंद कर रहे हैं। फिल्म ने तीन दिन में ही 450 करोड़ के आंकड़ें को छू लिया है। जिस तरह से कमाई का ग्राफ बढ‍़ रहा है, उससे ये तो तय है कि बाहुबली 2 भारत की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनने जा रही है।

अब आते हैं फिल्म की कहानी पर। ये सच हो सकता है कि फिल्म की कहानी काल्पनिक हो, लेकिन ये सच पूरा नहीं है कि फिल्म के किरदार काल्पनिक हैं। जिन किरदारों के आसपस कहानी का तानाबाना बुना गया है दरअसल में हम उनसे पहले परिचित हैं। जिस राज्य को लेकिर फिल्म बनाई गई है, जिसके लिए पूरी लड़ाई लड़ी जाती है वो राज्य आज अपने गौरवशानी वैभव को समेटे हुए हैं।

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मध्य प्रदेश में है माहिष्मती की गौरवाशाली विरासत

मध्य प्रदेश का माहिष्मती दुर्ग

जबलपुर में रहने वाले इतिहासविद राजकुमार गुप्ता बताते हैं कि चेदि जनपद की राजधानी 'माहिष्मति', जो नर्मदा के तट पर स्थित थी, इसका अभिज्ञान ज़िला इंदौर, मध्य प्रदेश में स्थित 'महेश्वर' नामक स्थान से किया गया है, जो पश्चिम रेलवे के अजमेर-खंडवा मार्ग पर बड़वाहा स्टेशन से 35 मील दूर है। महाभारत के समय यहाँ राजा नील का राज्य था, जिसे सहदेव ने युद्ध में परास्त किया था।

'ततो रत्नान्युपादाय पुरीं माहिष्मतीं ययौ।
तत्र नीलेन राज्ञा स चक्रे युद्धं नरर्षभ:।' (महा0 सभा0 32,21)

राजा नील महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ता हुआ मारा गया था। बौद्ध साहित्य में माहिष्मति को दक्षिण अवंति जनपद का मुख्य नगर बताया गया है। बुद्ध काल में यह नगरी समृद्धिशाली थी तथा व्यापारिक केंद्र के रूप में विख्यात थी। तत्पश्चात उज्जयिनी की प्रतिष्ठा बढ़ने के साथ-साथ इस नगरी का गौरव कम होता गया। फिर भी गुप्त काल में 5वीं शती तक माहिष्मति का बराबर उल्लेख मिलता है। कालिदास ने 'रघुवंश' में इंदुमती के स्वयंवर के प्रसंग में नर्मदा तट पर स्थित माहिष्मति का वर्णन किया है और यहाँ के राजा का नाम 'प्रतीप' बताया है-

मध्य प्रदेश का माहिष्मती दुर्ग।

'अस्यांकलक्ष्मीभवदीर्घबाहो
माहिष्मतीवप्रनितंबकांचीम् प्रासाद-जालैर्ज
लवेणि रम्यां रेवा यदि प्रेक्षितुमस्तिकाम:।' (रघुवंश 6,43)

इस उल्लेख में माहिष्मती नगरी के परकोटे के नीचे कांची या मेखला की भांति सुशोभित नर्मदा का सुंदर वर्णन है। कालिदास का उल्लेख माहिष्मति नरेश को कालिदास ने अनूपराज भी कहा है जिससे ज्ञात होता है कि कालिदास के समय में माहिष्मति का प्रदेश नर्मदा नदीके तट के निकट होने के कारण अनूप कहलाता था। पौराणिक कथाओं में माहिष्मति को हैहय वंशीय कार्तवीर्य अर्जुन अथवा सहस्त्रबाहु की राजधानी बताया गया है।

किंवदंती है कि इसने अपनी सहस्त्र भुजाओं से नर्मदा का प्रवाह रोक दिया था। भूतपूर्व इंदौर रियासत की आद्य राजधानी यहीं थी। एक पौराणिक अनुश्रुति में कहा गया है कि माहिष्मति का बसाने वाला 'महिष्मानस' नामक चंद्रवंशी नरेश था। सहस्त्रबाहु इन्हीं के वंश में हुआ था। महेश्वरी नामक नदी जो माहिष्मति अथवा महिष्मान के नाम पर प्रसिद्ध है, महेश्वर से कुछ ही दूर पर नर्मदा में मिलती है। हरिवंश पुराण की टीका में नीलकंठ ने माहिष्मति की स्थिति विंध्य और ऋक्ष पर्वतों के बीच में विंध्य के उत्तर में और ऋक्ष के दक्षिण में बताई है।

दुःशासन का सीना चीरते भीम। (काल्पिक फोटो)

बाहुबली के किरदार पौराणिक कथाओं से प्रेरित

बाहुबली के किरदारों को अगर आप गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि सभी किरदार किसी न किसी से प्रेरित हैं। पौराणिक पात्रों को आधुनिक रूप दिया गया है। कटप्पा सिंहासन से बंधा हुआ महाभारत के भीष्म की याद दिलाता है, वहीं बाहुबली में अर्जुन की वीरता एवं भीम के अपार बल का संगम है। भल्लालदेव दुर्योधन की याद दिलाता है वहीं विज्जलदेव धृतराष्ट्र के मोह और शकुनि के कुटिलता का सम्मिश्रण है। गदा दुर्योधन का प्रमुख हथियार था तो भल्लादेव भी विशालकाय गदा हमेशा अपने पास रखता है। अर्जुन सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे, बाहुबली भी इल कला में पारंगत था।

बाहुबली का किरदार देवसेना।

देवसेना चित्रांगदा के रूप में

देवसेना की कहानी बहुत हद तक मणिपुर राज्य की राजकुमारी चित्रांगदा से मिलती थी। चित्रांगदा बेहद खूबसूरत थीं। एक बार अर्जुन कारणवश मणिपुर गए अर्जुन ने उन्हें देखा और देखते ही उन पर मोहित हो गए। अर्जुन ने चित्रांगदा के पिता और मणिपुर के राजा चित्रवाहन से चित्रांगदा के साथ अपनी विवाह की इच्छा बताई। चित्रांगदा के साथ अपने पुत्र वभ्रुवाहन के जन्म होने तक अर्जुन मणिपुर में ही रहे। वभ्रुवाहन के जन्म के बाद वे पत्नी और बच्चे को वहीं छोड़ इंद्रप्रस्थ आ गए। चित्रवाहन की मृत्यु के बाद वभ्रुवाहन मणिपुर का राजा बना। बाहुबली और देवसेना की कहानी इससे मिलती जुलती है। बाहुबली देशाटन पर जाता है और उसे देवसेना से प्यार हो जाता है। बाहुबली ने देवसेना के पिता के सामने शादी का प्रस्ताव रखा, उन्होंने इसे मान भी लिया।

कई दृश्य भी पौराणिक कथाओं से लिए गए

राजमाता शिवागामी खुद डूब जाती हैं लेकिन बाहुबली को अपने हाथ पर उठाए रहती हैं और उसकी रक्षा की। आपको ये सीन देखकर वासुदेव की याद जरूर आई होगी। हमने धार्मिक धारावाहिक श्री कृष्णा में देखा कि कैसे वासुदेव नवजात भगवान कृष्ण को यमुदा नदी पार करके गोकुल तक ले जाते हैं। जिस तरह वासुदेव ने भगवान कृष्ण को उठाया थी ठीक उसी से मिलता जुलता सीन बाहुबली में तब दिखाया जाता है जब नवजात महेंद्र बाहुबली को उनकी दादी शिवगामी देवी अपने हाथ में महेंद्र बाहुबली को उठाए रखती हैं ताकि महेंद्र बाहुबली को डूबने से बचाया जा सके।

दुःशासन ने द्रौपदी का चीरहरण किया था। भीम ने इसका बदला लेने के लिए कुरुक्षेत्र में दुःशासन का सीना चीर देते हैं और रक्तपान करते हैं। बाहुबली फिल्म में भल्लालदेव ने इसी दृश्य की नकल करने की कोशिश की। भल्लालदेव बाहुबली का सीना चीरकर रक्तपान करना चाहता था।

इन कुछ प्रमाणों से ये सिद्ध होती है कि फिल्म भले ही काल्पनिक हो लेकिन, उसके किरदार और कुछ दृश्य पौराणिक कथाओं से कहीं न कहीं प्रेरित हैं। ऐसे में फिल्म को पूरी तरह काल्पनिक कहना गलता होगा।

स्त्रोत- महाभारत, विकिपीडिया

                         

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