पश्चिम बंगाल चुनाव: नंदीग्राम क्यों है खास, ममता बनर्जी इसी सीट से क्यों लड़ रही हैं चुनाव?

पश्चिम बंगाल चुनाव में लोगों की नजर दो सीटों पर सबसे ज्यादा है एक नंदीग्राम और दूसरी सिंगूर, नंदीग्राम में 1 अप्रैल को भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच मतदान हुआ। ये सीट बीजेपी और टीएमसी दोनों के लिए खास हैं, खुद ममता बनर्जी नंदीग्राम से मैदान में हैं, जानिए आखिर नंदीग्राम सीट खास क्यों हैं?

Gurvinder SinghGurvinder Singh   1 April 2021 8:20 AM GMT

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पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के लिए 30 सीटों पर मतदान हुआ। इनमें एक विधानसभा सीट नंदीग्राम भी है। नंदीग्राम पर पूरे देश की निगाहें लगी हैं क्योंकि इस सीट खुद मुख्यमंत्री और तृणमूल पार्टी की मुखिया ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) चुनाव मैदान में हैं। जबकि कुछ समय पहले ही टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए सुवेन्दु अधिकारी (Suvendu Adhikari ) उन्हें सामने से टक्कर दे रहे हैं।

नंदीग्राम काफी संवेदनशील इलाकों में से एक है। मतदान के दिन यहां पर बीजेपी के उम्मीदवार सुवेन्दु अधिकारी के काफिले पर हमला हुआ। पथराव में कई गाड़ियां टूट गई, सुवेंन्दु सुरक्षित हैं लेकिन कई मीडिया कर्मियों को चोट आई हैं।

सुवेंदु अधिकारी और ममता बनर्जी एक कभी एक साथ हुआ करते थे लेकिन अब उनकी राहें अलग हैं। नंदीग्राम पश्चिम बंगाल की सबसे चर्चित सीटों में से हैं। राजनीति के जानकार बताते हैं वाम दलों (लेफ्ट) की सरकार जो तीन दशकों (करीब 34 साल) से सत्ता में थी उसे पश्चिम बंगाल की गद्दी से हटाने में सिंगूर आंदोलन और नंदीग्राम कांड का अहम स्थान रहा था।

सिंगूर और नंदीग्राम के जमीन अधिग्रहण विवाद से तैयार हुई थी ममता बनर्जी के लिए सियासी जमीन। फोटो गुरविंदर सिंह

नंदीग्राम में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार द्वारा एक विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) के लिए भूमि अधिग्रहण को लेकर विवाद शुरु हुआ था। इंडोनेशिया का एक औद्योगिक समूह एक फैक्ट्री लगाना चाहता था, 2006 में उन्हें जमीन भी मिल गई थी लेकिन ममता बनर्जी ने उसका कड़ा विरोध किया। सलीम ग्रुप को 'स्पेशल इकनॉमिक जोन' (SEZ) नीति के तहत केमिकल हब बनाना चाहता था, हजारों हेक्टेयर जमीन की जरुरत थी। लेकिन जमीन अधिग्रहण के खिलाफ पश्चिम बंगाल में लगातार आवाज़ उड़ रही थी इसी दौरान मार्च 2007 में यहां हिंसक झड़प हो गई। इस दौरान चली गोलियों में 14 ग्रामीणों की अधिकारिक मौत हो गई थी, जबकि गैर सरकारी आंकड़ा इससे कहीं अधिक का बताया जा रहा है। ममता बनर्जी और उनकी पार्टी टीएमएसी ने इसे मुद्दा बनाया साल 2011 के विधानसभा चुनावों में मा, माटी मानुष (मॉ, मातृभूमि और लोग) का नारा बुलंद हुआ और ममता बनर्जी की विराट जीत हुई थी।

ममता बनर्जी इससे पहले सिंगूर में टाटा की नैनो कार प्लांट को लेकर जमीन अधिग्रहण का मुद्दा उठा चुकी थी। साल 2006 में सिंगूर भूमि अधिग्रहण के खिलाफ दीदी (ममता बनर्जी) 26 दिन की हड़ताल कर चुकी थीं। सिंगूर से न सिर्फ ममता बनर्जी को ताकत मिली, जन समर्थन मिला बल्कि उसकी ऊर्जा नंदीग्राम में जमीन अधिग्रहण के खिलाफ बड़ी ताकत बनी थी।

सिंगूर एक उदाहरण के रूप देखा जा सकता है- औद्योगिक भूमि में परिवर्तित खेतों को एक उग्र संघर्ष और आंदोलन के बाद किसानों को लौटा दिया गया। मुद्दे ने दूसरे देशों का ध्यान खींचा। सिंगूर की वजह से ही पश्चिम बंगाल में 1977 से राज कर रही 34 साल शासन करने वाली वाम सरकार गिर जाती है और ममता बनर्जी 2011 में सत्ता में आ जाती हैं।


हालंकि नंदीग्राम सीट 2009 में ही टीएमएसी के पास आ गई थी, साल 2006 के विधानसभा चुनावों में यहां पर कम्युनिटी पार्टी के इलियास मोहम्मद चुनाव जीते थे, लेकिन घूसखोरी के आरोप में वो जेल चले गए थे, जिसके बाद साल 2009 में हुए उपचुनाव में इस सीट से टीएमसी के टिकट पर फिरोजा बीबी जीतीं जो 2016 तक इसी सीट से विधानसभा पहुंचीं। साल 2016 के विधानसभा चुनाओं में टीएमसी के टिकट पर सुवेन्दु अधिकारी (Suvendu Adhikari) लड़े और जीते भी। लेकिन इस बार वही सुवेन्दु अधिकारी ममता बनर्जी के खिलाफ बीजेपी से ताल ठोंक रहे हैं। यहां पर तीसरे बड़े उम्मीदवार के रुप में सीपीआई (एम) से मीनाक्षी मुखर्जी चुनाव लड़ रही है।

पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम के दीनबंधु गांव में बने मतदान केंद्र पर नंगे पैर वोट डालने जाती बुजुर्ग महिला। फोटो- गुरविंदर सिंह

कोलकाता से दिल्ली को जोड़ने वाले दुर्गापुर एक्सप्रेस-वे के पास स्थित शांत सिंगूर शहर 18 मई 2006 को सुर्खियों में आया। तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य (लेफ्ट सरकार) ने टाटा संस के चेयरपर्सन रतन टाटा के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में घोषणा की कि राज्य सरकार ने सिंगूर में 1 लाख रुपए की छोटी कार (टाटा नैनो) परियोजना को हरी झंडी दे दी है और इसके लिए लगभग 1,000 एकड़ (404 हेक्टेयर) जमीन का अधिग्रहण किया जाएगा।

नंदीग्राम का चुनावी इतिहास। साभार विकीपीडिया

इस दौरान करीब 3,000 किसानों ने अपनी जमीन देने से मना कर दिया। 25 मई 2006 को किसानों ने राज्य सरकार पर बलपूर्वक भूमि अधिग्रहण का आरोप लगाते हुए सिंगूर में बड़े स्तर पर आंदोलन शुरू कर दिया। सात महीने बाद तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने कोलकाता में भूख हड़ताल शुरू कर दी जो 26 दिनों तक चली। लंबे समय तक आंदोलन से नाखुश टाटा ने आखिरकार अक्टूबर 2008 में इस परियोजना को छोड़ दिया। इस समय तक सिंगूर में कारखाने पर काम लगभग पूरा हो गया था। 2016 में किसानों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जमीन वापस भी मिल गई लेकिन वो जमीन किसी बंजर से कम नहीं है। सिंगूर में 10 अप्रैल को मतदान होना है।

ये भी पढ़ें- पश्चिम बंगाल चुनाव 2021: टाटा की नैनो कार परियोजना में गई कई किसानों की जमीन वापस तो मिली लेकिन वह अब बंजर हो चुकी है




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