अवैध असलहों में कहां से आ रहे वैध कारतूस?

गाँव कनेक्शन | Sep 16, 2016, 16:13 IST
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लखनऊ। प्रदेश में सबसे ज्यादा हत्याएं अवैध हथियारों से होती हैं। तमंचे और पिस्टल जैसे दूसरे हथियार तस्करी या फिर अवैध तरीके से देसी फैक्टि्रयों में बनाए जा सकते हैं, लेकिन कारतूस नहीं। लोगों की जान लेने वाली कारतूस कानूनी होती हैं। अगर इन पर निगरानी की जा सके तो हत्याआें में गिरावट आ सकती है।

पिछले दिनों शहीद पथ पर अधिवक्ता संजय शर्मा की सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी गई। आरोपियों ने कुबूला कि उन्होंने वारदात में इस्तेमाल हुए तमंचे सीतापुर जिले में 10-10 हजार में खरीदे थे। देश में होने वाली हत्याओं में 89 फीसदी में अवैध हथियारों का इस्तेमाल किया जाता है।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक वर्ष 2010 से 2014 तक भारत में 17,490 हत्याएं बंदूक से हुईं, इसमें 89 प्रतिशत अवैध हथियार से हुई हैं। यूपी में सबसे ज्यादा हत्याएं 6,929 गोली मारकर की गईं। जबकि बिहार में 3,580, एमपी में 927, हरियाणा में 718, पंजाब में 440, राजस्थान में 335 हत्याएं गोली मारकर हुईं।

मुकदमों की बात किया जाये तो देश में अवैध हथियार रखने के मामलों में लगभग तीन लाख मुकदमे दर्ज़ हुए इसमें डेढ़ लाख मुकदमे उत्तर प्रदेश में दर्ज हुये हैं जबकि दूसरे नम्बर पर मध्य प्रदेश, तीसरे नम्बर पर राजस्थान है। उत्तर प्रदेश में विगत चार वर्षों में 24,583 बंदूके जब्त की गईं, इसमें 62 प्रतिशत देशी तमंचे बरामद हुए। वहीं 31,554 कारतूस आदि बरामद हुए।

इन हत्याओं में लाइसेंसी असलहों से उत्तर प्रदेश में 701, पंजाब में 291, बिहार में 183, मध्य प्रदेश में 168, हरियाणा में 70, राजस्थान में 67 हत्यायें हुई है। जबकि अवैध असलहों से उत्तर प्रदेश में 6,228, बिहार में 3,397, मध्य प्रदेश में 759, हरियाणा में 648, राजस्थान में 268, पंजाब में 149 हत्यायें हुई है। उत्तर प्रदेश में अवैध असलहों से होने वाली हत्याओं में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई हैं। आईजी लखनऊ जोन ए. सतीश गणेश ने कहा, “हथियार अवैध हो सकते हैं लेकिन उनमें लगने वाली कारतूस नहीं। अवैध हथियारों की तस्करी और उनसे होने वाली हत्याओं को रोकना है तो सबसे पहले कारतूसों की बिक्री का लेखा-जोखा रखना पड़ेगा। क्योंकि कारतूस लाइसेंस वाली शस्त्र दुकानों से ही खरीदे जाते हैं।’’

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वो आगे दलील देते हैं, एसडीएम और क्षेत्राधिकारी को अधिकार है कि हर महीने दुकानों का भौतिक सत्यापन करें। दुकानदार ने कितने कारतूस बेचे हैं और किसके नाम पर बेचे हैं। कई बार दुकानदार कारतूस किसी और को बेचता है और उसकी बिक्री किसी और लाइसेंसी शस्त्र धारक के नाम पर रजिस्ट्रर में इंट्री कर देता है। नियमत खोका वापस करने पर नई कारतूस मिलनी चाहिए लेकिन पैसों के लिए दुकानदार ऐसान हीं करते।

लाटूस रोड स्थित शस्त्र लाइसेंस के विक्रेता शनि सरना ने बताया, “2015 के बाद तो खोके जमा करने के बाद ही कारतूस दिए जाते हैं। पहले सिर्फ लाइसेंसधारी के उद्देश्य बताने पर ही कारतूस दे देते थे। हालांकि नए नियमों से बिक्री प्रभावित हुई है। दुकानदार इसके खिलाफ हाईकोर्ट भी गए हैं।”

रिपोर्टर - गणेश जी वर्मा

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