वायू प्रदूषण से प्रभावित होने के बाद भी भारत के गाँव वायू प्रदूषण निवारण नीतियों का हिस्सा नहीं

पंचायत स्तर पर भविष्य में बनाई गई वायू प्रदूषण निवारण कार्य योजनाएं, समूचे स्तर पर वायु प्रदूषण को कम करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती हैं।

Ajay Singh NagpureAjay Singh Nagpure   4 Feb 2023 2:23 PM GMT

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वायू प्रदूषण से प्रभावित होने के बाद भी भारत के गाँव वायू प्रदूषण निवारण नीतियों का हिस्सा नहीं

अधिक संख्या में प्रभावित होने के बावजूद भारत की ज्यादातर ग्रामीण जनसंख्या, उनके स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले इस प्रमुख जोखिम से अनभिज्ञ है।

भारत में हर वर्ष लगभग दस लाख लोगों की बाहरी वातावरण में उपस्थित वायु प्रदूषण जिसे आउट एयर पॉल्यूशन कहा जाता है के कारण मौत हो जाती है। लगभग छह लाख लोग घर के अंदर होने वाले प्रदूषण के समय से पहले काल के ग्रास बन जाते हैं। भारत में हममें से ज्यादातर लोगों को लगता है कि वायु प्रदूषण एक शहरी समस्या है और शहर के लोग ही इससे प्रभावित होते हैं, लेकिन वास्तविकता हमारी इस सोच से अलग है।

वर्तमान में भारत की 99% आबादी, प्रतिदिन विश्व संसाधन संस्थान द्वारा निर्धारित मानक से ऊपर वायु प्रदूषण युक्त खतरनाक स्तर की हवा को अपनी सांस द्वारा ग्रहण कर रही है। साल 2022 में भारत की लगभग 64 प्रतिशत जनसंख्या गाँवो में रहती थी। खाना पकाने के लिए वर्ष 2022 में ग्रामीण भारत की 35 प्रतिशत जनसंख्या ठोस ईंधन का उपयोग करती थी और शहरों में यह संख्या 5% थी, जोकि घर के अंदर होने वाले वायू प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है। इन आंकड़ों से यह निर्धारित होता है की घरेलू ( इंडोर) वायु प्रदूषण और बाहरी वायु प्रदूषण दोनों से संख्या के आधार पर प्रभावित होने वाली जनसंख्या गाँव में ज्यादा रहती है।

अधिक संख्या में प्रभावित होने के बावजूद भारत की ज्यादातर ग्रामीण जनसंख्या, उनके स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले इस प्रमुख जोखिम से अनभिज्ञ हैं। इस अनभिज्ञता का कारण यह है की भारत की ग्रामीण जनसंख्या के पास इस प्रकार के जोखिम की जानकारी पहुंचाने वाले माध्यमों का अभाव, ज्यादातर वायु प्रदूषण संबंधी खबरें क्षेत्रीय भाषाओं में ग्रामीण जन तक नहीं पहुंच पाती है। साथ ही साथ अगर क्षेत्रीय भाषाओं में जानकारी पहुंच भी रही है तो उसमें आंकड़े शहरों के दिए होते है, जिससे यह प्रतीत होता है की समस्या शहर की है गाँव की नहीं। हमारे देश में वायु प्रदूषण मापने की मशीनें ज्यादातर शहरों में लगी हुई है और ग्रामीण इलाकों में इनकी संख्या नगण्य है।

मशीनीकरण और अन्य विभिन्न कारणों से समय के साथ फसलों के अवशेष (पराली) का खेतों में जलाने के चलन बढ़ा है।

वायु प्रदूषण के विभिन्न स्रोत में ट्रांसपोर्ट, इंडस्ट्री के साथ-साथ, खाना बनाने के लिए उपयोग में लिए जाने वाले घरेलू ठोस ईंधन और फसलों के अवशेष का जलाना मुख्य है। भारतीय विज्ञान प्रौद्योगिकी दिल्ली द्वारा किये गए एक अध्ययन में बताया गया कि खाना बनाने में उपयोग किये जाने वाले ठोस ईंधन को एलपीजी और अन्य स्वच्छ ईंधन से प्रतिस्थापित करने से देश की वायु प्रदूषण की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है। ठोस ईंधन का उपयोग करने वाली ज्यादातर जनसंख्या ग्रामीण है और 35% ग्रामीण जनसंख्या को स्वच्छ ईंधन मिल जाए तो वायू प्रदूषण की समस्या काफी हद तक कम हो सकती है। मशीनीकरण और अन्य विभिन्न कारणों से समय के साथ फसलों के अवशेष (पराली) का खेतों में जलाने के चलन बढ़ा है। प्रति वर्ष सर्दी के मौसम में यह चलन वायू प्रदूषण के स्तर को गंभीर रूप से बढाती है। यह आंकड़े बताते हैं, वायु प्रदूषण के महत्वपूर्ण स्रोत ग्रामीण क्षेत्रों में भी उपस्थित है।

अत्यधिक संख्या में प्रभावित होने तथा महत्वपूर्ण वायु प्रदूषण के श्रोत ग्रामीण क्षेत्रों में होने के बावजूद, वायु प्रदूषण आंकड़े और नियंत्रण सम्बन्धित ज्यादातर कार्यक्रम व नीतियां शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित हैं। वर्तमान में वायु प्रदूषण की अत्यधिक घातक स्थिति को देखते हुए यह जरूरी है कि हमारे देश की गाँवों को भी इन कार्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए। जिस तरह राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत देश के विभिन्न शहरों को शामिल किया गया है उसी क्रम में इन शहरों के क्षेत्रों में उपस्थित गाँवों को भी शामिल किया जाना चाहिए। मुझे लगता है कि गाँव को शामिल करने से वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक उच्च क्षमता वाला सहयोग मिलेगा। अगर क्रमवार तरीके से वायु प्रदूषण के विषय और उससे निपटने के कार्यक्रम को गाँवों से परिचय कराया जाये तो, वायु प्रदूषण से निपटने वाली दीर्घकालीन नीतियों को एक सबल मिलेगा। यह आवश्यक नहीं है की हम जैसे कार्य शहरों में कर रहे है वैसा ही गाँवों में तुरंत प्रारंभ कर दें।

क्योंकि वायू प्रदूषण एक नया विषय है, आरंभ में पंचायत स्तर के हर प्रतिनिधि जिनमें गाँव के सरपंच/प्रधान, पंच/वार्ड मेंबर और गाँव के सचिव को विषय की जानकारी व श्रोत से समय-समय में परिचय कराया जाए। शुरुआत की यह जागरूकता भविष्य में होने वाले वायु प्रदूषण के कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के लिए अत्यधिक सहयोग करेगी। समय के साथ गाँवो में पंचायत स्तर पर नागरिकों को भी शामिल किया जा सकता है।



जैसा की ऊपर कहा गया कि घरेलू ठोस ईंधन का उपयोग गाँव में वायू प्रदूषण का एक बढ़ा कारण है, स्वच्छ ईंधन का उपयोग से इस स्रोत से वायु प्रदूषण को कम किया जा रहा है। विभिन्न अध्ययनों द्वारा यह पाया गया है की ग्रामीण जन द्वारा स्वच्छ ईंधन जैसे एलपीजी, बायोगैस का उपयोग जागरूकता के अभाव में भी नहीं किया जा रहा है।

ऐसा देखा गया है कि एलपीजी घर में होने और उसको खर्च वहन करने के सामर्थ्य होने के बावजूद, बहुत से ग्रामीण जन इसका उपयोग नहीं कर रहे हैं। समय के साथ गाँव के घरों द्वारा में उत्सर्जित करने वाले घरेलू (ठोस अवशेष) में भी परिवर्तन आया है, बीते कुछ वर्षों में सूखे कचरे की मात्रा ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ी है। कृत्रिम उर्वरक के बढ़ते उपयोग के कारण कूड़ा के खाद बनाने के प्रक्रिया के क्रम में कमी आई है।

शहरों की तरह गाँवो में भी घर से निकलने वाला कचरा जलाया जाने लगा है, जोकि वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत में से एक है। खेतों में फसल काटने के बाद फसल अवशेष (पराली) को जलाने की समस्या दिन बा दिन बढ़ती जा रही है। भारत के गाँवों को वायु प्रदूषण निवारण के कार्यक्रम में शामिल करने से इन स्रोत पर जमीनी स्तर पर काम करने में बल मिलेगा।

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत शहरों में वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए सूक्ष्म स्तरीय योजनाएं बनाई जा रही है जिसके तहत सूक्ष्म स्तर (मोहल्ले स्तर पर) पर वायु प्रदूषण के स्रोत को सुधारने के लिए नीति निर्धारण तथा उनका कार्यान्वयन किया जा रहा है। शहरों के सूक्ष्म स्तरीय योजनाओं का क्षेत्र ज्यादातर गाँव के बराबर या उससे बढ़ा होता है। पंचायत स्तर पर भविष्य में बनाये गए वायु प्रदूषण निवारण कार्य योजनाएँ, समूचे स्तर पर वायु प्रदूषण को कम करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

डॉ. अजय सिंह नागपुरे, प्रिंसटन विश्वविद्यालय, प्रिंसटन संयुक्त राज्य अमेरिका में वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं।

#Air pollution #Rural India #story 

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