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‘आर्थिक उदारवाद की नीति के बाद अटल जी आर्थिक विकास के एक स्तंभ के रूप में उभरे’

जब भी आर्थिक नीतियों की बात होगी, तब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की चर्चा जरूर होगी। उन्होंने स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के जरिए भारत की सांस्कृतिक एवं आर्थिक दूरी को कम करने का कार्य किया था।
#Atal Bihari Vajpayi

विक्रांत सिंह

भारत सदैव आगे बढ़ा है। कभी धीरे बढ़ा, तो कभी तेज। कभी इसके नेता नेहरू, कभी शास्त्री, कभी इंदिरा, कभी राजीव, कवि नरसिम्हा राव तो कभी अटल बिहारी वाजपेई हुए। 1991 की नई आर्थिक नीति के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था नई उड़ान की तरफ अग्रसर थी और आगे चलकर इस उड़ान के नेता बने श्री अटल बिहारी वाजपेई।

वर्ष 1991 के आर्थिक उदारवाद की नीति के बाद अटल जी आर्थिक विकास के एक स्तंभ के रूप में उभरे। ऐसी संभावनाओं पर संदेह था, क्योंकि संघ की पृष्ठभूमि से आया हुआ नेता अर्थव्यवस्था में खुले मंच की वकालत कैसे करता? संघ तो स्वदेशी आंदोलन की वकालत करता रहता है। सन् 1991 की उदार आर्थिक नीति के वक्त भी स्वदेशी जागरण मंच ने इसका पुरजोर विरोध किया था। लेकिन अटल बिहारी वाजपेई की आर्थिक नीतियों ने भारत को खुले बाजार में उड़ना भी सिखाया और मजबूती से टिकना भी सिखाया। अटल जी की आर्थिक विकास की परिकल्पना सदैव औधोगिक विकास, सांस्कृतिक विकास, सामाजिक विकास, एवं कृषि विकास के इर्द-गिर्द ही रहती थी। उनकी आर्थिक नीतियों ने हर वर्ग को प्रभावित किया और एक बड़ी शोषित और वंचित आबादी को आर्थिक मजबूती प्रदान करते हुए नया जीवन प्रदान किया था।

आने वाले वक्त में जब भी 21वीं सदी के विकास की पटकथा लिखी जाएगी तब अटल जी के आर्थिक निर्णयों में सबसे अधिक चर्चा “स्वर्णिम चतुर्भुज योजना” की की जाएगी। तत्कालीन अटल सरकार ने स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के जरिए दिल्ली-कोलकाता, चेन्नई – मुंबई, कोलकाता – चेन्नई, मुंबई – दिल्ली से जोड़ते हुए भारत की सांस्कृतिक एवं आर्थिक दूरी को कम करने का कार्य किया था। स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के अंतर्गत कुल 5846 किलोमीटर लंबे मार्गो का निर्माण किया गया था। वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “भारतमाला एवं सागरमाला” योजना अटलजी के स्वर्णिम चतुर्भुज योजना से प्रभावित दिखती है।

अटल जी नेहरु और गांधी की विरासत के व्यक्ति थे। उन्हें पता था कि भारत गांवों में बसता है और गांवों को शहरों से जोड़ना ही उनके आर्थिक स्वतंत्रता को सूत्रपात करेगा। उन्होंने अपने प्रधानमंत्री काल में ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क निर्माण योजना’ सन् 2000 में चालू कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को शहरी अर्थव्यवस्था से जोड़ने का कार्य किया था।

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जेम्स फ्रीमैन कहते थे कि कि “राजनेता अगले चुनाव के बारे में सोचते हैं और राष्ट्रनेता अगली पीढ़ी के बारे में”, अटल बिहारी बाजपेई राष्ट्रनेता थे और उनकी आर्थिक सोच में भारत की आर्थिक समृद्धि झलकती थी। उनके कार्यकाल में ही भारतीय अर्थव्यवस्था ने औसतन 7 से 8 फ़ीसदी के बीच की आर्थिक वृद्धि दर दर्ज की थी। अटल जी जल की समस्या को बेहतर समझते थे और इसलिए उन्होंने नदियों को जोड़ने के लिए एक योजना बनाई थी। देश की कुल 30 नदियों को जोड़कर एक नया आर्थिक और समाजिक पैमाना तय करना चाहते थे। नदियों को जोड़कर वह देश में पानी की किल्लत से जूझ रहे जगहों पर पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना चाहते थे। यह सही मायने में एक नई आर्थिक क्रांति जैसा कदम होता, लेकिन अटल जी अब नहीं रहे और उनके इस सपने को भी बात की सरकारों ने पीछे छोड़ दिया।

जिस जीएसटी को लेकर आज हम “एक देश, एक कर” के रूप में चर्चा करते हैं, वह अटल जी की ही परिकल्पना थी। उन्होंने ही सबसे पहले ‘एक देश, एक कर’ का स्वप्न देखा था। सन् 2000 में ही अटल सरकार ने जीएसटी के मॉडल का प्रारंभिक ढांचा पेश किया था। यह सत्य है कि आज की जीएसटी अटल जी के उस ढांचे से नहीं मिलती है.

अटल जी एक पढ़े-लिखे शख्सियत थे और देश में शिक्षा के महत्व को समझते थे. प्राथमिक शिक्षा को संबल प्रदान करने के लिए अटल सरकार ने ‘सर्व शिक्षा अभियान’ के जरिए उन्होंने सन् 2000-01 में 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था को लागू करते हुए ‘स्कूल चलो अभियान’ की शुरुआत की थी। उस दौर में दूरदर्शन पर ‘सर्व शिक्षा अभियान’ के संदर्भ में आने वाला एक विज्ञापन बड़ा प्रसिद्ध हुआ करता था।

‘वित्तीय घाटा’, यानी कि जितना कमाया उससे ज्यादा का खर्च कर दिया। पहले देश में वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस कानूनी ढांचा मौजूद नहीं होता था। सरकारें जितना कमाती थी, उससे ज्यादा खर्च करती और इस खर्च का कोई पैमाना भी नहीं होता था। जब प्रधानमंत्री के रूप में अटल जी ने कार्यभार संभाला तो उन्होंने संसद में ‘फिस्कल रिस्पांसिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक्ट 2003’ के जरिए वित्तीय घाटे को कानूनी नियंत्रण प्रदान किया था। इस कानून के जरिए यह तय किया गया था कि अर्थव्यवस्था में ‘फिस्कल डेफिसिट” (वित्तीय घाटा) जीडीपी के अनुपात में 0 से 3% के बीच में ही रहनी चाहिए।

अटल जी एक मुक्त आर्थिक परिकल्पना वाले प्रधानमंत्री के रूप में याद रखे जाएंगे, जिन्होंने विनिवेश और निजीकरण के रूप में का आर्थिक विकास की परिकल्पना की थी। उन्होंने विनिवेश और निजीकरण के लिए बकायदा एक अलग मंत्रालय बनाया था और यह जिम्मेदारी अरुण शौरी को सौंपी थी।

ऐसी सैकड़ों आर्थिक नीतियां है जिन पर अटल जी के व्यक्तित्व की छाप देखी जा सकती है और आने वाला वक्त इस पर काम भी करेगा। यहां कुछ चुनिंदा नीतियों को अपने पसंद से सुनकर लिखा गया है। आज अटल जी की पुण्यतिथि है। राष्ट्रनायक की पुण्यतिथि है। अटल जी हमारे बीच नहीं है, लेकिन वे सदैव जिंदा रहेंगे। वे अपनी आर्थिक नीतियों के लिए जिंदा रहेंगे, अपने सामाजिक कार्यों के लिए जिंदा रहेंगे, अटल अपने विचारों के लिए जिंदा रहेंगे। उन्हीं के शिष्य प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की एक पंक्ति है कि ‘जब अटल जी बोलते तो लगता कि देश बोल रहा है’।

(लेखक फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल के संस्थापक एवं अध्यक्ष हैं। ये उनके निजी विचार है।)

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