कर्ज़मुक्त कराने के साथ किसानों की आय बढ़ाने की ओर भी उठें ठोस कदम

Devinder SharmaDevinder Sharma   21 Oct 2016 3:12 PM GMT

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कर्ज़मुक्त कराने के साथ किसानों की आय बढ़ाने की ओर भी उठें ठोस कदमआत्महत्या कर चुके अलीगढ़ के एक किसान के परिवार को आर्थिक मदद की चेक देते वरुण गाँधी। फोटो-ट्विटर

मैं कभी उनसे मिला नहीं पर बीजेपी के सांसद वरुण गांधी के बारे में जो मैंने अख़बारों में पढ़ा वो मुझे आशा से भर देता है। सुल्तानपुर से सांसद, बीजेपी के इस युवा नेता ने हाशिये पर किसी तरह गुज़ारा कर रहे किसानों के उत्थान के लिए जो प्रयास शुरू किए हैं वो कौतुहल का विषय बन चुके हैं।

इकॉनोमिक्स टाइम्स अख़बार ने तो अपनी हेडलाइन में लिखा, ‘किसानों के लिए वरुण गाँधी द्वारा फंड का इस्तेमाल उत्तर प्रदेश में बना मुहिम।’ वहीं न्यूज़ वेबसाइट फर्स्टपोस्ट ने लिखा, ‘किसानों की वित्तीय मदद के लिए वरुण गाँधी का प्रयास भारत को जगाने के लिए एक ज़रूरी मुहिम।’ देशभर में लोकप्रिय हो रही वरुण की मुहिम के बारे में मैंने जितना जानने की कोशिश की, एक ख़त्म होते समुदाय को बचाने के लिए वरुण के अन्य प्रयासों की भी जानकारी मिली, जो वो लगातार करते रहे हैं। ये समुदाय है देश के 60 करोड़ किसान, जिन्हें एक के बाद एक आई सरकारों ने जानबूझ कर गरीब बनाए रखा। ये समुदाय भी आर्थिक सुधारों की तपिश शांत रहकर झेलता रहा।

ऐसे समय में जब किसानों को हाशिये पर धकेल दिया गया है, एक युवा सांसद को उनकी मदद में आगे आते देखकर सुखद अनुभव होता है। मुझे बताया गया कि ये सब 2014 के आम चुनाव से कुछ महीने पहले शुरू हुआ था। वरुण गाँधी ने कर्ज़ की मार झेल रहे किसानों की वित्तीय मदद शुरू की थी। सांसद ने ऐसे परिवारों को चिन्हित किया जिनके कमाने वाले लोग पहले ही आत्महत्या कर चुके थे। उन परिवारों को भी चिन्हित किया गया जहां भुखमरी की स्थिति हो। शुरुआत में, वरुण ने हर परिवार को 50,000 रुपए की वित्तीय मदद दी, जिसमें 1.4 करोड़ रुपए का खर्च आया। ये खर्च वरुण ने अपने संसाधनों से किया।

आमतौर पर चुनावों से पहले शुरू हुए ऐसे मुहिम चुनाव के साथ ही खत्म हो जाते हैं लेकिन वरुण गाँधी के मामले में ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने किसानों की मदद करना जारी रखा और इसके लिए उन्होंने वित्तीय रूप से समृद्ध लोगों मसलन डॉक्टरों, वकीलों और व्यापारियों से किसानों के लिए चंदा देने का आग्रह किया। इन सभी लोगों ने मिलकर 16.2 करोड़ रुपए जमा किए, जिससे 3,500 किसान परिवारों को कर्ज़ के जाल से बाहर निकाला गया। एक अखबार की रिपोर्ट के अनुसार जो प्रयास किसानों को आम वित्तीय सहायता देने से शुरू हुआ था वो आज उत्तर प्रदेश के 20 ज़िलों में फैली एक मुहिम बन चुका है।

पिछले हफ्ते वरुण ने झोपड़ी में रह रहे गरीब किसानों को बाथरूम अटैच्ड एक कमरे वाले 100 मकान दान दिए हैं। इसमें एक मकान का खर्च था लगभग 1.5 लाख रुपए और वरुण की योजना आने वाले समय में ऐसे 2,000 मकान राज्य भर में बांटने की है।

किसी भी पैमाने पर नापिए ये योगदान प्रशंसनीय है। मेरा मानना है कि वरुण गाँधी बिल्कुल वही मिसाल पेश करके दिखा रहे हैं जिसका ज़िक्र एक बार अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने किया था और वो है ‘इच्छाशक्ति की ताकत।’

‘अभी ये सीमित संसाधनों के साथ किया जा रहा सीमित प्रयास है, लेकिन आने वाले समय में मेरा लक्ष्य इसे जनमुहिम में बदलने का है। जनता से आने वाले पैसों से गरीबी झेल रहे 10,000 किसान परिवारों की मदद करने का लक्ष्य है,’ वरुण ने एक समाचार पत्र को दिए गए साक्षात्कार में यह बात कही। वरुण ने एक अलग इंटरव्यू में एक पत्रकार को ये भी समझाया था कि इन किसानों का सही चुनाव कितना ज़रूरी है। साथ ही मदद के लिए लोगों को तैयार करने में उन्हें ये समझाना कितना मुश्किल है कि अगर मदद न हुई तो ये किसान परिवार तबाह हो जाएंगे। ‘लगातार तीन फसलों तक अगर मौसम खराब होने से फसल बर्बाद हुई तो आत्महत्या के आंकड़े 50 फीसदी तक बढ़ सकते हैं। जिन किसानों का चुनाव होता है वो बर्बादी की कगार पर होते हैं,’ वरुण ने साक्षात्कार में कहा।

इस प्रयास के लिए वरुण गाँधी को साधुवाद। इस मामले में उनका दृढ़ संकल्प किसी भी अन्य चीज़ से ज्यादा प्रभावी रहा। कामना है कि वरुण के इस प्रयास को और बल मिले।

किसानों की मदद करने का वरुण गाँधी का प्रयास बिल्कुल वैसा ही है जैसा दो बॉलीवुड सितारों का है। अक्षय कुमार और नाना पाटेकर भी धन जुटाकर किसानों परिवारों को कर्ज़ से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं। मैं उनकी मुहिम का समर्थन करने के साथ ही ये भी मानता हूं कि उन्होंने अपनी आरामदायक ज़िंदगियों से बाहर निकलकर न सिर्फ किसानों की मदद की बल्कि देश का ध्यान भी किसानों पर घिरे संकट और बढ़ती आत्महत्याओं की ओर खींचा।

मैं इस बारे में सोच रहा था कि अगर ये तीनों किसान हितैशी लोग - वरुण गाँधी, अक्षय कुमार और नाना पाटेकर एक मंच पर आ जाएं तो ये तीनों मिलकर उस संकट को देश के सामने ला पाएंगे जो हमारा किसान हमारी मेजों पर सस्ता खाना उपलब्ध कराने के लिए बिना कुछ बोले झेल रहा है।

किसानों को कर्ज़ से बाहर निकाल पाना बहुत मुश्किल काम है। इस बारे में कोई संदेह नहीं होना चाहिए लेकिन मेरी एक चिंता है और वो ये कि जो किसान कर्ज़ से बाहर निकल भी आएंगे तो वो समय के साथ-साथ दोबारा कर्ज़ में धंस जाएंगे। हमेशा से यही हुआ है।

विस्तार से समझें तो उत्तर प्रदेश उन 17 राज्यों में से एक है जहां के किसानों की सालाना आय 20,000 रुपए जोड़ी गई, जो कि मात्र 1,667 रुपए प्रति माह हुआ। अगर आप को लगता है कि हरियाणा जैसे उन्नत कृषि वाले राज्यों में स्थिति बेहतर है तो आप गलत हैं। हरियाणा के एक कृषि विश्वविद्यालय की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में गेहूं उत्पादन के बाद किसान प्रति माह बस 800 रुपए ही कमा पाता है।

इसीलिए कह रहा हूं कि इतनी कम कमाई के बाद आप किसानों को एक बार कर्ज़ से निकालेंगे, दो बार निकालेंगे, लेकिन ये धीरे-धीरे फिर कर्ज़ में फंस जाएंगे। मेरी इसलिए वरुण गांधी से दरख्व़ास्त ये है कि किसानों को एक बार कर्ज़ से निकालने की मुहिम के साथ ही नीतियों में बदलाव की मांग भी उठाएं ताकि किसानों की आय बढ़कर इतनी तो हो ही सके जितने में उनके बच्चे अच्छी शिक्षा पा सकें, स्वास्थ्य खर्च निपटा सकें।

मुझे इसका कोई कारण नहीं समझ आता कि क्यों एक चपरासी की तनख्व़ाह 18,000 प्रति माह हो सकती है लेकिन एक किसान हर महीने महज़ 2,000 रुपए ही कमा पाता है।

इस सबकी मुख्य वजह वही है जो मैं पहले भी कह चुका हूं कि किसान को अनाज उगाने की सज़ा दी जाती है और उसे न्यायपूर्ण आय से दूर रखा जाता है।

(लेखक प्रख्यात खाद्य एवं निवेश नीति विश्लेषक हैं, ये उनके अपने विचार हैं)

       

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