ववटवृक्ष या बरगद अपनी विशालता और अक्षय जीवन स्वरूप के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है, यही कारण है कि इसे अक्षय वट भी कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे बेनयान ट्री या बेनयान फिग जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम फिकस बेनघालेंसिस है और यह मोरेसी परिवार का सदस्य है। भारत में इसे पवित्र और देवतुल्य माना जाता है, आमतौर पर यह सभी धार्मिक स्थलों और मंदिरों के आसपास मिल जाता है।
एक और जहां यह पवित्र वृक्ष अपने विशालकाय शरीर, लटकती और स्थापित जड़ों तथा अनेक भुजाओं के कारण आश्चर्य का केंद्र होता है, तो वहीं इसकी उपस्थिति घर- मकानों की दीवारों, कुओं और बावड़ी आदि में परेशानी नजर आती है। कोलकाता के “द ग्रेट बेनयान ट्र” को सबसे बड़े वट वृक्ष का दर्जा हासिल है जो 14500 वर्ग मीटर क्षेत्रफल के साथ जगदीश चंद्र बोस बॉटनिकल गार्डन में स्थित है। यह वृक्ष बोटैनिकल सर्वे आफ इंडिया का प्रतीक चिन्ह भी है। उज्जैन का सिद्धवट, प्रयाग का अक्षय वट, नासिक का पंचवटी, और छिंदवाड़ा का बड़ चिचोली आदि कुछ आकर्षक और विशाल वट वृक्षों के उदाहरण है।
कुछ समाजसेवी इंसान और संगठन प्रत्येक वर्ष श्रवणमास में वट-पीपल-नीम के रूप में वृक्ष त्रिवेणी की स्थापना के लिए अभियान चलाते हैं। पवित्र 5 वृक्षो में शामिल पंच पल्लवों (वट, पीपल, आम, पाखड़ और गूलर) में से एक वृक्ष वट वृक्ष भी है। ऐसा माना जाता है कि वट वृक्ष की छाल में श्री हरि विष्णु, जड़ों में परमपिता ब्रह्मा और शाखाओं में साक्षात शिव वास करते हैं, अतः यह त्रिमूर्ति का प्रतीक है। वामन पुराण के अनुसार अश्विनमास में विष्णु जी की नाभि से कमल उत्पन्न हुआ था, उसी समय यक्षों के राजा मणिभद्र जी से वट वृक्ष उत्पन्न हुआ था, अतः इसे यक्षतरू भी कहते हैं।
जिस प्रकार अश्वत्थ (पीपल) को विष्णु जी का प्रतीक माना जाता है, ठीक उसी प्रकार जटाधारी वटवृक्ष को साक्षात पशुपतिनाथ महादेव भगवान का प्रतीक माना जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार महाप्रलय के बाद भगवान नारायण बरगद के पत्ते पर प्रकट हुए और उनकी नाभि से कमल पुष्प उत्पन्न हुआ जिस पर भगवान ब्रह्मा जी विराजमान थे।
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कहा जाता है कि धरती पर मौजूद समस्त प्राणियों में सबसे लंबा जीवन वटवृक्ष का ही होता है, अतः इसका लंबा जीवन अनश्वरता का प्रतीक है। जेठ मास की अमावस्या को हिंदू महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए, और कहीं कहीं संतान प्राप्ति एवं उनकी लंबी आयु की कामना से वट-सावित्री का पूजन करती हैं। इस पेड़ की पवित्रता के कारण ही कोई इस वृक्ष को काटता नही है, क्योंकि इसे काटना पापकर्म समझा जाता है।
वास्तव में वट वृक्ष अपने आप में एक छोटा पारिस्थितिक तंत्र है, हजारों प्रकार की कीटों के लिए यह भोजन एवं आश्रय का स्रोत है। इसी तरह पक्षी पशु पक्षियों के भोजन एवं आश्रय का भी है बेहतरीन ठिकाना है।
भारतीय मैना, तोता, कौवे सहित अन्य पक्षी इसके स्वादिष्ट फलों से अपनी भूख मिटाते हैं, और बदले में इसके बीजों को समस्त भूभाग पर फैलाते हैं। यह आपसी संबंध हमें यह सीख देता है कि इस संसार में सर्वशक्तिमान का अस्तित्व भी छोटी-छोटी इकाइयों पर आश्रित होता है।
यह पवित्र वृक्ष कई असाध्य रोगों के लिए बेहतरीन औषधि भी है जिसका प्रयोग नपुंसकता, चर्म रोग, मधुमेह तथा सौंदर्य निखारने में भी किया जाता है।
बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि इसके पत्तों को तोड़ने से सफेद दूध के समान द्रव्य निकलता है, जो विज्ञान की भाषा मे लेटेक्स कहलाता है, इससे भीगे हुए बतासे खिलाने से पौरुषत्व में वृद्धि होती है। यह साथ ही इस सफेद लेटेस्ट को दाद-खाज आदि पर लगाने से रोग में जड़ से आराम मिलता है।
इसकी जटाओं और कलिकाओं को पानी में उबालकर काढ़ा पीने से बांझपन से मुक्ति मिलती है। इसकी छाल का पाउडर मधुमेह के रोगियों के लिए वरदान से कम नहीं है। बरगद के पत्तों को तिल के तेल में लपेटकर गुनगुना गर्म करने के बाद त्वचा के संक्रमण पर लगाते हैं जिससे कुछ दिनों में आराम मिल जाता है।
बरगद के इन समस्त परोपकारों के बदले में इस पवित्र वृक्ष को प्राप्त हो रही है, सिर्फ कुल्हाड़ियां क्योंकि तथाकथित बुद्धिजीवियों को विकास के मार्ग में यह वृक्ष अवरोध नजर आते हैं। इन्हें रातों- रात काट दिया जाता है, और भूमि समतल कर दी जाती है या मार्ग का चौड़ीकरण कर दिया जाता है। शासन की मंशा तो इसे सहेजने में कहीं नजर नहीं आती है, क्योंकि आज तक इस पवित्र वृक्ष के रोपण का कोई बड़ा अभियान नहीं चलाया गया और न ही किसी शासकीय नर्सरी में इसके पौधे वृक्षारोपण के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं जबकि यह वृक्ष बड़ी आसानी से कलम द्वारा भी तैयार किया जा सकता है।
हाँ कुछ प्राइवेट नर्सरी जरूर बोनसाई के रूप में इन्हें तैयार करती हैं और बेचती है किंतु इनका उद्देश्य महज पैसे कमाना है न कि पर्यावरण प्रबंधन। हमारे देश में लगातार इस वृक्ष की कमी के चलते कई भारतीय पक्षियों और तितलियों की संख्या में तेजी से कमी आ रही है।
साथ ही वनों के भीतर इनकी और प्राकृतिक आवासों की कमी से वानर, हिरण, नीलगाय जैसे जीवों का गांव और शहरों की ओर पलायन बढ़ा है। अकेले समाजसेवी संगठनों, समाजसेवियों और पर्यावरण प्रेमियों की इच्छाशक्ति बिना प्रशासन के सकारात्मक रवैया के दम तोड़ती नजर आ रही है।
शासन के द्वारा वृक्षारोपण के लिये जिस तेजी से विदेशी पेड़ पौधों को तहरीज दी जा रही है वह चिंताजनक है। भारत जैसे देश मे बरगद की दयनीय स्थिति पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
लेखक- डॉ. विकास शर्मा, शासकीय महाविद्यालय चौरई, जिला छिन्दवाड़ा (मध्य प्रदेश) में वनस्पति शास्त्र विभाग में सहायक प्राध्यापक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।