एसयूवी बनाम अनाज

बेंगलुरु की बाढ़ की खबरें, देश के कई राज्यों में पड़ने वाले सूखे की तुलना में ज्यादा सुर्खियों में क्यों हैं?

Nidhi JamwalNidhi Jamwal   9 Sep 2022 9:30 AM GMT

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एसयूवी बनाम अनाज

'भारत की सिलिकॉन वैली डूब रही है' 'बेंटले कार और एसयूवी जलमग्न' 'ब्रांड बैंगलोर हुआ आहत', 'बेंगलुरु में बाढ़ का कहर'...

समाचार एंकरों की उत्तेजित और तेज़ आवाज़ों से लिविंग रूम गूंज रहे हैं, वे अपने स्टूडियो से चिल्ला-चिल्लाकर इन सुर्खियों को बयान कर रहे हैं, उनकी ऊंची आवाज़ वाली कमेंट्री के साथ बेंगलुरू में बाढ़ में डूबी सड़कों की तस्वीरें भी हैं, आईटी शहर में आंशिक रूप से जलमग्न पॉश इलाकों में बाढ़ के पानी में तैरती महंगी बेंटले कारें और एसयूवी भी।

अर्कावती नदी (जी हां, एक नदी बेंगलुरु से होकर भी गुजरती है) और एक ओवरफ्लो बेलंदूर झील (सतह पर तैरने वाले जहरीले झाग के लिए प्रसिद्ध) के शॉट्स भी हैं, जिन्हें बार-बार दिखाया जा रहा है।

इस हफ्ते बेंगलुरु में काफी भारी बारिश हुई जिससे शहर के अलग-अलग हिस्सों में बाढ़ आ गई, सोशल मीडिया फीड और टेलीविजन स्क्रीन, नॉन स्टॉप बाढ़ के कारण हुए नुकसान को दिखा रहे हैं।

महानगर के आउटर रिंग रोड पर सभी प्रमुख आईटी और बैंकिंग कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाली आउटर रिंग रोड कंपनीज एसोसिएशन ने अपने घाटे को 225 करोड़ रुपये आंका है! और ये सिर्फ प्रारंभिक अनुमान हैं।

बेंगलुरु में बाढ़ राहत कार्य। फोटो: @IaSouthern/Twitter

मीडिया यानी लोकतंत्र का चौथा स्तंभ, जिसका काम लोगों को रिपोर्ट करना और सूचित करना, देश के लोगों को प्रभावित करने वाले मुद्दों को संबोधित करने के लिए सरकार और अधिकारियों पर दबाव डालना है, ने अपनी रिपोर्टिंग में कोई कसर नहीं छोड़ी (और ठीक ही तो है). बेंगलुरु में बाढ़, इसका कारण, नुकसान और कम व लंबे समय के लिए इसे रोकने के उपायों की जरूरत पर पूरा ब्योरा दिया गया।

इस मामले को विशेष रूप से बदलते माहौल में बारीकी से जांच की जरूरत है, जब बारिश के पैटर्न अनिश्चित होते जा रहे हैं और शहरी जल निकाय कानूनी और अवैध अतिक्रमणों के कारण तेजी से गायब हो रहे हैं।

लेकिन भारत की सिलिकॉन वैली के कोलाहल से दूर देश के ग्रामीण इलाकों में भी विनाशकारी नुकसान हुआ है। क्या आप जानते हैं कि इस साल जून के बाद से देश के लाखों किसान असहाय हो गए हैं, क्योंकि सूखे की वजह से उन्हें भारी नुकसान हुआ है। उनकी खरीफ फसल, मुख्य रूप से धान कम बारिश के कारण सूख गई है?

इसकी पूरी संभावना है कि आप ये सब नहीं जानते होंगे, असल में, समाचार चैनलों ने उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में देश के कुछ प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में मौजूदा सूखे की स्थिति पर रिपोर्ट करने की जरूरत ही नहीं महसूस की है। इन राज्यों में कम मानसूनी वर्षा हुई, जिसके कारण सैकड़ों हजार धान किसान या तो इस वर्ष धान की बुवाई नहीं कर सके, या फिर उनके धान की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई।

धान देश की मुख्य खरीफ फसल है और चावल प्रमुख रूप से खाए जाने वाला अनाज है। यह हमारे देश की एक बड़ी आबादी का पेट भरता है। फोटो: गाँव कनेक्शन

देश में, वर्षा आधारित कृषि कुल बोए गए क्षेत्र का लगभग 51 प्रतिशत है और कुल खाद्य उत्पादन का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा भी।

धान देश की मुख्य खरीफ फसल है और चावल प्रमुख रूप से खाए जाने वाला अनाज है। यह हमारे देश की एक बड़ी आबादी का पेट भरता है।

चावल (गेहूं के साथ) देश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत लाभार्थियों को दिया जाता है। इसमें ग्रामीण आबादी का का 75 फीसदी और शहरी आबादी का 50 फीसदी हिस्सा शामिल है।

हमारे पास बेंगलुरु में बाढ़ पर चर्चा करने के लिए लाइव पैनल है, लेकिन बिहार में धान किसानों या झारखंड में खेत मजदूरों को लेकर कोई खबर नहीं है, जो अपनी रोजी-रोटी कमाने का जरिया खो चुके हैं। उनमें से कितनों को अपने परिवार का पेट पालने के लिए काम की तलाश में गाँवों से पलायन करना पड़ा है।

निश्चित रूप से, असफल मानसून और धान की असफल फसल की खबरें भी उतनी ही मीडिया कवरेज के लायक हैं, जितनी कि बंगलौर में एसयूवी के डूबने की खबर। एक बर्बाद हुई फसल भी एक ऐसी चीज है जिसके लिए हममें से हर एक को चिंता करनी चाहिए, आखिरकार, हमें जिंदा बने रहने के लिए अन्न की जरूरत है!

'मेनस्ट्रीम' मीडिया ग्रामीण भारत के मुद्दों से इतना बेखबर क्यों है जहां दो-तिहाई आबादी रहती है? ऐसा क्यों है कि देश के गाँव राष्ट्रीय समाचारों में तभी आते हैं जब बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या करके मर जाते हैं, या ग्रामीण महिलाएं पानी का एक छोटा सा घड़ा भरने के लिए सूखे कुएं में उतरती हैं, या फिर तब, जब वहां से एक भीषण सामूहिक बलात्कार की खबर आती है?

भारत का सबसे बड़ा ग्रामीण मीडिया मंच गाँव कनेक्शन एक दशक से ग्रामीण भारत की आवाज को मजबूत करने का प्रयास कर रहा है ताकि ग्रामीण नागरिकों को देश के सत्ता गलियारों में सुना जा सके। टेक्स्ट और वीडियो कहानियां और अब गाँव रेडियो के जरिए गाँव कनेक्शन शहरी और ग्रामीण भारत के बीच मौजूद अंतर को पाट रहा है।

मध्य जुलाई से गाँव कनेक्शन के पत्रकारों और कम्युनिटी जर्नलिस्ट की टीम ने धान किसानों की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए और धान उत्पादन में संभावित गिरावट की चेतावनी देते हुए, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल की यात्रा की है। हम सभी को इसके लिए चिंतित होना चाहिए क्योंकि यह हमारी खाने की थाली का मामला है।

हीट वेव के कारण इस साल देश में पहले ही गेहूं का उत्पादन कम रहा है और अब, भारत सरकार ने चावल के निर्यात पर भी रोक लगा दी है!

एक एनवायरनमेंट जर्नलिस्ट होने के नाते, मैं शहरी बाढ़ पर रिपोर्टिंग के महत्व को समझती हूं, जैसे कि इस सप्ताह बेंगलुरु प्रभावित हुआ है, लेकिन, जब हम हम मीडिया में ग्रामीण भारत की खबरों को इतना महत्व देने में विफल रहते हैं, तो देश का नुकसान कर रहे होते हैं।

ग्रामीण भारत पूरे देश का पेट भरता है, विभिन्न प्राकृतिक संसाधन मुहैया करता है और यहां से आने वाला मानव श्रम भी देश के विकास को आगे लेकर जाने में भूमिका निभाता है।

दस साल पहले 2012 में, जब पत्रकार और कहानीकार नीलेश मिसरा ने गाँव कनेक्शन शुरू किया, तो वे प्रभावशाली ग्रामीण पत्रकारिता को बढ़ावा देना चाहते थे, और हम इस जिम्मेदारी को निभा रहे हैं। हमारे लिए किसान और खाद्यान्न हमेशा एसयूवी से बड़ी खबर रहेंगे।

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