बजट पेश कर दिया गया, परंपरा यह रही है कि चुनावी साल में सरकारें अंतरिम बजट लाया करती हैं। अंतरिम बजट में भी ज़्यादातर मौजूदा सरकार अगली सरकार आने तक के लिए वोट ऑन अकाउंट पेश करती है। अगर पूरा अंतरिम बजट पेश भी किया जाता है तो परम्परा के अनुसार उसमें भी बड़े नीतिगत फैसले और टैक्स में बदलाव जैसे फैसले नहीं लिए जाते थे। यह व्यवस्था बजट को चुनावी हथियार बनने से रोकने के लिए चली आ रही थी।
संवैधानिक रूप से बाध्य न होने के बावजूद भी सरकारें अंतरिम बजट लाया करती हैं, ताकि अगर सरकार बदलती है तो नयी सरकार अपनी नीतियों और प्राथमिकताओं के हिसाब से पूर्ण बजट ले आये। इसलिए कई दिनों से कौतुहल बना हुआ था कि यह सरकार पूर्ण बजट पेश करेगी या वोट ऑन अकाउंट। मीडिया ज़रूर संकेत दे रहा था कि इस बार अंतरिम बजट भी पूर्ण बजट जैसा ही पेश हो सकता है। आज हुआ भी वैसा ही। इस साल सरकार ने परम्परा को तोड़ते हुए पूर्ण बजट जैसे फैसलों वाला अंतरिम बजट पेश कर दिया। आज़ादी के बाद से आज तक किसी अंतरिम बजट में आयकर सम्बंधित कोई फैसला न लिए जाने की परम्परा चली आ रही थी। इस साल वो परंपरा भी तोड़ दी गई। खैर अगर इस बजट को चुनाव से हट कर सिर्फ तथ्यों के आधार पर देखें तो हर साल की तरह इस बजट में भी कई गौर करने लायक बातें तो ज़रूर हैं।
चुनावी साल होने के नाते इस बजट के किसानों और गरीबों के लिए लोक लुभावन होने का अंदाजा सभी पहले से लगा ही रहे थे। मीडिया तो बजट पेश होने के पहले से ही इस बजट को गाँव और किसानों के लिए बड़े बदलाव लाने वाला बताने लगा था। यहाँ याद करने वाली बात यह है की ठीक इसी तरह पिछला बजट भी किसान आधारित बता कर प्रचारित किया गया था। बल्कि यह कहना गलत नहीं होगा कि पिछला आम बजट किसानों के लिए ऐतिहासिक बताया गया था। उस हिसाब से इस एक साल में ज़मीनी स्तर पर बड़े बदलाव दिखने शुरू हो जाने चाहिए थे। लेकिन इसके उलट पिछला एक साल किसान आंदोलनों और एक के बाद एक प्रदर्शनों से घिरा रहा। यहाँ तक की पिछले कुछ दशकों में 2018 जैसी किसान सक्रियता देश में देखने को मिली नहीं थी। हो सकता है इसीलिए चुनावी साल के बजट में किसानों को शांत करने वाले वायदों की कवायद दिख रही है। इस बात में तो अब किसी को कोई शक बचा ही नहीं है कि इस लोकसभा चुनाव में किसान और गांव ही सबसे बड़ा मुद्दा बनने जा रहे हैं।
बहरहाल, इस साल के अंतरिम बजट में गाँव और किसानों के लिए क्या क्या है इसके पहले यह देखना भी उतना ही जरूरी है कि सरकार के अपने पांच साल के कार्यकाल के आखिरी बजट यानी पिछले साल के बजट में किसानों के लिए क्या कहा या किया गया था। और उसके मुताबिक हुआ क्या?
पिछले साल के बजट में मुख्य रूप से क्या था किसानों के लिए
पिछले साल किसानों के लिए सबसे बड़े ऐलानों में एक ऐलान किसानों के लिए 11 लाख करोड़ के क़र्ज़ उपलब्ध होने का किया गया था। हालांकि कोई भी किसान क़र्ज़ लेकर खेती नहीं करना चाहता। लेकिन ज़रुरत पड़ने पर क़र्ज़ उपलब्ध हो तो वह बात राहत की ज़रूर कही जा सकती थी। दूसरा बड़ा एलान लागत का डेढ़ गुना मूल्य देने का था। ज़मीनी स्तर पर मूल्यों को लेकर कितना काम किया जा सका है उसका परिणाम पिछले साल किये गए किसान आन्दोलन हैं। आज की स्थिति यह है कि कुल उत्पादन का चार से 10 फीसद कृषि उत्पाद ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा जाता है। खरीद और भण्डारण की सही व्यवस्था के बगैर न्यूनतम समर्थन मूल्य की बात कोई बड़ा बदलाव लाने में नाकाम साबित होती दिखी।
भारतीय अर्थव्यवस्था की और किसान की सबसे बड़ी ज़रुरत कुछ सालों से बाज़ार की रही है। इसलिए उस लिहाज़ से कृषि बाज़ार विकसित करने का लक्ष्य पिछले बजट के मुख्य लक्ष्यों में से एक था। उनमें 22000 ग्रामीण कृषि बाज़ार शुरू करने की बात कही गयी थी। इसी के साथ 42 मेगा फ़ूड पार्क लगाने का लक्ष्य भी सरकार ने बनाया था। खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में आधारभूत विकास की बात पिछले बजट में जोर शोर से कही गयी थी। लेकिन ज़मीन पर न तो उतने कृषि बाज़ार पिछले एक साल में विकसित होते देखे गए और ना ही खाद्य प्रसंस्करण में सरकारी या निजी निवेश बढ़ता दिखा। यहाँ तक की सरकारी वेबसाइट पर सरकार के अपने बताये 42 मेगा फूड पार्क के लक्ष्य में से सिर्फ 12 पार्क ही बनने के आंकड़े दिए गए हैं। इस साल के बजट भाषण में पिछले साल के इन मुख्य प्रावधानों का ज़िक्र ही गायब था।
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गाँव और किसानों ने इस बजट में क्या क्या वायदे पाए
आज के बजट भाषण में किसानों के लिए सबसे बड़ा ऐलान प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि के रूप में किया गया। इसमें 5 एकड़ से कम ज़मीन वाले किसान परिवार को साल में छह हजार रपए दिए जाने का एलान है। यह रकम दो दो हज़ार की तीन किश्तों में दी जाएगी। इससे एक किसान परिवार को प्रति माह 500 रुपए मिलेंगे यानी एक परिवार को दिन का करीब 17 रुपए मिल सकता है। सरकार का कहना है कि इससे 12 करोड़ किसान परिवारों को लाभ दिया जायेगा। औसतन चार से छः लोगों के परिवार के लिए यह रकम कितना बदलाव ला सकती है यह समझना आज के दौर में मुश्किल नहीं है। दूसरी बात योजना के क्रियान्वन की भी है सरकारों के पास अभी देश के सभी किसानों की लिस्ट तक मौजूद नहीं है। पूरे देश भर के किसानों का एक डेटाबेस बनाना जिसमें उनके नाम, ज़मीन और बैंक खातों जैसी जानकारी उपलब्ध हो इस काम में कितना समय लगेगा इसकी जानकारी अभी तक दी नहीं गयी है। वहीँ पशु पालक और मछली पालकों के लिए सरकार ने फिर सिर्फ सस्ते क़र्ज़ की सुविधा देने का एलान किया है।
जबकि ज़रुरत उस व्यवस्था की है जिसमें किसान को क़र्ज़ लेने की ज़रुरत ही न पड़े। मत्स्य पालन के लिए अलग से विभाग ज़रूर बना दिया गया है। इसी तरह कामधेनू आयोग का गठन किया गया है। लेकिन कृषि मजदूरों और गाँव में रह रहे गैर कृषि कामों में लगे व्यक्तियों के लिए आज के बजट भाषण में कोई घोषणा नहीं की गयी। हालांकि आज देश के आम आदमी के लिए एक राहत की बात यह कही गई की खाद्य महंगाई को कम करने में सरकार सफल रही है। लेकिन यह बात किसान के लिए तो घाटे की ही मानी जाएगी क्योंकि इसका एक मतलब यह है कि उसके उत्पाद की कीमत कम हो गयी।
वहीँ दूसरी ओर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में जो कुछ योजनायें योगदान दिया करती थीं जिनमें मनरेगा और श्वेत क्रांति जैसी योजनायें मौजूद हैं उनमें पिछले साल के मुकाबले आवंटन में कटौती की गई है। अप्रत्यक्ष रूप से एक एलान का लाभ ज़रूर किसान ले सकते हैं, कि अगर सस्ते भोजन की सबसिडी पर सरकार कुछ खर्चा बढ़ाकर उसे एक लाख 80 हज़ार कर रही है तो वह किसानों से दस हजार करोड़ का ज्यादा अनाज खरीदेगी। हो यह भी सकता है कि ज्यादा खरीद के अलावा सरकार के मन में अनाज भंडारण की व्यवस्था पर भी खर्च करने का इरादा हो।
कुल मिलाकर किसान और कृषि के लिए एलान और वायदे हर बजट में होते हैं। इन दो सालों में आम चुनाव के चलते ग्रामीण आबादी पर और ज्यादा ध्यान दिया गया है। लेकिन एलानों की व्यावहारिकता जांचना और उनके लागू होने के बाद उनकी निरंतर समीक्षा करते रहना बहुत ज़रूरी है। आज के बजट का विश्लेषण भी अर्थशास्त्रीयों और कृषि विशेषज्ञों को इन्ही पैमानों पर करना चाहिए।