Gaon Connection Logo

सहकारी संस्थाएं बदल सकती हैं किसानों की दुनिया

agriculture

भारत में सहकारिता की सफलता की कहानियों पर चर्चा चलती है तो स्वाभाविक तौर पर इफको और अमूल के बिना वह अधूरी रहती है। ये दोनों भारत के वैश्विक ब्रांड हैं। अमूल की सफलता के पीछे गुजरात के सहकारिता क्षेत्र के दिग्गजों के साथ वर्गीज कुरियन की अथक साधना का हाथ रहा है तो इफको के वैश्विक विस्तार में डॉ. उदय शंकर अवस्थी का। पिछले तीन दशकों में इफको ने तेजी के साथ विस्तार किया है और कई क्षेत्रों में सफलता के साथ झंडे गाड़े हैं।

निजी क्षेत्र और दिग्गज कारपोरेट्स से टक्कर लेते हुए आगे बढ़ना औऱ उनसे प्रतिस्पर्धा में आगे निकल जाना कोई सहज काम नहीं है। शायद इसी नाते हमारे पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न एपीजे अब्दुल कलाम ने भारतीय सहकारिताओं के लिए इफको को ‘रोल माडल’ कहा। इफको आज 500 सबसे बड़ी फार्च्यून इंडिया की कंपनियों की सूची में 37वें स्थान पर है।

ऐसा नहीं है कि इफको के सामने कोई कम चुनौतियां रही हैं। मैने स्वयं 1983-84 के दौरान इफको फूलपुर में भारी श्रमिक अशांति का दौर देखा। हड़ताल से लेकर धरने तक। इसी तरह इफको के आंवला संयंत्र की स्थापना के दौरान काफी आरोप प्रत्यारोप लगे। कई तरह की राजनीति भी यहां चली, जिसने इसकी साख को प्रभावित किया। लेकिन तमाम खामियों और कमजोरियों से आगे बढ़ते हुए अपने पांच दशक के सफर में इफको ने साबित किया है कि अगर सही दिशा में काम हो तो सहकारी क्षेत्र क्या कुछ नहीं कर सकता है।

भारत में अखिल भारतीय सहकारिता सप्ताह 14 से 20 नवंबर के दौरान मनाया जाता है। लेकिन इस बार करीब सन्नाटा रहा। इफको ने जरूर कलोल के अपने पहले खाद कारखाने में धूमधाम से स्वर्ण जयंती उत्सव मनाया। इस मौके पर सहकारिता आंदोलन में विशिष्ट योगदान तथा अपनी यात्रा में सहयोग देने वाले कई भारतीय और वैश्विक संस्थाओं को उसके चेयरमैन बलविंदर सिंह नकई और प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी ने सम्मानित किया।

इसी माह इफको ने दूसरी बार आईसीए यानि ग्लोबल बोर्ड ऑफ इंटरनेशनल को-ऑपरेटिव एलायंस के निदेशक सीट पर भारी मतों से विजय हासिल की है। इफ्को को दुनिया भर में 696 वोटों में से627 वोट मिले और जापान, अमेरिका, कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया, इटली और ब्राजील के उम्मीदवारों को इसने पछाड़ दिया। इसी के साथ वर्ल्ड कोऑपरेटिव मॉनिटर में इफको 300 वैश्विक सहकारी समितियों में 155वें स्थान से 105 वें स्थान पर आ गया है।

यह भी पढ़ें : ‘ठंडक’ बिना ठंडा रहेगा किसानों की दोगुनी आमदनी का मुद्दा

1967 में इफको ने 57 सहकारी समितियों से अपनी शुरूआत की थी लेकिन आज इससे करीब 36 हजार सहकारी समितियां और पांच करोड़ किसान सीधे जुड़े हैं। देश के करीब हर गांव से इफको का जुड़ाव है। इफको की शुरूआत एक नए प्रयोग के रूप में हुई थी थी। किसानों का, किसानों द्वारा और किसानों के लिये नारे पर आधारित इफको आज विश्व का सबसे बड़ा सहकारी उर्वरक उपक्रम है। विश्व भर की सहकारिता की एक अनूठा मिसाल बन गया है। इसने साबित कर दिया है कि लोकतांत्रिक संगठन में पेशवर प्रबंधन के साथ कितने बड़े बदलाव संभव हैं। प्रौद्योगिकी के साथ मानव संसाधन प्रबंधन और बहुत से पक्षों पर अगर सलीके से काम किया जाये तो बेशक तस्वीर बदल सकती है।

इफको ने वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान करीब 85 लाख टन उर्वरकों का उत्पादन किया। इसमें से करीब 44 लाख टन यूरिया थी। बीते साल नोटबंदी के चलते इफको भी डगमगाने लगा था लेकिन इसने अपने सभी बिक्री केन्द्रों पर डिजिटल लेन देन की सुविधा उपलब्ध कराने के साथ यह सुनिश्चित कर दिया कि नकदी के अभाव में किसानों को खाद लेने में कोई दिक्कत न हो।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2012 को अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष घोषित किया तो उस मौके पर वैश्विक स्तर पर इफको की उपलब्धियो को काफी सराहा गया। बीते पांच दशकों में इफको ने खुद को सरकारी लालफीते से मुक्त करके पूर्ण सहकारी संगठन के रूप में खड़ा कर अपने कामकाज से दुनिया भर में अलग पहचान बनायी है। समय रहते इफको ने एक बिलियन अमेरिकी डालर के निवेश से घरेलू उर्वरक उत्पादन क्षमता को विस्तारित किया और बहुत से कामों को अंजाम दिया।

यह भी पढ़ें : दूध से ज्यादा सफेद था दूध क्रांति के जनक का जीवन, ये 2 घटनाएं उनका मुरीद बना देंगी

इफको की स्थापना भारत और अमेरिका के सहकारिता आंदोलनों के द्विपक्षीय सहयोग के चलते हुई थी। जब इफको एक बहु इकाई सहकारिता के रूप में पंजीकृत हुई तो उस दौरान देश में गंभीर खाद्य संकट था। उस दौरान देश में सहकारिताएं केवल खाद वितरण तक सीमित थी। 1960 में एक भारतीय शिष्टमंडल ने अमेरिका दौरे के दौरान पाया कि अमेरिकी सहकारिता उर्वरकों का वितरण ही नहीं उत्पादन भी करती हैं।

लेकिन भारत में सहकारी समितियां वितरण तक सीमित थीं। पर उनका नेटवर्क देख कर अमेरिकी सहकारिता के अग्रणी नेताओं ने भारत के तमाम हिस्सों में छोटे उर्वरक संयंत्र लगाने की वकालत की। लेकिन उसी दौरान इंटरनेशन कोआपरेटिव डेवलपमेंट एसोशिएशन की ओर से आयी तकनीकी आर्थिक टीम ने भारत के विशाल आकार को देखते हुए बड़े संयंत्र लगाने की वकालत की।

इसी के तहत व्यापक विचार के बाद इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड नामक सहकारी समिति बनाने पर विचार हुआ। 1967 में कलोल और कांडला में यूरिया और कॉम्पलेक्स उर्वरक संयंत्र का प्रस्ताव रखा गया जो जो 1974-1975 तक साकार हुआ। इफको की पहली परियोजना की लागत 90 करोड़ रुपए थी, जिसमें से सहकारिताओं का अंशदान मात्र 9 करोड़ रुपए था। शेष राशि भारत सरकार और विभिन्न वित्तीय संस्थाओं ने जुटायी थी।

अरविंद कुमार सिंह के खेत-खलिहान और किसान से जुड़े संबंधित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

पहला संयंत्र होने के नाते इफको के कलोल कारखाने को इसका मातृ संयंत्र कहा जाता है। बाद में अस्सी के दशक में उत्तर प्रदेश में फूलपुर और आंवला संयत्रों की स्थापना के बाद इफको ने तेजी से प्रगति की। 90 के दशक में कारखानों का विस्तार और आधुनिकीकरण हुआ और दूसरी कई गतिविधियों पर भी इफको ने जोर दिया। सन् 2000 में इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस की स्थापना कर ग्राम केंद्रित बीमा उत्पाद तैयार किए गए। बाद मे इफको ने पारादीप संयंत्र का भी अधिग्रहण किया और दुबई में उर्वरक और कच्चा माल के आय़ात निर्यात औऱ परिवहन के लिए एक पूर्ण स्वामित्व वाली सहयोगी कंपनी किसान इंटरनेशनल ट्रेडिंग कंपनी भी स्थापित की गयी।

यह भी पढ़ें : आखिर कब होगा कृषि शिक्षा का कायाकल्प ?

इफको ने जोर्डन में भी अपना कारोबार शुरू किया। साथ ही मोबाइल क्रांति का लाभ ग्रामीण भारत तक पहुंचाने के इरादे से इफको ने इफको किसान संचार लिमिटेड की स्थापना की। इस बीच में इफको ने कई दूसरे काम आरंभ किए हैं और उच्च गुणवत्ता के कृषि रसायन उपलब्धता की दिशा में भी एक अहम कदम उठाया है। कृषि अनुसंधान, ग्रामीण खुदरा कारोबार, ईकामर्स समेत कई क्षेत्रों में इफको ने अपना विस्तार किया है। किसानों की सेवा के लिए इंडियन फार्म फारेस्ट्री डेवलपमेंट कोआपरेटिव लिमिटेड, इफको किसान सेवा ट्रस्ट, कोआपरेटिव रूरल डेवलपमेंट ट्रस्ट, इंडियन कोआपरेटिव डिजिटल प्लेटफार्म की स्थापना भी की गयी है। साथ ही इफको ने कला और साहित्य को प्रोत्साहन देने के साथ राजभाषा के विकास में भी काफी काम किया है।

अपनी छोटी सी शुरुआत के साथ कदम रखने वाला इफको आज वटवृक्ष बन चुका है। इफको के पहले अध्यक्ष कुंवर उदयभान सिंह और पहले प्रबंध निदेशक पाल पोथन जैसे नींव के पत्थर ने इसकी बुनियाद मजबूत की लेकिन इसे वैश्विक संस्था बनाने में 1993 में प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी बने डॉ. उदय शंकर अवस्थी ने निभायी। इफको, सहकारिता और उर्वरक उद्योग में उनका पहले से ही जुड़ाव, व्यापक अनुभव और वैश्विक दृष्टि रही है। उन्होंने इसे पेशेवर प्रबंधन का शानदार माडल बना कर इफको को विकास के एन नए मोड़ पर ला खड़ा किया है। आज इफको जवाबदेही और पारदर्शिता के साथ कई क्षेत्रों में अग्रणी है।

इफको अपने 161 किसान सेवा केंद्रों के माध्यम से सीधे पचास लाख से अधिक किसानों से जुड़ा है। किसानों को जागरूक बनाने के लिए कृषि संगोष्ठी, स्वास्थ्य जांच शिविर, पशु चिकित्सा शिविर, मृदा परीक्षण, जैव उर्वरक, गांवों को गोद लेने जैसी कई गतिविधियां भी यह चला रहा है। नीम लेपित यूरिया और मिट्टी बचाओ अभियान में भी इफको का खासा योगदान रहा। कृषि विश्वविद्यालयों में 18 इफको चेयर स्थापित की गयी है, जिसमें कृषि अर्थशास्त्र, कृषि विस्तार, सहकारिता और उर्वरक के क्षेत्र में विशिष्ट काम हो रहा है। यहां किसी तरह की श्रमिक अशांति नहीं है।

यह भी पढ़ें : नीतियों का केंद्र बिंदु कब बनेंगे छोटे किसान ?

समय के साथ कदमताल करते हुए इफको ने कई नए क्षेत्रों में गतिविधियों का विस्तार किया है। हाल में सिक्किम इफको आर्गेनिक लिमिटेड की स्थापना की गयी है जो कि सिक्कम सरकार के साथ साझा उद्यम है। इसमें इफको की हिस्सेदारी 51 फीसदी है। यह जैविक उत्पादों के प्रसंस्करण और विपणन के तहत स्थापित किया गया है। सिक्किम पूरी तरह जैविक राज्य घोषित हो चुका है। इसी तरह 23 मई 2017 को इफको और बैंक आफ बड़ौदा ने मिल कर किसानों के लिए एक अनूठी क्रेडिट कार्ड योजना आरंभ की। इसमें एक एकड़ तक के भूस्वामी किसानों को एक माह तक ढाई हजार की खऱीद पर कोई ब्याज नहीं देना होगा। इससे किसान खाद, बीज खरीदने के साथ बीमा आदि करा सकेंगे। यह छोटे और सीमांत किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं जो साहूकारों  के जाल में फंसे हैं।

नीम कोटेड यूरिया योजना में भी इफको ने न केवल अग्रणी भूमिका निभायी बल्कि किसानो के बीच नीम पौधरोपण को एक अभियान का रूप दे दिया। किसानों से नीम का बीज 15 रुपए किलो खरीदने के साथ 13 लाख पौधों का रोपण भी किया गया है। आज इफको 100 फीसदी नीम कोटेड यूरिया बना रहा है जिससे दूसरे क्षेत्रों में यूरिया के दुरुपयोग के मामले रुके हैं। अप्रैल 2011 से कलोल कारखाने में नीम कोटेड यूरिया का उत्पादन आरंभ हुआ था और इसने 2015-16 में इसने अपना पूरा उत्पादन नीम कोटेड कर दिया।

समय के साथ इफको तमाम नयी भूमिकाएं लिखते हुए कई मानक बना रहा है। एक दौर था जबकि कोई बडा़ प्रबंधक या इंजीनियर सहकारिता क्षेत्र में आने से घबराता था, पर आज इफको में सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं आने के लिए लालयित रहती हैं। इफको ने किसानों की आय बढाने के लिये सात सूत्री कार्यक्रम पर नयी पहल की है। प्रो. एम एस स्वामीनाथन से सलाह मशविरे के बाद प्रति बूंद अधिक फसल, कृषि लागत में कमी, खाद्यान्न भंडारण , खाद्य प्रसंस्करण, ई कृषि बाजार, फसल बीमा योजना और बागवानी, एकीकृत कृषि, पशुपालन , मत्स्य पालन , मधुमक्खी पालन एवं मुर्गी पालन इसमें शामिल है।

यह भी पढ़ें : उद्योगों के विकास के लिए खेती की बलि दी जा रही है !

डॉ. उदयशंकर अवस्थी का मानना है कि कृषि हमारे जीवन का हिस्सा रही है और इसके प्रति बच्चों अभिरुचि पैदा करने के लिये इसे स्कूली पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनाया जाना चाहिये। साथ ही समय के साथ कृषि क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल भी जरुरी है। डॉ. अवस्थी का मानना  है कि सहकारिता भारत के गांवों को भाग्य बदल सकता है लेकिन सहकारी कार्यकलाप में राजनीतिक हस्तक्षेप न हो और समितियों को अपना काम करने दिया जाये। पारदर्शिता के लिए हम चुनाव प्राधिकरण बना सकते हैं लेकिन हमारा मानना है कि पारदर्शिता से काम होगा तो सहकारिता देश की तकदीर बदल सकती है। देश में इसके कई सफल माडल हैं।

यह भी उल्लेखनीय तथ्य है कि इफको स्वर्ण जयंती के मौके पर डॉ. अवस्थी ने देश भर में 1.36 लाख किमी की यात्रा कर 125 स्थानों पर किसानों के साथ बैठक की। उन्होंने करीब दो लाख किसानों से सीधे संवाद किया और उनक बातें गंभीरता से सुनीं और समाधान का प्रयास भी किया। इफको ने 24 घंटे वाला एक कॉल सेंटर शुरू किया है जिसके माध्यम से 12 भाषाओं में से किसी में किसान अपनी समस्याओं का समाधान हासिल कर सकते हैं। इसी तरह कौशल विकास के लिए इफको ने किसानों और उनके परिवारों के लिए इफको युवा मंच शुरू किया है। यह रोजगार की तलाश वाले युवाओं को नियोक्ताओं से जोड़ता है। इसने ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यक्रम के साथ कई दूसरी योजनाएं भी आरंभ की है।

यह भी पढ़ें : ” शिवराज सरकार की भावांतर योजना कहीं लाभकारी मूल्य और गारंटी इनकम की भ्रूण हत्या तो नहीं “

खेती पर सर्वेक्षण तैयार करने वाले अर्थशास्त्रियों को कम से कम 3 महीने गांव में बिताना चाहिए

खेत खलिहान : रिकॉर्ड उत्पादन बनाम रिकॉर्ड असंतोष, आखिर क्यों नहीं बढ़ पाई किसानों की आमदनी ?

More Posts