अंबेडकर के नाम की दुहाई देते हैं, संविधान का सम्मान नहीं 

Dr SB MisraDr SB Misra   11 May 2018 12:39 PM GMT

अंबेडकर के नाम की दुहाई देते हैं, संविधान का सम्मान नहीं आरक्षण और अंबेडकर पर चल रही सियासत के बीच पढ़िए.. क्या चाहते थे बाबा साहेब।

बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर ने जो संविधान नवम्बर 1949 में तैयार किया था और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था उसमें स्वार्थवश मनमाने ढंग से परिवर्तन किए गए हैं। अम्बेडकर की अध्यक्षता में संविधान निर्माताओं ने भारत के नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार दिए थे जैसे जिन्दा रहने का अधिकार, सम्पत्ति का अधिकार। साथ ही कुछ बातें प्रिएम्बल में डाली थीं, स्वार्थी शासकों ने अंबेडकर के संविधान का प्रिएम्बल ही बदल दिया और मौलिक अधिकारों की सूची भी बदल दी। संविधान में अब तक 101 संशोधन हो चुके हैं। इतने संशोधनों के बाद संविधान का मौलिक रूप कितना बचा है यह तो संविधान के ज्ञाता ही बता सकते हैं लेकिन कुछ बातें सर्वविदित हैं।

संविधान लागू हुए एक साल ही बीता था जब नेहरू सरकार का पहला संशोधन 1951 में आ गया। उसके बाद लगातार संशोधन होते गए जिसमें पचास के दशक में 08, साठ के दशक में 15, सत्तर के दशक में 22,अस्सी के दशक में 19, और बाकी समय में 4 संशोधन किए गए। अम्बेडकर को अपने समाज पर पूरा भरोसा था और उन्होंने दलित समाज के लिए 1950 से 1960 तक के लिए संसद और विधान सभाओं में आरक्षण प्रदान किया था। लेकिन निर्धारित अवधि के बाद अनुसूचित जाति का संसद और विधान सभाओं में आरक्षण प्रत्येक दस साल पर सशोधन करके बढ़ाया जाता रहा। क्या संसद और विधान सभा में घुसने के लिए किसी परीक्षा, डिग्री अथवा योग्यता की आवश्यकता है जो अनुसूचित जातियों के पास नहीं है ?

क्या संसद और विधान सभा में घुसने के लिए किसी परीक्षा, डिग्री अथवा योग्यता की आवश्यकता है जो अनुसूचित जातियों के पास नहीं है ?

ये भी पढ़ें- इतिहास को पीटने की नहीं, उससे सीखने की जरूरत है   

संविधान निर्माता डा. भीमराव अंबेडकर।

यदि अम्बेडकर जीवित होते तो पता नहीं उनकी क्या सोच होती, शायद वह अपने समाज को सशक्त बनाकर हक दिलाने के पक्षधर होते, अनिश्चित काल तक बैसाखी पर चलाने के पक्ष में नही होतें। उन्होंने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा था ‘‘बकरे की बलि चढ़ाई जाती है शेर की नहीं”। वह चाहते कि बराबर प्रयास करके दलित समाज को सशक्त बनाया जाय जैसा स्वर्गीय काशीराम ने भी कहा था ‘‘हम आरक्षण मांगेंगे नहीं, आरक्षण देंगे”। लेकिन वोट के भूखे भेड़ियों ने दलित समाज को संगठित और सशक्त बनाने का बिल्कुल प्रयास नहीं किया।

ये भी पढ़ें- क्या नरेन्द्र मोदी 2019 में हार भी सकते हैं ?

संसद भवन

महत्वपूर्ण यह नहीं कि अम्बेडकर के संविधान में संशोधन कितने हुए बल्कि सोचने की बात यह है कि उन संशोधनों ने हासिल क्या किया। जवाहर लाल नेहरू मंत्रिमंडल से जब अम्बेडकर ने त्यागपत्र दिया तो संसद में अपने भाषण में त्यागपत्र के जो कारण बताए थे, उनमें से एक था नागरिक संहिता को लागू न किया जाना। बाद के वर्षों में नेहरू ने नागरिक संहिता के नाम पर पेश किया ‘‘हिन्दू कोड बिल‘‘। यह अम्बेडकर की नागरिक संहिता नहीं थी और इसे देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने दो बार लौटाया था क्योंकि इसमें समान नागरिक संहिता की अपेक्षाओं को नजरअन्दाज किया गया था। माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी इस आशय का निर्देश कई बार सरकार को दिया है।

ये भी पढ़ें- सुभाष चंद्र बोस की जयंती : कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में गांधीजी बोले थे ‘सीतारामैया की हार मेरी हार होगी’

संशोधनों की कड़ी में वर्ष 1954 में नेहरू सरकार का तीसरा संशोधन जोड़ा गया जो खाद्य पदार्थों के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण सरकारी हाथों में लेने सम्बन्धी था। इस संशोधन का लाभ तो पता नहीं लेकिन पचास के दशक में खेत और किसान पर ध्यान नहीं रहा और साठ के दशक में भुखमरी की नौबत आई । इसके बाद वर्ष 1971 में इन्दिरा गांधी ने चैबीसवां संशोधन करके मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भाग को संशोधित करने का अधिकार प्राप्त कर लिया और राष्ट्रªपति को कैबिनेट के निर्णय पर हस्ताक्षर करने ही होंगे ऐसा भी संशोधन किया।

ये भी पढ़ें- नेहरू ने सेकुलरवाद सुलाया, मोदी ने जगा दिया

वर्ष 1971 का ही पच्चीसवां संशोधन देश के नागरिकों को सम्पत्ति के मौलिक अधिकार से वंचित करता है यानी आप की गाढ़ी कमाई को सरकार कभी भी अधिग्रहीत कर सकती है। वर्ष1971 में ही इन्दिरा गांधी का छब्बीसवां संशोधन आया जिसके द्वारा उन्होंने प्रिवी पर्स समाप्त कर दिया। यह उस समझौते का उल्लंघन था जो रियासतों के विलय के समय पहले गृहमंत्री रहे लौहपुरुष वल्लभ भाई पटेल और राजा महराजाओं के बीच हुआ था। यह संशोधन संविधान की विश्वसनीयता पर संदेह पैदा करने वाला था। इस प्रकार तो सरकारी बांड और नोटों पर लिखा वचन भी अर्थहीन हो जाएगा।

ये भी पढ़ें- स्वामी विवेकानंद और मैं

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी नें संविधान के प्रिएम्बल में सोशलिस्ट, सेकूलर प्रजातंत्र जोड़ दिया यानी देश की सरकारों को समाजवादी सिद्धान्तों पर चलना होगा लेकिन चली कोई नहीं, स्वयं इन्दिरा गांधी ने कहा था ‘‘समाजवाद की मेरी अपनी परिभाषा है।” विपक्ष ने संविधान संशोधन द्वारा पश्चिम बंगाल का बेरूबारी पाकिस्तान को देने का विरोध तो किया लेकिन बाकी का नहीं। यदि संविधान में संशोधन करना ही हो तो अब एक और संशोधन करके सभी संशोधन निरस्त किए जाएं और डाक्टर अम्बेडकर के संविधान को मूल रूप में लागू किया जाए।

ये भी पढ़ें- अटल बिहारी वाजपेयी पर विशेष : ‘हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा’

ये भी पढ़ें- सरदार वल्लभ भाई पटेल सिर्फ लौह पुरुष तक ही सिमट गए, उनके भीतर का किसान नेता किसी को याद नहीं

ये भी पढ़ें- असरदार देश को बनाने वाले सरदार 

ये भी पढ़ें- स्वतंत्रता दिवस : हमें अलगाव के बीज भी तलाशने चाहिए...

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.