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दिल्ली की देहरी : गुड़गांव से गुरूग्राम की ऐतिहासिक यात्रा  

Delhi ki Dehri

आज राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दिल्ली और गुड़गांव भौगोलिक निकटता के कारण एक दूसरे के सहोदर शहर कहे जा सकते हैं। जबकि गाजियाबाद और फरीदाबाद के भी इस क्षेत्र में होने के कारण यह जुड़ाव नहीं है। दोनों शहरों के संबंधों के इस सूत्र की कहानी इतिहास में छिपी है। दुनिया भर की आई टी कंपनियों में साइबर सिटी के ठिकाने के रूप में जाना जाने वाले गुड़गांव का इतिहास नाम से लेकर राजनीतिक सीमाओं और आबादी के स्वरूप तक परिवर्तनशील रहा है। दो बरस पहले ही हरियाणा सरकार ने विशाल मॉल, बहुमंजिला आवासीय घरों और आधुनिक सुविधा संपन्न दफ्तरों वाले गुड़गांव जिले का नाम बदलकर उसके प्राचीन वर्णन के अनुरूप गुरूग्राम करने का फैसला किया था।

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लोकप्रिय जनश्रुति के अनुसार, महाकाव्य महाभारत में पांडवों के शिक्षक गुरु द्रोणाचार्य से गुड़गांव को अपना नाम मिला। ऐसा कहा जाता है कि पांडवों ने द्रोण को गुरुदक्षिणा के रूप में एक गांव उपहार में दिया था, इसलिए इस क्षेत्र को गुरुग्राम (गुरू का गांव) के रूप में जाना जाने लगा। जो कि समय के चक्र में घिसकर गुड़गांव हो गया। जबकि महाभारत में गुरुग्राम शब्द का कोई उल्लेख नहीं मिलता है।

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आजादी से पहले यह शहर गुड़गांव मसानी के नाम से जाना जाता था। वर्ष 1883 के गजेटियर के अनुसार, शहर को गुड़गांव मसानी का नाम दिया गया था। इसमें मुख्य रूप से गुड़गांव गांव आता था, जहां पर शीतला माता का एक प्रसिद्ध मंदिर था। यह मंदिर मूल रूप से मसानी मंदिर के नाम से जाना जाता था, जहां पर मसाली मेला लगता था। तब इसी कारण से यह क्षेत्र गुड़गांव मसानी के रूप में मशहूर था। उस समय में भी करीब 20,000 भक्त मंदिर में दर्शन के लिए आते थे। यह शहर अतीत में भी अपनी बदलती भौगोलिक सीमाओं का साक्षी रहा है।

मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में यह जिला दिल्ली और आगरा के सूबों में आता था। जिसमें आंशिक या पूर्ण रूप से दिल्ली, रेवाड़ी, सुहार पहाड़ी और तिजारा शामिल थे। मुगलिया सल्तनत के पतन के साथ पड़ोसी शासकों के आपसी संघर्ष के कारण यह क्षेत्र अशांत रहा। 1803 में अंग्रेजों के सिंधिया के साथ सुरजी अर्जुनगांव की संधि के बाद यह अंग्रेजी राज के तहत आ गया। सराधना की बेगम समरू की सेना की निगरानी करने के हिसाब से शहर में सबसे पहले अंग्रेजों की घुड़सवार टुकड़ी ने डेरा जमाया। जिसकी प्रमुख छावनी शहर के दक्षिण-पूर्व दिशा में डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर झारसा गांव में थी। वर्ष 1821 अंग्रेजी राज की सीमा के अजमेर तक फैलने के बाद रेवाड़ी तहसील के भारावास से सिविल (नागरिक) कार्यालयों को हटा दिया गया।

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अंग्रेजों ने यमुना नदी से आगे न बढ़ने की अपनी नीति के कारण इस जिले को परगनों में बांट दिया। अंग्रेजी राज के वफादार सरदारों को उनकी सैनिक सेवाओं की एवज में विभिन्न परगनों को बतौर जागीर इनाम दी। जबकि बाद के समय में ये जागीरें वापिस ले ली गई और सीधे अंग्रेजी शासन के नियंत्रण में आ गई। 1836 में इस संबंध में अंतिम महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ। 1857 में हुई आजादी की पहली लड़ाई तक जिले का स्वरूप अपरिवर्तित रहा। जबकि उसके बाद इसे उत्तर पश्चिमी प्रांत से हटाकर पंजाब सूबे में मिलाया गया। 1857 के बाद पगगना कोट कसम को जिले में मिलाया गया जबकि 1860 में उसे जयपुर रियासत को दे दिया गया।1861 में, जिले को पुर्नगठित करके गुड़गांव, फिरोजपुर झिरका, नूंह, पलवल और रेवाड़ी पांच तहसीलों में बांट दिया गया।

यहां तक कि 20 वीं सदी में भी जिले की संरचना बदलती रही। तत्कालीन दिल्ली जिले के तीन तहसीलों में से बल्लभगढ़ एक तहसील था और वर्ष 1912 में इस तहसील का एक हिस्सा गुड़गांव जिले में स्थानांतरित किया गया। यह जिले की नई छठी तहसील थी, जिसे बल्लभगढ़ के नाम से ही में नामित किया गया। 1931-41 में नदी तटीय क्षेत्र में नदी के पाट बदलने के कारण गुड़गांव जिले और उत्तर प्रदेश के बीच सीमा का साधारण-सा परिवर्तन हुआ।

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जबकि इससे अगले दशक में, 1950 के प्रांत और राज्यों के एक आदेश के तहत, शाहजहांपुर सहित जिले के नौ गांवों को राजस्थान में स्थानांतरित कर दिया गया। जबकि जिले को पटौदी रियासत के विलय और राजस्थान से दो गांवों तथा पटियाला-पूर्वी पंजाब राज्य संघ (पेप्सू)से 78 गांवों के हस्तांतरण से फायदा हुआ। 1966 में, पंजाब में से हरियाणा के एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आने के बाद गुड़गांव हरियाणा का दक्षिणी जिला था। 1972 में एक और परिवर्तन रेवाड़ी तहसील को गुड़गांव जिले से निकालकर महेंद्रगढ़ जिले में शामिल करने से हुआ। 15 अगस्त 1979 में गुड़गांव जिले में से एक नया जिला फरीदाबाद बनाया गया, जिसमें बल्लभगढ़ और पलवल तहसीलों को मिला दिया गया। जबकि क्षेत्र की अंतिम पुनर्रचना वर्ष 2004 में हुई जब गुड़गांव से एक और जिला मेवात बनाया गया।

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