दिल्ली के पुराना किला के महाभारत के साथ संबंध की बात, हमेशा से एक अबूझ पहेली रही है। महाकाव्य में पाडंवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ से इस लोकप्रिय स्मारक के जुड़ाव की गुत्थी को पुरातत्व की सहायता से सुलझाने का प्रयास है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने पुराना किला के पास शेर मंडल में चित्रित मिट्टी के बर्तनों के मिलने की आशा में उत्खनन आरंभ किया है, जिससे यह सिद्ध हो सकेगा कि महाभारत काल में यह किला आबाद था। इससे पहले भी भारतीय पुरातत्वीय सर्वेक्षण ने पुराना किला में 1955, 1969 और 1973 में उत्खनन कार्य किया था।
ऐसी प्रबल मान्यता है कि पांडवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ ही वर्तमान की दिल्ली का पुराना किला है। शम्स सिराज अफीफ की 14 वीं सदी में लिखी किताब “तारिख-ए-फिरुजशाही” में लिखा है कि इन्द्रप्रस्थ किसी परगना का मुख्यालय हुआ करता था। पश्चिम दिल्ली के नारायणा गांव से 14 वीं सदी के एक अभिलेख में भी इन्द्रप्रस्थ का उल्लेख है। अबुल फजल ने 16 वीं सदी में लिखी अपनी पुस्तक “आइन-ए-अकबरी” में लिखा है कि हुमायूं का किला उसी स्थान पर बनाया गया था जहां कभी पांडवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ अवस्थित थी।
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इतिहासकार उपन्दिर सिंह अपनी पुस्तक “प्राचीन एवं पूर्व मध्यकालीन भारत का इतिहास पाषाण काल से बारहवीं शताब्दी तक” में लिखती है कि वास्तव में 19 वीं सदी के अंत तक पुराने किले के भीतर इन्द्रप्रस्थ नाम का एक गांव हुआ करता था। वर्ष 1954 से 1971 के बीच पुराना किला में हुई खुदाई के दौरान चौथी शताब्दी से 19 वीं सदी के बीच की पुरातात्त्विक तहें चिन्हित की गई। किन्तु इसी क्षेत्र से चित्रित धूसर मृद्भभाण्डों की कुछ प्राप्तियों से ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि यहां और प्राचीन सभ्यता का अवशेष का सम्बन्ध महाभारत काल से निश्चित रूप से रहा हो, ऐसी पुष्टि नहीं की जा सकती।
“दिल्ली अतीत के झरोखे से” पुस्तक में मंजू सिन्हा लिखती है कि पुराना किला इंद्रपत गांव के क्षेत्र में है। शायद इन्द्रप्रस्थ बदलते बदलते इंद्रपत हो गया। इन्द्रपत गांव के लोगों की धारणा है कि वहां पाई जाने वाली पुरानी हिन्दू इमारतें पांडवों की राजधानी से सम्बंधित है। यह तथ्य है कि इन्दरपत के नाम से जाना जाने वाला एक ग्राम, जो स्पष्ट है कि इन्द्रप्रस्थ का अपभ्रंश है, वर्तमान शताब्दी के प्रारंभ तक पुराना किला में स्थित था जबकि उसको अन्य गांवो के साथ राजधानी नई दिल्ली का निर्माण करने के लिए हटाया गया।
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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की प्रकाशित पुस्तक दिल्ली और उसका अंचल के अनुसार, मूलतः पुराना किला यमुना किनारे स्थित था। इस किले के उत्तरी और पश्चिमी किनारों पर भूमि का गहरा दबा होना यह संकेत देता है कि इन किनारों पर नदी से जुड़ी हुई एक चौड़ी खाई मौजूद थी और किले में मुख्य भूमि से किले को जोड़ने वाले एक उपसेतु के जरिए पहुंचा जाता था। पुराना किला प्राचीन टीले पर स्थित है जिसमें शायद महाभारत के इन्द्रप्रस्थ नगर के खंडहर छिपे हैं।
सोलहवीं शताब्दी में बने पुराने किले के नीचे परीक्षण के तौर पर 1955 में खोदी हुई खाई से बढ़िया भूरे रंग के चित्रित मिट्टी के बर्तनों से पता चला है जिन पर सामान्यतः काले रंग में साधारण चित्रण किए गए हैं। ये बर्तन, जो पुरातत्व-वेत्ताओं के बीच भूरे रंग के चित्रित बर्तनों के नाम से विख्यात है, प्रायः ईसा से 1000 वर्ष पूर्व के हैं।
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“दिल्ली और उसका अंचल” बताती है कि सन् 1955 में पुराने किले के दक्षिणी-पूर्वी भाग में परीक्षण के तौर पर खोदी गई कुछ खाइयों में बाद के कुछ स्मृतिचिन्ह और अवशेषों के अलावा चित्रित भूरे रंग के बर्तनों के टुकड़े निकले। चूँकि ऐसे लक्षणों वाले बर्तन महाभारत की कहानी से सम्बद्व अनेक स्थलों पर पहले भी पाये गए थे और इनका काल 1000 ईसा पूर्व निर्धारित किया गया था, इनके यहां से प्राप्त होने से महाभारत के प्रसिद्व पांडवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ का पुराने किले के स्थल पर होने वाली परंपरा को बल मिला।
पुराना किला से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर इतना ज्ञात होता है कि कच्ची मिट्टी के घर सरकंडों एवं सरपत से छाकर बनाये जाते थे। मूलतः इस संस्कृति के लोग कृषि एवं पशुपालन करने वाले थे अतः इनकी अर्थव्यवस्था भी ग्रामीण खाद्य उत्पादन ही थी। उत्खनन में ताम्र उपकरण, यथा-खुरचनी, बेधक आदि प्राप्त हुए हैं। दिल्ली के पुराने किले के उत्खनन से कुषाण कालीन ईंटों का एक निर्माण प्राप्त हुआ है।
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मीनाक्षी सिन्हा की पुस्तक “गुप्त युग, एक मुद्राशास्त्रीय अध्ययन” के अनुसार, पुराना किला के उत्खनन से गुप्त काल में भवन निर्माण में पक्की ईटों का प्रयोग, मुहरें, धनुर्धारी प्रकार के सोने के पानी चढ़े सिक्के, मृण-मूर्ति, शंख चूड़ी, मुखलिंग आदि उल्लेखनीय है। योगानन्द शास्त्री अपनी “प्राचीन भारत में यौद्वेय गणराज्य” पुस्तक में लिखते हैं कि इस प्रकार की एक मुद्रा ओलार प्रूफर को भगोला (पलवल) के निकट से मिली है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा पुराना किला दिल्ली में कराये गये उत्खनन में भी ये मुद्राएं मिली हैं।
पुराने किले की खुदाई से मुख्यतः प्रारंभिक-ऐतिहासिक काल से लेकर मध्यकाल तक दिल्ली के आसपास आवास होने के प्रमाण मिलते हैं। यहां सल्तनत, राजपूत, उत्तर-गुप्तकाल, शक, कुषाण तथा शुंग काल से लेकर नीचे मौर्य काल तक के घरों, कुओं और गलियों के प्रमाण मिले हैं। पुराना किला के मुख्य प्रवेश द्वार से घुसते ही दाहिनी तरफ एक पुरातत्वीय संग्रहालय भी है। यहां पर भारतीय पुरातत्वीय सर्वेक्षण की ओर से पुराना किला में किए उत्खनन कार्य (1955 में और फिर दोबारा 1969-1973 तक) में मिली वस्तुएं प्रदर्शित है।
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इन उत्खननों से पुराना किला पर लगभग 1000 ईसा पूर्व के प्राचीनतम उपनिवेशों के साक्ष्य मिलते हैं जो चित्रित मिट्टी के बर्तनों तथा मौर्यों से लेकर शुंग, कुषाण, गुप्त, राजपूत तथा सल्तनत काल से होते हुए मुगल काल तक चले आए सतत सांस्कृतिक क्रम से परिलक्षित होते हैं। यहां खुदाई से प्राप्त विभिन्न अवधियों की अनेक प्रकार की वस्तुएं तथा मिट्टी के बर्तनों के साथ दिल्ली के विभिन्न भागों से प्राप्त पुरावस्तुएं भी प्रदर्शित हैं।
आदित्य अवस्थी अपनी किताब “नीली दिल्ली प्यासी दिल्ली” में लिखते हैं कि पुराना किला दिल्ली के दो पुराने और ऐतिहासिक शहरों-दीन पनाह और शेरगढ़ का केंद्र रहा है। यह भी माना जाता है कि यह किला उसी जगह पर बना माना जाता है, जहां महाभारत काल में इंद्रप्रस्थ का किला हुआ करता था।
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इस किले में अफगान शेरशाह सूरी और मुगल शासक हुमायूं द्वारा कराए गए निर्माण आज भी देखे जा सकते हैं। 13 साल की उम्र में ही बादशाह बनने वाला अकबर इसी किले में रहा करता था। इसी किले के बाहर उसकी हत्या करने की कोशिश हुई थी। इसी किले में बने पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिर जाने के कारण हुमायूं की मौत हो गई थी।
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