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किसान मुक्ति यात्रा (भाग-5) : महाराज से मुलाक़ात और इन्दौर में प्रवास

मंदसौर

जंतर-मंतर पर तमिलनाडु के किसानों के प्रदर्शन और मंदसौर कांड के बाद शुरू हुई किसान मुक्ति यात्रा, जो मध्यप्रदेश समेत 7 राज्यों में गई। उस यात्रा में देश कई राज्यों के 130 किसान संगठन और चिंतक शामिल हुए। किसानों की दशा और दिशा को समझने के लिए वरिष्ठ पत्रकार प्रभात सिंह इस यात्रा में शामिल हुए। एक फोटोग्राफर और पत्रकार के रूप में उनकी डायरी का पांचवां भाग

पहला भाग यहां पढ़ें-किसान मुक्ति यात्रा और एक फोटोग्राफर की डायरी (भाग-1)

दूसरा भाग यहां पढ़ें-

किसान मुक्ति यात्रा और एक फोटोग्राफर की डायरी (भाग-2)

तीसरा भाग- किसान मुक्ति यात्रा (भाग-3) : किसान नेताओं की गिरफ्तारी और अफीम की सब्जी

चौथा भाग- किसान मुक्ति यात्रा (भाग-4) : स्वागत में उड़ते फूल और सिलसिला नए तजुर्बात का

रात को पड़ाव इन्दौर में तय था। मध्य प्रदेश में किसान मुक्ति यात्रा का आख़िरी डेरा। अगले रोज़ बड़वानी होते हुए रात तक हमें महाराष्ट्र में दाख़िल होकर नन्दूरबार पहुंचना था। इन्दौर में एक बड़ी सभा होनी थी। वहां पहुंचने से पहले डेरे को लेकर संशय की स्थिति थी। जहां सभा थी, वह किसी आश्रम का टिन शेड वाला काफी बड़ा हॉल था। यह इंतज़ाम डॉ. सुनीलम् के सौजन्य से था। सांसद राजू शेट्टी के हवाले से किसी भय्यू जी महाराज ने यात्रा की आवभगत और ठहरने की व्यवस्था कर रखी थी।

वीएम सिंह इन दोनों इंतज़ामों को लेकर पशोपेश में थे। राजू शेट्टी ने बताया कि खाने का इंतज़ाम हो चुका है, ऐसे में मना करना मुनासिब नहीं रहेगा। डॉ। सुनीलम् की राय थी कि सभास्थल पर खाना खाकर सब लोग सोने के लिए दूसरे ठिकाने पर चलें। देर तक इसी को लेकर बात रही औऱ बिना किसी नतीजे पर पहुंचे हम इंदौर पहुंच गए। हां, रास्ते में मिले स्थानीय संयोजक से वीएम सिंह ने सभा के लिए प्रशासन की मंजूरी की बाबत पूछ लिया, तो पहले थोड़े संकोच और अकड़ से उन्होंने बताया कि वे जाकर बैठ गए तो आख़िर इजाजत कैसे न मिलती? संदर्भ देवास की सभा में हुई घोषणा का था और उनके लहज़े से यह अंदाज़ लगाना बहुत मुश्किल नहीं था कि अफसरों ने सभा के लिए पहले भी मना नहीं किया था। फिर यह बात ही क्यों निकली, यह समझने की भला मुझे क्या ज़रूरत थी?

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पहले प्रेस क्लब में बातचीत होनी थी। वहां राजेंद्र माथुर सभागार में मीडिया वाले जुटे हुए थे। मेधा ताई वहां पहले ही पहुंच गईं थीं। मेरा संकल्प पक्का था सो मैं घूमने के लिए बाहर निकल गया। मन ही मन रात में सर्राफा बाज़ार जाने और वहां के किसिम-किसिम के ज़ायके साझा करने की योजना बनाता रहा। पुराने इंदौरी साथी किरन मोघे की याद आई। लौटा तो कांफ्रेंस ख़त्म हो रही थी। वहां श्रवण जी मिल गए, श्रवण गर्ग मेरे भास्कर के दिनों में समूह सम्पादक होते थे, जिन्हें प्यार से मगर आपस में ही हम दुर्वासा के नाम जानते थे। बहुत प्रेम से मिले।

नए दौर की पत्रकारिता और नई पीढ़ी के पत्रकारों की अपने समय औऱ समाज की समझ पर निराशा जताई। उन्होंने तर्क दिया कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के मुताबिक़ सरकार अगर किसानों को फसलों की लागत का डेढ़ गुना दाम दे देती है, तो बाजार में हर जीन्स के दाम बढ़ जाएंगे। ऐसे में शहरी, ख़ासतौर पर मध्य वर्ग इस महंगाई से नाराज़ होगा। और इन दोनों में किसी एक को चुनना पड़े तो ज़ाहिर है कि किसान या मजदूर सरकार की प्राथमिकता नहीं हो सकते। किसी अख़बारनवीस से बात करते हुए उन्होंने पूछा कि सामने की क़तार में बैठकर लगातार बेढब किस्म के सवाल पूछने वाला वह शख्स कौन था? तब तक मेधा पाटकर ने उन्हें पुकारा, अगले रोज़ बड़वानी आने का न्योता दिया। बात करते हुए धीरे-धीरे हम बाहर आ गए।

शाम हो गई थी। और सभा का समय भी। काफी भव्य मंडप में ख़ूब भीड़ और विशाल मंच। बाहर से आए नेताओं को अपने बीच पाकर स्थानीय नेताओं का जोश माइक्रोफोन पर झलकने लगा। जोश इस क़दर कि उनमें से किसी ने कहा कि अब सभा के संचालन के माइक समन्वय समिति के प्रमुख वीएम सिंह को देता हूं। यह सुनकर उन्हीं में से कोई दौड़ा और ग़लती सुधारी। यहां के भाषणों में कई नए तत्व शामिल हुए। स्थानीय नेताओं ने यूपीए सरकार के दौर में किसानों की बेहतरी के लिए किए गए कामों का ब्योरा देकर तारीफ़ करनी शुरू कर दी।

किसान यात्रा के राजनीतिक पक्षधरता से बचने के मक़सद के उलट यह अलग किस्म का वक्तव्य था। राज़ तब खुला, जब योगेंद्र यादव बोलने आए। उन्होंने बताया कि राउ से कांग्रेस के विधायक जीतू पटवारी भी सभा में मौजूद हैं और कहा कि जनता के नुमाइंदे अगर जनता की तक़लीफें सुनने बैठे हैं तो इसकी तारीफ़ की जानी चाहिए। योगेंद्र ने युवा सेना बनाने की तारीफ़ करते हुए सब कुछ छोड़कर सिर्फ़ किसानों के हितों के लिए संघर्ष करने को पांच साल देने का आह्वान किया। वह कुशल वक्ता हैं सो उन्होंने पांच वर्ष देने के संकल्प की प्रभावशाली व्याख्या भी दी। तालियां बजनी ही थीं, बजती रहीं। बाद में पता चला कि सभा का आयोजन करने वाले सज्जन दरअसल विधायक के भतीजे ही थे। खाने और सोने की जगह का मसला चूंकि हल नहीं हुआ था, सो इसे लोगों को विवेक पर छोड़कर हम लोग बाहर आ गए।

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अब हमारा रूख़ भय्यू जी महाराज के डेरे की तरफ़ था। बिजली के लट्टुओं की रोशनी में दूर से ही चमकती उस बहुमंज़िला इमारत की पहचान मुश्किल नहीं थी। महाराज की ‘मोर दैन लाइफ साइज़‘ छवियां उस इमारत की बाहरी सज्जा का हिस्सा थीं। जूते तो ख़ैर बाहर उतारने ही थे क्योंकि सामने ही बाईं तरफ छोटी-बड़ी कई देव प्रतिमाएं स्थापित थीं। दाईं ओर शीशे से झांकती कई किताबें-पत्रिकाएं थीं, जिनके टाइटिल अलग-अलग थे मगर आवरण पर अलग-अलग मुद्राओं में महाराज का चेहरा ही था। बिना दाढ़ी और जटा-जूट वाले उस गौरवर्णी युवक की छवि महाराज या गुरुओं की प्रचलित छवि से एकदम अलग थी।

वीएम सिंह और राजू शेट्टी के साथ कुछ लोग सामने की ओर चले गए, जहां गणपति की एक मोहक प्रतिमा विराजमान थी। देखा कि वहां बैठे कोई सज्जन पूजा करा रहे थे, तिलक और कलावा हुआ। फिर वे सारे एक संकरे ज़ीने से ऊपर जाकर ग़ायब हो गए। इधर-उधर घूमकर समझने की कोशिश करता रहा और जब कुछ पल्ले नहीं पड़ा तो फिर मैं भी ऊपर चला गया। वहां काफी भीड़ थी। बाईं ओर एक छोटे कमरे में फर्श पर तमाम लोग जमा थे। सारे नेता भी वहीं बैठे मिले। दीवार की तरफ पालथी मारकर महाराज बैठे मिले। जहां जगह मिली। मैं भी जम गया। मेरे दाहिनी तरफ एक सिंहासननुमा कुर्सी पर गुरु महाराज की एक प्रतिमा थी। सामने की तरफ क्रिस्टल की गजानन की मूर्ति और पूरे कमरे में कई तरह की गणेश प्रतिमाएं।

महाराज अपने ट्रस्ट की ओर से चलाई जा रही जन कल्याण की योजनाओं के बारे में, शिक्षा और सफाई के लिए किए गए कामों के बारे में बता रहे थे। किसी नए एप्लीकेशन के बारे में बताया और बाईं तरफ घूमकर देखा तो एक युवक ने मैकबुक खोलकर नेताओं की ओर बढ़ा दी। सभा के बारे में ज़िक्र हुआ तो अफसरों के रवैये की बात भी चली। महाराज ने बताया कि इंदौर के अफसर तो बहुत सहयोग करने वाले हैं। उनके इशारा करने पर फिर किसी ने फोन लगाकर महाराज को पकड़ा दिया। दूसरी तरफ डीआईजी थे। महाराज ने राजू शेट्टी के बारे में बताया और फिर बात करने के लिए फोन उनकी ओर बढ़ा दिया। वही सब सौजन्य वाली बतकही।

मेरी निगाह अपने पास बैठे युवक पर पड़ी, तो ग़ौर किया कि उसके फोन के स्क्रीन पर महाराज और नेता चमक रहे थे। महाराज दरअसल फेसबुक पर लाइव थे, काफी देर से। उपहार में मिली सूर्योदय पत्रिका बाद में देखी तो मालूम हुआ कि इंदौर में उपस्थित होने पर रात को आठ से दस बजे तक गुरुदेव के शेड्यूल में मीडिया, सोशल मीडिया, प्रिंटिंग पब्लिकेशन मीटिंग, बैक ऑफिस मीटिंग और बाहर के व्यक्तियों द्वारा परमपूज्य गुरुदेवजी का साक्षात्कार दर्ज़ था। यानी इस अवधि में गुरुदेव का सोशल मीडिया पर लाइव रहने का कार्यक्रम पूर्व निर्धारित नियम है। ऐसी पत्रिकाओं में छपने वाली सामग्री के पाठकों को मैं वहां साक्षात देख रहा था और उनके जीवट की दाद भी दे रहा था।

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वहां अच्छा-ख़ासा समय लगाकर सोने के लिए हम बारातघर पहुंचे। खाने को जो मिल सका, उसकी महिमा का बखान यहां उचित नहीं होगा। पूरे दिन की थकी काया को आराम की दरकार थी और जिस हाल में सोने का इंतज़ाम था, वहां उमस इस क़दर थी कि कई लोग गद्दे खींचकर खुली छत पर बिछाकर लेट गए। मच्छरों की मौजूदगी का पता चलने के बाद यह रिस्क नहीं ले सकता था। गोरखपुर के मच्छरों को जानता हूं, इन्दौर वाले इस लिहाज़ से अजनबी थे। नीचे एक कमरे में बमुश्किल तमाम जगह मिली। फोन चार्ज करने लगाया और बेसुध सा पड़ गया। बड़ी ग़नीमत कि वहां पंखा था।

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