विपक्ष के लिए नोटबन्दी जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया है और देशवासी भी इतने बेचैन हैं मानो चन्द हफ्तों में करेंसी के बगैर यह विश्व समाप्त हो जाएगा। अतीत में हम बिना करेंसी रह चुके हैं और आदिवासी आज भी इसके बिना रहना जानते हैं, आधुनिक दुनिया के लोग भी करेंसी का सीमित प्रयोग ही करते हैं।
सवाल यह नहीं कि करेंसी की व्यवस्था को तिलांजलि दे दें लेकिन सवाल है हम दूसरे और अधिक गम्भीर मसलों पर सोचना बन्द न करें। करेंसी के बगैर जीवित रहने के लिए बार्टर सिस्टम अपनाकर, क्रेडिट कार्ड नहीं तो उधार के सहारे कम से कम कुछ दिन जिन्दा रह सकते हैं यदि हमें यह एहसास न कराया जाए कि तुम्हारी दुनिया समाप्त हो रही है। मोदी ने अपनी जिन्दगी का सबसे बड़ा जुआ खेला है और बहुत से लोग इससे सहमत और कुछ असहमत हैं। हमें नकारात्मक आवाजें नहीं उठानी चाहिए इस उम्मीद में कि शायद अच्छे दिन आ ही जाएं। हमारे अस्तित्व को चुनौती देते हुए अन्य विषय हैं जिन्हें ध्यान से ओझल नहीं करना चाहिए।
हम यह महसूस नहीं कर पाते कि धरती पर जितने भी प्राणी और वनस्पति विद्यमान हैं सब एक-दूसरे पर निर्भर हैं। जब हम लकड़ी ईंधन जलाते हैं तो वायुमंडल में धुआं छोड़ते हैं और पेड़-पौधे इसे अपने भोजन के लिए प्रयोग करके बदले में ऑक्सीजन अर्थात प्राणवायु देते हैं। यदि पेड़ पौधे न हों तो मनुष्य के लिए सांस लेने को प्राणवायु नहीं बचेगी और मानव जाति का अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा। जल में रहने वाली मछलियां और अन्य जीव जल को शुद्ध करते हैं लेकिन जल प्रदूषण के कारण जब मछलियां मरने लगेंगी तो जल को शुद्ध कौन करेगा। वृक्ष हमें शुद्ध वायु, अच्छे फल, औषधियां, ईंधन और पशुओं का चारा प्रदान करते हैं साथ ही उपजाऊ मिट्टी की परत को क्षरण से बचाते हैं, सूखी पत्तियों से उसे उर्वरा बनाते हैं और वर्षा के प्रेरक बनते हैं। यदि वृक्ष कटते रहे तो यह सब हमें कैसे प्राप्त होगा।
मनुष्य अपने भोजन के लिए वनस्पतियों पर निर्भर है। वह चाहे शाकाहारी हों या मांसाहारी, अपने भोजन के लिए प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से वनस्पति द्वारा बनाए गए भोजन पर निर्भर रहते हैं। शाकाहारी प्राणी तो वनस्पति का सेवन करते ही हैं और मांसाहारी प्राणी भी जिन जन्तुओं को खाते हैं वे वनस्पति पर निर्भर रहते हैं। कीड़े मकौड़े परागण करके फूलों से बीज बनाते हैं, सांप चूहों को खाकर चूहों की आबादी नियंत्रित रखता है, केंचुए मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं, पेड़-पौधे वायु को शीतलता और प्राण वायु प्रदान करते हैं।
हमारे देश में देवी-देवताओं का वृक्षों के साथ संबंध माना गया है। पीपल का सम्बन्ध यक्ष से, कदम्ब का कृष्ण से, बेलपत्र का शंकर से, कमल का विष्णु से, अशोक का कामदेव से और कचनार का लक्ष्मी से। इसी प्रकार पशु-पक्षियों के साथ भी देवी देवताओं का सम्बन्ध स्थापित है। शंकर की सवारी नन्दी , विष्णु की मयूर, गणेश की मूषक, दुर्गा की सिंह, लक्ष्मी की उलूक और न जाने कितने पशु-पक्षियों ने इसी प्रकार सम्मानित स्थान प्राप्त किए हैं। भगवत गीता में भगवान कृष्ण ने अपने को वृक्षों में ‘अश्वत्थ’ अर्थात पीपल कहा है और भारत की नारियां वटवृक्ष की पूजा करती हैं। वनस्पति के बिना पूजा तो बन्द होगी ही प्राणवायु भी नहीं मिलेगी, हमारा दम घुट जाएगा।
पूजा अर्चना के लिए एक हिन्दू जब बैठता है तो फूल, दूर्वा, कुश, चन्दन, तुलसी दल, बेलपत्र, आम के पत्ते, जल, फल आदि उसके सामने होते हैं। इनके बिना तो पूजा अर्चना ही सम्भव नहीं। गाँवों में आज भी घरों में तुलसी का पौधा, नीम के पेड़ के नीचे बंधी गायें व तालाब में कमल के खिले पुष्प और घर के चारों ओर हरियाली देखने को मिल जाती है। हमारे देश की मान्यता रही है कि यदि हम प्रकृति में पाए जाने वाले वन, वनस्पति, भेड़, बकरी गाय, भैंस और हिरन को खाने की वस्तुएं मानेंगे तो अपने को प्रकृति का अंग नहीं समझ सकेंगे। भारत के लोगों ने कच्छप, शूकर, मछली और नरसिंह के रूप में भी परमात्मा के दर्शन किए थे। भारतीय सोच रहा है कि पशु पक्षियों, कीटपतंगों और वनस्पति को भी जीवित रहने का उतना ही अधिकार है जितना हमें और उनके बिना हमारा जीवन संकट में पड़ जाएगा।
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