यही न बताएं मोदी ने गलत किया, बताएं सही क्या था

cash ban

जनता कतारों में शान्ति से खड़ी है अपने नम्बर की प्रतीक्षा में और आप हल्ला कर रहे हैं तो लगता है ‘‘चोर मचाए शोर।” आप चार हजार के नोट लेकर हवा में लहराइए और कहिए देखो यहां अम्बानी, अडानी, बजाज नहीं हैं और मैं खड़ा हूं, इससे जनता प्रभावित नहीं होगी। या तो आप कहें कि काला धन कोई समस्या नहीं है, इसे निकालने की जरूरत नहीं अथवा बताइए कि तरीका क्या था। यदि आपको सही तरीका मालूम है तो पिछले 70 साल में अजमाया क्यों नहीं। मोदी को करारा जवाब तब होगा जब आप कहें आओ हम अपनी पार्टी को सूचना के अधिकार में लाते हैं आप भी लाइए। हम अपनी आय के स्रोत इंटरनेट पर डालते हैं आप भी डालिए।

यह सही हो सकता है कि मोदी एकाधिकार की तरफ़ बढ़ रहे हैं, लेकिन तानाशाह नहीं बन सकते, वह काम सेना का है। मोदी ने आरएसएस को कैसे समझाया होगा कि गुरुदक्षिणा में आने वाला करोड़ों रुपया कालाधन है क्योंकि यह जानने का कोई उपाय नहीं कि स्वयंसेवक ध्वजप्रणाम करके जो लिफाफा ध्वज रूपी गुरु को समर्पित करता है उस पर टैक्स दिया जा चुका है या नहीं। मन्दिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों और गुरुदक्षिणा में चेक से पैसा स्वीकार होना चाहिए। राजनैतिक पार्टियों का चन्दा भी चेक से ही भुगतान होना चाहिए। पहले पता लगाना चाहिए था कि कालाधन है कहां-कहां उसके बाद नोट बन्द करते या सिक्के।

विश्वास मानिए गाँव का गरीब मोदी को गालियां नहीं दे रहा है क्योंकि उसकी समझ में आ गया है कि मोदी के इस कदम से ‘‘मोटा मानुस” यानी सम्पन्न लोगों को अधिक चोट पहुंची है। जब नेता लोग उंगली में स्याही लगाने का विरोध करते हैं तो लोग सोचते हैं जरूर इन्होंने भाड़े के आदमी खड़े किए हैं इसलिए बुरा लग रहा है। राजनेता खुलेआम यह नहीं कह रहे कि कालाधन हटाना गलत है बल्कि यह कह रहे हैं कि तैयारी के साथ होना चाहए था। इस बात में दम है।

मोदी ने स्वयं कहा है तीन-चार लोगों के अलावा किसी को नोटबन्दी की भनक नहीं थी। ध्यान रहे तीन-चार लोगों का दिमाग और तीस चालीस का दिमाग इसमें अन्तर तो होगा। जब सालभर का बजट बनाते हैं तो गोपनीयता बनाए रखने के लिए तीस चालीस या जितने भी लोग एक बिल्डिंग में बन्द होकर दुनिया से कटे हुए विचार मंथन करते हैं। नोटबन्दी पर भी ऐसा ही मन्थन हो सकता था तब एटीएम में नोट मिसफिट होने, दूर दराज तब नोट पहुंचाने जैसे मसले न आते। गोपनीयता बनाए रखते हुए भी मौजूदा ढांचे में काम बन जाता।

राहुल गांधी और केजरीवाल को समझना चाहिए कि मोदी को जितनी ही गालियां देंगे उतना ही उनका नाम फैलेगा, लोगों की जिज्ञासा बढ़ेगी। यह सच है कि मोदी शायद राष्ट्रपति प्रणाली की ओर बढ़ रहे हैं लेकिन इसको गरीब जनता तभी दोषपूर्ण मानेगी जब आप बताएं इससे हानि क्या होगी। अखिलेश यादव का तरीका ठीक है कि आप अपनी उपलब्धियां बताएं केवल दूसरों की असफलता न गिनाएं। यदि सचमुच इन नेताओं को इतनी पीड़ा है तो सभी दल मिलकर एक वैकल्पिक सरकार बनाएं और वैकल्पिक कार्यक्रम पेश करें।

sbmisra@gaonconnection.com

Recent Posts



More Posts

popular Posts